मनुष्य की जीवीका को अर्थ कहते हैं। और जिस धरा
पर मनुष्य वास करते हैं उसे भी अर्थ कहते हैं। इस भूमि को प्राप्त करने और उसकी
रक्षा करने के उपाय का निरूपन करने वाले
शास्त्र को अर्थशास्त्र कहते हैं। और अपने आज के इस एपिसोड में हम बात करने जा
रहें हैं एक ऐसे ही शख्सियत की जिसका नाम आज भी पूरी दुनिया में आसमान में ध्रुव
तारे की तरह चमकता है। कश्मिर से लेकर कन्याकुमारी तक। गांधार से लेकर आसम तक एक
भारत हो सकता है। पर एक नहीं, दो नहीं, तीन सौ साल पहले नहीं, बल्कि आज से 2300
साल पहले ये सोच उस व्यक्ति कि है जिसे इतिहास में तीन अलग-अलग नाम से जाना जाता
है। विष्णुगुप्त। चाणक्य। या कौटिल्य ।
2300 साल पहले के राजनीतिक मानचित्र में मगध
साम्राज्य की सीमाएं उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान, पूर्व में असम और दक्षिण में
गोदावरी तक फैली हुई है। जी हां उस समय कवेल भारत ही नहीं बल्कि विश्व का सबसे
बड़ा और एक अखंड साम्राज्य था मगध साम्राज्य। और इस साम्राज्य की कौटिल्य ने अपनी
सूझ-बूझ से नीव रखी थी। और इससे भी बड़ी बात उन्होंने ना केवल एक साम्राज्य खड़ा
किया था बल्कि साम्राज्य को, देश को, जनता के हित में कैसे चलाते हैं। इसकी पूरी
रूप रेखा तैयार कर दी थी। राजा कैसा होगा। मंत्री कितने और कैसे होंगे। भ्रष्टाचार
को कैसे रोका जाएगा। इस तरह के तमाम बातों के सहारे कौटिल्य ने महान मौर्य
साम्राज्य खड़ा किया था। और अपनी किताब अर्थशास्त्र के जरिए ऐसी धरोहर छोड़ी जिसकी
वजह से कई लोग यह कहते हैं कि भारत को समझना हो या फिर भारतीय को समझना हो तो पहले
अर्थशास्त्र को समझो। कौटिल्य को समझो। कौटिल्य और उनके अर्थशास्त्र का मूल अर्थ है
राजधर्म। राजधर्म होता क्या है। राजा कहें या शासक, उसकी प्रजा के प्रति क्या
जिम्मेदारी होती है। इसे आज से लगभग 2300 साल पहले चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में
बताया था।
आचार्य चाणक्य, कौटिल्य या विष्णुगुप्त इनके
बारे में बताने से पहले आपको अतित में लेकर चलते हैं। मगध के सीमावर्ती नगर में एक
साधारण ब्राह्मण आचार्य चणक रहते थे। चणक मगथ के राजा से असंतुष्ठ थे। चणक किसी भी
तरह महामात्य के पद पर पहुंचकर राज्य को विदेशी आक्रमणकर्ताओं से बचाना चाहते थे।
इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से मंत्रणा कर धनानंद को उखाड़ फेंकने
की योजना बनाई। लेकिन गुप्तचर के द्वारा महामात्य राक्षस और कात्यायन को इस
षड्यंत्र का पता लग गया। जिसके बाद चणक को बंदी बना कर देशद्रोह के आरोप में फांसी
पर चढ़ा दिया। चणक का कटा हुआ सिर राजधानी के चौराहे पर टांग दिया गया। पिता के
कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य की आंखों से आंसू टपक रहे थे। उस वक्त चाणक्य की आयु
14 वर्ष थी। रात के अंधेरे में उसने बांस पर टंगे अपने पिता के सिर को
धीरे-धीरे नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेट कर चल दिया। अकेले पुत्र ने पिता का
दाह-संस्कार किया। तब कौटिल्य ने गंगा का जल हाथ में लेकर शपथ ली- हे गंगे, जब तक हत्यारे
धनानंद से अपने पिता की हत्या का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक पकाई हुई कोई वस्तु
नहीं खाऊंगा। जब तक महामात्य के रक्त से अपने बाल नहीं रंग लूंगा तब तक यह शिखा
खुली ही रखूंगा।
कौटिल्य के पिता की मृत्यु के बाद एक विद्वान
पंडित राधा मोहन ने उनकी क्षमताओं को भांप लिया और उनका दाखिला तक्षशिला
विश्वविद्यालय में करा दिया। यहां से उनके जीवन की नई शुरुआत हुई। शिक्षा ग्रहण
करने के बाद आचार्य ने उसी विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य संपन्न किया और अनेक
ग्रंथों की रचना की। तक्षशिला में चाणक्य ने न केवल छात्र, कुलपति और बड़े
बड़े विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया बल्की उसने पड़ोसी राज्य के राजा पोरस से
भी अपना परिचय बढ़ा लिया। सिकंदर के आक्रमण के समय चाणक्य ने पोरस का साथ दिया।
सिकंदर की हार और तक्षशिला पर सिकंदर के प्रवेश के बाद विष्णुगुप्त अपने गृह
प्रदेश मगध चले गए और यहां से शुरू किया एक नया जीवन।
मगध पहुंच कर सबसे पहले कौटिल्य ने विष्णुगुप्त
नाम से अपने पिता के प्रिय मित्र शकटार से मुलाकात की। फिर शकटार के साथ मिलकर
घनानंद के खिलाफ योजना बनाई। योजना के तहत शकटार ने विष्णुगुप्त को चंद्रगुप्त से
मिलवाया। उन दिनों किसी संदेह के कारण धनानंद ने चंद्रगुप्त उसकी मां को जंगल में
रहने के लिए विवश कर दिया था। शकटार और चाणक्य ज्योतिष का वेश धरकर चंद्रगुप्त से
मिलने जंगल में पहुंचे जहां चाणक्य ने पहली बार चंद्रगुप्त को राजा का एक खेल
खेलते हुए देखा। तब चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया और फिर
शुरु हुआ चाणक्य का नया जीवन। कौटिल्य उर्फ विष्णु गुप्त अथार्त चणक पुत्र चाणक्य
ने तब चंद्रगुप्त को शिक्षा और दीक्षा देने के साथ ही भील, आदिवासी और
वनवासियों को मिलाकर सेना तैयार किया और फिर धननंद के साम्राज्य को उखाड़ फेंककर
चंद्रगुप्त को मगथ का सम्राट बनाया। बाद में चंद्रगुप्त के साथ ही उसके पुत्र
बिंदुसार और पौत्र सम्राट अशोक को भी चाणक्य ने महामंत्री पद पर रहकर मार्गदर्शन
दिया।
चाणक्य का उल्लेख मुद्राराक्षस, बृहत्कथाकोश, वायुपुराण, मत्स्यपुराण, विष्णुपुराण, बौद्ध ग्रंथ
महावंश, जैन पुराण में भी मिलता है। बृहत्कथाकोश अनुसार चाणक्य की पत्नी का
नाम यशोमती था। चाणक्य ने तक्षशिला के विद्यालय में अपनी पढ़ाई पुरी की। फिर कौटिल्य
के नाम से अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र लिखा। कहा तो ये भी जाता है कि वात्स्यायन
नाम से उन्होंने ही कामसुत्र भी लिखा था।
कुछ विद्वानों के मुताबिक कौटिल्य का जन्म पंजाब
के 'चणक' क्षेत्र में हुआ था अर्थात आज का चंडीगढ, जबकि कुछ
विद्वान मानते हैं कि उसका जन्म दक्षिण भारत में हुआ था। कुछ बौद्ध साहित्यों ने
उसे तक्षशिला का निवासी बताया है। चाणक्य कि पिता चणक हैं और उनकी माता चनेश्वरी थी।
जन्म के समया कौटिल्य के पास एक ज्ञान दांत था। ऐसी मान्यता थी कि ज्ञान दांत का
होना राजा बनने की निशानी है। उनकी मां एक बार एक ज्योतिषी की बातें सुनकर डर गईं
कि वह बड़ा होकर राजा बनेगा और राजा बनने के बाद मुझे भूल जाएगा। तब इन्होंने अपने
ज्ञान दांत तोड़ दिए और अपनी मां से वादा किया कि मैं तुम से दूर कभी नहीं जाउंगा।
चाणक्य बड़े होकर आचार्य बने लेकिन उनकी रुचि राजकाज में थी। दंड नीति में थी।
राजकाज कैसे चलना चाहिए इन बातों पर थी।
चाणक्य एक कुशल और महान चरित्र वाले व्यक्ति थे
इसके साथ ही वे एक महान शिक्षक भी थे। अपने महान विचारों और महान नीतियों से वे
काफी लोकप्रिय हो गए थे उनकी ख्याति सातवें आसमान पर थी लेकिन इस दौरान ऐसी दो
घटनाएं घटी की आचार्य चाणक्य का पूरा जीवन ही बदल गया। पहली घटना– मगध के शासक
द्वारा कौटिल्य के पिता की हत्या। और दूसरी घटना- भारत पर सिकंदर का आक्रमण और
तात्कालिक छोटे राज्यों की ह्रार। ये दो घटनाएं उनके जीवन की ऐसी घटनाएं हैं जिनकी
वजह से कौटिल्य ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने का संकल्प लिया और
उन्होनें शिक्षक बनकर बच्चों के पढ़ाने के बजाय देश के शासकों को शिक्षित करने और
उचित नीतियों को सिखाने का फैसला लिया और आज इतिहास गवाह है वे अपने दृढ़ संकल्प में
सफल भी रहे
आचार्य चाणक्य की मौत के बारे में कई तरह की
बातों का उल्लेख मिलता है। कहते हैं कि वे अपने सभी कार्यों को पूरा करने के बाद
एक दिन एक रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गए थे और उसके बाद वे कभी
नहीं लौटे। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें मगध की रानी हेलेना द्वारा जहर देकर
मार दिया गया था। कुछ मानते हैं कि हेलेना ने उनकी हत्या किसी और से करवा दी थी। एक
दूसरी कहानी के अनुसार बिंदुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की
कोशिश की थी, जिसमें वे सफल भी हुए। हालांकि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार चाणक्य ने
खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो
पाया है।
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