कभी सोचा है जब भी कोई रोता है तो उसकी आंखों में आंसू क्यों आने लगते हैं? आपने बचपन से देखा होगा कि जब भी कोई रोता है तो कुछ देर में उसकी आंखों में आंसू आने लग जाते हैं… दरअसल इंसान के रोने के पीछे पूरी तरह से विज्ञान काम करता है.. आपको बता दें कि इंसानों के आंखों से आंसू किसी दुख, परेशानी या बेहद खुशी के मौके पर ही नहीं आते हैं, बल्कि ये किसी खास गंध या चेहरे पर तेज हवा के लगने के वजह से भी आते हैं... वहीं प्याज काटने पर आंसुओं का निकलना आम बात है.. तो दोस्तों आज हम आपको इस वीडियो के माध्यम से बताएंगे कि हमारे आंखों से आंसू क्यों और कैसे आते हैं?.. पहले तो आपको बता दें कि आंसू की कई तरह के होते हैं. एक आंसू तो एलर्जी होने पर... कोई इंफेक्शन या कोई दिक्कत होने पर आते हैं... इन इंफेक्शन को वॉटरी आइज कहते हैं और ये आंखों में कोई ना कोई दिक्कत होने की वजह से आंखों में आते हैं... इसके अलावा एक दूसरे आंसू होते हैं, जो तेज हवा और मौसम में बदलाव की वजह से आंख में आते हैं. लेकिन एक तीसरे तरह के आंसू होते हैं, जिनका कारण रोने से जुड़ा है. दरअसल जब हम किसी भी भावना के एक्स्ट्रीम पर पहुंच जाते हैं तो हमारी आंखों में आंसू छलक जाते हैं. इसका कारण ये है कि जब भी आप कोई व्यक्ति इमोशनल होता है या फिर किसी भी भावना के एक्स्ट्रीम पर होता है तो शरीर में कोई तरह की प्रतिक्रिताएं होती हैं... यह खुशी के वक्त भी होता है तो दुख के वक्त भी होता है... इससे शरीर में कई तरह के हॉर्मोनल चेंज भी होते हैं, जिसमें एड्रनीलिन लेवल में बदलाव शामिल है... आपको बता दें कि वैज्ञानिकों ने आंसुओं को मुख्य रूप से तीन श्रेणी में बांटा है.. आंसुओं की पहली श्रेणी है बेसल... ये नॉन-इमोशनल आंसू होते हैं, जो आंखों को सूखा होने से बचाते हुए स्वस्थ रखते हैं... दूसरी श्रेणी में भी नॉन-इमोशनल आंसू ही आते हैं.. ये आंसू किसी खास गंध पर प्रतिक्रिया से आते हैं, जैसे प्याज काटने या फिनाइल जैसी तेज गंध पर आने वाले आंसू होते है.. आंसुओं की तीसरी श्रेणी पर हमेशा चर्चा होती रहती है.. इसे क्राइंग आंसू कहते हैं.. क्राइंग आंसू भावनात्मक प्रतिक्रिया के तौर पर आते हैं... इंसान के मस्तिष्क में एक लिंबिक सिस्टम होता है, जिसमें ब्रेन का हाइपोथैलेमस होता है.. यह हिस्सा नर्वस सिस्टम से सीधे संपर्क में रहता है.. इस सिस्टम का न्यूरोट्रांसमिटर संकेत देता है और किसी भावना के एक्सट्रीम पर हम रो पड़ते हैं.. इंसान केवल दुख में ही नहीं, बल्कि गुस्सा या डर होने पर भी रोने लगता है.. इंसान का रोना नॉन-वर्बल संवाद का एक तरीका है.. आंसुओं के जरिए इंसान ये बताता है कि हमें मदद की जरूरत है.. बता दें कि मनोवैज्ञानिक इस बात पर लगातार जोर देते हैं कि भावनाओं के उबाल में रोना अच्छा होता है.. इससे आंखें ही नहीं, बल्कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है.. नॉन-वर्बल संवाद का सबसे सही उदाहरण नवजात बच्चे होते हैं.. बच्चे जब भाषा नहीं जानते हैं, तो रोने के माध्यम से नॉन-वर्बल संवाद करते हैं और अपनी जरूरतों को बताते हैं.. कभी कभी जब आप प्याज काटते होते हैं तब भी आपके आंखो से आंसू निकल आते हैं... दरअसल आंखों में आंसू आने की सबसे बड़ी वजह है प्याज में मौजूद केमिकल.. इसे सिन-प्रोपेंथियल-एस-ऑक्साइड कहा जाता है... जब प्याज को काटा जाता है तो इसमें मौजूद यह केमिकल आंखों में मौजूद लेक्राइमल ग्लैंड को उत्तेजित करता है.. इस कारण आंखों से आंसू निकलने लगते हैं... रोना भले ही किसी को पसंद न हो लेकिन प्यार और दुख के ऐसे कई मौके आते हैं जब लोगों की आंखों से आंसू निकलने लगते हैं.. क्योंकि आंसुओं का सीधा संबंध हमारी मनोदशा से होता है
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