वो महान दार्शनिक जिसने कभी भगवान के प्रवचन
नहीं सुने और न ही कभी दूसरो को सुनाए। उसने कभी कोई धार्मिक किताबें नहीं बांटी, ना ही कभी किसी धर्म का प्रचार किया। फिर भी
लोग उन्हें धार्मिक नेता मानने लगे थे। वो जीये तो केवल मानवता के लिए जिये और
मानवता की भलाई के लिए अनेक सिद्धांत भी दिए। उनकी विचारों की प्रमुखता जितनी तब
थी, उससे कहीं ज्यादा आज है। यूं तो वो चीन में
जन्मे थे लेकिन उनका युग पूरी दुनिया ने जिया। तभी तो आज दुनिया उन्हें जीवन के
सिद्धांत सिखाने वाले विचारक के रूप में जानती हैं। जीतने की इच्छाशक्ति, सफलता की लगन, किसी
काम को शिद्दत से करने की जिद्द.... ये वो चाबियां हैं। जो आपके लिए दुनिया में
सबसे ऊंचा मुकाम हासिल करने के दरवाज़े खोल देती है। ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि यह वह सिद्धांत है जो सदियों पहले महान
दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने दिया था। तो चलिए आज कन्फ्यूशियस की कहानी के जरिए हम भी
उन्हें जीते हैं और उनके सिद्धांत को समझने की कोशिश करते हैं।
कन्फ्यूशियस को दुनिया सुकरात के बाद मानव
सभ्यता के पहले शिक्षक के तौर पर जानती है। इनका असली नाम कुंग फूत्से था जो आगे
चलकर दुनिया में कन्फ्यूशियस के नाम से मशहूर हुआ। 550 ईसा पूर्व जब भारत में
भगवान महावीर और बुद्ध धर्म के रूप में नए विचार पनप रहे थे तब चीन के शानडोंग में
भी एक सुधारक का जन्म हुआ, जिसका नाम कन्फ़्यूशियस था। चीन के
महान दार्शनिक और विचारक कन्फ्यूशियस का जन्म 551 ईसा पूर्व को चीन के पूर्वी
प्रांत शानडोंग के क्यूफू शहर में हुआ था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गई।
यही कारण रहा कि उन्होंने बहुत अधिक कष्ट से ज्ञान की प्राप्ति की। 17 साल की उम्र
में उन्हें एक सरकारी नौकरी मिली। हलांकि कुछ ही समय बाद सरकारी नौकरी छोड़कर वे
शिक्षण कार्य में लग गये। घर में ही एक विद्यालय खोलकर उन्होंने विद्यार्थियों को
शिक्षा देना शुरू कर दिया।
498 ईसा पूर्व में उन्होंने अपना घर छोड़ दिया और पूर्वी चीन की लंबी
यात्रा पर निकल गए। इस दौरान उन्होंने लोगों को जीवन जीने के सकारात्मक तरीकों से
परिचित करवाया। जो उनके सिद्धांतों से खुश थे उन्होंने उसे स्वीकार किया और सम्मान
दिया। और जो उनके विचारों से नाखुश थे वे उनका विरोध भी करते थे। 484 ईसा पूर्व तक
कन्फ्यूशियस की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। जिसके बाद उन्हें अपने शहर ‘लू’
बुला लिया गया और वहां उन्हें मंत्री पद का दर्जा दिया गया। इस पद पर रहते हुए
उन्होंने गुनहगार को सजा देने की बजाए उसके चरित्र सुधार पर ज्यादा बल दिया।
कन्फ्यूशियस चीन के पहले इंसान थे जो हर किसी
के लिए शिक्षा उपलब्ध करना चाहते थे। कन्फ्यूशियस का मानना था कि शिक्षा समाज को
बदल सकती है और सुधार भी सकती है। कन्फ्यूशियस ने अपने शिष्यों को सत्य प्रेम और
न्याय का संदेश दिया। वो सदाचार पर अधिक बल देते थे। साथ ही लोगो को परोपकारी, गुणी
और चरित्रवान बनने की प्रेरणा भी देते थे।
वो बड़ो और पूर्वजो का आदर-सम्मान करने के लिए कहते थे। वो कहते थे कि दूसरो के
साथ वैसा बर्ताव ना करो, जैसा तुम अपने साथ स्वयं
नही करना चाहते हो। दूसरों से नफरत करना बहुत आसान है, लेकिन उनसे प्रेम करना बेहद मुश्किल।
और अच्छी चीज़ों को पाना हमेशा मुश्किल होता है, जबकि बुरी चीज़ें बहुत आसानी से मिल
जाती है।
हज़ारों साल बीत जाने के बाद भी महात्मा
कन्फ्यूशियस की शिक्षाएं उतनी ही कारगर हैं, जितनी कि तब, जब इसकी रचना
की गई थी। उनकी शिक्षाओं ने उस मुश्किल वक्त में तो चीनी जनता को एकजुट किया ही, बाद में भी
जब-जब चीन के सामने कोई बड़ा संकट आया, कन्फ्यूशियस की शिक्षाओं ने चीनी
नेताओं और जनता को सही राह दिखाई। कन्फ्यूशियस का मानना था कि हम तीन तरीकों से
ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। पहला तरीका है, चिंतन करके औऱ यही ज्ञान पाने का सबसे सही तरीका भी
है। दूसरा तरीका है, दूसरों का अनुकरण करके, जो कि सबसे आसान तरीका है। तीसरा तरीका है अपने अनुभव से और यह तरीका सबसे
ज़्यादा कष्टकारी भी होता है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा था कि किसी के लिए भी सफलता
इस बात पर निर्भर करती है कि हम उसके लिए कितनी तैयारी करते हैं। अगर किसी काम से
पहले हम उसकी तैयारी नहीं करते हैं, तो उस काम में हमारा फेल
होना निश्चित है।
कन्फ्यूशियस अपने कामों और सिंद्धातों के लिए
पहचाने जाते थे। कन्फ्यूशियस के दार्शनिक, सामाजिक
तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित मत को कन्फ्यूशियस वाद कहा जाता है। कन्फ़्यूशियस
के विचार ज़िन्दगी के लिए हमारे नजरिए को बदल सकते हैं। कन्फ्यूशियस ने कहा था जिस
बात को हम सिर्फ सुनते हैं, उसे जल्द भूल जाते हैं, जो देखते हैं, उसे
हम याद रखते हैं,
लेकिन जिसे हम खुद करते हैं, उसे हमेशा के लिए समझ जाते हैं। कन्फ्यूशियस ने
सिखाया कि शासक का प्राथमिक कार्य अपने राज्य के लोगों का कल्याण और खुशी प्राप्त
करना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए शासक को पहले अपने स्वयं के आचरण के द्वारा
नैतिकता का उदाहरण देना चाहिए। कन्फ्यूशियस का यह भी मानना था कि वह विचारों के
वाहक हो सकते हैं,
उसके रचयिता नहीं। उनका कहना था कि
किसी देश में अच्छा शासन और शांति तभी स्थापित हो सकती है जब शासक, मंत्री और जनता का प्रत्येक व्यक्ति अपने स्थान
पर उचित कर्तव्यों का पालन करता रहे। शासक को सही अर्थो में शासक होना चाहिए, मंत्री को सही अर्थो में मंत्री होना चाहिए।
कन्फ्यूशियस के समाज सुधारक उपदेशों के कारण
चीनी समाज में एक स्थिरता आई थी। कंफ्यूशियस का दर्शन शास्त्र आज भी चीनी शिक्षा
के लिए पथ प्रदर्शक बना हुआ है। कन्फ्यूशियस देवताओं और ईश्वर के बारे में ज्यादा
बात नही करते थे। वो सदैव सदाचार और दर्शन की बाते करते थे। कन्फ्यूशियस एक समाज
सुधारक थे धर्म प्रचारक नहीं जो हमेशा अपने शिष्यों को सत्य, प्रेम और न्याय का संदेश देते रहे। उन्होंने
ईश्वर के बारे में कोई उपदेश नही दिया। परन्तु फिर भी बाद में लोग उन्हें धार्मिक
गुरु मानने लगे थे।
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