भारतीय इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो
उसमें एक ऐसे दौर का जिक्र मिलता है। जब भारत पूरी दुनिया में विश्वगुरू के तौर पर
अपनी एक अलग पहचान रखता था और पूरा विश्व भारत को सोने की चिड़िया के तौर पर जानता
था। जहां पहले भारत देश को एक सोने की चिड़िया होने का दर्जा मिला था, वहीं अब भारत को मिला ये दर्जा पूरी तरह खत्म हो
चुका है। जी हां एक जमाना था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। दरअसल 1600
ईस्वी के बाद विदेशी आक्रमणकारियों और अंग्रेजों ने भारत को अपना गुलाम बना लिया
और अपार दौलत इस देश से लूटकर ले गये। इस वीडियो में हम जानेंगे कि आखिर भारत को
सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता है। आपको उन तथ्यों के बारे में बताएंगे, जो बताते हैं कि भारत को किस वजह से सोने की चिड़िया
कहा जाता था।
कहानी शुरू करने से पहले आपको थोड़ा फ्लैशबैक
में लेकर चलते है। भारत को पहली से 11 वी शताब्दी तक दुनिया सोने की चिड़िया के नाम
से बुलाती थी। क्योंकि उस जमाने में यह दुनिया की सबसे विकसित देश था। दुनिया का हर
देश भारत के साथ व्यापार करना चाहता था और भारत में आकर रहना भी चाहता था। भारत
कितना अपने आप में समृद्ध था इसकी एक बानगी इस बात से अंदाजा लगा सकता हैं। दरअसल मुगलों
के शासन शुरू होने से पहले, यानी की भारत की अर्थव्यवस्था पहली ईस्वी से
लेकर 1 हजारवीं ईस्वी के बीच दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। 1 हजार साल
मुगलों के शासन के बाद भी, विश्व की
जीडीपी में भारत की अर्थव्यवस्था का योगदान 25% के बराबर था। लेकिन जब अंग्रेज
भारत को छोड़कर गए तो भारत का विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान मात्र 2 से 3% रह गया
था। जब मुगलों ने
1526-1793 के बीच भारत पर शासन किया, इस समय भारत की आय 17.5 मिलियन पाउंड जो ग्रेट ब्रिटेन की आय से कहीं
ज्यादा थी। 1600 ईस्वी के आस पास भारत की प्रति व्यक्ति GDP 1305 डॉलर थी
जबकि इसी समय ब्रिटन की प्रति व्यक्ति GDP 1137 डॉलर, अमेरिका की
प्रति व्यक्ति GDP 897 डॉलर और
चीन की प्रति व्यक्ति GDP 940 डॉलर थी।
इतिहास के मुताबिक मीर जाफर ने 1757 में ईस्ट इंडिया कंपनी को 3.9 मिलियन पाउंड का
भुगतान किया था। यह तथ्य भारत की सम्पन्नता को दर्शाने के लिए बड़ा सबूत है। अगर आंकड़ो
पर गौर करें तो साल 1917 में भारत का एक रूपया 13 अमेरिकी डॉलर के बराबर था। वहीं
1947 में 1 रूपया बराबर 1 डॉलर हो गया और आज स्थिति क्या है किसी से छुपी नहीं
है
उस दौर में भारत के राजाओं के पास काफी धन और
संपत्ति हुआ करती थी। वहीं भारत में मसालें, कपास और लोहा काफी अच्छी मात्रा में पाए जाते थे और इन चीजों को अन्य
देश के लोगों द्वारा खरीदा जाता था। एक समय था जब भारत मसालों के व्यापार में विश्व
का सबसे बड़ा देश था, दुनिया के पूरे
उत्पादन का 43 % हिस्सा भारत में उत्पादित होता था। पहले भारत में घर-घर में कपास
से सूत बनाया जाता था, लोहे के औजार
बनाए जाते थे और हर घर में लघु उद्योग थे। और मसाले, चीनी, औजार, कपास जैसी चीजों को निर्यात किया जाता था।
सोने की चिड़िया कहने के पीछे जो एक सबसे बड़ा
कारण हुआ करता था, वो मोर सिंहासन
था। इस सिंहासन की अपनी एक अलग ही पहचान हुआ करती थी। इतिहासकार मानते हैं कि मोर
सिंहासन को बनाने के लिए जो धन इस पर लगाया गया था, उतने धन में दो ताज महल का निर्माण किया जा सकता था। लेकिन साल 1739
में फ़ारसी शासक नादिर शाह ने एक युद्ध जीतकर इस सिंहासन को हासिल कर लिया था। मुगल काल में भी शाहजहां ने एक सोने का
तख्त बनाया था, जिसे
तख्त ए तौस कहा जाता था। बताया जाता है कि तख्त में 1 लाख
तौला सोना लगा था। इतना ही नहीं, भारत में इतना सोना था कि
पहले शाहजहां ताजमहल को सोने का ही बनवाना चाहता था।
कोहिनूर हीरे का जिक्र आप लोगों ने कई बार सुना
होगा। आपको पता ही होगा कि ये हीरा भारत के पास हुआ करता था, जिसके बाद ये हीरा कई लोगों के हाथों से गुजरते
हुए, आज इंग्लैंड की रानी के ताज की शान बढ़ा रहा है।
हैदराबाद के शासक उस्मान अली खान को टाइम मैंगजीन द्वारा साल 1937 में दुनिया का
सबसे अमीर आदमी घोषित किया गया था। इतना ही नहीं टाइम मैंगजीन ने उनकी फोटों अपनी
पत्रिका के कवर पेज पर भी लगाई थी और मैंगजीन के मुताबिक उस वक्त उनके पास दुनिया
में सबसे ज्यादा संपत्ति हुआ करती थी।
भारत में कितना सोना था इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि गुजरात के सोमनाथ मंदिर को कई बार सोने के लिए लूटा गया था. वहीं, 2011 में जब पद्मनाभ मंदिर से खजाना निकला था तो अंदाजा लगाया तो समझ आया कि वो सोना केरल के बजट से कई गुना है और इसके अलावा अभी ऐसे कई खजाने मंदिर में होने की बात कही जाती है। दक्षिण भारत के पद्मनाभस्वामी मंदिर में छुपे हजारों टन सोने के अलावा कोहिनूर हीरा और मोर सिंहासन जैसी बहुमूल्य चीजों से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्राचीन काल में भारत और उसके निवासी कितने ज्यादा अमीर और संपन्न रहे होंगे। लेकिन समय के साथ-साथ भारत का स्थान दुनिया में कम होता चला गया और ये सवाल पीछे छोड़ गया की भारत को सोने की चिड़िया क्यों कहा जाता था। समय के साथ साथ इस सोने की चिड़िया को, देश के कुछ दलाल नेताओं ने पीतल तो छोड़िये लोहे के बराबर भी नही रहने दिया। हमें इसको देश का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए की इस सोने की चिड़िया को सही सलामत, हिफाज़त देने वाला और इसको और बुलंदियों की उड़ान पर पहुंचाने वाला शायद ही वो वक्त वापस लौट आयेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें