चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना... कभी अलविदा ना कहना.. रोते हंसते बस यूं ही तुम गुनगुनाते रहना, कभी अलविदा ना कहना... जी हां आप समझ ही गये होंगे हम बात बप्पी दा की कर रहें हैं... बप्पी लहिरी एक ऐसा नाम जिससे हिंदुस्तान का हर वो शख्स वाकिफ होगा जिसने कभी मुहब्बत की होगी... दिल से निकली आह को कई लोगों ने उनकी संगीत में महसूस किया होगा, तो कभी मस्ती भरे मूड में कई दीवाने उनके नगमों पर झूम उठे होंगे.. बप्पी लहिरी भले ही वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हम यही कहेंगे बप्पी दा कभी अलविदा ना कहना... हिन्दुस्तानी संगीत में अगर डिस्को गाने की बात आती हैं तो सबसे पहले बप्पी लहरी का नाम याद आता हैं.. बप्पी लहिरी ने अपने समय में इतने सुपरहिट डिस्को सांग दिए जो आज भी लोगो के जुबान पर थिरकते हैं.. 80 और 90 के दशक में भारत में डिस्को संगीत के लोकप्रिय धुन ज़िन्दगी मेरा गाना... मैं किसी का दीवाना...गाने से सबको झूमने और नचाने वाले बप्पी लहिरी का मंगलवार को मुंबई के क्रिटिकेयर अस्पताल में निधन हो गया.. वे 69 वर्ष के थे। डॉक्टरों के मुताबिक लाहिरी को कोरोना की वजह से एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था और सोमवार को उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। लेकिन मंगलवार को उनकी तबीयत बिगड़ गई फिर उन्हें अस्पताल लाया गया जहां उनका निधन हो गया.. दुनिया भर में डिस्को किंग के तौर पर मुकाम हांसिल करने वाले बप्पी लहिरी का जन्म 1952 में पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में हुआ था.. बप्पी दा का असली नाम आलोकेश लाहिरी था... उनके पिता, अपरेश लाहिरी एक प्रसिद्ध बंगाली गायक थे और उनकी मां, बंसारी लाहिरी एक संगीतकार के साथ साथ गायिका भी थीं... बप्पी लहरी का संगीत के प्रति रुझान बचपन से ही था जब इनकी उम्र 3 साल की थी तब से ही वो तबला बजाने लगे थे और जब वो चार साल के हुए तब उन्होने लता जी के साथ एक गाने में तबला बजाया और वही से इनका सफ़र शुरू हो गया संगीत की दुनिया में... उन्होंने 19 साल की छोटी उम्र में एक संगीत निर्देशक के रूप में अपना करियर शुरू किया.. बप्पी दादा सिर्फ बॉलीवुड की दुनिया में ही नहीं हॉलीवुड की दुनिया में भी प्रसिद्ध हैं.. उन्हें साल 1972 में बंगाली फिल्म, दादू में गाना गाने का पहला अवसर मिला था। हालांकि हिंदी फिल्मों में उन्होंने अपनी जगह साल 1973 में फिल्म नन्हा शिकारी से बनाना शुरू किया। ताहिर हुसैन की हिंदी फिल्म, ज़ख्मी से उन्हें बॉलीवुड में खुदको स्थापित किया और एक पार्श्व गायक के रूप में पहचान बनाई.. उन्होंने 70-80 के दशक में बॉलीवुड को एक से बढ़कर एक आइकॉनिक गाने दिए हैं. मिथुन चक्रवर्ती का गाना आई एम ए डिस्को डांसर आज भी लोगों को जुबानी याद है. वो बप्पी दा ही थे जिनकी आवाज ने इस गाने को घर-घर पॉपुलर किया था. बप्पी लहरी ने जिन गानों का कंपोज किया, उनमें डिस्को डांसर, हिम्मतवाला, शराबी, एडवेंचर ऑफ टार्ज़न, डांस-डांस, सत्यमेव जयते, कमांडो, आज के शंहंशाह, थानेदार, नंबरी आदमी, शोला और शबनम सबसे अहम हैं. बप्पी लहरी की जिमी-जिमी, आजा-आजा की लोकप्रियता तो आज भी सिर चढ़कर बोलती है... बप्पी दा द्वारा जीते गए अवॉर्ड की बात करें तो 1985 में उन्हें फिल्म शराबी के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया था. इसके अलावा बप्पी लहिरी को एक बार फिर फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. उन्हें 2018 में फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया था. 2018 में ही बप्पी लहिरी को मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड मिला. यह अवॉर्ड उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट कैटेगरी में मिला था... बप्पी लहरी को लोग आमतौर पर बप्पी दा कहकर बुलाते थे. सोने की जूलरी को लेकर उनका मोह उनके पहनावे से साफ़ झलकता था. उनके पहनावे में चमक और रंग बहुत गहरे होते थे... बप्पी लहरी ने मई 2014 में राजनीति में भी आने की कोशिश की थी. वे 2014 में बीजेपी में शामिल हुए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बप्पी लहरी को हुगली ज़िले के श्रीरामपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था लेकिन वह चुनाव हार गए थे... आज हमारे बीच भले ही बप्पी दा नहीं हैं लेकिन उनकी संगीत और आवाजो अंदाज हममें हमेशा जोश और जज्बात भरते रहेंगे और हम कभी बप्पी दादा को अलविदा ना कहेंगे
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