स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को कैलिफोर्निया के सन फ्रांसिस्को में हुआ था। जब उनका जन्म हुआ तो उनके माता-पिता ने उन्हें गोद दे दिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके माता-पिता अविवाहित थे। उनके पिता एक रिफ्यूजी थे। जिनका नाम अब्दुल फतह जंदाली था और माता का नाम जोओनी शिबल था जो कि एक अमेरिकन सिटीजन थी। अब्दुल फतह सीरिया देश के अरब मुसलमान थे जोकि विस्कंसिन यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी कर रहे थे। तो उस दौरान वो जोआन शिबल से मिले। वे दोनों एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में आ गए स्टीव जॉब्स की मां के पिता ने अपनी बेटी की शादी एक रिफ्यूजी से करने से मना कर दिया। इस वजह से स्टीव के माता पिता ने ये तय किया कि जन्म के बाद हम बच्चे को किसी ऐसे व्यक्ति को गोद दे देंगे जो कम से कम ग्रेजुएट तक की पढाई जरूर की हो। क्यों कि वे चाहते थे कि उनका बच्चा भी आगे चलकर ग्रेजुएशन करें। इसके बाद स्टीव के असली माता पिता को एक ऐसे इंसान से मुलाकात हुई जिन्हें बच्चे की जरूरत थी। लेकिन बाद में पता चला उस कपल ने, उनसे झूठ बोला था। वह ग्रेजुएट नहीं थे। लेकिन उन्होंने स्टीव जॉब के माता पिता को दिलासा दिलाया कि वह उसकी ग्रेजुएशन पूरी करवाएंगे।
क्लारा और पाउल ने इस बच्चे को गोद ले लिया और बच्चे का नाम स्टीव
पाउल जॉब्स रखा। जिन्हें आज हम सभी स्टीव जॉब के नाम से जानते हैं। क्लारा एक बड़ी
कंपनी में अकाउंटेंट थी। पाउल एक कॉस्ट गार्ड मकैनिक थे। स्टीव जॉब ने अपना बचपन कैलिफोर्निया के माउंट व्यू में बिताया। जिस जगह को, आज हम सिलिकॉन वैली के नाम
से जानते हैं। सिलिकॉन वैली एक ऐसी जगह है। आपको जानकर हैरानी होगी की दुनिया
की बड़ी-बड़ी कंपनियों का जन्म सिलिकॉन वैली में ही हुआ।
जैसे कि फेसबुक, गूगल, अमेजॉन, एप्पल और बहुत सारी। स्टीव के दत्तक पिता पॉल एक अच्छे इंजीनियर होने के कारण
उपकरणों से जुड़ा हर कुछ बना सकते थे। उनको अगर किसी भी चीज की जरूरत पड़ती तो वह
उसे बना लेते थे। परिवार में इंजीनियरिंग का ऐसा माहौल देखकर स्टीव की
इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग में रुचि बढ़ने लगी। शुरू के दिनों में स्टीव स्कूल
जाने से भी कतराते थे। स्कूल गये भी तो कोई दोस्त नहीं बनाया। वह हमेशा अकेले ही
रहा करते थे। स्टीव जॉब्स जब अपने पूरे परिवार के साथ कैलिफोर्निया के लोस एल्टोस
चले गए तो वहां पर स्टीव ने होमस्टेड हाई स्कूल ज्वाइन किया जहां उसकी दोस्ती स्टीव
वोजनियाक से से हुए। स्टीव जब 13 साल के हुए तब स्टीव वोजनियाक ने ही स्टीव जॉब्स को
एचपी के संस्थापक बिल हेवलेट से स्कूल प्रोजेक्ट के सिलसिले में मिलवाया। बिल
हेवलेट स्टीव जॉब्स से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने जॉब्स को एचपी में इंटर्नशिप
की नौकरी दे दी।
धीरे-धीरे स्टीव का क्लास में इंटरेस्ट कम होता
चला गया। हाई स्कूल में उन्होंने अपने सिलेबस में रुचि कम दिखाते हुए साहित्यिक
पुस्तकों को पढ़ना शुरू कर दिया। अब जॉब्स की रूचि इलेक्ट्रॉनिक्स और साहित्य बन
चुकी थी। साल 1971 में स्कूल से पास आउट होने के बाद साल 1972 में स्टीव पोर्टलैंड
के रीड कॉलेज में दाखिल हुए। यह कॉलेज काफी महंगा था जो स्टीव के माता-पिता के लिए
मुश्किल था। एक सेमेस्टर के बाद स्टीव ने अपने माता-पिता को बिना बताए ही कॉलेज
छोड़ दिया। कॉलेज से ड्रॉपआउट होने के बाद जॉब्स ने कैलीग्राफी सीखने के लिए एक
कोर्स में दाखिला लिया। इस कैलीग्राफी के कोर्स से उन्होंने फौंट्स को अच्छा बनाने
के लिए बहुत सारी चीजें सिखी। स्टीव जॉब्स की लाइफ का वह समय था। जब वो अपने
दोस्तों के हॉस्टल रूम में फर्श पर सोते थे, वे पैसों और खाने का इंतजाम करने के लिए कोको कोला की
बोतल रिसाइकल करते थे। साथ ही हर संडे को कैंपस के पास में मौजूद मंदिर में जाकर
मुफ्त खाना खाया करते थे। भारत आने
से पहले स्टीव जॉब्स साइकेडेलिक
ड्रग्स भी लेना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने एक
इंटरव्यू बताया था कि लीसर्जिक
एसिड डाईएथिलेमाइड (LSD) का नशा करना उनके जीवन के कुछ बड़े डिसीजनन में से
एक था।
स्टीव जॉब्स 1974 में लोस एल्टोस में वापस अपने
घर आ गए और वहां काम की तलाश करने लग गए। उन्हें अटारी नामक कंपनी ने टेक्नीशियन
की जॉब मिली। इस जॉब से उन्होंने पैसे जमा कर भारत में यात्रा पर जाने की योजना
बनाई। वह अपने दोस्त के साथ 1974 में आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए भारत
आए। 7 महीने तक भारत में रहने के बाद वापस अमेरिका चले गए। अटारी कंपनी में वापस
आने पर उन्हें चिप के कार्य के लिए कहा गया। स्टीव को सर्किट के बारे में ज्यादा
नॉलेज नहीं था तो उन्होंने अपने दोस्त वोजनियाक से कहा कि वह अगर उसकी मदद करेगा तो
उसे 50% हिस्सा दे देंगे। उन्हीं दिनों एक बार स्टीव जॉब्स के दोस्त वोजनियाक ब्लू
बॉक्स नाम की एक हैकिंग डिवाइस लेकर उनके पास आए जिसके जरिए लोग मुफ्त में
अनलिमिटेड इंटरनेशनल कॉल कर सकते थे। जो कि स्टीव जॉब्स पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक्स
के लिए पागल थे। इसीलिए उन्होंने कुछ ही दिनों में वोजनियाक के साथ मिलकर अपनी खुद
की ब्लू बॉक्स डिवाइसेस बनाकर उन्हें बेचना शुरू कर दिया। हालांकि उन्हें पता था कि यह काम लीगल नहीं है। एक न एक
दिन वह पकड़े जाएंगे। इसलिए उन्होंने ब्लू बॉक्स बनाना बंद कर दिया।
मार्च 1976 में वोजनियाक ने एप्पल प्रथम
कंप्यूटर का निर्माण किया और उसे स्टीव जॉब्स को दिखाया। उसी साल अप्रैल के महीने
में स्टीव जॉब्स, वोजनियाक तथा रोनाल्ड वायने ने अपने पिता के गेराज में एप्पल कंपनी की स्थापना की। रोनाल्ड वायने कंपनी में बहुत कम दिनों तक
ही ठहरे और स्टीव और वोजनियाक ही मुख्य रूप से संचालक बने रहे। कुछ ही दिनों बाद उसी साल फाइनली एप्ल ने अपना पहला कंप्यूटर
मार्केट में लांच किया। जिसका नाम एप्पल वन था। हलांकि एप्पल-1 के मार्केट में आने के बाद, इसकी
इतनी ज्यादा बिक्री नहीं हुई। क्योंकि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं था कि पर्सनल कंप्यूटर क्या होते हैं और उन्हें ऑपरेट कैसे किया जाता
है। लेकिन एप्पल-1 की बिक्री के बाद एप्पल ने इतने
पैसे जुटा लिए थे, कि वह एक नए कंप्यूटर पर
काम कर सकें। साल 1977 में उन्होंने अपना दूसरा कंप्यूटर
मार्केट में लांच किया। जिसका नाम एप्पल-2 था। एप्पल-2 के आने के बाद पर्सनल कंप्यूटर की ऐरा पूरी तरह बदल गई। एप्पल-2 दुनिया का पहला ऐसा कंप्यूटर था जिसके अंदर ग्राफिक्स और की-बोर्ड का इस्तेमाल हुआ था। अपने लॉन्च होने के 3 साल के अंदर ही, एप्पल जीरो से
हीरो बन चुका था।
पर्सनल कंप्यूटर के मार्केट में उनकी कोई टक्कर नहीं थी। लेकिन तभी
मुसीबतें आना चालू हो गई। जैसे-जैसे मार्केट में कम्पटिशन बढ़ने लगा एप्पल के
प्रोडक्ट को लोग कम खरीदने लगे। स्टीव जॉब का तीसरा कम्प्यूटर एप्पल 3 मार्केट में
पूरी तरह फेल हो गया। उनका 50%
मार्केट शेयर IBM के पास चला गया। वजह यह था कि एप्पल के कंप्यूटर काफी महंगा थे जो
मध्यम वर्ग के लोग इसे खरीद नहीं पा रहे थे और आईबीएम के कंप्यूटर ज्यादा बिकते जा
रहे थे। उसी समय में माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज सॉफ्टवेयर आईबीएम के कंप्यूटर में आने
लग गए और मैकिनटोश कंप्यूटर का मार्केट शेयर नीचे गिरता गया। कंपनी को नुकसान में जाता हुआ देख स्कली नाम के एक बोर्ड डायरेक्टर ने
जॉब्स को सीईओ के पद से हटा दिया। जिसके बाद जॉब्स ने कंपनी से रिजाइन दे दिया। यह स्टीव जॉब के लिए, किसी सदमे से कम नहीं था। वह इसके बाद डिप्रेशन में
चले गए। उन्हें भरोसा नहीं हो रहा था कि जिन लोगों को उन्होंने नौकरी दी। जिन्हें
बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर में लाकर बैठाया उन्होंने ही उनकी कंपनी से निकाल दिया।
स्टीव जॉब्स के साथ ही उनके कुछ कर्मचारियों ने
भी कंपनी से रिजाइन दे दिया। कंपनी से रिजाइन के बाद स्टीव ने 1985 में नेक्स्ट
नाम की कंपनी को स्थापित किया। इस कंपनी में कुछ ही महीनों के बाद स्टीव को पैसों
की जरूरत पड़ी और रोस पेराट नाम के एक बिलेनियर ने उनकी कंपनी में बहुत ज्यादा
इन्वेस्ट किया। इन्हीं दिनों नेक्स्ट कंपनी ने एक कंप्यूटर लॉन्च किया जिसे जॉब के
कमबैक इवेंट के रूप में जाना गया। 1997 में नेक्स्ट कंपनी को एप्पल ने खरीद लिया।
इस डील के बाद स्टीव जॉब्स को फिर से एडवाइजर के तौर पर
बोर्ड ऑफ मेंमबर में शामिल कर लिये गये। कुछ ही दिनों बाद एप्पल के चेयरमैन ने
स्टीव जॉब्स को दोबारा CEO बनाने की पेशकश की।
इसके बाद स्टीव जॉब्स एप्पल के फुल टाइम CEO नियुक्त किये
गये।
CEO बनते ही, स्टीव जॉब ने उस समय के सारे प्रोजेक्ट बंद
कर दिए। उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट के साथ एक डील की। उस डील के अनुसार माइक्रोसॉफ्ट
एप्पल में 150 मिलियन डॉलर इंवेस्ट किया। इसके 1 साल बाद स्टीव जॉब्स की गाइडेंस में एप्पल की एक नई सीरिज लॉन्च हुई।
एप्पल के इस सीरिज के सारे प्रोडक्ट पूरी दुनिया को बदल दिया। इसके बाद उन्होंने साल 1998 में आईमैक
लॉन्च किया जो एप्पल के लिए बहुत ही सक्सेसफुल प्रोडक्ट साबित हुआ। आईमैक के बदौलत
एप्पल लगभग 6 बीलियन डॉलर का सिर्फ प्रॉफिट कमाई। इसके बाद 2001 में एप्पल फर्स्ट
जनरेशन आईपैड लॉन्च करता हैं। जो पहला डीजिटल ऑडियो प्लेयर था। स्टीव के उस आईपैड
में 1000 से भी ज्यादा गाने इनस्टॉल किए जा सकते थे। यह
प्रोडक्ट भी एप्पल के लिए सुपरहिट साबित हुआ।
2003 में एप्पल ने आई ट्विन इंट्रोड्यूस किया। आई ट्विन एक ऐसा ऑनलाइन मार्केटप्लेस था जहां पर लोग म्यूजिक को खरीद सकते थे।
अब तक एप्पल पूरे form में आ चुका था। उसे
दुनियां की मोस्ट
इनोवेटिव कंपनी का तमगा मिल चुका था। एक ओर
जहां स्टीव बुलंदियों पर पहुंच रहे थे वहीं दूसरी तरफ उनका भाग्य कुछ और इशारा कर
रहा था। साल 2004 में स्टीव की तबीयत
अचानक खराब हो गई। मेडिकल जांच के बाद पता चला कि जॉब्स के पेनक्रियाज में ट्यूमर है। स्टीव अपने सभी एंप्लाइज को इसकी सूचना देते
हैं। कि वह इसका ऑपरेशन करवाने जा रहे हैं। फिर वह एक लंबे मेडिकल लीव पर चले गये।
लीव से वापस आने के बाद स्टीव जॉब्स एक बार फिर पूरी फॉर्म में थे। फिर 2007 में दुनिया का सबसे पहला फुल फ्लैश स्मार्ट फोन लॉन्च
किया जिसका नाम आईफोन रखा। आईफोन इस दुनिया का सबसे पहला स्मार्टफोन था। आईफोन को
लॉन्च होने के तीन साल बाद एप्पल ने दुनिया का पहला टैबलेट कम्प्यूटर लांच किया जिसका नाम ipad
रखा।
इसी दौरान स्टीव जॉब्स की तबीयत अचानक से एक बार फिर खराब हो गई। मेडिकल
जांच में पता चलता है कि उनका लीवर पूरी तरह से खराब हो चुका है। उन्हें जल्द से
जल्द लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है। काफी जद्दोजहद के बाद स्टीव जॉब्स को एक डोनर
मिल जिसके बाद उनकी सर्जरी तो हुई पर सक्सेस नहीं रहा। अपनी खराब सेहत के चलते
स्टीव जॉब्स को लगा कि यह सही समय होगा कि अपनी कमान किसी और के हाथों में दे दें।
उस समय कंपनी के COO टीम कॉक ने उनकी
जिम्मेदारी को संभाला। 2 साल तक बीमारी से लड़ने के बाद वो इस जानलेवा बीमारी को हरा नहीं
पाए जिसके चलते 5 अक्टूबर 2011 के दिन दोपहर 3:00 बजे के 56 साल की उम्र में स्टीव
जॉब्स ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
अपने आखिरी वक्त में जब स्टीव जॉब्स अस्पताल के
बिस्तर पर पड़े थे, तब उन्होंने दुनिया को जिंदगी का असली मतलब समझाया। जॉब्स ने कहा था,
इस वक्त डेथबेड पर पड़े हुए मुझे इस बात का एहसास हो रहा है कि
मैंने जितना शोहरत कमाई जिसमें मुझे गर्व महसूस होता है। वो सब अब मौत के आगे किसी
काम के नहीं हैं।
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