फिल्म इंस्डस्ट्री का एक ऐसा नाम जनिकी जिनकी तारीफ में शायद लफ्जों की कमी पड़ जाए...खूबसूरती की मिसाल...अदाकारी का बेजोड़ नमूना...और हुनरमंद डांसर...हिंदी सिनेमा की सदाबहार अदाकारा भानुरेखा गणेशन की खूबसूरती और बेजोड़ अदाकारी आज भी बरकरार है....निजी जिंदगी हो या पेशेवर जिंदगी, रेखा ने दोनों में ही काफी संघर्ष किया है....10 अक्टूबर, 1954 को मद्रास में जन्मी रेखा के पिता जेमनी गणेशन मशहूर तमिल अभिनेता और मां पुष्पावल्ली तेलुगू अभिनेत्री थीं....बिन ब्याही मां की बेटी रेखा को अपने पिता से शुरुआत से ही कोई लगाव नहीं था....एक इंटरव्यू में रेखा ने कहा था, 'मेरे लिए 'फादर' शब्द का कोई अर्थ नहीं है. मेरे लिए 'फादर' का मतलब चर्च का 'फादर' है.' रेखा ने 1966 में तेलुगू फिल्म 'रंगुला रत्नम' से अभिनय की शुरुआत की थी....फिल्म में उन्होंने बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी.... रेखा को फिल्मों में आने में दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति की वजह से उन्हें अभिनय जारी रखना पड़ा....कुछ दक्षिण भारतीय फिल्में करने के बाद रेखा ने मुंबई की ओर रुख किया और हिंदी फिल्मों में काम करना शुरू किया....मुंबई की मायानगरी उनके लिए एकदम नई थी...सांवला रंग और लड़खड़ाती हिंदी के कारण रेखा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा...1970 में आई फिल्म सावन भादो के साथ रेखा ने फिल्म इंडस्ट्री में शानदार आगाज किया और रातों रात मशहूर हो गईं....इसके बाद रेखा ने कभी मुड़कर नहीं देखा..और उन्होंने एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्मों में बेहतरीन एक्टिंग की....1981 में 'खूबसूरत', 1989 में 'खून भरी मांग' के लिए भी उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नावाजा गया...2003 में उन्हें 'फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' और 'सैमसंग दिवा पुरस्कार' के साथ ही 2012 में 'आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट इन इंडियन सिनेमा' पुरस्कार से सम्मानित किया गया...हिंदी सिनेमा में अपने पैर जमाए रखने के लिए रेखा ने हिंदी और अपना रंग संवारने पर काफी मेहनत की...जो आज नजर भी आता है...रेखा, शादी और अपने अफेयर्स को लेकर भी सुर्खियों में ....रेखा का नाम लंबे समय तक अभिताभ बच्चन के साथ जुड़ता रहा. ...दोनों की जोड़ी पर्दे पर भी काफी सफल रही...दोनों ने बॉलीवुड को कई हिट फिल्में दी...जिनमे 'ईमान धरम', 'गंगा की सौगंध', 'मुकद्दर का सिकंदर' और 'सुहाग' जैसी फिल्मों में साथ काम किया...यश चोपड़ा की 'सिलसिला' अमिताभ और रेखा की एक साथ आखिरी फिल्म थी...रेखा की अभिनेता विनोद मेहरा के साथ शादी की खबरएं आई लेकिन इस बात को रेखा ने हमेशा खारिज किया.... असफल प्रेम संबंधों के बाद रेखा ने 1990 में दिल्ली के एक बिजनिसमैन मुकेश अग्रवाल से शादी की थी...लेकिन यहां भी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. मुकेश ने शादी के एक साल बाद आत्महत्या कर ली थी...हालांकि उसके बाद भी रेखा का नाम कई एक्टर्स के साथ जुड़ा जिनमें अक्षय कुमार, संजय दत्त जीतेंद्र जैसे नाम भी शामिल हैं.....ये रेखा का ही जादू है कि वो जहां भी जाती है महफिल में रौनक आ जाती है....आज भी रेखा फिल्म इडंस्ट्री के लिए एक फैशन आईकॉन है....एक्टिंग के साथ ही रेखा को बेहतरीनव डांसर के तौर पर भी जाना जाता है...फिल्म 'उमराव जान' में डांस की काफी तारीफ हुई थी....इसी फिल्म के लिए 1982 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था...रेखा के डांस का जलवा देखने को मिली इस साल हुए iifa अवॉर्ड में...जहां रेखा ने 22 साल बाद स्टेज पर परफॉर्म किया...रेखा के डांस और उनकी प्रेजेंस ने सबी को झूमने पर मजबूर कर दिया...आज भी रेखा किसी भी फंग्शन में जाती है तो हर किसी की निगाह उन पर ठहर जाती है...रेखा हिंदी सिनेमा की एक ऐसी शख्सीयत हैं जिन्हें चंद लफ्जों में समेटा नहीं जा सकता...रेखा के जन्मदिन पर हम तो बस यही दुआ करेंगे कि फिल्म इडस्ट्री की इस उमराव जान का जलवा ऐसे ही बरकरार रहे।
रविवार, 2 दिसंबर 2018
बरखुरदार प्राण
बात बुलंद आवाज और ख़ास अंदाज की चले तो अपने खास तेवर के लिए मशहूर अभिनेता प्राण का नाम खासतौर पर सामने आता है .... गंभीर आवाज में 'बरखुरदार' कहने का वो खास अंदाज भला कौन नहीं पहचानेगा...वो प्राण ही थे जो अपने बेमिसाल अभिनय से हर किरदार में प्राण डाल देते थे... फिर चाहे वह 'उपकार' में अपाहिज का किरदार हो या 'जंजीर' में अक्खड़ पठान का. ..प्राण ऐसे एक्टर थे जिनका चेहरा हर किरदार को निभाते हुए ये अहसास छोड़ जाता था कि उनके बिना इस किरदार की पहचान झूठ है...12 फरवरी, 1920 को दिल्ली में पैदा हुए प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था… अपनी एक्टिं से ऑडियंस को कायल करने वाले प्राण अभिनेता नहीं, बल्कि एक फोटोग्राफर बनना चाहते थे...लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था...लेखक मोहम्मद वली ने प्राण को सबसे पहले पंजाबी फिल्म 'यमला जट' में काम करने का मौका दिया...ये फिल्म काफी हिट रही ... इसके बाद प्राण ने कई और पंजाबी फिल्मों में काम किया और लाहौर फिल्म जगत में सफल खलनायक के रूप में नाम कमाया.... देश के बंटवारे के बाद प्राण ने लाहौर छोड़ दिया और वे मुंबई आ गए.. लाहौर में चाहे प्राण ने काफी नाम कमाया लेकिन उन्हें हिन्दी सिनेमा में पांव जमाने के लिए एक नए कलाकार की तरह संघर्ष करना पड़ा...सबसे पहले उन्हें बॉम्बे टॉकीज की फिल्म 'जिद्दी' में काम मिला...जिसके बाद प्राण ने कभी पीछे मुढ़कर नहीं देखा...उन्होंने 'आजाद', 'मधुमती', 'दिल दिया दर्द लिया', 'राम और श्याम', 'जॉनी मेरा नाम', जैसी फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए...प्राण एक ऐसे एक्टर थे जिन्होंने हर रोल को बखुबी पर्द पर उतारा..फिर चाहे पिता का रोल हो, डाकू का रोल हो या फिर पुलिस का किरदार...अपनी एक्टिंग से उन्होंने हर किरदार को यादगार बना दिया...प्राण ने करीब 400 फिल्मो में काम किया ... “राम और श्याम” फिल्म में उन्होंने ऐसी चतुर और क्रूर खलनायकी दिखाई कि लोगो ने प्राण से नफरत करना शुरू कर दिया लेकिन यही नफरत उनके किरदार की सफलता की पहचान बनीं... | प्राण जब तक खलनायक का किरदार निभाते रहे , तब तक उतने ही मशहूर रहे जितने कि चरित्र अभिनेता का किरदार निभाकर...फिल्म “जिस देश में गंगा बहती है में प्राण ने राका डाकू का किरदार निभाया था.. प्राण की कडकती आवाज ने राका डाकू का किरदार तो पसंद किया लेकिन दर्शको का प्यार नही मिल सका ...इसके बाद मनोज कुमार ने प्राण को “उपकार में मंगल चाचा का किरदार देकर खलनायकी के घेरे से पुरी तरह आजाद करा दिया ...मंगल चाचा के किरदार को प्राण ने अपने अभिनय कौशल से हमेशा के लिए अमर बना दिया... मनोज कुमार की ज्यादातर फिल्मो में प्राण खलनायक से कही ज्यादा चरित्र भूमिका निभाते थे..जिनमें “शहीद” , “पूरब और पश्चिम” , “बेईमान” , “सन्यासी” , “दस नम्बरी” , “पत्थर के सनम” जैसी फिल्में शामिल हैं... | 1973 में आयी फिल्म जंजीर...| अमिताभ बच्चन की इस पहली हिट फिल्म में शेर खा का किरदार प्राण के निभाये चरित्र किरदारों में सबसे बेहतरीन किरदार माना जाता है ...आगे चलकर अमिताभ बच्चन के साथ उनकी कई फिल्मे सफल हुई जिनमें “डॉन” , “अमर अकबर अन्थोनी” , “मजबूर” , “दोस्ताना” , “नास्तिक” , “कालिया ” और “शराबी” जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं... ये उनकी एक्टिंग का ही कमाल था की उन्होंने हर बड़े एक्टर के साथ काम किया...कहा जाता है कि उस दौर में हीरो से ज्यादा प्राण की फीस होती थी...प्राण कितने लोकप्रीय थे इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि फिल्मो में कास्टिंग के दौरान पर्दे पर सबसे आखिरी में “and PRAN” लिखा आता था ताकि दर्शको को ये नाम अलग से दिखाई दे ...हिंदी सिनेमा में अहम योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया ..साथ ही साल 1997 में उन्हें फिल्म फेयर के लाइफ टाइम अचीवमेंट खिताब से सम्मानित किया गया |...अपने लम्बे फ़िल्मी करियर और शानदार सफलता को देखते हुए साल 2012 का दादा साहब फाल्के सम्मान दिया गया...और 12 जुलाई 2013 को इस शानदार अभिनेता ने प्राण त्याग दिए और पीछे छोड़ गए अपनी एक्टिंग वो जादू जो हमेशा यादकिया जाएगा।
संगीतकार कल्याणजी
'जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी... मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी... जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार कल्याणजी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है.. कल्याणजी वीरजी शाह का जन्म 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन के दिनों से ही कल्याणजी अपने भाई आनंदजी के साथ संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे.. हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी.. अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए कल्याणजी मुंबई आ गए, जहां उनकी मुलाकात संगीतकार हेमंत कुमार से हुई... कल्याणजी, हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर काम करने लगे.. बतौर संगीतकार सबसे पहले 1958 में प्रदर्शित फिल्म 'सम्राट चंद्रगुप्त' में उन्हें संगीत देने का मौका मिला लेकिन फिल्म की असफलता के कारण वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए.. अपना वजूद तलाशते कल्याणजी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग 2 साल तक फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष करना पड़ा.. इस दौरान उन्होंने कई बी और सी ग्रेड की फिल्में भी कीं... साल 1960 में कल्याण जी अपने छोटे भाई आनंदजी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आनंदजी के साथ मिलकर फिल्मों में संगीत देना शुरू किया...
साल 1960 में प्रदर्शित फिल्म 'छलिया' की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक कल्याणजी अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए.. फिल्म 'छलिया' में उनके संगीत से सजे गीत 'डम-डम डिगा-डिगा...', 'छलिया मेरा नाम...' श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं... साल 1965 में आई फिल्म 'हिमालय की गोद में' की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंदजी शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे... सिने करियर के शुरुआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत जमी... मनोज कुमार ने सबसे पहले इस संगीतकार जोड़ी से फिल्म 'उपकार' के लिए संगीत देने की पेशकश की.. इस फिल्म में इंदीवर रचित गीत 'कस्मे-वादे प्यार वफा...' के लिए दिल को छू लेने वाला संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया... इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म 'पूरब और पश्चिम' के लिए भी कल्याणजी-आनंदजी ने 'दुल्हन चली, वो पहन चली तीन रंग की चोली...' और 'कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे...' जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया..
साल 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' में 'नफरत करने वालों के सीने में प्यार भर दूं...', 'पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले...' जैसे रुमानी गीतों को संगीत देकर कल्याणजी-आनंदजी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया... मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म 'सच्चा-झूठा' के लिए कल्याणजी-आनंदजी ने बेमिसाल संगीत दिया। 'मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां...' को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है... कल्याणजी-आनंदजी के सिने करियर पर नजर डालने पर पता लगता है कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन पर फिल्माए उनके गीत काफी लोकप्रिय हुआ करते थे.. साल 1989 में सुल्तान अहमद की फिल्म 'दाता' में उनके कर्णप्रिय संगीत से सजा यह गीत 'बाबुल का ये घर बहना, एक दिन का ठिकाना है...' आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है.. साल 1968 में आई फिल्म 'सरस्वतीचन्द्र' के लिए कल्याणजी-आनंदजी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के नेशनल अवॉर्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया था इसके अलावा 1974 में आई फिल्म 'कोरा कागज' के लिए भी उन्हे सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया.. कल्याणजी ने अपने सिने करियर में लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया.. 24 अगस्त 2000 को कल्याणजी इस दुनिया को अलविदा कह गए। अपने जीवन के 80 बसंत देख चुके कल्याण जी के भाई आनंदजी इन दिनों बॉलीवुड में सक्रिय नहीं हैं..
किशोर कुमार
किशोर कुमार एक ऐसा नाम जिससे हिंदुस्तान का हर वो शख्स वाकिफ होगा जिसने कभी भी मुहब्बत की होगी... दिल से निकली आह को कई लोगों ने उनकी आवाज में महसूस किया होगा, तो कभी मस्ती भरे मूड में कई दीवाने उनके नगमों पर झूम उठे होंगे.. किशोर कुमार भले ही वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हम यही कहेंगे किशोदा कभी अलविदा ना कहना... सिंगिंग और अदाकारी की दुनिया के बेताज बादशाह 'किशोर कुमार' का जन्मदिन है. एक्टर सिंगर राइटर, स्क्रिप्ट एंड स्क्रीन प्ले राइटर, कंपोजर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर ये सारी खूबियां किशोर कुमार की थी... बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना की 91 फिल्मों में आवाज देने वाले किशोर दा का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा नामक स्थान पर हुआ था... किशोर कुमार का असली नाम 'आभास कुमार गांगुली' था. और वे मशहूर अभिनेता अशोक कुमार और अनूप कुमार के छोटे भाई थे. किशोर कुमार ने 70 और 80 के दशक में अमिताभ बच्चन के लिए कई गीत गाए थे लेकिन 80 के दशक के मध्य में जब अमिताभ बच्चन ने किशोर कुमार के द्वारा प्रोड्यूस की गई फिल्म में काम करने से मना कर दिया तब किशोर कुमार ने भी अमिताभ के लिए गाना छोड़ दिया था... किशोर कुमार लीड सिंगिंग से पहले 'बॉम्बे टॉकीज' के लिए एक कोरस सिंगर हुआ करते थे... किशोर कुमार ने 1985 की फिल्म 'जमाना' में दोनों लीड एक्टर्स राजेश खन्ना और ऋषि कपूर के लिए सोलो गाने गाए थे और जब बात डुएट सॉन्ग की हुई तो किशोर कुमार ने सिर्फ राजेश खन्ना को आवाज देने की बात की थी जिसकी वजह से ऋषि कपूर के लिए शैलेन्द्र सिंह और मोहम्मद अजीज ने आवाज दी... आम तौर पर लोगों के घर के गेट पर 'कुत्तों से सावधान' का बोर्ड लगा होता है लेकिन किशोर कुमार ने अपने मुंबई के वार्डन रोड वाले घर के गेट पर 'किशोर से सावधान' का बोर्ड लगाया था. एक बार प्रोड्यूसर एच एस रवैल, किशोर कुमार के घर उनसे लिए हुए पैसे लौटाने गए तो किशोर कुमार ने पैसे ले लिए फिर जब रवैल साब ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो किशोर कुमार ने उनका हाथ मुंह में दबोच कर कहा की 'क्या आपने घर के बाहर लगा बोर्ड नहीं पढ़ा?'.. किशोर कुमार 1970 से 1987 के बीच सबसे महंगे गायक हुआ करते थे. किशोर कुमार ने अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, जीतेन्द्र जैसे बड़े-बड़े दिग्गज कलाकारों के लिए आवाज दी थी.
शोले
शोले...एक ऐसी फिल्म जिसने सक्सेस के सारे रिकॉर्ड ब्रेक कर कई रिकॉड अपने नाम किए...यही वजह है कि भारत के इतिहास की ONE OF THE BEST फिल्मों में शोले का नाम भी शामिल है...इस फिल्म के एक्टर्स को आज भी उनके किरदार के नाम से याद किया जाता है...इस सुपरहिट फिल्म को रिलीज हुए 43 साल हो गए हैं...15 अगस्त 1945 में रिलीज हुई फिल्म शोले ने हिंदी सिनेमा में अपने 43 साल पूरे कर लिए है...खास बात ये है कि इतने सालों बाद भी फिल्म का क्रेज खत्म नहीं हुआ है...आज भी लोग तने ही शिद्दत से इसे देखते हैं जितनी के 43 साल पहले रिलीज के टाइम पर देखा करते थे...संजीव कुमार, धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हेमा मालिनी और अमजद खान जैसी स्टारकास्ट से सजी इस फिल्म को शुरू में ना तो ऑडियंस ने और ना ही समीक्षको ने ध्यान नहीं दिया था...क्यों कि उसी टाइम रिलीज हुई फिल्म 'जय संतोषी मां' शोले पर भारी पड़ती दिख रही थी...लेकिन दो हफ्ते बाद फिल्म ने जो लोकप्रियता हासिल की वो इतिहास बन गई...आज के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन उस टाइम इंडस्ट्री में इतना बड़ी नाम नहीं था....यही वजह है कि कई समीक्षकों ने अपने रिव्यू में उनके नाम का जिक्र तक नहीं किया था...उन्हें धरम का दोस्त लिखा गया...जबकि फिल्मों में नए-नए आए अमजद खान का नाम लिखा गया....कहा जाता है कि धर्मेंद्र पहले ठाकुर का रोल करना चाहते थे....लेकिन जब उन्हें पता चला कि संजीव कुमार, हेमा मालिनी के अपोजिट वीरू की भूमिका निभाएंगे तो उन्होंने अपना इरादा बदल दिया और वीरू की भूमिका निभाई....वहीं फिल्म में जय का किरदार निभाने वाले अमिताभ बच्चन भी गब्बर का रोल करना चाहते थे...लेकिन इस रोल के लिए रमेश सिप्पी ने अमजद खान को सिलेक्ट किया जो आगे जाकर माइलस्टोन कैरेक्टर बन गया...फिल्म के असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा शूट किया गया.... जिसमें गब्बर को कानून के हवाले किया गया... फिल्म शोले तीन साल में बन पाई थी.....अमिताभ बच्चन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि सिप्पी ने एक सीन फिल्माने के लिए 20 दिन तक इंतजार किया था. ..इसके 26 रीटेक हुए थे. ये सीन था, जब जया बच्चन लालटेन जलाने आती हैं... इसे खास रोशनी में शूट करना था, जो कि मिल नहीं रही थी...वहीं फिल्म में सूरमा भोपाली का किरदार भी रीयल कैरेक्टर पर बेस्ड थी जिसे जगदीप जाफरी ने निभाया था...फिल्म की शूटिंग बंगलूरू और मैसूर के बीच पहाड़ियों से घिरे 'रामनगरम' में हुई थी... निर्माताओं ने रामगढ़ के रूप में एक पूरे गांव को बसाया....जब फिल्म की शूटिंग खत्म हुई लोगों ने रामनगरम के एक हिस्से को 'सिप्पी नगर' का नाम देकर निर्माताओं का शुक्रिया अदा किया.... रमेश सिप्पी के शोले की स्क्रि प्ट मंजूर करने से पहले इसे कई फिल्मकार रिजेक्ट कर चुके थे... शोले के बाद से ही स्क्रिप्ट राइटर्स को बॉलीवुड में अच्छी फीस और सम्मान मिलना शुरू हुआ..शोले देशभर में कम से कम 100 सिनेमाघरों में 25 हफ्ते तक लगी रही थी...जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है...फिल्म के डायलॉग "कितने आदमी थे" को परफेक्ट बनाने के लिए डायरेक्टर ने 40 रीटेक लिए थे...फिल्म की स्टोरी से लेकर फिल्म के गाने भी काफी पसंद किए गए.... इस फिल्म में इमोशन, ड्रामा, कॉमेडी से लेकर सब कुछ था...दो दोस्तों की यारी बसंती की बकबक, राधा की खामोश मोहब्बत. ठाकुर के बदले की आग, और गब्बर की बेहरहमी...फिल्म का एक एक सीन शानदार था..यही वदब है कि माइलस्टोन फिल्म शोले को 2005 में पिछले 50 साल की बेस्ट फिल्म घोषित किया गया था...
सुरैया
सुरैया
सुरीली आवाज की मल्लिका
सुरैया ने गायिकी के साथ-साथ अभिनय से भी लोगों को अपना दीवाना बनाया...अनमोल घड़ी, दिल्लगी,ऑफिसर, मिर्जा गालिब और रुस्तम
सोहराब जैसी फिल्में उनके बेमिसाल अभिनय और गायिकी की पहचान बयां करती है...सुरैया
का जन्म 15 जून 1929 को पंजाब के गुजरांवाला शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में
हुआ था...वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं...बचपन से ही सुरैया का रुझान
संगीत की ओर था और वह पार्श्व गायिका बनना चाहती थीं... हांलाकि उन्होंने किसी
उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी बावजूद इसके संगीत के ऊपर उनकी काफी पकड़
थी... 1937 में सुरैया ने बतौर बाल कलाकार फिल्म सोचा था से हिंदी सिनेमा में
एंट्री की...उसके बाद 1941 में सुरैया फिल्म ताजमहल की शूटिंग देखने पहुंची और
यहां उनकी मुलाकात फिल्म के निर्देशक नानु भाई वकील से हुयी..जिन्हे सुरैया में
फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने सुरैया को फिल्म
के किरदार मुमताज महल के लिये चुन लिया... इसके बाद आकाशवाणी के एक कार्यक्रम के
दौरान संगीत सम्राट नौशाद ने जब सुरैया को गाते सुना तब वह उनके गाने के अंदाज से
काफी प्रभावित हुये। नौशाद के संगीत निर्देशन में पहली बार कारदार साहब की फिल्म
शारदा में सुरैया को गाने का मौका मिला... इस बीच सुरैया को वर्ष 1946 में
प्रदर्शित निर्माता निर्देशक महबूब खान की अनमोल घड़ी में भी काम करने का मौका
मिला...हांलाकि सुरैया इस फिल्म में सहअभिनेत्री थी लेकिन फिल्म के एक गाने सोचा
था क्या-क्या हो गया.. वह बतौर पा र्श्व गायिका श्रोताओ के बीच अपनी पहचान बनाने
में काफी हद तक सफल रही।...इसके बाद फिल्म शमा, मिर्ज़ा ग़ालिब, दो सितारे, खिलाड़ी, सनम, कमल के फूल, शायर, जीत, विद्या, अनमोल घड़ी, हमारी बात जैसी फिल्मों
में शानदार अभिनय किया... अभिनय के अलावा सुरैया ने कई यादगार गीत दिए...जो अब भी
काफी लोकप्रिय है...इन गीतों में “सोचा न क्या मै दिल में दर्द बसा लाइ ” “तेरे नैनो ने चोरी किया ” “तू मेरा चाँद मै तेरी
चांदनी ” “मुरली वाले मुरली बजा ” जैसे हिट गीत शामिल
हैं... सुरैया और देवानंद की प्रेमकहानी भी काफी फिल्मी रही...फिल्म अफसर के दौरान
देवानंद का झुकाव सुरैया की ओर हो गया था... एक गाने की शूटिंग के दौरान देवानंद
और सुरैया की नाव पानी में पलट गयी...देवानंद ने सुरैया को डूबने से बचाया... इसके
बाद सुरैया देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगी, लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने और हिंदू मुस्लिम की
वजह से इस जोड़ी की मोहब्बत भी परवान नहीं चढ़ सकी... और दोनों की राहें अलग हो
गईं,... साल 1963 में आई फिल्म
रुस्तम सोहराब के बाद सुरैया ने खुद को फिल्म इंडस्ट्री से अलग कर लिया...लगभग तीन
दशक तक अपनी जादुई आवाज और अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली भारतीय सिने जगत की
महान पा र्श्व गायिका और अभिनेत्री सुरैया ने 31 जनवरी 2004 को इस दुनिया आखुरी
विदाई ले ली...
सदाबहार सुपर स्टार राजकुमार
सदाबहार सुपर स्टार
राजकुमार
चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने
होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते.. वक्त फिल्म का ये डॉयलाग अगर राजकुमार
ने न बोला होता...तो शायद ये डॉयलाग सालों साल तक पत्थर जैसी चोट का अहसास भी नहीं
करा पाता। ये उस आवाजो अंदाज का असर था...जिसके दीवाने आज भी कम नहीं। ये अदायगी
ही राजकुमार की पहचान बनी...जो हर देखने वालों के भीतर भी जोश और जज्बात को लबरेज
कर देती है.... यों पारसी थियेटर से निकल कर सिल्वर स्क्रीन पर छा जाने वाले अकेले
राजकुमार नहीं थे लेकिन राजकुमार ने अपने अभिनय में बार बार इस बात को साबित करने
का प्रयास किया कि सिनेमा वह विधा है जहां नाटकीयता और मनोरंजन को ज्यादा तवज्जो
देने की जरूरत है। इसीलिए सिल्वर स्क्रीन पर भी राजकुमार अपनी डायलाग डिलीवरी को
पारसी थियेटर शैली से कभी अलग नहीं करते.. फिल्मी पर्दे पर राजकुमार की एंट्री उस
वक्त होती है...जब एक तरफ दिलीप कुमार, राजकपूर और देवानंद और गुरुदत्त जैसे सितारे जीवन के हर रंग
को मुकम्मल तरीके से जी रहे थे और दर्शक उनकी अदायगी की दीवानी थी...उस बीच
राजकुमार के लिए पहचान कायम करना आसान नहीं था...जबकि राजकुमार को ना तो दिलीप
कुमार की तरह नाचना आता था, ना राजकपूर की
तरह भदेस बनना गंवारा था और ना ही देवानंद की तरह रोमांटिक उनकी छवि थी...इसके
बावजूद दब वो पैगाम में दिलीप कुमार के सामने पर्दे पर दस्तक दी...तो दुनिया इस
जुगलबंदी को देखती रह गई...दिलीप कुमार के सामने अपने अभिनय का लोहा मनवा लेने के
बाद तो राजकुमार को जैसे बेहतरीन एक्टर का सर्टिफिकेट मिल गया... हालांकि इससे
पहले जब महबूब खान ने मदर इंडिया में राजकुमार को भले ही छोटा ही रोल दिया लेकिन
उस रोल ने उन्हें उनके टैलेंट को अंतराष्ट्रीय मंच दे दिया...
मदर इंडिया और पैगाम के
बाद राजकुमार की अभिनय प्रतिभा का मैसेज सबको मिल चुका था।....वक्त गुजरता
गया...और आगे चलकर दुनिया और महफिल राजकुमार के कदमों तले थी...
(गाना ---ये दुनिया ये
महफिल...)रोमांटिक छवि के नायक न होकर भी राजकुमार ने रुमानियत को नई पहचान दी।
काजल फिल्म का ये गीत भला कौन भूल सकता है...(गाना-छू लेने दो नाजुक होंटो को...)और
पाकीजा...का ये डॉयलाग और गीत...सबकी जेहन और रूह को आज भी झकझोर देते हैं.. राजकुमार
का रुमानी सफर जारी रहा...दिल अपना और प्रीत पराई, दिल एक मंदिर, हमराज, मेरे हुजूर जैसे
सफल फिल्में उनके खाते में जुड़ती गईं... और वहीदा रहमान के साथ नीलकमल का वो
प्यासा और तड़पता कलाकार सबका दिल लूटता रहा... लेकिन सन् 80 के बाद राजकुमार ने
अपनी फिल्मी छवि को बदलने की कोशिश शुरू कर दी...जिसके बाद कुदरत, धर्मकांटा, राजतिलक, मकते दम तक जैसी फिल्मों
में चरित्र भूमिकाएं निभाने लगे। लेकिन इसके बाद भी राजकुमार का एक और बड़ा
करिश्मा देखना बाकी था...जिसे लोगों ने सौदागर और तिरंगा में देखा.. पैगाम की वो
जोड़ी एक बार फिर सौदागर में दिखी...तो दुनिया देखती रह गई...दोस्ती और दुश्मनी के
तासीर को जिस शिद्दत से राजकुमार और दिलीपु कुमार ने पर्दे पर जिया...वो एक मिसाल
है.. 3 जुलाई 1996 को दुनिया को अलविदा कहने वाले राजकुमार आज हमारे बीच भले ही
नहीं हैं...लेकिन उनकी अदायगी और आवाजो अंदाज हममें हमेशा जोश और जज्बात भरते
रहेंगे।
बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर
बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर
बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर
जितना अपने लुक्स, स्टाइल और एक्टिंग के लिए फेमस हैं उससे कहीं ज्यादा रणबीर
अपने अफेयर और दिलफेंक अंदाज के लिए जाने जाते हैं.... 28 सितंबर 1982 को पैदा हुए
रणबीर 36 साल के हो गए हैं... रणबीर कपूर का नाम उनके दादाजी के नाम पर रखा गया
है...जी हां शो मैन राज कपूर का पूरा नाम रणबीर राज कपूर था... वहीं दादा राजकपूर
रणबीर को उनके पेट नेम गगलू से बुलाते थे...रणबीर कपूर अपने खानदान के फिलहाल इकलौते और पहले ग्रेजुएट है...एक्टिंग
का टेलैंट रणबीर में खानदानी था...रणबीर जब 6 साल के थे तो उनका दिल पहली बार धक
धक गर्ल माधुरी दीक्षित के लिए धड़का था...माधुरी को नाचते देख रणबीर ने ठान लिया
कि एक दिन वो जरूर माधुरी के हीरो बनेंगे और फिल्म ऐ जवानी है दीवानी के इस गाने
में सांवरिया कपूर ने अपना पुराना ख्वाब पूरा किया... रणबीर कपूर पहली बार परदे पर
दिखे फिल्म ब्लैक में...इस फिल्म में रणबीर ने अमिताभ बच्चन के बॉडी डबल का रोल
किया था...ब्लैक फिल्म में रणबीर ने असिस्टैंट डायरेक्टर के तौर पर भी काम किया था
और संजय लीला भंसाली ने ही सांवरिया कपूर को साल 2007 में बॉलीवुड में लॉन्च किया
...ये फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई...‘सांवरिया’ के बाद ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’, ‘रॉकस्टार’ और ‘बर्फी’ तक आते-आते रणबीर ने यह
साबित कर दिया कि वह एक टैलेंटेड एक्टर हैं... रोमांटिक कॉमेडी ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’ में अपनी जबरदस्त एक्टिंग
से रणबीर की दर्शकों ने खूब सराहना की थी...फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई
थी....2010 में रणबीर ने प्रकाश झा की फ़िल्म ‘राजनीति’ में अपनी उम्दा एक्टिंग
से सबको चौंका दिया था... ‘अंजाना-अंजानी’, ‘ये जवानी है दीवानी’, ‘तमाशा’, ‘ऐ दिल है मुश्किल’, ‘जग्गा जासूस’ से लेकर हाल ही में आई
संजय दत्त की बायोपिक ‘संजू’ तक रणबीर ने यह दिखा दिया कि वो सबसे हटकर एक बेहद स्पेशल
एक्टर हैं...रणबीर की फ़िल्में हिट रहीं या फ्लॉप रणबीर ने हमेशा अपनी एक्टिंग से
सभी को इम्प्रेस किया है... रणबीर कपूर को यूं ही कैसानोवा नहीं कहा जाता...रणबीर
जब क्लास 7TH में थे तभी उनकी गर्लफ्रेंड बन गई थी...रणबीर ने सिर्फ
दीपिका और कटरीना को ही डेट नहीं किया बल्कि उनकी गर्लफ्रेंड्स की लिस्ट बहुत लंबी
है...रणबीर की गर्लफ्रेंड इमरान खान की वाइफ अवंतिका मलिक भी रह चुकी है ...इसके
अलावा फैशन डिजाइनर नंदिता मेहतानी के साथ
भी रणबीर का अफेयर रहा...रणबीर का नाम सोनम कपूर, नर्गिस फखरी और एंजेला
डिसूजा से भी जुड़ा...पाकिस्तानी एक्ट्रेस माहिरा खान से भी उनका नाम
जुड़ा...लेकिन अब रणबीर का दिल क्यूट आलिया भट्ट के लिए धड़क रहा है...दोनों पिछले
करीब 1 साल से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं...अब हम तो यही उम्मीद करते हैं कि
रणबीर आप जल्द से जल्द शादी के बंधन में बंध जाओ और अपना घर बसा लो...
बॉलीवुड का इश्कजादा अर्जुन कपूर
बॉलीवुड का इश्कजादा
अर्जुन कपूर
बॉलीवुड का इश्कजादा...जी
हां अर्जुन कपूर...एक ऐसे एक्टर जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से काफी कम टाइम में
बॉलावुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई..आज बॉलावुड के इस हैंडसम हंक बॉय का बर्थडे
हैं..26 जूव 1985 को पैदा हुए अर्जुन आज अपना 33वां बर्थडे सैलीब्रेट कर रहे
हैं...इस बार का बर्थडे अर्जुन के लिए बेहद खास है क्योंकि इस बार पापा बोनी कपूर
और बहन अंशुला के साथ ही उनकी स्टेप सिस्टर यानी जाह्नवी और खुशी ने भी अपने भाई
का बर्थडे सैलीब्रेट किया...इस मौके पर ख़ास बात ये रही कि उनकी बहन जाह्नवी कपूर
ने भैया अर्जुन कपूर को बड़े ही इमोशनल अंदाज़ में बर्थडे विश किया.. जाह्नवी ने
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि- ‘‘आप हमारी ताकत हैं, लव यू , हैप्पी बर्थडे
अर्जुन भैया’’...
इसके साथ ही ने
जाह्नवी ने अंशुला और ख़ुशी के साथ अर्जुन कपूर की एक फोटो भी शेयर की...जिसमें इन
सभी भाई-बहनों की केमिस्ट्री साफ़ देखी जा सकती है...अर्जुन के अपनी स्टेप सिस्टर्स
के साथ रिश्ते अच्छे नहीं थे..जिसकी वजह पापा बोनी का अर्जुन की मां मोना कपूर को
छोड़कर एक्ट्रेस श्रीदेवी से शादी करना था...अर्जुन अपनी मां मोना के बेहद करीब
थे...मां की मौत के बाद अर्जुन काफी डिप्रेस हो गए थे...हालांकि वक्त के साथ ही
अर्जुन ने खुद को संभाला और फिल्मों में बिजी हो गए...वहीं हाल ही में श्रीदेवी की
मौत के बाद से दोनों बहनों के साथ अर्जुन के रिश्ते काफी अच्छे हो गए हैं...अर्जुन
हर मौके पर पनी बहनों को प्रोटेक्ट करते नजर आते हैं...सबी को बीच अब काफी
स्ट्रोंग बॉन्डिंग देखने को मिल मिलती है...एनीवेज ये तो हुई अर्जुन की रियल लाइफ
की गपशप..अब बात करते हैं उनकी रील लाइफ की...एक वक्त था जब अर्जुन का डील डोल
काफी खराब था...तब सलमान खान ने अर्जुन को फिल्म में आने के लिए कहा और वजन कम
करने की सलाह दी...अर्जुन सलमान की बात से खासे इम्प्रेस हुए और कड़ी मेहनत से
काफी वेट लूज किया....फिर क्या था अर्जुन
की बॉडी शेप में आ गई साथ ही अर्जुन के लुक में भी काफी बदलाव देखने को
मिला...इसके बाद अपने डेंशिंग स्टाइल के साथ अर्जुन ने फिल्म इश्कजादे से बॉलावुड
में डेब्यू किया...जिसमें उनके अपोजिट परिणीती चौपड़ा ने लाड रोल प्ले किया
था..पहली ही फिल्म में अर्जुन ने शानदार एक्टिंग की..उनके रफ एंड टफ स्टाइल को
ऑडियंस ने काफी पसंद किया...इस फिल्म के लिए अर्जुन को फिल्म फेयर के बेस्ट न्यू
कमर मेल कैटेगिरी में नोमिनेशन भी मिला...इसके बाद अर्जुन के करियर की गाड़ी चल
निकली और उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दी...फिल्म गुंडे में भी उनके भाई
गिरी स्टाइल को काफी पसंद किया गया...इस फिल्म
उनके साथ रणबीर सिंह और प्रियंका चोपड़ा ने स्क्रीन शेर की और फिल्म गुंडे
बॉक्सऑफिस पर हिट हो गई...अर्जुन ने फिल्म टू स्टेट में एक बार फिर से अपनी
एक्टिंग स्किल से ऑडियंस को इम्प्रेस किया...इस फिल्म में आलिया के साथ उनकी
कैमिस्ट्री को काफी पसंद किया गया...ये फिल्म बॉक्सऑफिस पर जबरदस्त हिट रही वहीं
फिल्म के गानों को भी बेहद पसंद किया गई...करीना के कपूर के साथ फिल्म की एंड का
में अर्जुन एक अलग ही रोल में नजर आए...इस फिल्म में भी अर्जुन ने अच्छी एक्टिंग
की...वहीं श्रद्धा कपूर के साथ उनकी फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड भी बॉक्सऑफिस पर हिट
रही..फिल्म में अर्जुन के बिहारी स्टाइल ने लोगों को काफी इंप्रेंस किया...साथ ही
श्रद्धा के साथ उनकी कैमिस्ट्री भी काफी अच्छी नजर आई...इसके साथ ही फिल्म तेबर और
ओरंगजेब में अर्जुन ने बेहतरीन एक्सप्रेशन शानदार एक्टिंग से ऑगियंस के साथ ही
डारेक्टर्स को भी इंप्रेस किया...फिल्म भले ही बॉक्स ऑफिस पर कोई खास कमाल नहीं
दिखा पाई लेकिन अर्जुन की एक्टिंग को सभी ने नोटिस किया...वहीं अर्जुन ने चाचा
अनिल कपूर के साथ फिल्म मुबारका में स्क्रीन शेयर की... जिसमें चाचा भतीजे की
तगड़ी बॉन्डिंग देखने को मिली...अर्जुन के करियर को भले ही ज्यादा वक्त नहीं हुआ
है लेकिन ये उनकी एक्टिंग का ही जादू है जो इतने कम वक्त में भी उन्होंने सितारों
की नगरी में अपनी एक अलग पहचान बना ली...यही वजह है कि अर्जुन के पास फिल्मों की
लाइन लगी हुई है...उनकी अपकमिंग फिल्मों की बात करें तो अर्जुन जल्द ही फिल्म
संदीप और पिंकी फरार, नमस्ते इंग्लैंड, और पानीपत जैसी बड़ी
फिल्मों में नडर आने वाले हैं...हमारी तरफ से बॉलावुड के इस इश्कजादे को हैप्पी
बर्थडे।
हिन्दी सिनेमा की सरोज
हिन्दी सिनेमा की सरोज
जितने फेमस ये गाने है
उतना ही शानदार इन गानों पर किया गया डांस है...और इन गानों में हिरोइन को थिरकाने
वाली हैं बॉलीवुड की मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान...जिन्होंनेअपने कॅरियर में माधुरी दीक्षित से लेकर ऐश्वर्या
राय तक लगभग सभी बड़ी अभिनेत्रियों को अपने इशारों पर नचाया...कथक से लेकर मणिपुरी
तक सभी नृत्य शैलियों में पारंगत सरोज खान को बॉलिवुड में सभी मास्टर जी के नाम से
पुकारते हैं.... सरोज खान का जन्म 22 नवंबर, 1948 को हुआ था....करीब 200 से ज्यादा फिल्मों में काम करने
वाली सरोज खान का असली नाम निर्मला साधु सिंह हैं...बचपन से ही सरोज ने कफी
दिक्कतों का सामना किया... 3 साल की उम्र में सरोज ने बाल कलाकार के रूप में पहली
फिल्म नजराना की...सरोज खान ने महज 13 साल की उमंर में स दौर के फैमस डांसर बी.
सोहनलाल से शादी कर ली...ये शादी सफल नहीं रही...और उनकी दूसरी शादी सरदार रोशन
खान से हुई...दोनों की एक बेटी सुकैना खान है जो मां की तरह ही विदेश में डांस
एकेडमी चलाती है.. सिंगल कोरियोग्राफर के तौर पर सरोज खान की पहली निगाहें थी...इस
फिल्म में सरोज पहली बार सोलो कोरियोग्राफी की थी साथ ही बैक ग्राउंड डांस भी
थीं...इसके बाद नका सिलसिला चल निकला...लेकिन साल 1983 में प्रदर्शित हुई फिल्म
हीरो उनके लिए एक बड़ा ब्रेक साबित हुई....फिल्म नगीना में श्री देवी ने मैं तेरी
दुश्मन गाने पर जो डांस किया था, वो सरोज खान ने
ही कोरियोग्राफ किया था...इस गाने से सरोज खान की प्रतिभा को तारीफें मिलने लगी....इसके बाद उनके पास फिल्मों की
लाइन लग गई...अपने दौर की सभी मशहूर और बड़ी एक्ट्रेस को सरोज ने डांस सिखाया...
माधुरी की हिट फिल्म तेजाब के गाने एक दो तीन को सरोज ने ही कोरियो ग्राफ
किया...ये वही गाना है जिससे मोहिनी बनी माधुरी को पहचान मिली...इसके बाद सरोज ओर
माधुरी की जोड़ी ने एक से बढ़कर एक सुपर हिट गाने दिए..फिल्म सैलाब का गाना हमको ज
कल है गाने को सरोज ने बंहतरीन ढंग से कोरियोग्राफ किया तो वहीं चोली के पीछे में
भी इस जोड़ी का जादू चला...फिल्म मअंजाम में भी दोनों ने सुपरहिट डांस नंबर
दिया...माधुरी और सोरज की कैमिस्ट्री काफी शादनदार है.. श्रीदेवी के लिए भी सरोज
ने कई हिट गानों को कोरियोग्राफ किया फिल्म मिस्टर इंडिया, चालबाज, , चांदनी में दोनों ने
शानदार काम किया और सरोज के इशारों पर डांस करती श्रीदेवी का हर कोई दीवाना हो
गया... फिल्म हम दिल चुके सनम और देवदास में भी सरोज का डांस का जलवा देखने को
मिला...तो वहीं फिल्म दिलवाले दुल्हनिया में भी सरोज ने शानदार कोरियो ग्राफी
की... बात अगर सरोज खान को मिले अवॉर्ड की करें तो उन्हें 8 बार फिल्म फेयर और तीन
बार नेशनल अवॉर्ड के साथ ही फिल्म लगान के लिए
अमेरिकन आउटस्टैंडिंग अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा गया... सरोज को फिल्म
तेजाब के के लिए फिल्म फेयर बेस्ट कोरियोग्राफर का अवॉर्ड मिला, इसके बाद फिल्म गुरू के
गाने बरसो रे मेघा के लिए फिल्म फेयर अवार्ड मिला, वहीं फिल्म सैलाब के गाने हमको आज कल है के लिए एक बार
फिल्म उन्हें अवराड् से नवाजा गया...खलनायक के पॉपुलर सॉन्ग चोली के पीछे में
माधुरी और सोरज की जोड़ी ने सबी को थिरकने
पर मजबूर कर दिया और सरोज ने एक और फिल्म फेयर अवॉरड अपने नाम कर लिया...हम दिल
चुके सनम के निबुंड़ा गाने के लिए सरोज ने फिर अवॉर्ड जीता. देवदास के गाने डोला
रे डोला के लिए सरोज को फिल्म फेयर के साथ नेशनल अवॉर्ड भी मिला, तो वहीं जव बी मेट के
गाने ये इश्क हाय के लिए भी उन्हें नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया..तचालबाज के
गाने ये लड़की कहगा से आई है कि लिए भी सोरज को अवॉर्ड से नवाजा गया तो...वहीं
फिल्म बेटा के हॉट एंड सेक्सी गाने धक धक करने लगा के लिए सरोज ने अवॉर्ड अपने नाम
किया.. फिल्मों में के अलावा सरोज खान कई रियलिटी शो में बतौर जज की भूमिका अदा कर
चुकीं है...इसके साथ ही उनका डांस शो भी बेहद पॉपुलर हुआ जिसमें वो डांस सिखाती
थीं...आज भी फिल्म इंडस्ट्री में सरोज खान का जलवा कायम है...
संगीतकार प्यारेलाल
संगीतकार प्यारेलाल
हिन्दी सिनेमा के इतिहास
में जब भी सफल संगीतकारों की चर्चा चलती है तो वहां लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का नाम
बड़े सम्मान से लिया जाता है… लक्ष्मीकांत को प्यारेलाल
का साथ मिला तो दोनों ने संगीत की दुनिया में अपना परचम लहरा दिया.. और आज इन्ही
जोड़ी में से एक प्यारे लाल का जन्म दिन है.. आज ही के दिन यानी की 3 सितम्बर 1940 को उत्तर प्रदेश के
गोरखपुर में प्यारेलाल का जन्म हुआ था... प्यारेलाल का बचपन बेहद संघर्ष भरा रहा..
उनकी माँ का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था.. उनके पिता 'पंडित रामप्रसाद जी'
ट्रम्पेट बजाते
थे और चाहते थे कि प्यारेलाल वायलिन सीखें... एक बार उनके पिता जी उन्हें लता
मंगेशकर के घर लेकर गए.. लता जी प्यारे के वायलिन बजाने से इतनी खुश हुईं कि लता
मंगेशकर ने प्यारेलाल को 500 रुपए इनाम में दिए जो उस
ज़माने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी.. मेहनत के दम पर प्यारे लाल को मुंबई के 'रंजीत स्टूडियो' के ऑर्केस्ट्रा में नौकरी
मिल गई जहाँ उन्हें 85 रुपए मासिक वेतन मिलता
था.. प्यारे लाल उन्ही दिनों में एक रात्रि स्कूल में सातवें ग्रेड की पढ़ाई के
लिए दाख़िला लिया पर 3 रुपये की मासिक फीस उठा
पाने की असमर्थता के चलते प्यारे लाल को स्कूल छोड़ना पड़ा.. मुश्किल हालातों ने
भी उनके हौसले कम नहीं किए.. अमर अकबर एंथनी फिल्म का मशहूर गाना ‘माय नेम इस एंथनी गोंजाल्विस’ प्यारेलाल द्वारा
अपने गुरु को दी गयी एक श्रद्धांजलि माना जाता है.. बारह साल की उम्र तक पहुँचने पर, उनके घर की आर्थिक हालात ख़राब रहने के चलते उन्हें मजबूरन
स्टूडियो में काम करना पड़ा.. प्यारेलाल की मुलाकात लक्ष्मीकांत से दस साल की उम्र
में, मंगेशकर परिवार द्वारा
चलायी जा रही बच्चों की अकादमी सुरील कला केंद्र में हुई... समान उम्र और आर्थिक
स्थिति के चलते लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल अच्छे दोस्त बन गये... लक्ष्मीकांत
प्यारेलाल ने साथ मिलकर पहली बार 1963 में आई फिल्म पारसमणि को
अपने संगीत से सजाया, जिसके सभी गाने बहुत
लोकप्रिय हुए... (गाना लगाएं ‘हँसता हुआ नूरानी चेहरा’ और ‘वो जब याद आये’ ) लता मंगेशकर और मोहमद रफ़ी
जैसे बड़े गायकों ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ही अपने अधिक्तर गाने गाये..
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के लिए फिल्मफेयर
पुरस्कार से नवाजा गया... उन्हें दोस्ती, मिलन, जीने की राह, अमर अकबर एंथनी, सत्यम शिवम सुंदरम, सरगम और कर्ज़ के लिए
सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरुस्कार मिला.. कहा जाता है कि प्यारेलाल से
अच्छा म्यूज़िक अरेंजर फ़िल्म इंडस्ट्री में हुआ ही नहीं...
दिलों को दिवाना बनाने वाली सुनिधि चौहान
दिलों को दिवाना बनाने
वाली सुनिधि चौहान
मन सात समुंदर डोल गया ,जो तू आंखों से बोल गया सांग ने जहां पैर थिरकने पर मजबूर
कर दिया वहीं मेरे हाथ, में तेरा हाथ हो सारी
जन्नतें मेरे साथ हो सांग से करोड़ो दिलों को दिवाना बनाने वाली सुनिधि चौहान आज
किसी परिचय मोहताज नहीं....उन्होंने ने एक से बढ़ कर एक सुपरहिट गाने दिये
हैं...सुनिधि बतौर प्लेबैक सिंगर न सिर्फ बॉलीवुड़ बल्कि मराठी,कन्नड़ ,तेलुगु,पंजाबी फिल्मों के गानों को भी अपनी आवाज दी...सुनिधि महज 4 वर्ष की थी जब उनके करियर की शुरूआत हुई.. लेकिन नन्ही
सुनिधि की जिंदगी तब बदली जब टीवी एंकर तब्बसुम ने उनकी गायिकी को देखा, और सुनिधि के माता-पिता को मुंबई आने के लिए कहा.... इसके बाद मुम्बई आकर सुनिधि ने रियलिटी
शों 'मेरी आवाज सुनों' में पार्टिसिपेट किया..1999
में आई फिल्म
मस्त का रुकी रुकी सी जिन्दगी और उसके टाइटल ट्रैक ने सुनिधि को इन्डस्ट्री में
पहचान दिलाना शुरु कर दिया...सुनिधि ने ये शो जीता और साथ ही लता मंगेशकर की
ट्रॉफी भी जीती...सुनिधि का जन्म दिल्ली में हुआ और वो अपनी पढ़ाई के बारे में
बताती हैं कि उनका पढ़ाई में बिल्कुल मन नही लगता था वो बस इतना पढ़ती थी जिससे
एग्जाम में पास हो जायें ....उनके पिता एक गुजराती गायक हैं.. और सुनिधि उन्हे ही
अपनी प्रेरणा मानती हैं....इसमें कोई शक नहीं कि सुनिधि जितनी अच्छी सिंगर है उनकी
पर्सनालिटी भी उतनी आकर्षक है... वो फैशनिस्टा आइकॉन भी रह चुकी हैं उन्होंने 2013 में एशिया की टॉप 50
सेक्सियस्ट लेडीज
में भी अपनी जगह बनाई... सुनिधि का पहला कॉनसर्ट जागरण में गा कर हुआ था....आपको
बता दे कि सुनिधि ने अपना पहला इंटरनेशनल शो अमिताभ बच्चन ,अनुपम खेर के साथ किया उस वक्त सुनिधि बहुत छोटी थी
उन्होंने मोरनी बागा में नाचे आधी रात को सांग गाय था और अमिताभ जी ने उनकी बहुत
तारीफ की......ये बहुत कम ही लोग जानते
हैं सुनिधि की पहली शादी सिर्फ 18 साल की उम्र में
कोरियोग्राफर बॉबी खान के साथ 2002 में हुई थी लेकिन वो
सिर्फ 1 साल तक ही चल पाई, और 2003 में उनका तलाक हो
गया..करीब 9 साल बाद 24 अप्रैल 2012 को उन्होने म्यूजिक
कम्पोजर हितेश सोनिक से की..और हाल ही में जनवरी में उन्होने एक बेटे को जन्म
दिया...सुनिधि का मानना है कि इन्डस्ट्री में इन दिनों सांग्स को लेकर बहुत
कॉम्पटीशन है, एक फिल्म के सारे गाने
अलग अलग सिंगर से गवाए जाते है ऐसे में वो अपने आपको खुशनसीब मानती है कि चमेली और
कैश मूवी के साऱे गाने उन्ही की झोली में आए.........परिनिता का कैसी पहेली
जिन्दगानी, मुझसे शादी करोगी, बीड़ी जलइले, मन सात समन्दर डोल गया, भागे रे मन कहीं. क्रेजी किया रे, मेरे संग तो चल, सजना जी वारी वारी, यही होता प्यार है क्या,
लकी ब्वाय, रेस सांसो की, देसी गर्ल, देखो न नशे में, डास पे चांस. जैसे गानों
ने उन्हे उन्हे एक ऐसी पहचान दी है जिसके सपने हर कोई देखता है आज सुनिधि न सिर्फ
गा रही है बल्कि अपनी मैरिड लाइफ भी जमकर इन्ज्वाय कर रही है...सूर्या समाचार की
तरफ से सुनिधि के संहर्ष को हमारा सलाम..
आवाज के जादूगर मन्ना डे
आवाज के जादूगर मन्ना डे
यादगार गानों को अपनी आवाज से सजाने वाले फनकार
प्रबोध चंद्र डे....जिन्हें हम सभी मन्ना डे के नाम से जानते हैं...जिनकी आवाज के
दीवाने ना सिर्फ ऑडियंस थी बल्कि उसमें मोहम्मद रफी का नाम भी शामिल था... मोहम्मद रफी कहा करते थे, "सारी दुनिया मेरे गाने सुनती है, मैं तो सिर्फ मन्ना डे के गाने सुनता हूं... मन्ना डे
एक नाम ही नहीं ये वो याद है जो सदा सबके साथ रहेगी...हिन्दी के साथ-साथ मन्ना डे
ने बंगाली में भी कई गाने गाए जो काफी सुपरहिट हुए...मन्ना डे ने लगभग 4,000 से ज्यादा
गाने गाए हैं और हर एक गाना अपने आप में बेहद खूबसूरत था...फिल्म 'श्री 420' का
गाना 'ये रात
भीगी-भीगी' मन्ना डे और लता मंगेशकर ने गाया था...आज भी लोग इस
गाने को पसंद करते हैं वहीं इसी फिल्म के दसरे गाने भी बेहद हिट हुए...फिल्म
पड़ोसन का 'एक चतुर नार बड़ी होशियार' गाने
को मन्ना डे ने किशोर कुमार और महमूद के साथ गाया था..और ये गाना बॉलीवुड के
संगीत इतिहास का अमर गाना बन गयाहै...इसके साथ ही उन्होंने फिलम बॉबी में ना चाहू
सोना चांदी जैसे हिट गीत को अपनी आवाज दी...वक्त फिल्म का सदाबहार गीत ए मेरी जोहरा जबी को भला हम कैसे भूल सकते
हैं...मन्ना डे की आवाज में स,जा ये गाना एक लीजेंड़्री सॉन्ग बन गया...मन्ना डे
अपने करियर में हर मूड के गाने गाए...मस्ती भरे भी और इमोशनल बी...हर गीत में उनका
अंदाज बेहद खास रहा...मनना डे राजेश खन्ना के बड़े फैन थे...उन्होंने राझेस खन्ना
के लिए भी गाने गाए जो काफी हिट रहे....मन्ना डे के सभी गाने दिल पर एक छाप छोड़ते
हैं....'यशोमती
मैया से बोले नंदलाला', 'तू प्यार का सागर है तेरी एक बूंद के प्यासे हम', ''यह रात
भीगी-भीगी', 'यारी है ईमान मेरा',', 'नदिया चले चले रे धारा' चलत
मुसाफिर मोह लियो रे, दिल का हाल सुने दिलवाला जैसे गाने आज भी शिद्दत से
सुने और पसंद किए जाकते हैं...मन्ना डे को अपने बेहतरीन योगदान के लिए साल 1971 में
पद्म श्री, साल 2005 में पद्म भूषण और साल 2007 में
दादा फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था....24 अक्टूबर 2013 को
मन्ना डे को दिल का दौरे पड़ने से निधन हो गया था...लेकिन आज भी अपने गानों के
जरिए हमारे दिलों में जिंदा है।
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