सरदार वल्लभ भाई पटेल, वह शख्सियत जिसके नाम का स्मरण करने मात्र से ही हर भारतीय गौरवान्वित हो जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता, बैरिस्टर और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। जिन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध आंदोलनों का नेतृत्व किया और भारत को अखण्ड भारत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। जिसकी वजह से सरदार पटेल का ताउम्र ऋणी रहेगा आजाद हिंदुस्तान। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड में हुआ था और 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में उनका निधन। कुछ दिन पहले सरदार पटेल की 71वीं पुण्य-तिथि है.. और इस मौके पर हम बात करेंगे अखण्ड भारत के निर्माण में उनके अहम भूमिका की, जिस वजह से उन्हें लोग ‘लौह पुरुष’ कहते है।
आजादी के बाद सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और फिर सूचना प्रसारण मंत्री बने। इससे पहले ब्रिटिश सरकार के भू-राजस्व के आकलन में भारी वृद्धि करने के फैसले के खिलाफ शुरू किए बारडोली सत्याग्रह में भी सरदार पटेल ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मार्च 1931 में सरदार पटेल ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 46वें सत्र की अध्यक्षता भी की। इसी अधिवेशन में गांधी-इरविन समझौते की पुष्टि करने का आह्वान भी किया गया था। सरदार पटेल को भारत के निर्माण का सूत्रधार भी माना जाता है।
दरअसल 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी चंगुल से तो आजाद हो गया था, लेकिन भारत की कुछ अंदरूनी मामले बाधक बन रही थी। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल द्वारा करीब 559 रियासतों को अखण्ड भारत में शामिल करने के बाद भी जम्मू कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद रियासतें आजादी के बाद भी अपना अलग सरकार चलाने की जिद पर अड़ी हुई थी। हलांकि पटेल की थोड़ी-सी कोशिशों के बाद जूनागढ़ भारत सरकार का हिस्सा बन गया, लेकिन जम्मू कश्मीर की जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने ले ली। जबकि हैदराबाद का निजाम किसी भी कीमत में भारत में विलय के खिलाफ था। वह अपना खुद का अलग देश रखना चाहता था। दरअसल भारत की आजादी के समय हैदराबाद का निजाम उस्मान अली खान ने सरदार पटेल को अखण्ड भारत का हिस्सा बनने से इंकार करते हुए कहा था कि हैदराबाद स्वतंत्र देश के रूप में ही रहेगा। पटेल के अखण्ड भारत के प्रयास के खिलाफ जाते हुए निजाम मदद के लिए ब्रिटिश सरकार के पास भी गया, मगर माउंटबेटन के इंकार कर देने के बावजूद उस्मान अली खान अपनी जिद पर अड़ा रहा। उधर हैदराबाद में कम्युनल माहौल बद से बदतर होता जा रहा था। तब सरदार पटेल ने तुरंत फैसला लेते हुए 13 जून 1948 को सेना की एक टुकड़ी हैदराबाद के लिए रवाना कर दिया। सरदार पटेल के इस एक्शन को 'ऑपरेशन पोलो' का नाम दिया गया था। पोलो शब्द इसलिए लिया गया था, क्योंकि उन दिनों हैदराबाद में विश्व में सबसे ज्यादा पोलो ग्राउंड था। सरदार पटेल के एक्शन के बाद कासिम रिजवी को कैद कर लिया गया। और फिर कासिम रिजवी जेल से रिहा होने के बाद वह पाकिस्तान भाग गया। इस सख्त ऐक्शन के बाद ही सरदार पटेल को ‘लौह पुरुष’ का खिताब मिला।
भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल उन नेताओं में से एक थे, जिन्हें राष्ट्र की निस्वार्थ सेवा के लिए याद किये जाते हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल के राष्ट्र के प्रति अतुलनीय योगदान का मूल्य चुका पाना संभव नहीं है। लेकिन फिर भी भारत सरकार ने उन्हें 1991 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा
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