रविवार, 2 दिसंबर 2018

शोले

शोले...एक ऐसी फिल्म जिसने सक्सेस के सारे रिकॉर्ड ब्रेक कर कई रिकॉड अपने नाम किए...यही वजह है कि भारत के इतिहास की ONE OF THE BEST फिल्मों में शोले का नाम भी शामिल है...इस फिल्म के एक्टर्स को आज भी उनके किरदार के नाम से याद किया जाता है...इस सुपरहिट फिल्म को रिलीज हुए 43 साल हो गए हैं...15 अगस्त 1945 में रिलीज हुई फिल्म शोले ने हिंदी सिनेमा में अपने 43 साल पूरे कर लिए है...खास बात ये है कि इतने सालों बाद भी फिल्म का क्रेज खत्म नहीं हुआ है...आज भी लोग तने ही शिद्दत से इसे देखते हैं जितनी के 43 साल पहले रिलीज के टाइम पर देखा करते थे...संजीव कुमार, धर्मेद्र, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हेमा मालिनी और अमजद खान जैसी स्टारकास्ट से सजी इस फिल्म को  शुरू में ना तो ऑडियंस ने और ना ही समीक्षको ने  ध्यान नहीं दिया था...क्यों कि उसी टाइम रिलीज हुई फिल्म 'जय संतोषी मां' शोले पर भारी पड़ती दिख रही थी...लेकिन दो हफ्ते बाद फिल्म ने जो लोकप्रियता हासिल की वो इतिहास बन गई...आज के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन उस टाइम इंडस्ट्री में इतना बड़ी नाम नहीं था....यही वजह है कि कई समीक्षकों ने अपने रिव्यू में उनके नाम का जिक्र तक नहीं किया था...उन्हें धरम का दोस्त लिखा गया...जबकि फिल्मों में नए-नए आए अमजद खान का नाम लिखा गया....कहा जाता है कि धर्मेंद्र पहले ठाकुर का रोल करना चाहते थे....लेकिन जब उन्हें पता चला कि संजीव कुमार, हेमा मालिनी के अपोजिट वीरू की भूमिका निभाएंगे तो उन्होंने अपना इरादा बदल दिया और वीरू की भूमिका निभाई....वहीं फिल्म में जय का किरदार निभाने वाले अमिताभ बच्चन भी गब्बर का रोल करना चाहते थे...लेकिन इस रोल के लिए रमेश सिप्पी ने अमजद खान को सिलेक्ट किया जो आगे जाकर माइलस्टोन कैरेक्टर बन गया...फिल्म के असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा शूट किया गया.... जिसमें गब्बर को कानून के हवाले किया गया... फिल्‍म शोले तीन साल में बन पाई थी.....अमिताभ बच्‍चन ने एक इंटरव्‍यू में कहा था कि सिप्‍पी ने एक सीन फिल्‍माने के लिए 20 दिन तक इंतजार किया था. ..इसके 26 रीटेक हुए थे. ये सीन था, जब जया बच्‍चन लालटेन जलाने आती हैं... इसे खास रोशनी में शूट करना था, जो कि मिल नहीं रही थी...वहीं फिल्म में  सूरमा भोपाली का किरदार भी रीयल कैरेक्टर पर बेस्ड थी जिसे जगदीप जाफरी ने निभाया था...फिल्म की शूटिंग बंगलूरू और मैसूर के बीच पहाड़ियों से घिरे 'रामनगरम' में हुई थी... निर्माताओं ने रामगढ़ के रूप में एक पूरे गांव को बसाया....जब फिल्म की शूटिंग खत्म हुई लोगों ने रामनगरम के एक हिस्से को 'सिप्पी नगर' का नाम देकर निर्माताओं का शुक्रिया अदा किया.... रमेश सिप्‍पी के शोले की स्‍क्रि प्‍ट मंजूर करने से पहले इसे कई फिल्‍मकार रिजेक्‍ट कर चुके थे... शोले के बाद से ही स्‍क्रिप्‍ट राइटर्स को बॉलीवुड में अच्‍छी फीस और सम्‍मान मिलना शुरू हुआ..शोले देशभर में कम से कम 100 सिनेमाघरों में 25 हफ्ते तक लगी रही थी...जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है...फिल्‍म के डायलॉग "कितने आदमी थे" को परफेक्‍ट बनाने के लिए डायरेक्‍टर ने 40 रीटेक लिए थे...फिल्म की स्टोरी से लेकर फिल्म के गाने भी काफी पसंद किए गए.... इस फिल्म में इमोशन, ड्रामा, कॉमेडी से लेकर सब कुछ था...दो दोस्तों की यारी बसंती की बकबक, राधा की खामोश मोहब्बत. ठाकुर के बदले की आग, और गब्बर की बेहरहमी...फिल्म का एक एक सीन शानदार था..यही वदब है कि माइलस्टोन फिल्म  शोले को 2005 में पिछले 50 साल की बेस्‍ट फिल्‍म घोषित किया गया था...

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