मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

अशोका द ग्रेट

 

इतिहास के पृष्ठभूमि में असंख्य योद्धाओं, शूरवीरों और विजेताओं के बीच मौर्य सम्राज्य के तीसरे शासक सम्राट अशोक का नाम उज्जवल नक्षत्र के भाती दिव्यमान हैं.. सम्राट अशोक भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है जिनकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा सकती.. जब भी विश्व के शक्तिशाली और महान राजाओं की बात की जाती है तो मौर्य साम्राज्य के तृतीय राजा सम्राट अशोक का नाम पहले आता है.. सम्राट अशोक.. प्रेम, सहिष्णूता, सत्य, अहिंसा एवं शाकाहारी जीवनप्रणाली के सच्चे समर्थक थे, इसलिए उनका नाम इतिहास में महान परोपकारी सम्राट के रूप में भी दर्ज है... मौर्य राज्यवंश प्राचिन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था जिसने भारत पर 137 साल राज किया.. मौर्य राज्यवंश की स्थापना का श्रेय चंद्रगुप्त मौर्य और उसके मंत्री कौटिल्य को दिया जाता है.. मौर्य वंश का सम्राज्य पूर्व में मगध से शुरू होता है जहां आज का बिहार और बंगाल स्थित है.. इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जिसे आज पटना के नाम से जाना जाता है.. चक्रवर्ती सम्राट अशोक रानी धर्मा और बिंदुसार के पुत्र थे.. मौर्य राजवंश के इतिहास में 274 ईसा पूर्व का कालखंड अशोक का माना जाता है. इसी काल में अशोक को चंडाशोक की उपाधि मिली... जिस अशोक की क्रूरता के कारण उन्हें चंडाशोक कहा गया. इतिहास गवाह है कि उनकी दयालुता और प्रजापालकता के कारण उन्हें देवानांप्रिय के नाम से भी जाना गया... सम्राट अशोक व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था. उन्होंने सिर्फ अपनी वाणी के आधार पर तक्षशिला का विद्रोह शांत करवा दिया... उनकी प्रशासनिक क्षमताएं भी बेहद शानदार थीं... उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर अपना स्थान बनाया था... कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अशोक ने सिंहासन के रास्ते में आने वाले अपने सभी भाइयों को मार डाला.. हालांकि इतिहासकारों के एक वर्ग का मानना है कि अशोक ने सिर्फ छह भाइयों की हत्या की थी. हालांकि इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है... बचपन से ही अशोक में योद्धा वाले गुण दिखाई देने लगे थे तभी महाराज बिन्दुसार ने उन्हें शाही योद्धाओं से प्रशिक्षण दिलवाया.. अशोक प्रशिक्षण के दौरान इतना निपुण हो गये कि एक बार केवल लकड़ी की डंडे से शेर का शिकार कर दिया था.. इसलिए उन्हें एक जिंदादिल शिकारी और साहसी योद्धा भी कहा जाता था.. अशोक की काबिलियत को देखते हुए महाराज बिन्दुसार ने उन्हें उस समय मौर्य साम्राज्य के अवन्ती में हो रहे दंगो को रोकने के लिये भेजा दिया.. उस समय तक्षशिला में यूनानी और भारतीय लोगों की जनसंख्या ज्यादा थी.. सम्राट अशोक के बड़े भाई सुसीम उस समय तक्षशिला का प्रांतपाल था.. सुसीम प्रशासनिक कार्यों में कुशल नहीं था जिसकी वजह से वहां पर एक बहुत बड़ा विद्रोह खड़ा हो गया... जब राजा बिंदुसार को लगा कि विद्रोह को दबाना सुसीम के बस का रोग नहीं है तो बिन्दुसार ने अशोक को विद्रोह को दबाने के लिए तक्षशिला भेजा.. इस समय तक सम्राट अशोक बहुत नाम कमा चुके थे उनकी युद्ध कौशल से करीब करीब सभी लोग परिचित थे और यही वजह रही कि तक्षशिला पहुंचने से पहले ही विद्रोहियों ने विद्रोह को खत्म कर दिया.. सम्राट अशोक के बढ़ते प्रभाव से उसका बड़ा भाई सुसीम घबरा गया क्योंकि उसे लगने लग गया था कि सम्राट अशोक की प्रसिद्धि इसी तरह बढ़ती रही तो वह कभी मौर्य साम्राज्य का सम्राट नहीं बन पाएगा... राजा बिंदुसार की आयु धीरे-धीरे बढ़ रही थी मौर्य साम्राज्य की जनता चाहती थी कि सम्राट अशोक को सिंहासन मिले, लेकिन सम्राट अशोक की राह में सबसे बड़ा रोड़ा था उसका बड़ा भाई सुसीम.. सुसीम से आम जनता परेशान थी.. लेकिन अशोक की योग्यता इस बात का संकेत करती थी कि अशोक ही बेहतर उत्तराधिकारी था.. और अततः चार साल के कड़े संघर्ष के बाद 269 BC में अशोक का औपचारिक रूप से राज्यभिषेक हुआ.. इतिहास के मुताबिक कलिंग जाने के पश्चात वहां के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की पुत्री मत्स्यकुमारी कौर्वकी से सम्राट अशोक को प्रेम हो गया और धीरे-धीरे यह प्रेम विवाह में तब्दील हो गया.. मौर्य साम्राज्य की स्थापना से पहले संपूर्ण भारतवर्ष में नंद साम्राज्य का अधिकार था और इसी नंद साम्राज्य के क्षेत्र में कलिंग भी आता था... कलिंग युद्ध चक्रवर्ती सम्राट अशोक के जीवन में घटित एक क्रांतिकारी घटना थी.. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्याभिषेक के 8 वर्षों के पश्चात यह युद्ध हुआ.. ऐसा कहा जाता है कि कलिंग युद्ध चक्रवर्ती सम्राट अशोक के जीवन का प्रथम और अंतिम युद्ध था... एक ऐसा भीषण युद्ध जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक पूरी तरह बदल गए। अशोक के 13वें शिलालेख में इस युद्ध की भीषणता और उससे हुए नुकसान का वर्णन मिलता है, इस युद्ध में लगभग 1लाख लोग मारे गए थे, डेढ़ लाख लोगों को बंदी बना लिया गया और लाखों की संख्या में लोग घायल हो गए। इस भीषण युद्ध ने चक्रवर्ती सम्राट को अंदर से झकझोर कर रख दिया जिसके बाद उनका रहन-सहन, सोच विचार पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया.. इस युद्ध के बाद सम्राट अशोक को इतना पश्चाताप हुआ कि उन्होंने फिर कभी युद्ध नहीं करने की शपथ ली और इसी युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था.. इतिहासकार बतलाते हैं कि यही से सम्राट अशोक के जीवन काल में आध्यात्मिक और धम्म विजय युग का आरम्भ हो गया.. इस दौरान सम्राट अशोक ने जनकल्याण के लिए अनेको चिकित्सालय, पाठशाला और सड़कों का निर्माण करवाया। धौली और जौगढ़ शिलालेखों पर लिखे शब्दों से पता चलता है कि युद्ध नीति का त्याग करने और आपस में प्रेम बढ़ाने के लिए चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने दो आदेश जारी किए थे उनके अनुसार प्रजा के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार किया जाए और जहां तक संभव हो किसी को दंड नहीं दिया जाए। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान भी भेजा.. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने अपने पुत्र और पुत्री को भी यात्राओं पर भेजा दिया करते थे.. अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली... महेन्द्र ने श्रीलंका के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया.. चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान द्वारा प्रवर्तित कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए हैं, जिन्हें अशोक ने स्तंभों चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में उत्कीर्ण करवाया था। इन अभिलेखों को बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से एक माना जाता है। अशोक के शासनकाल में देश ने विज्ञान और तकनीक के साथ–साथ चिकित्सा शास्त्र में काफी तरक्की की, उसने धर्म पर इतना जोर दिया कि प्रजा इमानदारी और सच्चाई के रास्ते पर चलने लगी.. राज में चोरी और लूटपाट की घटानाएं बिलकुल ही बंद हो गई.. अशोक ने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद लगभग 232 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हुई.. सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश लगभग 50 वर्षों तक चला.. सम्राटों के सम्राट चक्रवर्ती सम्राट अशोक भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट थे.. सम्राट अशोक को ऐसे ही महान नहीं कहा जाता है बल्कि उनका साम्राज्य उत्तर में हिंदूकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक फैला हुआ था... पूर्व दिशा में बांग्लादेश से लेकर पश्चिम दिशा में अफगानिस्तान ईरान तक फैला हुआ था। अगर वर्तमान परिदृश्य में सम्राट अशोक के साम्राज्य की सीमाओं की बात की जाए तो इसमें संपूर्ण भारत के साथ-साथ अफगानिस्तान, नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश का अधिकांश हिस्सा शामिल था.. अशोक चक्र जिसको धर्म का चक्र भी कहा जाता था, आज के भारत के तिरंगा के मध्य में मौजूद है.. मौर्य साम्राज्य के सभी बॉर्डर में 40-50 फीट ऊँचा अशोक स्तम्भ अशोक द्वारा स्थापित किया गया.. अशोक नें चार आगे पीछे एक साथ खड़े सिंह का मूर्ति भी बनवाया था जो की आज के दिन भारत का राजकीय प्रतिक हैं.. आप इस मूर्ति को भारत के सारनाथ म्यूजियम में देख सकते हैं... सम्राट अशोक ने अपने आदेशों और आदर्शों को लोगों तक पहुंचाने के लिए 84 हजार स्तूपों और स्तंभों का निर्माण कराया. जिन पर आदर्श वाक्य और आदेश लिखे गए थे. अशोक के शिलालेख आज भी प्राप्त होते हैं. उन स्तंभों की बनावट अशोक के काल की वास्तुकला का नायाब नमूना है जिसका जवाब आज के वैज्ञानिकों के पास भी नही है.. सम्राट अशोक ने सारनाथ, इलाहाबाद, वैशाली, दिल्ली और सांची में इन स्तंभों का निर्माण कराया गया है. इन पांच स्तंभों में से सबसे खास है सारनाथ का अशोक स्तंभ... अशोक स्तंभ में चार शेर हैं. जो चारो तरफ देख रहे हैं. इसमें जो एक चक्र है जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि धर्म का पहिया लगातार चल रहे हैं. इसके अशोक के प्रभाव को चारों तरफ स्थापित करने के रुप में देखा जाता है...  अशोक स्तंभों में जानवरों का विशेष महत्व है. खासकर शेर का. बौद्ध धर्म में शेर को बुद्ध का प्रतीक माना जाता है... लगभग 2300 साल पहले सम्राट अशोक की मृत्यु हो गई. लेकिन उनकी विरासत की झलक आज भी आधुनिक भारत के प्रशासनिक प्रतीकों पर दिखाई देती है. हमारे राष्ट्रीय झंडे का चक्र भी सम्राट अशोक की देन है... आधुनिक भारत सम्राट अशोक की देन को कभी भुला नहीं सकता. लेकिन आश्चर्य की बात है कि जहां प्रशासनिक स्तर पर सम्राट अशोक के प्रतीक चिन्हों को अपनाया गया. वहीं, इतिहासकारों ने मुगल साम्राज्य  की शासन व्यवस्था के सामने सम्राट अशोक को बेहद कम स्थान दिया... सम्राट अशोका एक आदर्श सम्राट थे.. विश्व इतिहास में भी अशोक एक महान और अतुलनीय चरित्र है, उस जैसा ऐतिहासिक पात्र दुर्लभ है.. तभी तो संसार के इतिहास में केवल 3 राजाओं को ही उनके नाम के साथ महान कहकर संबोधित किया जाता है पहला अलेक्जेंडर दूसरा अकबर और तीसरा महान सम्राट अशोक.. तभी तो एक विजेता, दार्शनिक एवं प्रजापालक शासक के रूप में सम्राट अशोक का नाम आज भी अमर है..

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