रूस और युक्रेन के बीच महायुद्ध में अब तक मिसाइल, टैंक और हवाई हमलों की तस्वीर सबने देखी लेकिन अब केमिकल वॉर की आहट होने लगी है। अमेरिका ने दावा किया है कि रूस, यूक्रेन पर केमिकल या जैविक हथियारों से अटैक कर सकता है। लेकिन रूस ने पलटवार करते हुए ये दावा किया है कि उसने यूक्रेन में जैविक हथियारों को खोज निकाला है जो अमेरिका की मदद से यूक्रेन में बनाए जा रहे है। मॉस्को के दावे पर हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई। इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के प्रतिनिधि ने कहा कि यूक्रेन के पास ना कोई बायोलॉजिकल वेपन प्रोग्राम है और ना ही यूक्रेन में अमेरिका के समर्थन से चलने वाली कोई बायोलॉजिकल लैब्स हैं। अरोप सच्चे हैं या झूठे इसकी पड़ताल की जरूरत है। ऐसे में आज ये समझना जरूरी हो जाता है कि जैविक हथियार क्या होता है और इसका हमला कितना खतरनाक होता है। साथ में हम यह भी जानेंगे कि क्या सच में यूक्रेन के पास जैविक हथियार हैं और अगर हैं तो वह क्या रूस के खिलाफ उनका प्रयोग करेगा। 'Biological War' ये शब्द आज आपको नया लग रहा होगा, लेकिन इसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। सबसे पहले समझिए कि जैविक हथियार क्या होते हैं?
आसान भाषा में कहा जाए तो ऐसे हथियार जिनमें विस्फोटक नहीं बल्कि कई
तरह के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और ज़हरीले पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है उसे जैविक हथियार कहा
जाता है। जैविक हमले से लोग गंभीर रूप से बीमार होने लगते हैं जिससे उनकी मौत हो
जाती है। इसके अलावा शरीर पर इस हमले के बहुत भयानक असर होते हैं। कई मामलों में
लोग विकलांग और मानसिक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। जैविक हथियार कम समय में बहुत बड़े क्षेत्र में तबाही मचा सकते हैं। चीन
का कोरोना वायरस इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है। चीन पर यह आरोप हैं कि उसने वुहान लैब
से कोरोना के वायरस फैलाए जिससे चीन को छोड़ कर दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत
हुई और अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई। जिसका फायदा चीन को
मिला है। इसके अलावा चूहों से होने वाली बीमारी प्लेग
जैविक हमले का दूसरा उदाहरण है। ऐसा माना जाता है कि जर्मनी, अमेरिका, रूस और चीन समेत दुनिया के 17 देश जैविक हथियार बना चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी
ने इस बात को नहीं माना है कि उनके पास जैविक हथियार हैं। साधारण शब्दों में कहें
तो रासायनिक
हथियार एक ऐसा रसायन होता है जिसका उपयोग सोच समझ कर दुश्मन के उपर मौत या नुकसान
पहुंचाने के लिये किया जाता है।
जैविक हथियारों का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है।
पुराने ज़माने में युद्ध के दौरान दुश्मन
के इलाके के तालाबों और कुओं में ज़हर मिलाने की घटना आपने सुनी होंगी। लेकिन पहली
बार जैविक हमले की बात छठी शताब्दी से आती है जब मेसोपोटामिया के असीरियाई साम्राज्य के सैनिकों ने दुश्मन इलाके के कुओं में एक ज़हरीला फंगस
डाल दिया था, जिससे बड़ी संख्या में
लोगों की मौत हुई थी। यूरोपीय इतिहास में तुर्की और मंगोल साम्राज्य ने जैविक
हथियारों का इस्तेमाल किया था। इसके लिए 1347 में मंगोलियाई
सेना ने बीमार जानवरों को दुश्मन इलाके में तालाब और कुओं में फिकवा दिया था जिससे
प्लेग महामारी फैल गई थी। इसे इतिहास में ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता है। इससे 4
साल के अंदर यूरोप में ढाई करोड़ लोगों की मौत हुई थी। पहले
विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने पहली बार जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया था। इस
हमले के लिए जर्मनी ने एंथ्रेक्स और ग्लैंडर्स बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया था।
इसके बाद 1939 से 1945 के दौरान दूसरे
विश्वयुद्ध में जापान ने चीन के खिलाफ जैविक हथियारों का इस्तेमाल किया था। साल 2001
में अमेरिका में कुछ आतंकवादियों ने एंथ्रेक्स बैक्टीरिया से
संक्रमित चिट्ठी, अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालय में भेंजी थी,
जिससे पांच लोगों की मौत हो गई थी।
जैविक हथियारों के भयावहता को लेकर सबसे पहले
1925 में जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत कई देशों ने इन हथियारों के नियंत्रण के लिए
बातचीत शुरू की, इसके बाद 1972 में BWC यानी
बायोलॉजिकल वेपन कन्वेंशन की स्थापना की गई। 26 मार्च 1975 को 22 देशों ने इस पर
हस्ताक्षर किए। आज करीब 183 देश इसके सदस्य देश हैं, जिसमें भारत भी शामिल है। हालांकि, देखा जाए तो
जैविक हथियारों के उपयोग न करने की कसम खाने वाले देश आज भी इस तरह के हथियारों के
निर्माण में लगे हुए हैं।
फिलहाल अमेरिका ने जिस रूसी दावे को
खारिज किया है उसे समझना शायद ज़्यादा ज़रूरी है। रूस की तरफ से ये दावा किया जा
रहा है कि कैमिकल वैपन यानी जैविक हथियार यूक्रेन में मौजूद 30 से ज़्यादा खुफिया
लैब में तैयार किए जा रहे हैं। और उन लैब के लिए पैसा अमेरिका दे रहा है। रूस ने
अपने दावे के बाद इस बात पर जौर दिया कि कैमिकल वैपन के तमाम अड्डों को फौरन तबाह
कर देना चाहिए। अमेरिका और रूस के बीच ज़हरीली
तू-तू मैं-मै के बीच आशंका गहराने लगी है कि सही में कैमिकल वैपन का इस्तेमाल न
शुरू हो जाए। खबरों के मुताबिक गनीमत है कि अभी बात तू-तू मैं-मै के स्तर पर ही
अटकी हुई है। लेकिन अगर कहीं बात हद से आगे बढ़ गई और कहीं से भी तरकश के वो
ज़हरीले तीर चल गए तो जो तबाही का आलम होगा उसे शब्दों से कहना नामुमकिन हो जाएगा।
और तब इंसानों की बनाई इस दुनिया को अफ़सोस मनाने का भी वक़्त नहीं मिलेगा।
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