मंगलवार, 29 मार्च 2022

शैक्षणिक क्रांति के अग्रदूत योहानेस गुटेनबर्ग

 

अगर आप प्रिंटिंग के इतिहास को देखेंगे तो पता चलेगा कि 5 सौ से 6 सौ साल पहले तक किताबों को जनमानस तक पहुंचाने का कोई साधन ही नहीं था। एक जमाना था जब लोग हाथ से किताब लिखते थे और एक किताब को पूरा करने में सालों साल लगा देते थे। लेकिन तभी 15वीं सदी में जर्मनी में एक क्रांति हुई। योहानेस गुटेनबर्ग ने पहली बार मैकेनिकल प्रिंटिंग प्रेस बनाई और फिर गुटेनबर्ग ने अपनी मशीन से पहली बार किताब भी छापी। जर्मन के रहने वाले योहानेस गुटेनबर्ग को आधुनिक मुद्रणकला का जनक माना जाता है। गुटनबर्ग के टाइप-मुद्रण के आविष्कार से पहले मुद्रण का सारा कार्य ब्लाकों में अक्षर खोदकर किया जाता था। जोहनेस गुटेनबर्ग जिन्होंने मुद्रण का वो तरीका प्रदान किया जिसमें प्रत्येक के लिए नये विचार उपलब्ध कराए।

छपाई की कला को नए सिरे से विकसित करनेवाले योहानेस गुटेनबर्ग के जीवन का काफी भाग अनुमानों पर ही आधारित है। साल 1398 में राइन नदी की घाटियों में जर्मनी के सबसे धनी शहरों में से एक मेंज के एक कस्बे में योहानेस गुटेनबर्ग का जन्म हुआ था। उनके पिता पेशे से सुनार थे और मेंज के आर्कबिशप द्वारा चलाई जानेवाली टकसाल में कार्य किया करते थे। उनका काम धातु पर छपाई और नक्काशी करना था। योहानेस गुटेनबर्ग का बचपन का नाम गेन्स फ्लैश था जो आगे चलकर योहानेस गुटेनबर्ग कहलाने लगे। कहा जाता है कि दुनिया को बदल डालने वाली एक रहस्यमय मुद्रण मशीन पर कार्य करते हुए योहानेस गुटेनबर्ग ने अपनी दुकान में बंद रह कर पूरी जिंदगी गुजार दी। बहरहाल सन 1411 में लगभग 13 साल की उम्र में योहानेस ने पिता के साथ टक्साल जाना शुरू किया और तब उन्होंने सोने के सिक्के बनाना सिखा। इसी दौरान प्रशाशकों और भूस्वामियों के बीच हुए संघर्ष के कारण गुटनबर्ग को अपने पूरे परिवार के साथ मेंज से निर्वासित होना पड़ा। जिसके बाद योहानेस गुटेनबर्ग फ़्रांस के स्ट्रासबर्ग चले गये जंहा उन्होंने सन 1434 से सन 1444 तक रत्न तराशने, आइना बनाने, ब्लाक प्रिंटिंग करने जैसे अनेको कार्य किये।

 

अगले 15 वर्षों तक गुटेनबर्ग का जीवन एक रहस्य बना रहा, जब तक कि 1434 में उनके द्वारा लिखे गए एक पत्र ने संकेत नहीं दिया कि वह अपनी मां के रिश्तेदारों के साथ जर्मनी के स्ट्रासबर्ग में रह रहे थे। पत्र में उन्हे इस बात का भी जिक्र किया था कि स्ट्रासबर्ग में रहते हुए उन्होंने बतौर सुनार काम भी कर रहे थे। साल 1440 में स्ट्रासबर्ग में रहते हुए गुटेनबर्ग ने "एवेंटूर अन्ड कुन्स्ट" नामक पुस्तक में अपने प्रिंटिंग प्रेस रहस्य का खुलासा किया है। साल 1448 तक गुटेनबर्ग अपने पुराने शहर मेंज वापस आ गए। मेंज वापस आकर गुटेनबर्ग ने अपने बहन के पति अर्नोल्ड गेल्थस और मेंज के दो व्यवसायियों से कर्ज लेकर पैसे इकट्ठे किया। जिसके बाद साल 1450 में गुटेनबर्ग के प्रेस में प्रिंटिंग का काम शुरू हो गया। इस दौरान उन्हें अनेक बाधाओं का सामना भी करना पड़ा।

अपने नए मुद्रण व्यवसाय को धरातल पर उतारने के लिए गुटेनबर्ग ने जोहान फस्ट नामक एक अमीर साहूकार से 800 गिल्डर उधार लिए थे। क्योंकि इसी दौरान गुटेनबर्ग को बाइबिल के मुद्रण के लिए कैथोलिक चर्च से ऑफर मिल गया था। साल 1452 तक, गुटेनबर्ग ने अपने मुद्रण प्रयोग को जारी रखने के लिए जोहान फस्ट नामक अमीर साहूकार के साथ एक तरह से व्यापारिक साझेदारी की और साथ ही अपनी मुद्रण प्रक्रिया को जारी भी रखा। साल 1455 तक योहानेस गुटेनबर्ग दिन रात मेहनत कर बाइबिल की कई प्रतियां छापी। लैटिन में पाठ के तीन संस्करणों से मिलकर, गुटेनबर्ग बाइबिल ने रंग चित्र के साथ प्रति पृष्ठ 42 प्रकार की पंक्तियों को चित्रित किया।

1456 में गुटेनबर्ग की प्रिंटिंग प्रेस से गुटेनबर्ग बाइबिल की पहली प्रति छप कर निकली। इसे 42 लाइनों वाली बाइबिल भी कहते हैं। यहीं से गुटेनबर्ग क्रांति की शुरुआत होती है। गुटेनबर्ग द्वारा बाइबिल की 300 प्रतियां प्रकाशित कर पेरिस और फ्रांस भेजी गई। गुटेनबर्ग की प्रिंटिंग प्रेस की सफलता को देखते हुए सहूकार जोहान फस्ट को लगा कि यही वक्त है गुटेनबर्ग से पैसे वसूलने का। अचानक जोहान फस्ट मुनाफे में हिस्सा मांगने लगा। ऐसा न करने पर उन्होंने पूरा पैसा एक साथ लौटाने के लिए दबाव डाला। फस्ट की धमकियों की चिंता न करते हुए गुटेनबर्ग ने पैसा नहीं लौटाया और बाइबिल की प्रतियां छापता रहा। अंततः फस्ट ने योहानेस गुटेनबर्ग के खिलाफ अदालत में मुकदमा कर दिया। अदालत ने गुटेनबर्ग को मय ब्याज के पैसा लौटाने का आदेश दिया। ऐसा न कर पाने पर उसने गुटेनबर्ग की कार्यशाला, सारा साज-सामान और बाइबिल की प्रतियां फस्ट के हवाले कर दी। ऐसी परिस्थितियों में गुटेनबर्ग अपने अमीर प्रतिद्वंद्वी की प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर सका।

साल 1460-1462 के दौरान योहानेस गुटेनबर्ग मुद्रण का कार्य फिर से शुरू करने में कामयाब रहे। लेकिन उन्हीं दिनों 1462 में आर्कबिशप एडोल्फ द्वितीय द्वारा शहर पर नियंत्रण के विवाद में मेंज पर कब्जा कर लिया था। इस दौरान एक बार फिर गुटेनबर्ग के मुद्रण व्यवसाय नष्ट हो गए थे। शहर के कई टाइपोग्राफर जर्मनी और यूरोप के अन्य हिस्सों में भाग गए। गुटेनबर्ग मेंज में रहे, लेकिन एक बार फिर गरीबी में पड़ गए। आर्कबिशप ने उन्हें 1465 में हॉफमैन का खिताब दिया। 3 फरवरी, 1468 को उनका निधन हो गया और उन्हें जर्मनी के शहर एल्टविले में फ्रांसिस्कन कॉन्वेंट के चर्च में दफनाया गया। योहानेस गुटेनबर्ग भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी छपी बाइबिलें सुरक्षित है। और योहानेस गुटेनबर्ग की निजी जीवन के पहलू अनछपे रह गए।

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