मंगलवार, 29 मार्च 2022

धर्म सुधार आंदोलन के जनक मार्टिन लूथर

 

इतिहास में कई मशहूर शख्सियत ऐसी रही हैं, जिनके बारे में दशकों तक बात होती रहती है। इनमें से कुछ लोग तो इतने मशहूर होते हैं, कि किसी विषय पर बात होते ही उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है। जैसे, अहिंसा पर बात होती है तो महात्मा गांधी का नाम लिया जाता है, वहीं अगर बाल कल्याण पर चर्चा होता है तो कैलाश सत्यार्थी का नाम लिया जाता है। इसी तरह धर्म सुधार आंदोलन की बात होती है तो सबसे पहले मार्टिन लूथर का नाम लिया जाता है। दरअसल मार्टिन लूथर ने धर्म-सुधार आंदोलन की जो चिंगारी भड़कायी उसका अंजाम यह हुआ कि दुनिया में एक नया धर्म उभरकर सामने आया जिसे आम बोल चाल की भाषा में प्रोटेस्टेंट धर्म कहा गया। जर्मनी के अलग-अलग राज्यों में या तो प्रोटेस्टेंट धर्म को अपनाया या कैथोलिक धर्म का साथ दिया। प्रोटेस्टेंट धर्म स्कैन्डिनेविया, स्विट्‌ज़रलैंड, इंग्लैंड और नेदरलैंडस्‌ में तेज़ी से फैलता गया। आज करोंड़ो लोग इस धर्म के माननेवाले हैं।

 

मार्टिन लूथर का जन्म सन्‌ 1483 के नवंबर में जर्मनी के आइसलेबन शहर में हुआ था। हालांकि उनका पिता हैंस लूथर खान के मज़दूर थे मगर उन्होंने मार्टिन की खातिर इतना पैसा जुटाया कि उसे बढ़िया शिक्षा दिला सके। सन्‌ 1501 में मार्टिन ने एरफुर्ट विश्‍वविद्यालय में दाखिला लिया। इसी दौरान वहां की लाइब्रेरी में पहली बार उसने बाइबल पढ़ी। बाईस साल की उम्र में लूथर, एरफुर्ट के अगस्तीन मठ का सदस्य बन गया। बाद में उसने विटेनबर्ग के विश्‍वविद्यालय में धर्मविज्ञान में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। लूथर खुद को परमेश्‍वर के अनुग्रह के लायक नहीं समझता था और कभी-कभी उसका ज़मीर उसे इस कदर धिक्कारने लगता कि वह बहुत मायूस हो जाता था। मगर बाइबल का अध्ययन, प्रार्थना और मनन करने के जरिए वह अच्छी तरह समझ गया कि परमेश्‍वर, पापियों को किस नज़र से देखता है।

पापियों के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया जानने के बाद, रोमन कैथोलिक चर्च के साथ लूथर की अनबन हो गयी। उस वक्‍त ज़्यादातर लोगों का यही मानना था कि मौत के बाद, पापियों को सज़ा भुगतनी पड़ती है। लेकिन यह भी कहा जाता था कि अगर एक इंसान, पोप की मंज़ूरी से दी जानेवाली माफी की चिट्ठियां खरीद ले तो उसकी वह सज़ा कम हो सकती है। उन चिट्ठियों की खरीद-फरोख्त से लूथर का गुस्सा भड़क उठा। उसका मानना था कि इंसान कभी परमेश्‍वर के साथ किसी तरह का सौदा नहीं कर सकता। सन्‌ 1517 में मार्टिन लूथर ने मशहूर 95 थीसिस लिखे जिनमें उसने रोमन कैथोलिक चर्च पर यह इलज़ाम लगाया कि वह जनता को लूटता है, गलत शिक्षा देता है और अपनी ताकत का नाजायज़ फायदा उठाता है। लूथर, चर्च के खिलाफ बगावत शुरू नहीं करवाना चाहता था बल्कि उसमें सुधार लाना चाहता था इसलिए उसने अपने थीसिस की कॉपियां, मेयॉन्स के आर्चबिशप ऐल्बर्ट और कई विद्वानों को भेज़ीं। लूथर की थीसिस को छापकर लोगों में बांटा गया। नतीजा यह हुआ कि चर्च में सुधार लाना, अब किसी एक इलाके का मसला नहीं रहा बल्कि दूर-दूर तक बहस का विषय बन गया। देखते-ही-देखते, मार्टिन लूथर जर्मनी का सबसे मशहूर आदमी बन गया।

कहा जाता है कि शुरू में मार्टिन लूथर पोप के विरोधी नही थे लेकिन 1517 ई. में टेटजेल को सेन्ट पीटर गिरजाघर के निर्माण हेतु, क्षमा-पत्र बेचकर धन इकट्ठा करने की पोप की आज्ञा ने, लूथर को चर्च विरोधी बना दिया। इसके विरोध में विटनबर्ग के कैसल चर्च के गेट पर 31 अक्टूबर 1517 को अपना विरोध-पत्र ‘द नाइन्टी फाईव थीसिस’ लटका दिया। थीसिस में चर्च द्वारा सभी उपायों से धन एकत्र करने की आलोचना की गयी थी। अपने थीसिस में मार्टिन लूथर ने ईसा और बाइबिल की सत्ता स्वीकारने और पोप एंव चर्च की निरंकुशता को नकारने की बात कही। सप्त संस्कारों में से उसने केवल तीन संस्कार नामकरण, प्रायश्चित और पवित्र प्रसाद को ही माना। और चर्च के चमत्कार में अविश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को न्याय से उपर नही होना चाहिए।

मार्टिन लूथर का धर्म सुधार आन्दोलन राष्ट्रीय आन्दोलन था। उसने सदाचारी ईसाइयों को अपने धर्म सुधार आन्दोलन की ओर आकर्षित किया। लूथर ने जो कहा वो किया। उसने एक ऐसा धर्म-सुधार आंदोलन शुरू किया जिसे इंसान के इतिहास में सबसे बड़ी क्रांति कहा जाता है। लूथर ने जर्मनी और यूरोप में धर्म का कायापलट ही नहीं किया बल्कि वहां चल रहे मध्य युग के अंधकार-भरे दौर का अंत किया। इतना ही नहीं, उसकी अनुवाद की गयी जर्मन बाइबल से लिखित जर्मन भाषा का स्तर कायम हुआ जो अब तक की सबसे पसंदीदा जर्मन बाइबल है।

 

सन्‌ 1525 में मार्टिन लूथर ने काटारीना फॉन बोरा से शादी कर ली जो पहले एक नन थी। लूथर के घर में उसकी पत्नी और छः बच्चों के अलावा उसके दोस्त भी रहते थे। मार्टिन लूथर ने बाइबल का अनुवाद करके लिखित जर्मन भाषा के लिए ऐसा स्तर कायम किया जिसे बाद में पूरी जर्मनी में माना जाने लगा। लूथर में अनुवाद करने का हुनर होने के साथ-साथ किताबें लिखने का कौशल भी था। कहा जाता है कि जब तक उसकी सेहत ने उसका साथ दिया तब तक वह लगातार हर दो हफ्ते में एक लेख लिखता रहा। उसके कुछ लेखों में उसका स्वभाव साफ झलकता है। मार्टिन लूथर के पास तेज़ दिमाग और कमाल की याददाश्‍त थी। वो शब्दों के इंजीनियर थे। वो बहुत मेहनती थे लेकिन उनमें धीरज की कमी थी, वह दूसरों को तुच्छ समझते थे। सन्‌ 1546 के फरवरी में आइसलेबन में मार्टिन लूथर अपनी आखिरी सांसे ली। लूथर आज दुनिया में नहीं हैं मगर उसकी शिक्षाओं को मानने वाले कई लोग हैं।

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