यूक्रेन को लेकर अमेरीका और रूस आमने सामने है... दुनिया भर के लोगों के मन में तीसरे महायुद्ध के विस्फोट की आशंका मंडरा रही है वही दूसरी ओर पूरी दुनिया इस तनाव को कम करने की जी-जान से कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन बात बन नहीं पा रही है... भारत का कहना है कि इस समस्या का समाधान राजनयिक तरीके से निकाला जाना चाहिए. तो आइये, जानते हैं कि यूक्रेन का यह मामला आखिर है क्या?... दरअसल यूक्रेन संकट की वजह से दुनिया भर के देशों की निगाहें रूस.. नाटो सेना और अमेरिकी रुख पर टिकी हुई हैं... रूस अपने सैनिकों और हथियारों को यूक्रेन की सीमा पर तैनात कर चुका है, जिसे देखते हुए तमाम देश इस बात की आशंका जता रहे हैं कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर हमला कर सकता है... वहीं, इस आशंका को देखते हुए अमेरिका लगातार रूस पर प्रतिबंधों की धमकी देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है... अमेरिका का कहना है कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे वैश्विक स्तर पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा... इस तनातनी के बीच सवाल उठता है कि आखिर ये बवाल किस बात पर है? तो इसका सीधा जवाब ये है कि खुद को असहज पाने के कारण यूक्रेन, नाटो से हाथ मिलाना चाहता है. वहीं रूस अमेरिका से आश्वासन चाहता है कि यूक्रेन को किसी भी शर्त पर नाटो में जगह न दी जाए... यहां, यूक्रेन और रूस के बीच गर्म हुए माहौल के इतर यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर यूक्रेन क्यों नाटो में मिलना चाहता है? रूस को इससे क्यों एतराज है? और अमेरिका इसमें थर्ड पार्टी क्यों बना हुआ है? उसका मकसद क्या है… इन सभी सवालों के जवाब के अलावा हम इस वीडियो में समझेंगे कि आखिर यूक्रेन का जन्म कब और कैसे हुआ? एक समय रूस का पक्का वाला दोस्त कहलाने वाला यूक्रेन आज उसका सबसे बड़ा दुश्मन कैसे बन गया है. दरअसल रूस औऱ यूक्रेन के आमने सामने होने की वजह नाटो है.. और नाटो क्या है पहले आइए इसके बारे में समझते हैं... 1939 से 1945 तक दूसरा विश्व युद्ध चला और इसमें अमेरिका, फ्रांस, सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ और ब्रिटेन ने मिलकर इटली और जापान के खिलाफ जमकर युद्ध किया. इस दौरान 1945 में अमेरिका ने सबसे आगे निकलते हुए जापान पर परमाणु बम गिरा दिया और इसी के साथ दूसरा विश्व युद्ध भी खत्म हो गया. हालांकि, यहां पर यूएसएसआर को यह बात चुभ गई कि अमेरिका के पास इतने घातक हथियार थे तो सहयोगी होने के नाते उसने बताया क्यों नहीं... यहीं से दोनों देशों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई और दोनों देश दुनिया के अन्य देशों को अपने पाले में करने के उद्देश्य से आगे बढ़े. यही वह समय था जब नाटो नाम के एक संगठन का जन्म हुआ और इसे अमेरिका ने 12 देशों के समर्थन से बनाया. 1949 में जन्में नाटो में शुरू में 12 देश थे लेकिन समय के साथ अन्य देश भी इससे जुड़ते गए और अब ये 30 देशों का एक मजबूत संगठन बन गया है... जिसमें अल्बानिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, कनाडा, क्रोएशिया, चेक रिपब्लिक, डेनमार्क, इस्तोनिया, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, इटली, लातविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, मोंटेनिग्रो, नीदरलैंड, नॉर्थ मेसीडोनिया, नॉर्वे, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, स्पेन, तुर्की, ब्रिटेन औरअमेरिका का नाम शामिल है. इसमें से इस्तोनिया, लातविया और नॉर्वे की सीमा ही रूस से मिलती है, जो कि बेहद कम है. लेकिन यूक्रेन के नाटो में शामिल हो जाने के बाद रूस तक नाटो देशों की पहुंच का इलाका काफी बढ़ जाएगा.. आपको यहां बतादें की नाटो की स्थापना सुरक्षा के मद्देनजर की गई थी, इसके सदस्य देशों का उद्देश्य था कि अगर संगठन के किसी भी मेंबर देश पर कोई बाहरी देश आक्रमण करता है तो सभी मिलकर उसका मुकाबला करेंगे. यानी सीधा सीधा संदेश था कि अगर कोई भी देश नाटो के सदस्य देशों पर हमला करता है तो उस हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा... इधर रूस ने भी कुछ देशों के साथ लेकर एक संगठन का निर्माण किया और उसे नाम दिया गया डब्ल्यूटीओ यानी वार्सा ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन. अब सवाल उठता है कि जब सब देश इन दो धूरियों में बंटने के लिए उतावले दिख रहे थे तो भारत कहां था. इसका जवाब ये है कि भारत ने एक तीसरा मोर्चा बनाया जिसे NAM यानी नॉन अलायमेंट मूवमेंट जिसे गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, ये उन देशों का संगठन था जो न तो अमेरिका के साथ थे और न ही रूस के साथ थे... 1991 तक दोनों गुटों ने एक दूसरे को समाप्त करने की तमाम कोशिशें की, लेकिन अमेरिका यहां बाजी मार गया. 1991 में रूस के नेतृत्व वाले सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक संघ यानी की USSR की अर्थव्यवस्था के खस्ता होने और उसके कई हिस्सों में असहमति बनने के कारण, वो 15 टुकड़ों में बंट गया यानी 15 हिस्से अलग होकर 15 नए देश बन गए. इसी में से एक था यूक्रेन, जिसे लेकर अभी पूरा बवाल मचा हुआ है. यूक्रेन सोवियत संघ यानी यूएसएसआर के विघटन के बाद अलग होने वाले 15 नए देशों में रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था... 1991 में यूएसएसआर से अलग होने के बाद भी यूक्रेन रूस के साथ खड़ा था. लेकिन विवाद तब शुरू हुआ जब रूस ने साल 2014 में यूक्रेन के एक हिस्से को जिसे क्रीमिया के नाम से जाना जाता है, पर हमला किया और उसे रूस में मिला लिया. इसके बाद अमेरिका ने रूस पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए. साथ ही रूस को जी8 से भी बाहर होना पड़ा... इसके बाद यूक्रेन को लगा कि अगर हम अभी नहीं जागे तो रूस हमें पूरी तरह अपने कब्जे में ले लेगा. इस डर के कारण यूक्रेन ने नाटो से हाथ मिलाने की योजना बनाई. यूक्रेन को लगा कि अगर वो नाटो का सदस्य बन जाता है तो रूस उस पर कभी हमला नहीं कर पाएगा क्योंकि नाटो पर हमले का मतलब अमेरिका पर हमला... रूस को भी ये बात अच्छे से पता है कि अगर यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन गया तो नाटो रूस की एक लंबी सीमा तक पहुंच बना लेगा और फिर कुछ भी ऊपर-नीचे होने पर, सभी 31 देश मिलकर रूस पर हमला कर सकते हैं. यही कारण है कि रूस ने अमेरिका से कहा है कि वो विवाद से दूर रहे और यूक्रेन को नाटो में एंट्री न दे... यहां एक बार उभर कर सामने आ रही है कि रूस यहां एक तीर से दो निशाने साध रहा है. वो एक तरफ यूक्रेन को नाटो से दूर रखना चाहता है ताकि वो भविष्य में कभी भी उसके खिलाफ खड़े होने की ताकत न जुटा सके. वहीं दूसरी तरफ वो यूक्रेन की सीमा पर तनाव पैदा कर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म करवाना चाहता है... वर्तमान में यूक्रेन में एक गुट जिसमें नेता और वहां की जनता दोनों शामिल हैं, वो रूस में मिलने के लिए तैयार हैं. ये उस हिस्से के लोग हैं जिनकी सीमा रूस की सीमा से सटी हुई है. वहीं कुछ हिस्से की जनता चाहती है कि यूक्रेन यूरोपियन यूनियन के साथ बना रहे और नाटो से हाथ मिला ले... हलांकि इन सब के बीच अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो उस सूरत में यूरोप और अमेरिका की ओर से नाटो सेनाएं साझा कार्रवाई करेंगी... वर्तमान में यूक्रेन की सीमा पर रूस ने 1 लाख से अधिक सैनिक, जंगी जहाज, टैंक, गोला-बारूद समेत कई अत्याधुनिक हथियारों की तैनाती कर दी है
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