नवरात्रि के नौ
रंग
आज से नवरात्रि का
शुभारंभ हो चुका है... और इसी के साथ घर घर में शुरू हो गई है देवी के अलग-अलग
रूपों की उपासना... नवरात्र के पहले दिन घरों में कलश स्थापना के साथ ही मां के
आगमन को लेकर विशेष तैयारियां की गई है... नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के
प्रथम रूप श्री शैलपुत्री का पूजन किया जाता है... मान्यता है कि नवरात्र के पहले दिन माता
शैलपुत्री के दर्शन से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है. वैवाहिक बाधा हो या पुत्र
प्राप्ति की अभिलाषा, मां अपने दर पर आने वाले
हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं.... मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल
और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है... नवरात्र के पहले दिन मां भगवती की
पूजा समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने वाली मानी जाती हैं... लेकिन अगर सही मुहूर्त
में कुछ खास विधि-विधान के साथ मां के मंत्रों का जाप कर लिया जाए तो देवी नौ
इच्छाओं के पूरा होने का वर दे देती हैं.... घर में लक्ष्मी स्थायी वास हो जाता है
और बेरोजगारों को नौकरी मिल जाती है. जो लोग संतान की खुशियों से वंचित हैं, उनका घर आंगन चहक उठता
है.... और रोगियों को मिलता है निरोगी काया का आशीर्वाद. यही नहीं व्यापार में आने
वाली अड़चनें भी मां के आशीर्वाद से दूर हो जाती हैं... नौ दिनों तक चलने वाला
शक्ति की आराधना का पर्व आज से शुरू हो गया... इन नौ दिनों तक मां दुर्गा के
विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाएगी... नवरात्र के पहले दिन देवी के शैली पुत्री
रूप की पूजा होती है. सुबह से ही देश के प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़
उमड़ रही है... क्योंकि भक्तों के द्वार पर मां की दस्तक से खुलने वाला है खुशियों
का द्वार... और शक्ति की भक्ति में डूब गया है पूरा संसार.... मां का नाम और जयकारे के जरिए भक्त मां तक पहुंचा
रहे हैं... कहते हैं पहले दिन की पूजा से मां के नौ रूपों का आशीर्वाद मिल जाता
है... और देवी अपने भक्तों को हर मुश्किल
से उबार लेती हैं... मां शैलपुत्री के दिव्य स्वरुप पर गौर करें तो उनके एक हाथ
में त्रिशूल है और दूसरे हाथ में कमल... मां की सवारी वृषभ की है. माता के दर्शन
को आया हर भक्त उनके दिव्य रूप के रंग में रंग जाता है... मां शैलपुत्री को लेकर
कहा जाता है कि मां पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया और
शैलपुत्री कहलाईं. माता एक बार किसी बात पर भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से काशी
आ गईं और जब भोलेनाथ उन्हें मनाने आए तो उन्होंने महादेव से आग्रह किया कि यह
स्थान उन्हें बेहद प्रिय लगा. तभी से माता अपने दिव्य रूप में बनारस में विराजमान
हैं... पंडितों का कहना है कि अगर पहले ही दिन मां की विधि विधान से पूजा कर कुछ
मंत्रों का जाप कर लिया जाए, तो घर में निश्चित रूप से
समृद्धि का वास हो जाता है...
माता चंद्रघंटा
मां दुर्गा की महाउपासना
की नवरात्रि में हर दिन मां के अलग-अलग स्वरूपों की साधना की जाती है और मां के हर
रूप की अलग महिमा भी है. नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती
है... मां चंद्रघंटा देवी मां दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं. इनके मस्तक पर घंटे के
आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण इन्हें
चंद्रघंटा देवी कहा जाता है. चंद्रघंटा देवी की आराधना से साधक में वीरता और
निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास होता है... आज नवरात्रि का दूसरा दिन
है.. इस बार दुनिया भर में नवरात्रि के दूसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जा रही
है... नवरात्र का तीसरा दिन भय से मुक्ति और अपार साहस प्राप्त करने का दिन होता
है... इस दिन मां के चंद्रघंटा स्वरुप की उपासना की जाती है... नवरात्रि के नौ
दिनों में देवी के 9 रूपों की पूजा की जाती
है... और माता के सभी 9 रूपों को पाप विनाशिनी भी कहा जाता है... आज मां चंद्रघंटा
की पूजा-अर्चना की जाती है... माता चंद्रघंटा के सिर पर घंटे के आकार का चंद्रामा
है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा
कहा जाता है. इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की
मुद्रा है... देवी चंद्रघंटा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है. उनका
ध्यान हमारे इस लोक और परलोक दोनों को सद्गति देने वाला है... इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है
इसीलिए मां को चंद्रघंटा कहा गया है. इनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला
है और इनके दस हाथ हैं. वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं. सिंह पर
सवार दुष्टों के संहार के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. माता के पूजा के दौरान घंटे की
भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य और राक्षस कांपते रहते हैं... नवरात्रि में
तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा का काफी महत्व है... कहा जाता है चंद्रघंटा देवी
की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता का विकास
होता है.. देवी चंद्रघंटा की कृपा से साधक को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं...
दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है और कई तरह की ध्वनियां सुनाईं देने लगती हैं...
मां चंद्रघंटा की पूजा करने से घर में शांति आती है और परिवार का कल्याण होता है.
मां को लाल रंग पसंद है.. इसिलिए मां चंद्रघंटा को भक्त लाल फूल.. लाल फल और गुड़
अर्पित करते हैं.... पूजा के दौरान माता के भक्त घंटा बजाकर माता को प्रसन्न करने
की कोशिश करते हैं.. पुराणों के मुताबिक ढोल और नगाड़े बजाकर मा चंद्रघंटा की पूजा
और आरती करने से शुत्रुओं की हार होती है... इस दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने
का विशेष विधान है. इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है.... नवरात्र के दिनों
में वैसे तो मां दुर्गा की कृपा बड़ी ही आसानी से मिल जाती है लेकिन मां को खुश
करने के लिए उनके हर स्वरूप की पूजा करने की विधि अलग हैं. मां चंद्रघंटा की
उपासना करने से भय का नाश होता है और साहस की प्राप्ति होती है. शत्रुओं का नाश
करने के लिए मां का आशीर्वाद बहुत जरूरी होता है और इसके लिए मां के मंत्र का जाप
करना बहुत कल्याणकारी माना गया है...
माता कुष्मांडा
दुखों को हरने वाली..
दुश्मनों का नाश करने वाली.. यश, बल और बुद्धि
प्रदान करने वाली माता कुष्मांडा देवी का आज दिन हैं.. कहा जाता है कि सीता को
बचाने के लिए राम ने रावण के ऊपर आक्रमण करने से पहले माता कुष्मांडा की पूजा की
थी.. वैसे नवरात्रों में मां भगवती के नौ अलग अलग रुपों की पूजा की जाती है... मां
भगवती को शक्ति कहा गया है... नवरात्रों के बारे में मान्यता है कि देवता भी इन
दिनों में मां भगवती की पूजा किया करते है... नवरात्रि में हर दिन देवी के अलग अलग
स्वरूपों की आराधना की जाती है. कुष्मांडा देवी की आराधना नवरात्रि के चौथे दिन
होती है. इस बार नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा और द्वितीया होने की वजह से
कुष्मांडा देवी की आराधना तीसरे दिन की जा रही है... अपनी हल्की हंसी से ब्रह्रांड
को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा हुआ... मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए ये
अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं...
देवी की आठ भुजाएं हैं. इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जप माला हैं. देवी
का वाहन सिंह है... पुराणों के मुताबिक शांत-संयत होकर, भक्ति-भाव से माता की पूजा करनी चाहिए. इनकी उपासना से
भक्तों को सभी सिद्धियां और निधियां मिलती हैं और लोग नीरोग होते हैं.. इस दिन
माता को मालपुआ का प्रसाद चढ़ाना चाहिए. इससे बुद्धि का विकास होता है.... चौथे
स्वरूप में देवी कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त
करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं... माता कुष्मांडा बाघ की सवारी करती हुईं
अष्टभुजाधारी, मस्तक पर रत्नजडित स्वर्ण
मुकुट पहने उज्जवल स्वरूप वाली दुर्गा हैं... अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को
उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा... कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं
थी, तो चारों तरफ सिर्फ
अंधकार था. ऐसे में देवी ने अपनी हल्की-सी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति की...
चतुर्थी के दिन अगर किसी व्यक्ति को अपना शनि शान्ति कराना हो तो यह दिन उनके लिए
अच्छा है और ऐसा करके वे लोग शनि के अशुभ प्रभाव से बच सकते हैं. माता कुष्माण्डा
की पूजा करने के बाद माता को इस दिन तरह तरह के पकवान से भोग लगाया जाता है.
मां स्कंदमाता
नवरात्र के पांचवें दिन
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की उपासना की जाती है. स्कंद कुमार
कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम किया गया है. भगवान स्कंद बालरूप
में इनकी गोद में विराजित हैं... स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं जिनमें से माता ने
अपने दो हाथों में कमल का फूल पकड़ा हुआ है. उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है
जिससे वह भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने
पुत्र स्कंद को पकड़ा हुआ है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसीलिए इन्हें
पद्मासना भी कहा जाता है. पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है...
शास्त्रों में मां स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व बताया गया है... पांचवें
स्वरूप मां स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और भक्त
को मोक्ष मिलता है. सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक
तेज और कांतिमय हो जाता है. अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की
आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है...
कार्तिकेय को देवताओं का सेनापति मना जाता है और माता को अपने पुत्र स्कंद से
अत्यधिक प्रेम है... जब धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ता है तो माता अपने
भक्तों की रक्षा करने के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का नाश करती हैं...
स्कंदमाता को अपना नाम अपने पुत्र के साथ जोड़ना बहुत अच्छा लगता है. इसलिए इन्हें
स्नेह और ममता की देवी माना जाता है.. पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा
को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए. ऐसा करने से
मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है... कहा भी जाता है पहाड़ों पर रहकर सांसारिक
जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता की पूजा-अर्चना करने से माता
की कृपा हमेशा बनी रहती है.. इन्हें मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता के रूप में
जाना जाता है। इनके चार हाथ हैं, गोद में बालरूप
भगवान स्कंद विराजमान होते हैं। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप
स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। स्कंदमाता
को केला बहुत प्रिय है। इन्हे प्रसन्न करने के लिए खीर में केसर डालकर भोग लगाना
चाहिए। माना जाता है स्कंदमाता की उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती
हैं। साथ ही जिनके संतान नहीं है उन्हें संतान की प्राप्ति होती है।
माता कालरात्रि
वो शक्ति स्वरूपा हैं..
वो दुष्टों के लिए काल है.. और मां कालरात्रि भक्तों के लिए ढाल हैं.. इनका रूप भयंकर
है.. देवी भगवती का यह सातवां स्वरूप अनंत है... व्यापक है... संसार में व्याप्त
दुष्टों और पापियों के हृदय में भय को जन्म देने वाली मां हैं मां कालरात्रि...
मां काली शक्ति सम्प्रदाय की प्रमुख देवी हैं. इन्हें दुष्टों के संहार की
अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है... कालरात्रि अर्थात् काल को जीतने वाली... मां
कालरात्रि की खास पहचान है कि उनका रूप देखकर ही दुष्टों की रूह कांप जाती है...
देवी कालरात्रि का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है इनके बाल बिखरे हुए हैं और
इनके गले में विधुत की माला है. इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार
और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है... इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा
और अभय मुद्रा में है... इनके तीन नेत्र है और इनके श्वास से अग्नि निकलती है....
गधा, मां कालरात्रि की सवारी
है.... दुर्गा जी का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि का रंग काला होने के कारण ही
इन्हें कालरात्रि कहा गया और असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए देवी
दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था.... मां कालरात्रि की पूजा शुभ फलदायी होने के कारण
इन्हें 'शुभंकारी' भी कहते हैं... पुराणों के मुताबिक असुरों के राजा रक्तबीज
का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने कालरात्रि का अवतार लिया था... मां काली निरंतर
संहार करती हुई विनाशलीला रच रही थीं.... इनके भयंकर स्वरूप और उत्पात से सृष्टि
में हाहाकार मच गया था... ऐसे में मां काली को प्रत्यक्ष रूप में रोकने की शक्ति
स्वयं देव दी देव महादेव में भी नहीं थी. तभी देवताओं के अनुरोध पर महाकाली के
क्रोध को शांत करने के लिए शिव ने उनकी राह में लेटने की युक्ति लगाई थी, ताकि चराचर ब्रह्माण्ड के स्वामी और अपने पति परमेश्वर को
अपने पांव के नीचे पाकर देवी शांत हों और अपने मूल रूप में वापस आएं... नवरात्रि
के पावन अवसर पर देवी के अलग-अलग रूपों की आस्था के साथ आराधना की जाती है...
नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गा मां के शक्ति स्वरूपा रूप की पूजा होती है, जिन्हें मां कालरात्रि कहा जाता है. देवी दुष्टों के लिए
विनाशक हैं और भक्तों के लिए रक्षक का रूप धारण कर लेती हैं... मां कालरात्रि की
पूजा बेहद शुभकारी होती है और पूजा से नकारात्मक शक्तियों का असर खत्म हो जाता
है... शत्रुओं और विरोधियों का नाश करने
वाली मां कालरात्रि की उपासना से भय, दुर्घटना और रोगों का भी
नाश होता है... कहा जाता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त
सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है... इतना ही नहीं माता की उपासना से शत्रु, भय, दुर्घटना और तंत्र-मंत्र
के प्रभावों का समूल नाश हो जाता है... और मां काली अपने भक्तों की रक्षा करते हुए
उन्हें आरोग्य का वरदान देती हैं...
मां कात्यायनी
माता भगवती का छठा अवतार
हैं मां कात्यायनी.... मां कात्यायनी का पूजन नवरात्र के छठे दिन विधि-विधान से
किया जाता है... नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी का पूजन करने से भक्तों के सभी
कष्ट दूर हो जाते हैं.. ऐसी मान्यता है कि जिनके विवाह में बाधा आ रही है
उन्हें देवी कात्यायनी की पूजा करने से लाभ मिलता है और विवाह शीघ्र होता है.. पुराणों
के मुताबिक महर्षि कात्यायन ने मां भगवती को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने
की अभिलाषा के साथ वन में कठोर तपस्या की थी... महर्षि की तपस्या से प्रसन्न होकर
भगवती ने उन्हें पुत्री का वरदान दिया था... जिसके बाद महिषासुर नामक राक्षस के
अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए त्रिदेवों के तेज से एक कन्या का जन्म हुआ.. जिसने अपनी असीम शक्ति और तेज के बल पर महिषासुर का अंत किया
था... देवी कात्यायनी का स्वरुप अत्यंत विशाल और दिव्य है.. सोने की तरह चमकदार
शरीर वाली मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं.. इनके दो हाथों में तलवार और कमल
पुष्प सुशोभित हैं.. जबकि दो हाथ वर और अभय मुद्रा में अपने भक्तों को आशीर्वाद
देते हैं... देवी कात्यायनी का वाहन सिंह है... शास्त्रों के मुताबिक जो भक्त
दुर्गा मां की छठी विभूति कात्यायनी की आराधना करते हैं मां की कृपा उन पर सैदव
बनी रहती है... तभी तो ऐसी मान्यता है कि कात्यायनी माता का व्रत और उनकी पूजा
करने से हर तरह की बाधा दूर होती है.. मां कात्यायनी की उपासना से भक्तों को अमोघ
फल प्राप्त होता है... कहते हैं कि जिसने मां कात्यायनी को प्रसन्न करके उनकी कृपा
प्राप्त कर ली, उसमें असंभव को भी संभव
करने की शक्ति आ जाती है... यानी मां की उपासना का फल कभी नष्ट नहीं होता... कहा
जाता है मां कात्यायनी ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर महिषासुर से युद्ध किया...
महिसासुर से युद्ध करते हुए मां जब थक गई तब उन्होंने शहद युक्त पान खाया... शहद
युक्त पान खाने से मां कात्यायनी की थकान दूर हो गयी और महिषासुर का वध कर दिया.
कात्यायनी की साधना और भक्ति करने वालों को मां की प्रसन्नता के लिए शहद युक्त पान
अर्पित करना चाहिए... देवी कात्यायनी की पूजा में प्रसाद के रूप में शहद का प्रयोग
शुभ माना गया है.. कहते हैं कि शहद के प्रभाव से भक्तों को देवी के समान तेज और
सुंदर रूप प्राप्त होता है.... मां कात्यायनी की साधना का समय गोधूली काल है.
मान्यता है कि इस समय में धूप, दीप, गुग्गुल से मां की पूजा करने से सभी प्रकार की बाधाएं दूर
होती है. जो भक्त माता को पांच तरह की मिठाईयों का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं में
प्रसाद बांटते हैं माता उनकी आय में आने वाली बाधा को दूर करती हैं और व्यक्ति
अपनी मेहनत और योग्यता के अनुसार धन अर्जित करने में सफल होता है... कहा जाता है इनकी उपासना और आराधना से भक्तों
को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते
हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की
उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है...
मां महागौरी
आज नवरात्र का आठवां दिन
यानि महाष्टमी है... नवरात्र के इस सबसे बड़े दिन महाष्टमी पर देशभर में मां महागौरी
की पूजा की जाती है... नौ दिनों की पूजा में आज का दिन बेहद खास माना जाता है...
कहते हैं कि मां के इस रूप की पूजा से जीवन में खुशियां और शांति आती है... मां
दुर्गा का आठवां स्वरूप महागौरी है. अपने इस रूप में मां आठ वर्ष की हैं. इसलिए
नवरात्रि की अष्टमी को कन्या पूजन की परंपरा है... धर्मिक मान्यताओं के अनुसार
महागौरी की उपासना से इंसान को हर पाप से मुक्ति मिल जाती है. शंख और चन्द्र के
समान अत्यंत श्वेत वर्ण धारी माँ महागौरी... माँ दुर्गा का आठवां स्वरुप हैं।
नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरा की पूजा की जाती है.. माँ महागौरी शिव जी की
अर्धांगिनी है। कठोर तपस्या के बाद देवी ने शिव जी को अपने पति के रुप में प्राप्त
किया था। देवी महागौरी के शरीर बहुत गोरा है। महागौरी के वस्त्र और अभुषण श्वेत
होने के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। महागौरी की चार भुजाएं है
जिनमें से उनके दो हाथों में डमरु और त्रिशुल है तथा अन्य दो हाथ अभय और वर मुद्रा
में है। इनका वाहन गाय है। कहा जाता है भगवान शिव को पाने के लिए किये गए अपने
कठोर तप के कारण माँ पार्वती का रंग काला और शरीर क्षीण हो गया था.. तपस्या से
प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने माँ पार्वती का शरीर गंगाजल से धोया तो वह विद्युत
प्रभा के समान गौर हो गया। इसी कारण माँ को महागौरी के नाम से पूजते हैं। नवरात्र
के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। कई लोग इस दिन कन्या पूजन भी करते
हैं। मां संगीत व गायन से प्रसन्न होती है तथा इनके पूजन में संगीत अवश्य होता है।
कहा जाता है कि आज के दिन मां की आराधना सच्चे मन से होता तथा मां के स्वरूप में
ही पृथ्वी पर आयी कन्याओं को भोजन करा उनका आर्शीवाद लेने से मां अपने भक्तों को
आर्शीवाद अवश्य देती है। हिन्दू धर्म में अष्टiमी के दिन कन्याओं को
भोजन कराए जाने की परम्परा है। माता महागौरी,
मां दुर्गा की
अष्टम शक्ति है जिसकी आराधना करने से भक्तजनों को जीवन की सही राह का ज्ञान होता
है और जिस पर चलकर लोग अपने जीवन का सार्थक बना सकते हैं। जो भी साधक नवरात्रि में
माता के इस रूप की आराधना करते हैं माँ उनके समस्त पापों का नाश करती है। अस्टमी
के दिन व्रत रहकर मां की पूजा करते हैं और उसे भोग लगाकर मां का प्रसाद ग्रहण करते
हैं, इससे व्यक्ति के अन्दर के
सारे दुष्प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।
मां
सिद्धिदात्री
आज नवरात्रि का नवां और आखिरी
दिन है.. और आज नवमी तिथि को मां दुर्गा के नावें स्वरूप मां सिद्धिदात्री का पूजन
किया जाता है... पुराणों के मुताबिक देवी सिद्धिदात्री के आठ सिद्धियां हैं...
देवी पुराण के मुताबिक सिद्धिदात्री की उपासना करने का बाद ही शिव जी ने सिद्धियों
की प्राप्ति की थी... माना जाता है कि देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने से लौकिक
और परलौकिक शक्तियों की प्राप्ति होती है... अंतरमन की शक्ति को जगाने का आज का
दिन अत्ति उत्तम माना गया है.. साधना के आठ पड़ावों को पार करके जब साधक
सिद्धिदात्री के दरबार तक पहुंच जाता है तो दुनिया की कोई भी वस्तु उसकी पहुंच से
बाहर नहीं होती.. करुणामयी मां साधक की हर मुराद को पूरा कर देती हैं.. माता सिद्धिदात्री
का स्वरूप ही कल्याणक और वरदायक है.. माता अपने भक्तों को वर देकर हर संघर्ष के
लिए सक्षम बना देती हैं... मां सिद्धिदात्री का स्वरुप तेजोमय और शांत है.. मां
सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन
होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है.. मां के अन्य हाथों
में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए हुए हैं.. इनके गले में सफेद फूलों की माला
और माथे पर तेज है... देवीपुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवी की शक्तियों और
महिमाओं का बखान किया गया है... मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी सिद्धियां
प्रदान करने में समर्थ हैं.. देवीपुराण के मुताबिक भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन
सिद्धियों को प्राप्त किया था.. माता की अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर
देवी का हुआ था.. औऱ भगवान शिव तीनोलोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए.. अष्ट सिद्धियों को प्राप्त कर लेने
वाले साधक को मां अपने चरणों में स्थान देकर उसे भव बंधनों से मुक्त कर देती हैं
और भक्तों को नौ निधियों का पात्र बना देती हैं.. मां की शरण आए भक्त के लिए
दुनिया में पाने लायक कुछ नहीं रह जाता.. सिद्धिदात्री मां के कृपापात्र भक्त के
भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे..
माता के भक्त सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं से ऊपर उठकर
मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस का
निरंतर पान करता है। मां भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। माता
द्वारा स्थापित परम पद को पाने के बाद माता के भक्त को किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं
रह जाती।