हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी की NHRC द्वारा भारत में शरणार्थियों और शरण मांगने वालों के बुनियादी अधिकारों के संरक्षण पर चर्चा की गयी। चर्चा के दौरान भारत में शरणार्थियों और शरण मांगने वालों के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं होने के मुद्दे पर चिंता व्यक्त की गई। बैठक के दौरान सरकार को कुछ सुझाव भी दिये गये और इस बात पर जोर दिया गया कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन, 1951 पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। हलांकि भारतीय संविधान के मुताबिक शरणार्थी और शरण चाहने वाले संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों के हकदार हैं। आज के इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि शरणार्थी यानी की रिफ्यूजी का मतलब क्या है? शरणार्थियों को लेकर भारतीय कानून क्या कहता है? साथ ही बताएंगे कि शरणार्थी के लिए भारत में नागरिकता प्राप्त करने के क्या नियम हैं?
कोई भी इंसान किसी भी देश में शरणार्थी बनकर
रहना पंसद नहीं करता लेकिन हालात उसको ऐसा करने पर मजबूर कर देता है। दुनिया में
ना जाने कितने ऐसे लोग हैं जो अपना मुल्क छोड़कर, सब कुछ गवां कर दर-ब-दर की ठोकरे
खाते हुए दूसरे मुल्क में रहने पर मजबूर हैं। आप में से बहुत सारे लोग ऐसे होंगे
जो साल 2000 में जेपी दत्ता के निर्देशन में बनी फिल्म
रिफ्यूजी जरूर देखी होगी। फिल्म की कहानी एक मुस्लिम नौजवान के इर्द-गिर्द घूमती
है, जो भारत और पाकिस्तान के अवैध शरणार्थियों को सीमा पार करने में उसकी
मदद करता है। फिल्म तो बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पाई लेकिन उसका एक गाना बहुत
हिट हुआ था। पंछी, नदियां, पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके.. अगर हम इस गाने का विश्लेषण करें तो
शरणार्थी वाकई पंछियों और मछलियों की तरह बेघर होकर कभी समुद्र में तो कभी
जिहादियों के चुंगल में तो कभी एक देश से दूसरे देशों में अपना ठिकाना डूंढ़ते
रहते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो शरणार्थी वो होते हैं जिसे जंग या हिंसा के
कारण अपने देश से भागने के लिए मजबूर किया गया हो और ऐसे में वो किसी दूसरे देश
में रहने पर मजबूर हों ऐसे लोगों को शरणार्थी यानी की रिफ्यूजी कहा जाता है।
दुनिया भर के देशों में रिफ्यूजी को लेकर
अलग-अलग कानून बनाए गये है। जो लोग दूसरे देश में आश्रय चाहते हैं उन्हें वहां
रहने की वजह साबित करनी होती है। इसके लिए लोग उस देश की सरकार से शरण के लिए
अप्लाई करते हैं। और एप्लीकेशन एक्सेप्ट होने के बाद उन्हें शरणार्थी का दर्जा मिल
जाता है। हलांकि भारत में रिफ्यूजी से जुड़ा कोई कानून नहीं है और ना ही कोई नीति
है। लेकिन फिर भी एक अनुमान के मुताबिक इस वक़्त भारत में 3 लाख से ज्यादा
रिफ्यूजी रह रहे हैं। जिन्हें भारत सरकार कभी भी गैर कानूनी प्रवासी करार दे सकती
है और फिर विदेशी अधिनियम या पासपोर्ट अधिनियम के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती
है। हाल ही में भारत सरकार ने शरणार्थियों से जुड़ा सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट यानी की CAA बनाया है लेकिन
उसे अभी अमल में नहीं लाया गया है।
दुनिया भर में शरणार्थियों के हितों की रक्षा के
लिए संयुक्त राष्ट्र की एक रिफ्यूजी एजेंसी भी है जिसका नाम UNHCR है जो एक वैश्विक ऑर्गेनाइजेशन है जो रिफ्यूजी के अधिकारों की रक्षा
करने और उनके बेहतर भविष्य के लिए डेडिकेटेड है। संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी की
स्थापना साल 1950 में की गई थी और इसका मुख्यालय जिनेवा में है।
यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन 1951 के अर्टिकल 2 के पैराग्राफ 1 में रिफ्यूजी
की परिभाषा लिखी गयी है। ये परिभाषा शरणार्थी के दर्जे से जुड़े प्रोटोकॉल के तहत
दी गई है, जो अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून संधि का एक अहम हिस्सा भी है। पहली
बार ये संधि अक्टूबर 1967 को लागू की गई थी जिसका भारत अब भी सदस्य नहीं
है। यानी की भारत रिफ्यूजियों को शरण देने के लिए बाध्य नहीं है, फिर भी भारत
में रिफ्यूजियों की संख्या बड़ी तादाद में हैं।
मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स के मुताबिक नागरिकता
कानून 1955 के तहत भारत की नागरिकता चार तरीकों से हासिल
की जा सकती है. इसमें भारत का संविधान लागू होने यानी कि 26 जनवरी, 1950
के बाद भारत में जन्मे कोई भी व्यक्ति जन्म से यहां का नागरिक है। दूसरा प्रावधान
वंशानुक्रम के आधार पर नागरिकता देने का है। और तीसरा पंजीकरण के आधार पर नागरिकता
हांसिल किया जा सकता है जबकि चौथे प्रावधान के तहत कोई भी व्यक्ति देश में रहने के
आधार पर भी नागरिकता हासिल कर सकता है। लेकिन इसके लिए उसे नागरिकता अधिनियम की
तीसरी अनुसूची की सभी शर्तों को पूरा करना होगा।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों
को उनके मूल देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी नॉन-रिफाउलमेंट का अधिकार शामिल है।
नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके
मुताबिक अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस
जाने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये। फिलहाल भारत में नागरिकता संशोधन
अधिनियम यानी की CAA 2019 से मुसलमानों को बाहर रखा गया है
और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख जो बांग्लादेश, पाकिस्तान
और अफगानिस्तान से आए बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
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