मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

रहें ना रहें हम महका करेंगे

 

सीधा-सादा लिवास.... सिंपल-सी साड़ी... बालों की दो चोटी...  माथे पर बड़ी सी बिंदी और जुबां खुलते ही मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज... जी हां आप समझ ही गये होंगे कि बात लता मंगेशकर की हो रही है. आज वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कृति हमेशा साथ होंगी... देश में शायद ही ऐसा कोई संगीत प्रेमी होगा, जिसने लता मंगेशकर का गाना नहीं सुना होगा.. भारत रत्‍न लता मंगेशकर की आवाज उनकी बचपन से लेकर बुजुर्ग होने तक उतनी ही मीठी रही... वह हमेशा देश की बहुमूल्य हस्तियों में गिनी जाती रही हैं... मीठी आवाज के साथ ही अपने कोमल और दयालु हृदय के लिए जानी जाने वालीं लता दीदी का जीवन बेहद कामयाब रहा.. लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर, 1929 में एक मिडिल क्लास मराठी परिवार में हुआ. मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी थीं. पिता रंगमंच के कलाकार और गायक थे, सो लता को गायकी विरासत में मिली. पहली बार स्टेज पर गाने के लिए उन्हें जो 25 रुपये मिले थे, उसे ही वह अपनी पहली कमाई बताती रहीं. हालांकि उन्होंने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म ‘किती हसाल’ के लिए गाना गाया था... लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनें उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने अपने करियर के रूप में संगीत को ही चुना. 1942 में पिता के देहांत के बाद जब परिवार की आर्थिक स्थिति चरमरा गई तब लता मंगेशकर ने मराठी और हिंदी फिल्मों में छोटे-छोटे रोल भी किए. हालांकि उन्हें उनकी गायकी ने ही दुनियाभर में पहचान दिलाई... लता दीदी के जीवन के कई ऐसे पहलू हैं जिनके बारे में शायद आपको न पता हो.. चलिए जानते हैं लता दीदी की जीवन गाथा की कुछ रोचक और अनसुनी कहानी

स्कूल में अपने पहले दिन ही लता मंगेशकर ने अन्य बच्चों को संगीत की शिक्षा देना शुरू कर दिया था और जब शिक्षक ने उसे रोक दिया था तो ये बात लता को इतनी बुरी लगी थी कि उन्होंने स्कूल जाना बंद कर दिया था. हालांकि, कुछ लोगों का दावा रहा है कि चूंकि वह अपनी छोटी बहन आशा के साथ स्कूल जाती थीं, इस पर स्कूल ने आपत्ति जताई थी, इसलिए उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था.

लता मंगेशकर जब 13 साल की थीं, तभी पिता दीनानाथ मंगेशकर की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. इसके बाद लता दीदी पर परिवार को चलाने का बोझ आ गया जिसके बाद 1940 के दशक में संगीत की दुनिया में खुद को स्थापित करने के लिए कठोर संघर्ष किया... उन्होंने पहला गीत 1942 में मराठी फिल्म 'किती हसाल' में गाया था लेकिन ये फिल्म रिलीज नहीं हो सकी थी.

पिता के मृत्यु के बाद लता दीदी को हमेशा एक सपना आया करता था.. सपने में वो अक्सर देखती थी कि वो एक मंदिर के बाहर खड़ी है और वो उस मंदिर में जाने की कोशिश करती है। बहुत मुश्किल के बाद वो मंदिर में प्रवेश तो कर जाती है लेकिन मंदिर से बाहर निकलने के लिए उन्हें खुब जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसी दौरान उन्हें एक बाहर निकलने का दरवाजा दिखाई पड़ता है.. दरवाजा देखकर वो भाग कर वहां पहुंच तो जाती है लेकिन दरवाजे के बाहर उन्हें दूर-दूर तक सिर्फ और सिर्फ पानी दिखाई पड़ता है.. जिसे देखकर वो घबरा जाती और नींद से जगकर बैठ जाती थी और फिर वो सपने वाली बात बगल में सो रही अपनी दादी से बताती। फिर दादी कहती ऐसे सपने देखकर डरा नहीं करते। ऐसे सपने शुभ माने जाते हैं. और यही सपना एक दिन तेरा नाम रौशन कराएगा।

जब लता मंगेशकर की उम्र 33 साल थी, तभी 1962 की शुरुआत में वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थीं. तब डॉक्टरों ने बताया था कि उन्हें खाने में धीमा जहर दिया गया था. वह तीन दिन तक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझती रही थीं.

लता मंगेशकर संगीत निर्देशक गुलाम हैदर को अपना गॉडफादर मानती थीं क्योंकि बतौर लता गुलाम हैदर ने ही सबसे पहले उनकी प्रतिभा में पूरा विश्वास जताया था.

जिस रेडियो की बदौलत लता मंगेशकर ने देश और दुनिया में अपने लाखों चाहने वालों के दिलों में जगह बनाई उसी रेडियो से लता मंगेशकर अपनी सारी उम्र नफ़रत करती रहीं। और उसके पीछे एक दिलचस्प और चौंकानें वाला वाकया है.. दरअसल जब वह 18 साल की थी तब उन्होने अपना पहला रेडियो खरीदा और जैसे ही रेडियो ऑन किया तो के.एल.सहगल की मृत्यु का समाचार उन्हें प्राप्त हुआ.. के एल सहगल की मौत की ख़बर सुनते ही लता मंगेशकर इस कदर गुस्से से बौखला उठीं कि उन्होंने उठाकर रेडियो को घर के बाहर फेंक दिया।

बॉलीवुड के शो मैन राजकपूर ने लता मंगेशकर की ही जिंदगी पर फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम बनाई थी. इस फिल्म में लता मंगेशकर ने अभिनय करने का वादा किया था लेकिन बाद में उन्होंने मना कर दिया था. बाद में ज़ीनत अमान ने उनके कैरेक्टर रूपा का रोल निभाया था.

राज्य सभा के सदस्य के तौर पर नामित होने के बाद वे खराब स्वास्थ्य के चलते कभी भी सदन में नहीं जा सकीं और उन्होंने बतौर मेंबर ऑफ पार्लियामेंट एक भी रुपये सैलरी के तौर पर नहीं लिए.

जीवन भर अविवाहित रहीं लता मंगेशकर का नाम रजवाड़े राज सिंह डूंगापुर से जुड़ता रहा, हालांकि उन्होंने कभी भी इस बात को नहीं स्वीकार किया.

लता मंगेशकर को जासूसी उपन्यासों और मिठाइयों का शौक था. वे जलेबी, गुलाबजामुन और सूजी का हलवा पसंद था. इसके अलावा गोलगप्पे और नींबू का अचार भी उनकी पसंदीदा चीज़ों में शुमार था.

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