जब आपके पास पैसे नहीं होते हैं या पैसे की जरूरत होती है तो आपका भी मन करता होगा कि एक पैसे छापने वाली मशीन आ जाए तो सारी परेशानी खत्म हो जाए… पर में यहां आपको पहले बतादूं की ऐसा तो वो लोग भी नहीं कर सकते, जिनके पास नोट छापने की मशीन है... यानी खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया या फिर भारत सरकार भी ऐसा नहीं कर सकते... उन्हें भी कई नियमों को ध्यान में रखते हुए नोट की छपाई करनी होती है... लेकिन इन चर्चाओं से दूर अगर नोटों की छपाई की बात करें तो अक्सर लोग पूछते हैं कि क्या सरकार अपनी मन मर्जी के मुताबिक नोट छाप सकती है. यहीं सवाल गूगल पर भी काफी ढूढ़ा जाता है. इसी सवाल का जवाब आज हम अपने इस वीडियो में दे रहे हैं... तो दोस्तो आज का ये वीडियो इनफॉर्मेटिक्स के साथ साथ रोमांचकारी भी होने वाला है.. तो चलिए बिना देर किये जानते हैं कि आखिर नोट किस आधार पर छापे जाते हैं और कब यह पता चलता है कि अब नोट छापने की जरूरत है. साथ ही जानते हैं नोट छपने से जुड़ी खास बातें, जो बहुत कम लोग जानते होंगे…
ऐसा नहीं है कि जब भी जरूरत पड़े नए नोट छाप लो...
भले ही सरकार के पास नोट छापने का अधिकार होता है.... ऐसा करने से अर्थव्यवस्था गड़बड़ा
जाएगी. इससे वहां की करेंसी की कीमत काफी ज्यादा कम हो जाती है और महंगाई दर भी
काफी बढ़ जाती है... इसलिए पहले
आरबीआई कई मानकों को ध्यान में रखते हुए यह पता करता है कि कितने नोट छापने की
जरूरत है और फिर इसके लिए सरकार से स्वीकृति ली जाती है... सरकार भी आदेश देने से
पहले आरबीआई से इजाजत लेती है और फिर उसके आधार पर अंतिम फैसला लिया जाता है. वैसे
आखिरी फैसला सरकार का ही होता है... सरकार और आरबीआई जीडीपी, विकास
दर, राजकोषीय घाटा के आधार पर तय करती हैं कि आखिर
कितनी बढ़ोतरी होनी चाहिए. रिजर्व बैंक साल 1956 से करेंसी नोट छापने के लिए
‘मिनिमम रिजर्व सिस्टम’ के तहत करेंसी की छपाई करता है. इस नियम के मुताबिक, करेंसी
नोट प्रिंटिंग के विरुद्ध न्यूनतम 200 करोड़ रुपये का रिजर्व हमेशा रखना जरूरी है.
इसके बाद ही रिजर्व बैंक करेंसी नोट प्रिंट कर सकता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें