शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

मैं मीडिया

नई सोच है..सच्चाई है.. इरादों में जान है
खबरों का तलबगार... लोकतंत्र का चौंथा खंभा हैं..
कहीं बांटते हैं खुशियां कहीं बांटते हैं हम गम
जातपात की चारदीवारी रोज यहां गिराते हैं
गेंद सा हाथों में तेरे विश्व को दिखलाता हूं
बेखबर होकर खबरों में जीता हूं
कभी कड़्वा, कभी कसैला.. कभी तीखा-कभी विषैला
कहीं फेंका गया तेज़ाब.. कहीं लूटा गया हिजाब
कहीं दहेज़ की आग में जल गयी सुहागिन
कहीं कचरे के ढेर में नवजात मिल रही है
फसल हुयी तबाह है.. मानसून है राह भटक रहा
कर्ज के नीचे दबा हुआ.. फांसी पर किसान लटक रहा
रुपया गिरा मजबूत है डॉलर.. खेल के मैदान से
कर्सी पर बैठने वालो को जमी की अहमियत याद दिलाते हैं
जोड़ता हूं समाज को जो बंट जाते हैं राजनीति के अखाड़ो में
एक बेहतर कल लिए मजहब से पहले देश को याद रखता हूं
मैं प्रबल मैं प्रखर..
नई सोच है..सच्चाई है.. इरादों में जान है

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

मां तेरा बेटा पत्रकार है

   

तू जानती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है
तेरी सीख से हर घर मेरा परिवार है
दिवाली है तुझे खुश दिखना होगा
शुभ लाभ तुझे खुद लिखना होगा
तु मुझे बेतहाशा याद करती होगी
मैं जहां रहूं मेरे साथ तेरा प्यार है
तू समझती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है
तेरे बेटे के कलम की दिवाली सबकी होगी
लोगों की खुशी में खुशी मेरा व्यवहार है
तू जानती है न मां तेरा बेटा पत्रकार है