देश भर में चल रहा हिजाब कंट्रोवर्सी धीरे-धीरे नासूर बनता जा रहा है। कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक सभी राजनैतिक पार्टियां हिजाब के समर्थन और विरोध में अपनी अलग-अलग दलीलें दे रहे हैं... लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि स्कूलों में स्कूल की यूनिफॉर्म पहनी जाएगी या कोई भी छात्र अपनी मर्जी से कुछ भी कपड़े पहनकर आ सकता है। बात सोचने वाली है। क्या आपने कभी किसी महिला डॉक्टर को हिजाब में इलाज करते हुए देखा है। या फिर क्या कभी किसी महिला वकील को कोर्ट में जज के सामने बहस करते हुए देखा है। जिस स्कूल में हिजाब को लेकर कंट्रोवर्सी चल रही उस स्कूल में क्या मुस्लिम अध्यापिका हिजाब पहनकर पढ़ाती है। ऐसे कई उदाहरण है जो ये साबित करता है कि हिजाब कोई मुद्दा नहीं है बल्कि राजनीति पार्टियों अपनी राग और अपनी डफली को अपनी तरीके से बजा रहे हैं।
यहां मूल विषय यह है कि स्कूलों
में हर संप्रदाय के छात्र-छात्राएं हो सकते हैं और उन्हें स्कूल के मुताबिक ड्रेस
का चयन करना चाहिए। छात्रों के बीच न तो केसरिया रंग का गमछा होना चाहिए और न ही
नकाब होना चाहिए। इसलिए कर्नाटक हिजाब विवाद के बीच कई जानकर इसका सॉल्यूशन आज यूनिफॉर्म
सिविल कोर्ड को बता रहे हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ये यूनिफॉर्म सिविल
कोड है क्या? ये संविधान से कैसे जुड़ा है। हिजाब कंट्रोवर्सी के पीछे यूनिफॉर्म सिविल कोड का क्या
कनेक्शन है? क्या
इसके लागू होने से भगवा गमछा और हिजाब पर रोक लग जाएगी? आज के इस वीडियों
में हम इन सभी सवाल का जवाब देंगे वो भी साधारण भाषा में।
सबसे पहले आप इस यूनिफॉर्म शब्द
से कन्फ्यूज मत होइए क्योंकि यहां यूनिफॉर्म से मतलब ड्रेस से नहीं हैं बल्कि
समानता से है। वैसे तो यूनिफॉर्म सिविस कोड का सीधा मतलब होता है देश के हर नागरीक
के लिए एक समान कानून। साधारण भाषा में कहे तो समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म
सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान
नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान
रूप से लागू होता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा
कानून आ जाएगा यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार
तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी। वर्तमान में
देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं। फिलहाल
मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल
लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं। जानकार
बताते हैं कि हर धर्म में अलग-अलग कानून होने से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है।
कॉमन सिविल कोड आ जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से
लंबित पड़े ज्यादतर मामलों के निपटारे जल्द होंगे।
हलांकि समान नागरिक संहिता का
विरोध करने वालों का कहना है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा होगा।
इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ी आपत्ति रही है। उनका कहना है कि अगर सबके
लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा। मुसलमानों को तीन
शादियां करने का अधिकार नहीं रहेगा। उन्हें अपनी बीवी को तलाक देने के लिए कानून
के जरिये जाना होगा। वह अपनी शरीयत के हिसाब से जायदाद का बंटवारा नहीं कर सकेंगे।
पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले से
लागू है। हमारे देश के संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44
के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। इसे लेकर एक बड़ी
बहस चलती रही है।
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