दुनिया के सामने दो टूक बात कहने वाले और स्टेट्समैन की छवि रखने वाला
रूस का राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है। इसके पीछे
सबसे बड़ा कारण यह है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन USSR यानी की यूनाइटेड सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ रशिया
को लेकर अपनी अतीत की यादे कभी नहीं छिपाते हैं। USSR का
विघटन उनकी स्मृतियों में बसा अतीत का एक ऐसा विषाद है जिसे वो पलटकर रख देना
चाहते हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि 4 साल पहले कुछ पत्रकारों ने जब पुतिन
से पूछा की आप अपने देश के इतिहास में किस घटनाक्रम को पलट देना पसंद करेंगे। तो बिना
देर किये हुए पुतिन ने कहा था The collapse of the Soviet Union। यानी की अगर वह कर सकते तो USSR के विलय को उलट कर
रख देते।
दरअसल 1922 में अस्तित्व में आया USSR
20वीं सदी का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। विज्ञान से लेकर अर्थव्यवस्था
तक कोई भी देश सोवियत संघ से टक्कर नहीं ले सकता था। आपको बतादें की USSR के बदौलत ही साल 1957 में इंसान द्वारा बनाया गया
पहला उपग्रह स्पूतनिक-1 अंतरिक्ष में भेजा गया था। सोवियत
रूस ने ही लेनिनग्राद की लड़ाई में हिटलर की सेनाओं को शिकस्त दी। इसी देश ने
अमेरिका के साथ कोल्ड वार की रेस लगाई और विश्व में शक्ति संतुलन को दो धुव्रीय
बनाया। परमाणु जखीरों की जब बात होती है तो रूस का पॉजिशन अब भी नंबर वन है। और
अमेरिका अभी भी दूसरे नंबर पर है।
1922 से लकर 1991 यानी लगभग 70 सालों
तक सोवियत संघ का दबदबा दुनिया में कायम रहा। लेकिन 25 दिसंबर
1991 को क्रिससम की रात इस महाशक्ति का पतन हो गया। जब रूस
का विखराव हो रहा था तब अक्टूबर 1952 में जन्मे पुतिन 39
साल के युवा थे। उन्होंने अपने आंखों के सामने सोवियत संघ को 15
टुकड़ों में बंटते देखा। 25 दिसंबर,
1991 को सोवियत संघ के आखिरी नेता मिखाइल गोर्बाचोव देश को आखिरी
बार संबोधित कर रहे थे और दुनिया इस अविश्वसनीय उदघोषणा को सुन रही थी। मिखाइल
गोर्बाचोव के संबोधन के साथ ही USSR की कहानी अतीत के पन्नों
में दर्ज हो गई और दुनिया के मानचित्र पर 15 नए देश वजूद में
आए। ये देश थे- आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस,
इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान,
कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया,
मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान,
तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान.
खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट पुतिन इस विघटन के मूक गवाह थे। जी
हां, पुतिन तब अपने देश के लिए
विदेशों में बतौर जासूस के तौर पर काम कर रहे थे। USSR खत्म
होने के बाद पुतिन को रूस वापस बुला लिया गया। उस समय रूस अस्थिरता के मुहाने पर
खड़ा था। ये बीसवीं सदी का आखिरी दशक था। दुनिया नई सदी, नई
उम्मीदों का इंतजार कर रही थी वहीं सोवियत संघ का विघटन हो चुका था।
आज जिस शख्स को तीसरे विश्व युद्ध की आहट से जोड़ा जा रहा है उस
व्यक्ति
ने साल 2005 में USSR पर पहली बार अपने मन की बात कही थी। पुतिन ने कहा था, सोवियत संघ का विघटन 20वीं सदी की सबसे बड़ी भू-राजनीतिक
त्रासदी थी। वे इस इतिहास को पलटना चाहते हैं। साल 2000 से
लेकर अबतक पुतिन किसी न किसी रूप में रूस की सत्ता में रहे हैं। तब से ही पुतिन की
नजरें उन रिपब्लिक की ओर गई जो 1991 से पहले सोवियत रूस का
हिस्सा हुआ करती थीं। सबसे पहले बात चेचन्या की। रूसी संघ की विस्तारवादी नीति का
पहला निशाना चेचन्या ही बना था। चेचन्या पूर्वी यूरोप के कॉकस क्षेत्र के उत्तरी
भाग में स्थित है। चेचन्या आज रसियन फेडरेशन का हिस्सा भी है लेकिन 1991 में USSR के विलय से पहले ही चेचन्या अपनी आजादी की घोषणा
करवा दी थी। तब बोरिस येल्तसिन ने इसे स्वीकार नहीं किया था। 1994 में रूस और चेचन्या के बीच पहली लड़ाई हुई और 1996 में
ये लड़ाई चेचन्या की जीत के साथ खत्म हुई। रूस ने तब चेचन्या को आजाद मुल्क की
मान्यता दे दी। पुतिन के सामने ये सारी घटनाएं घटित हो रही थी। हलांकि रूस के पॉवर
कॉरिडोर में पुतिन की एंट्री 1998 में पूर्व राष्ट्रपति और
मिखाइल गोर्बाचोव के उत्तराधिकारी बोरिस येल्तसिन ने करवाई थी। 1999 में रूस ने चेचेन्या पर निर्णायक हमला शुरू कर दिया। पुतिन इस हमले के
रणनीतिकार थे। उनके नेतृत्व में रूस ने चेचन्या को शिकस्त दी और 17 हजार 300 वर्ग किलोमीटर वाले मुस्लिम बहुल इस छोटे
से देश को रूस में मिला लिया। चेचन्या में जीत के बाद पुतिन रूस के लोकप्रिय नेता
बन गए। और फिर मार्च 2000 में पुतिन 53 प्रतिशत वोटों के साथ अपना पहला राष्ट्रपति चुनाव बंपर वोटों से जीते। पुतिन
अब महात्वाकांक्षाओं से लैस थे। 3 साल बाद ही पुतिन की नजरें
USSR का हिस्सा रहे जॉर्जिया पर गई। जॉर्जिया रूस के दक्षिण-पश्चिम
बॉर्डर पर स्थित है। 2003 में जॉर्जिया में विरोध प्रदर्शन
का दौर चल पड़ा इसे Rose revolution का नाम दिया गया। 2008 आते आते जॉर्जिया की केंद्रीय सरकार और वहां के दो प्रांत अबखाजिया और साउथ
ओसेतिया के बीच झगड़े की शुरुआत हो गई। फिर क्या था रूस ने मौके का फायदा उठाकर
यहां दखल दिया और इन दोनों प्रातों को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दे दिया।
अब बात करते हैं यूक्रेन की। 1991 में जब USSR का विलय हुआ तो रूस इसका सबसे ताकतवर
गणराज्य था, लेकिन दूसरे ही नंबर पर यूक्रेन था। 44 मिलियन की आबादी वाले इस देश की जीडीपी 155.6 बिलियन
डॉलर है। बंटवारे के बाद यूक्रेन के हिस्से में बड़े पैमाने पर न्यूक्लियर हथियार,
इंटर कॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल आए। लेकिन पश्चिमी कूटनीतिज्ञों
ने समझौता कराया और इन हथियारों को फिर से रूस को दिलवा दिया। इसके एवज में रूस ने
वादा किया था कि वो यूक्रेन की संप्रभुता का सम्मान करेगा और उसकी सुरक्षा भी
करेगा। आज यूक्रेन दो हिस्सा पूरब और पश्चिम में बंटा
गया। पूरब के लोग अपने आप को रूस के करीबी समझते हैं। पुतिन ने यूक्रेन के जिन दो
प्रदेशों लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र देश की मान्यता दी है वे राज्य यूक्रेन के इसी पूर्वी इलाके में स्थित हैं। जबकि
पश्चिम के लोग खुद को यूरोप से नजदीक मानते हैं। जबकी पुतिन इतिहास और भूगोल का
हवाला देते हुए यूक्रेन को रूस के ऐतिहासिक गणराज्य का हिस्सा बताते हैं। पुतिन
यूक्रेन को किसी भी कीमत पर NATO की सदस्य बनते हुए नहीं
देखना चाहते हैं। क्योंकि यूक्रेन में NATO जैसे सैन्य संगठन
के कदम पड़ने का अर्थ है कि रूस के दरवाजे पर अमेरिका के कदम।
साल 2014 में रूस ने यूक्रेन को
सबक सिखाने के लिए क्रीमिया को निशाना बनाया। क्रीमिया यूक्रेन और रूस दोनों के
करीब है। दरअसल 1954 में सोवियत संघ के तत्कालीन नेता निकिता
ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को एक तोहफे के तौर पर क्रीमिया को दे दिया था। पर साल 1991
में सोवियत संघ के टूटने के बाद यूक्रेन और रूस अलग-अलग हुए तो सवाल
खड़ा हुआ कि आखिर क्रीमिया पर कब्जा किसका हो? फिलहाल
क्रीमिया यूक्रेन के पास ही रहा लेकिन इससे रूस खुश नहीं था। लेकिन मार्च 2014
को पुतिन ने अक्सियोनोव से मुलाकात की और एक संधि पर हस्ताक्षर किए
जिसके तहत क्रीमिया रूस का हिस्सा बन गया।
अब बात करते हैं कजाकिस्तान की 1991 से पहले कजाकिस्तान भी USSR का ही एक रिपब्लिक था।
ये देश अभी भी रूस के प्रभाव क्षेत्र में आता है। लिहाजा यहां रूस की संस्कृति,
भाषा का व्यापक प्रभाव है। रूस कजाकिस्तान के एलीट्स को समर्थन करता
है और इस देश के जरिए सेंट्रल एशिया में अपना रुतबा कायम रखना चाहता है.
कजाकिस्तान के अलावा रूस के प्रभुत्व का असर USSR के सदस्य रहे तीन छोटे-छोटे राष्ट्रों पर भी दिखता
है। ये देश हैं बाल्टिक क्षेत्र में स्थित इस्टोनिया, लातविया,
और लिथुआनिया। जो बाल्टिक क्षेत्र पूर्वी यूरोप में स्थित है। ये
छोटे देश रूस के लिए रणनीतिक महत्व रखते हैं क्योंकि इसके जरिये रूस यूरोप में
अपना प्रभाव कायम रख सकता है.
बेलारूस.. रूस के पश्चिम और लिथुआनिया के नीचे स्थित बेलारूस से रूस
के दोस्ताना संबंध हैं। इसकी वजह ये है कि बेलारूस के अलेक्जेंडर लुकाशेंको को रूस
का समर्थक माना जाता है। राष्ट्रपति लुकाशेंको को यूरोप का लास्ट डिक्टेटर भी कहा
जाता है। वह पिछले 27 सालों से सत्ता में हैं।
लुकाशेंको की बदौलत पुतिन ने रूस का दबदबा यहां कायम रखा है।
USSR का विघटन रूसी गणराज्य के इतिहास का वो अध्याय है जिसे पुतिन पलट देना चाहते हैं। पिछले 20 सालों से रूस की सत्ता का केंद्र रहे पुतिन के सैन्य और कूटनीतिक फैसलों में कहीं न कहीं इसकी छाप देखने को मिलती है। इसी कड़ी में यूक्रेन के 2 प्रांत लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र देश की मान्यता देकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने USSR के सपने को फिर से खाद-पानी दे दिया है।
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