रविवार, 14 जनवरी 2018

9 /11 हमला

वो दुनिया का सबसे कुख्यात आतंकी था.. उसका जन्म 1957 में सऊदी अरब के रियाद में हुआ था.. वो अपने पिता की 52 संतानों में से सत्रहवीं संतान था.. उसके पिता की 1968 में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी... वह शुरू से एक शर्मीला लड़का था और पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था लेकिन, सऊदी अरब में सिविल इंज़ीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान वो कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षकों और छात्रों के संपर्क में आया.. जिसके बाद उसने एक ऐसे संगठन का गठन किया जिसका उद्देश्य सैन्य अभियान की जगह आतंकी हमले करना था. उसे इराक-कुवैत युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना की सऊदी अरब में मौजूदगी बर्दाश्त नहीं थी.. वह मानता था कि मुस्लिम जगत अमेरिकी आतंकवाद का शिकार है.. उसने अमेरिका के खिलाफ जिहाद का एलान करते हुए अपने लड़ाके तैयार किये और दुनियाभर में आतंकी हमले कराए... वो एक अमीर बाप का बेटा था... वह दूसरे अमीर शहजादों की तरह यूरोप और अमरीका में जिंदगी के मजे उड़ा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.. उसने हथियार उठा लिया और अफगानिस्तान की पहाड़ियों में भटकता रहा... उसने अपने एक बयान में कहा था मेरी मौत के बाद भी अमरीका के खिलाफ हमारी लड़ाई जारी रहेगी... मैं अपनी बंदूक की आखिरी गोली तक लड़ूंगा. मेरा सबसे बड़ा सपना शहादत है और मेरी शहादत कई ओसामा बिन लादेन को पैदा करेगी... उसकी आंखे हमेशा अमेरिको को नेस्तनाबूत करने का ख्वाब देखने लगा और वह एक दिन अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितंबर 2001 के दिन दिल दहलाने वाला हमला कर दिया.. इस हमले में हजारों अमेरिकी नागरिक बे-वक्त मौत की नींद सो गए थे और देखते ही देखते अमेरिका की शान माना जाने वाला वर्ल्ड ट्रेड सेंटर राख का ढेर बन कर रह गया.. इस हमले को अंजाम देने के लिए करीब 19 आतंकवादियों ने चार प्लेन को हाईजैक किया था.. दो हवाई जहाजों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर और एक पेंटागन पर गिराया गया था, जबकि चौथा शेंकविले के खेत में गिरा दिया गया था... इस हमले में करीब 3000 लोगों की मौत हुई थी.. घटना को लेकर अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों का कहना था कि इस हमले का निशाना व्हाइट हाउस था.. इस हमले के बाद ही ओसामा बिन लादेन दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी बन गया.. 9/11 के हमले के बाद से ओसामा बिन लादेन ने पूरी दुनिया में दहशत फैला दी और खुद अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया... अमरीका में 9/11 के हमले के कुछ घंटे बाद ओसामा ने अपने दोस्तों का एक मैसेज भेजा जिसमें ओसामा ने लिखा था.. उन लोगों के लिए दुआ, जिन्होंने इस हमले को अंजाम दिया..  हलांकि ओसामा ने कभी भी 9/11 के उस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली.. अमेरिका उस त्रासदी से रूबरू हुआ, जिसकी कल्पना भी उसने कभी नहीं की थी.. इस घटना से अमेरिका की अर्थ व्यवस्था को एक बड़ा झटका पहुंचा.. न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज 11 सितंबर 2001 से 17 सितंबर तक बंद रहे.. जब खुले तो बाजार बहुत गिरा हुआ था.. यह अमेरिकी बाजारों की सबसे बड़ी गिरावट थी..

9/11 आतंकी हमले को अंजाम देने वाला शख्स था अलकायदा का खूंखार आतंकी ओसामा बिन लादेन.. अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले से दुनिया भर में दहशत फैलाने वाले ओसामा बिन लादेन को इसकी प्रेरणा एजिप्ट एयरलाइन के पायलट से मिली थी, जिसने विमान को अटलांटिक महासागर में जानबूझकर गिरा दिया था.. 1999 में हुई इस दुर्घटना में 217 लोगों की जान गई थी.. जिसमें 100 अमेरिकी शामिल थे.. जैसे ही इस कहानी को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन ने सुना वैसे ही उसके मन में विचार आया कि क्यों न उसने इसे किसी इमारत पर गिरा दिया होता... 1999 में हुई इस दुर्घटना से प्रेरणा लेते हुए ओसामा ने 9/11 हमले का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया.. 9/11 आतंकी हमले में अमेरिकी एयरलाइन के चार विमानों को हाईजैक कर दो विमानों को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की इमारत से टकरा दिया गया था, एक विमान पेंटागन से टकराया था.. इस हमले में भारी जानमाल की क्षति हुई थी.... 11 सितंबर 2001 की सुबह न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में काम करने वाले लोगों को शायद इसका अंदाज़ा नहीं था कि इमारत पर एक बड़ा हमला होने जा रहा है... पहले अमरीकी एयरलाइंस का विमान ट्रेड सेंटर के उत्तरी टॉवर से टकराया... फिर सत्रह मिनट बाद दक्षिणी टॉवर से भी एक और विमान टकरा गया... एकाएक हुए इस हमले ने बिल्डिंग में काम कर रहे लोगों को संभलने तक का वक़्त नहीं दिया.... पहले टॉवर से विमान के टकराने के बाद दूसरे टॉवर में काम करने वालों में से कुछ ख़ुशनसीब थे, जो बच कर निकल गए.. अमरीका की शान इस ऊँची इमारत पर हुए हमले की निशानी दूर-दूर तक देखी जा सकती थी... वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टॉवर से विमानों से टकराने के बाद न्यूयॉर्क में अफ़रा-तफ़री का माहौल बन गया था... अभी लोग कुछ समझ पाते तभी एक विमान अमरीकी रक्षा मंत्रालय के मुख्यालय पेंटागन से जा टकराया.. पेंटागन पर हुए हमले ने अमरीका को झकझोर कर रख दिया... और चौथा विमान पेंसिलवेनिया के शांक्शविले में जाकर गिरा जिसका मलबा दूर-दूर तक फैल गया... न्यूायॉर्क के मैनहट्टन स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में ज्यादातर ऑफिस और कॉमर्शियल प्रयोग के लिए जगह दी गई थी.. साल 1970 की शुरुआत में इस बिल्डिंग का काम पूरा हुआ और वर्ष 1973 में इसे खोला गया.. 1,300 फीट की ऊंचाई वाली ये इमारतें अमेरिका की शान बन गई थीं.. उस समय इसे दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग माना जाता था.. वर्ल्डा ट्रेड सेंटर को स्टील से तैयार किया गया था.. इसकी डिजाइन ऐसी थी कि यह 200 मील प्रति घंटे से चलने वाली हवाओं को भी झेल सकता थी और अगर कोई बड़ी आग लग जाती तो भी इस बिल्डिंग को कुछ नहीं होता। लेकिन यह बिल्डिंग जेट फ्यूल की गर्मी को झेल नहीं पाई और राख हो गई

हमले को लकेर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली अमेरीकी वायुसेना चारों अपहृत विमानों में से किसी एक को भी रोक पाने में क्यों विफल रही? दूसरा बड़ा सवाल यह बनता है कि अमरीका के उप राष्ट्रपति डिक चेनी ने आदेश दिया था कि सेना इससे दूर रहे और विमानों को रोका न जाए... जबकी आधिकारिक रिपोर्ट एक असाधारण स्थिति थी, जिसमें कई विमानों का एक साथ अपहरण हुआ था और विमान में हिंसा भी हुई थी... विमानों की पहचान करने वाले ट्रांसपॉन्डर्स या तो बंद कर दिए गए थे या बदल दिए गए थे... जिस वक्त ट्वीन टावर पर हमला हुआ उस समय अमरीकी एयर डिफ़ेंस कमांड में एक नियमित सैन्य प्रशिक्षण अभ्यास भी चल रहा था... एयर ट्रैफ़िक कंट्रोलर कॉलिन स्कॉगिंस सेना के साथ नियमित रूप से संपर्क में थे और उन्हें प्रतिक्रिया में कोई कमी नज़र नहीं आई... लेकिन नागरिक एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल और सेना के बीच संपर्क में कमी थी और भ्रम की भी स्थिति थी... सैन्य उपकरण भी पुराने पड़ चुके थे और शीतयुद्ध के समय के ख़तरों से निपटने के लिए ख़ास तौर से समुद्र के ऊपर नज़र रखते थे... हमले को लेकर एक और गंभीर सवाल उठता है कि दोनों टॉवर्स इतनी जल्दी क्यों गिर गए? जबकि सिर्फ़ कुछ मंज़िलों पर ही एक-दो घंटे तक आग लगी रही... दोनों टॉवर्स को नियंत्रित तरीक़े से नष्ट किया गया... टॉवर्स के गिरने से पहले धमाकों की आवाज़ सुनी गई. इस तर्क को इससे जोड़ा गया कि क़रीब 10 सेकेंड में इमारत ध्वस्त हो गई. और इन टॉवर्स में बहुत देर तक आग भी नहीं लगी थी... टॉवर-2 में 56 मिनट तक आग लगी रही, तो टॉवर-1 में 102 मिनट तक... आधिकारिक रिपोर्ट- द नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नॉलॉजी ने गहन जाँच के बाद ये रिपोर्ट दी कि टॉवर्स से टकराने वाले विमानों ने आधार स्तंभों को तोड़ दिया और काफ़ी नुक़सान पहुँचाया.... रिपोर्ट के मुताबिक हमले से कुछ ही दिन पहले फ़ायर प्रूफ़िंग सिस्टम को भी हटा दिया गया था... एक अनुमान के मुताबिक विमानों से निकले क़रीब 10 हज़ार गैलन तेल इमारतों में फैल गए होंगे जिसके बाद बिल्डींग में आग लगती गई... एक हज़ार डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान पहुँच गया और इमारतों की कई मंज़िलें दबनी शुरू हो गई... चारों ओर लगाई गई लोहे की छड़ें झुकने लगी... इन गिरती मंज़िलों ने नीचे की मंज़िलों पर भारी दबाव बनाया और फिर ये इमारत इतना भार सहन नहीं कर पाई.... गिरती इमारत के बीच नीचे के मंज़िलों की खिड़कियों से भारी मात्रा में मलबे निकलने लगे.... हमले को लेकर एक और सवल उठता है कि कैसे एक शौकिया पायलट एक व्यावसायिक विमान को चालाकी से उड़ाकर दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना के मुख्यालय पर दुर्घटनाग्रस्त कर देगा, वो भी एक संभावित अपहरण की पहली रिपोर्ट के 78 मिनट बाद और बिना कोई निशान छोड़े... आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक हवाई जहाज़ का मलबा और ब्लैक बॉक्स मौक़े से बरामद हुआ... हालांकि शुरुआती वीडियो में ज़्यादा मलबा नहीं दिख रहा था. लेकिन बाद में आए वीडियो और तस्वीरों से विमान के मलबे और विमान के आकर टकराने के रास्ते का अंदाज़ा मिला... विमान के चालकदल के सदस्यों और यात्रियों के अवशेष भी पाए गए और डीएनए से इसकी पुष्टि भी हुई... हलांकि कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने भी विमान को पेंटागन से टकराते देखा था.

महाशक्ति अमेरिका पर हुए इस हमले से दहल उठा था हर देश.. दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी एक समय ऐसा था जब आंतक की आग से बच नहीं सका.. 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुआ आतंकी हमला अमेरिका के इतिहास का सबसे काला दिन था.. इस हमले से अमेरिका के साथ पूरा दुनिया दहल उठा और सभी को अपनी सुरक्षा का भय सताने लगा.. ये लाजमी भी था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति पर इस तरह का हमला होना विश्वशांति पर किसी तमाचे से कम नहीं था.. इस घटना के बाद अमेरिका की आंखों में जैसे खून उतर आया और उसने आतंक के खिलाफ बिगुल फूंक दिया.. तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को यह अंदाजा लगाने में अधिक समय नहीं लगा कि यह हरकत ओसामा बिन लादेन और उसके आतंकी संगठन अलकायदा की थी.. बुश ने अगले ही दिन मौके पर कहा कि दोषी लोगों को नहीं बख्शा जाएगा और सख्त कार्रवाई की जाएगी.. दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश माने जाने वाले अमेरिका पर 9 सितंबर 2001 को हुए आतंकी हमले ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन जैसी इमारतों के पल भर में ढह जाने से दुनिया को समझ आ गया था कि आतंकवाद का राक्षस किसी भी बड़ी ताकत को निगल सकता है और इससे निपटने के लिए एकजुट होने की जरूरत है... हमला करने वाले 19 आतंकियों में से 15 सऊदी अरब के थे और बाकी यूनाईटेड अरब अमीरात, इजिप्ट और लेबनान के रहने वाले थे. कुछ आतंकी तो यूरोप में रहे और बाद में अमेरिका में रहने में सफल हो गए. 9/11 एक ऐसी घटना है, जिसने दुनियाभर का आतंकवाद को देखने का नजरिया बदल दिया. पूरी दुनिया अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद हैरान थी. कई देशों ने अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर दोबारा बैठकर गौर किया. इस हमले ने यह अहसास करा दिया कि खतरा सिर्फ सीमावर्ती क्षेत्रों से आतंकवाद के घुसपैठ का नहीं है, बल्कि आसमान से भी इस तरह के खतरे कहर बरपा सकते हैं. अमेरिका की शान माने जाने वाला इस वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को एक झटके में जिस तरह कुछ आतंकवादियों ने मिलकर बर्बाद कर दिया. इस घटना को पूरी दुनिया में जिसने भी देखा वह हैरान रह गया.  ओसामा बिल लादेन और उसका संगठन अलकायदा बहुत पहले से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की योजना बना रहा था. इस तरह के हमले की योजना ओसामा बिन लादेन ने अपने दिमाग में बहुत पहले बना रखी थी. ओसामा इस प्लान को बड़ी गोपनीयता के साथ पूरा करना चाहता था. इस हमले को पूरा करने के लिए ऐसे लोगों की तलाश की गयी जो विदेशों में आसानी से प्रशिक्षण ले सकें... लादेन ने आतंकियों को इस कदर तैयार किया था कि उन्हें लगा कि शहीद होंगे और मरने के बाद उन्हें जनंत नसीब होगी. इसके लिए आतंकवादियों को हवाई जहाज चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. उनको जरूरी ट्रेनिंग मुहैया करायी गयी. आतंकियों ने प्लेन की हर बारीकियां को समझा और फिर हमले के लिए तैयार हुए... 16 साल बीत जाने के बाद... पूरी दुनिया को दहला देने वाले, 11 सितंबर 2001 के भयावह आतंकी घटना का डर आज भी करोड़ों लोगों के दिलो में कायम है... हलांकि हमले में ध्वस्त हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की जगह न सिर्फ नई खूबसूरत इमारत तैयार हो गई बल्कि इसे कारोबार के लिए खोल भी दिया गया।



लोगों को ये भरोसा नहीं हो रहा था कि कैसे सिर्फ़ चाकू और बॉक्स कटर्स से लैस 19 युवकों ने हवाई अड्डे की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए चार विमानों का अपहरण कर लिया और फिर 77 मिनट के अंतर पर अमरीकी शक्ति के तीन बड़े प्रतीकों को नष्ट कर दिया... ये एक चकित करने वाली सोच है.

11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर आतंकवादी संगठन अल-कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन ने दुनिया को दहला दिया था। जिस तरह विमानों की मदद से इस हमले को अंजाम दिया गया था, उससे कई सवाल खड़े हुए थे। लेकिन क्या आपको पता है कि ओसामा को इस तरह का हमला करने का आइडिया कहां से मिला था?

अमेरिका पर हुए इस हमले के पीछे अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का हाथ था.. अमेरिका पर हुए इस हमले का दर्द न केवल अमेरिका में रहने वालों लोगों की आंखों में दिखा बल्कि जिसने भी इस खतरनाक हमले की तस्वीरें देखी उसका दिल दहल गया।

इस हमले को 16 साल हो गए हैं. हमले के लिए जिम्मेदार आतंकी संगठन अल-कायदा के कमांडर ओसामा बिन लादेन को भी मार दिया गया है. लेकिन, आज भी इस आतंकी हमले की भयावहता कायम है.






हर सुबह की तरह अमेरिकियों के लिए भी 11 सितंबर 2001 की तरह आम सी सुबह थी. ऑफिस जाने का वक्त होने लगा था. तभी सुबह करीब 8.46 मिनट से अमेरिका के सबसे ऊचे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के एक टावर से धुएं का गुबार नजर आने लगा. जबतक वहां मौजूद लोग कुछ समझते इससे पहले ही 9:03 मीनट पर एक दूसरा विमान दूसरे टावर से टकराया. अब सबकी समझ में आने लगा था कि यह कोई बड़ा आतंकी हमला है. इन दोनों विमान के टकराने के बाद टावर में भंयकर आग लग गयी. टावर में फंसे लोग बाहर निकलने लगे. कई लोग अपनी जान के साथ दूसरों को बचाने की कोशिश करने लगे. इसी बीच टीवी में खबर आयी की 9:47 मिनट पर वाशिंगटन स्थित रक्षा विभाग के मुख्यालय पर भी हमले की कोशिश की गयी है... अमेरिकियों के लिए एक आम सी सुबह अब बेहद तकलीफ देह और हैरान करने वाली थी.  इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बलरुस्कोनी 9/11 के आतंकवादी हमले का मंजर देखने के बाद खुद को रोक नहीं पाए थे और बिलख पड़े थे।हादसे के बाद कैमरे में कैद की गई ये तस्वीरें आज भी आपकी आंखों में आंसू छोड़ जाएंगी। यह तस्वीर तब ली गई थी जब आतंकियों के दो विमान वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की जुड़वा इमारतों में टकराए ही थे।9/11 हमलों से पहले की कुछ घटनाओं पर एक नज़र डालें तो हमलों के महेज़ ६ हफ़्तों पहले 24 जुलाई 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर एक यहूदी रियल स्टेट बिजनेस मैन लैरी सिल्वरस्टीन को 3.2 बिलियन डॉलर में 99 साल की लीज पर दे दिया गया जिसमें आतंकवादी हमलों को कवर करने वाली 3.5 बिलयन डॉलर की बीमा पॉलिसी भी शामिल थी इसके अलावा ६, ७ और १० सितम्बर यानि हमले से महज़ चंद दिन पहले यूनाइटेड एयरलाइंस,बोइंग और अमरीकन एयरलाइंस के स्टॉक पर ५ से ११ गुना ज़यादा पुट आप्शन रखे गए साथ ही वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से बम सूंघने वाले कुत्तों को हटा लिया गया और सुरक्षा गाड्र्स की दो हफ्ते से चल रही बारह घंटे की शिफ्ट को भी खत्म कर दिया गया।हमलों के बाद 9/11 ट्रुथ मुवेमेंट की तरफ से पेश की गयी एक अलग रिपोर्ट में सन 2005 में मैडरिड के विंडसर टावर की आग का हवाला दिया गया जोकि 20 घंटों की आग के बाद भी अपनी जगह खड़ा रहा. इसके अलावा इटालियन सेंटर फॉर मटेरियल डेवलप्मेंट के पोलो मरिनी ने कहा की ट्विन टावर जिस तरह से ज़मिदोज़ हुए वो पूरी तरह से कंट्रोल्ड डेमोलिशन था और प्रत्यक्षदर्शियों ने भी बताया की टावर्स के गिरने से पहले उन्हें लगातार कई धमाकों की आवाज़े सुनाई दी थी जोकि इस बात का प्रमाण है की टावर में जहाज़ के अलावा कई तरह के धमाके हुए थे साथ ही मलबे में थेरामईट मेटल के अंश मिलने से भी यह साबित होता है की विमान की टक्कर के बाद लगी आग के तापमान को बढ़ाने के लिए दूसरे संसाधन इस्तेमाल किये गए थे.9 /11 हमलों के बारे में अमरीकी सरकार की सभी बातों को सही मान भी लिया जाये तो जो एक यक्ष प्रश्न सामने आता है वो यह की दुनिया की सबसे ज़यादा सुरक्षित ईमारत जिसकी निगरानी 86 क्लोज़ सर्किट कैमरे और कई एंटी एयर क्राफ्ट मिसाइल करती हैं उस तक भला एक सिविलियन प्लेन कैसे पहुँच सकता है और यदि यह मुमकिन हुआ भी तो क्यों आज तक इसका कोई भी विडियो एविडेंस प्रस्तुत नहीं किया गया. सन 2001 में हमलों के कुछ महीनों बाद अमरीकी सरकार ने सन 2002 में हमलों की जांच के लिए न्यू जर्सी के भूतपूर्व गवर्नर थामस कीन की अध्यक्षता में  9/11 कमीशन बनाया जिसने सन 2004 में हमलों के बारे में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा की इस हमले में शामिल सभी 19 आतंकवादी अल कायदा के थे और हमलों को रोकने में सीआईए और ऍफ़ बी आई जैसी जासूसी एजेंसियों का खुफिया तंत्र विफल रहा था. 

पूरी दुनिया को दहला देने वाले, 11 सितंबर 2001 के भयावह आतंकी हमले में ध्वस्त हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दो टावरों की जगह न सिर्फ एक नई खूबसूरत इमारत तैयार हो गई बल्कि इसे कारोबार के लिए खोल भी दिया गया। पहले दिन, प्रकाशन जगत की दिग्गज कंपनी कोन्डे नास्टके 175 कर्मचारियों ने यहां काम किया।13 साल पहले आतंकवादी हमले में ध्वस्त हुए दो टॉवरों की जगह तैयार की गई चमकीले रंग की यह गगनचुंबी इमारत वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटरइस बात का प्रतीक है कि अब यहां सब कुछ सामान्य है।पोर्ट अथॉरिटी ऑफ न्यू यॉर्क एंड न्यू जर्सी के कार्यकारी निदेशक पैट्रिक फोये ने कहा, न्यूयॉर्क सिटी की रौनक कायम है। अमेरिका की सबसे उंची इस इमारत का और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर स्थल का स्वामित्व पोर्ट अथॉरिटी ऑफ न्यूयॉर्क एंड न्यूजर्सी के पास ही है।कुल 1,776 फुट (541 मीटर) उंचे नए टावर से थोड़ी ही दूर दो स्मारक फव्वारे तैयार किए गए हैं। ध्वस्त हुए टॉवरों की जगह पर तैयार ये फव्वारे उन 2,700 से ज्यादा लोगों की याद में बनाए गए हैं जो 11 सितंबर 2001 को किए गए भयावह आतंकवादी हमले में मारे गए थे।कारोबार के लिए इस इमारत के खोले जाने के पहले दिन, प्रकाशन जगत की दिग्गज कंपनी कोन्डे नास्टके 175 कर्मचारियों ने यहां काम किया। समझा जाता है कि वोग, द न्यू यॉर्कर और वैनिटी फेयर जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन करने वाली यह कंपनी अगले साल के शुरू तक 3,000 और कर्मियों को यहां ले आएगी। कुल 104 मंजिला इस टावर में कोन्डे नास्टने 25 मंजिलें ले रखी हैं। निजी तौर पर कंपनी के कुछ कर्मियों ने माना कि वह इस इमारत में काम को लेकर कुछ परेशान हैं क्योंकि आतंकवादी फिर से इसे निशाना बना सकते हैं। फोये इसका प्रतिवाद करते हुए इसे अमेरिका में कार्यालयों की सर्वाधिक सुरक्षित इमारत बताते हैं।इस इमारत के वास्तुविद टी जे गोट्टाडाइनर ने कहा कि स्टील की मदद से कंक्रीट को मजबूती देते हुए तैयार की गई यह इमारत किसी भी तरह के आतंकवादी हमले से पूरी तरह सुरक्षित है और अपहृत विमानों के टकराने से ध्वस्त हुए मूल टॉवरों से कहीं ज्यादा मजबूत है।

कॉमेडी की दुनिया चार्ली चैपलिन


एक ऐसा कलाकार जिसने बिना एक शब्द बोले सारी दुनिया को हंसाया...जिसके पीछे पड़ी थीं...दो देशों की खुफिया एजेंसियां...जिस पर संदेह करते थे...अमेरिका और ब्रिटेन...और कराते थे....एफबीआई और एमआई5 से उसकी जासूसी...जिसने की थी हिटलर का मजाक बनाने की हिमाकत...जिसे दी थी महारानी एलिजाबेथ ने नाइट की उपाधि...गरिबी में बीता जिसका बचपन...जिसका बाप था शराबी और मां पागल...उसने एक आश्रम में काटा अपना बचपन...5 साल की उम्र में किया पहला शो... जिसका मरने के बाद भी हो गया अपहरण...और अपहरणकर्ताओं ने मांगी थी 6 लाख फ्रेंक्स की भारी रकम...वो नहीं करता था औरतों पर यकीन...जिसके थे 2000 से अधिक महिलाओं से संबंध...जिसका जीवन हमें आसुंओं औऱ दुख दर्द के बीच भी हंसना सिखाता है....अपनी कम लम्बाई और वजन के कारण वो नहीं हो पाया था सेना में शामिल...जो गांधी को मानता था अपना आदर्श...उसका दीवाना था आइंस्टिन...वो था मूक फिल्मों का बादशाह...जिसे कहते थे मुस्कान का बादशाह...एक बेहद ग़रीब और असहाय सा बच्चा...जिसके मन में कभी अपनी माँ के उदास चेहरे पर ख़ुशी की एक झलक देखना ही मकसद बन गया था...और वो बन बैठा आज विश्व के करोड़ो लोगों की मुस्कान का मालिक...जी हां हम बात कर रहे है...चार्ली चैंपियन की....पैरो में चमड़े के बड़े बड़े काले जूते....ढीली सी पतलून....एक काला कोट....सर पर टोपी और हाथ में छड़ी के साथ...चार्ली चैंपियन की ये आकृति हमारे दिलों में ज्यो की त्यों बरकरार हैं...चार्ली चैपलिन किसी एक देश की परिधि में आने वाली शख्सियत नहीं...चार्ली वो इंसान है जिसने बिना एक शब्द बोले ही...सारी दुनिया को हंसने पर मजबुर कर दिया...वर्तमान समय के फूहड़ हास्य में दर्शकों को हँसाने की इतनी ताकत नहीं है...जितनी चार्ली की मूक फिल्मो में आज भी मौजूद है....नई पीढ़ी भी चार्ली के अभिनय को एकबारगी देख लेने के बाद तुलनात्मक दृष्टि से दुसरो से बेहतर ही मानती है....हास्य के माध्यम से करोडों लोगों का चहेता बन जाना कोई साधारण बात नहीं है....लेकिन चार्ली चैपलिन ने यह कारनामा कर दिखाया... चार्ली विश्व सिनेमा के आज तक के सबसे बड़े मसखरे माने जाते है...हालांकि उनका शुरूआती जीवन बड़ी ही कठिनाइयों और अभावों में बिता था...लेकिन उन्होंने परदे पर सदैव हास्य भूमिका ही अदा की...और लोगो को भरपूर हंसाया और देखते ही देखते बन गए कॉमेडी को एक ऐसा बादशाह जिसका लोहा हॉलीवुड ही नहीं पूरा विश्व मानता है...चार्ली के जीवन पर एक शेर बहुत ही सटिक बैठता है...        
            वो जो कंठ से शीश तक दुःख से भरा होता है,
                  वही सबसे बड़ा मसखरा होता है

चार्ली चैपलिन कॉमेडी की दुनिया का एक ऐसा नाम...जिसे हर कोई जानता है...एक वक्त था कि...जब लोगों के चेहरे पर हंसी बिखेरने के लिए चार्ली चैपलिन का नाम ही काफी था...बिना कुछ बोले करोड़ों लोगों को चार्ली ने खुशियां बांटी...ये वो शख्स था जो रोते हुए आदमी को भी हंसने पर मजबूर कर देता था...लेकिन उनकी खुद की जिंदगी बेहद दुख और गरीबी में गुजरी...बहुत कम ही लोग जानते हैं...कि चार्ली के मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे हुए संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में...चार्ली गरीबी और बदहाली की भट्टी में पक कर ऐसा सोना बने...जिसकी चमक ने करोड़ों लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी...चार्ली चैप्लिन का जन्म एडोल्फ हिटलर के जन्म 4 दिन पहले 16 अप्रैल 1889 को लंदन शहर में हुआइनके पिता Charles Chaplin और मां Hannah Chaplin थी...उनके पिता एक गायक और अभिनेता थे माँ एक गायिका और अभिनेत्री थी...एक बार चार्ली की माँ स्टेज पर गाना गा रही थी...तभी उनकी आवाज बंद हो गई और...वो आगे गाना ना गा सकीं...वहां मौजुद ऑडियंस हंगामा करने लगी और...जूते चप्पल स्टेज पर फेंकने लगी...ऐसे में अपनी मां को बचाने के लिए लगभग 5 साल के चार्ली स्टेज पर आ गए और...उन्होंने अपनी भोली आवाज में मां के गाने की नकल करने लगे जो...ऑडियंस उसको काफी फनी लगी और...ऑडियंस ने उन्हें काफी सराहा...स्टेज पर सिक्को की बारिश होने लगी और...5 साल की उम्र में ये थी...चार्ली चैप्लिन की पहली कमाई...इसके कुछ दिन बाद चार्ली के माता-पिता तलाक लेकर अलग हो गए...चार्ली को अपने मां साथ एक अनाथ आश्रम में रहना पड़ा...क्योंकि उनकी मां के पास कोई रोजगार नहीं था...तो अनाथालय में उनकी मां एक मानसिक रोगी बनकर पागल हो गई...पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और...सौतेली मां ने चार्ली और उनके भाई पर अनेकों अत्याचार किए...चार्ली स्कूल तो जाते...लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता...वो एक एक्टर ही बनना चाहते थे...पैसे कमाने के लिए चार्ली स्टेज शो करते...और रोजमर्रा की जरुरतों के लिए बहुत से छोटे मोटे काम किया करते थे...उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य एक्टर बनना ही था...इसलिए चार्ली नियमित रुप से ब्लैकमोर थिएटर जाते थे...एक बार वो एक स्टेज शो कर रहे थे तभी...उन पर डायरेक्टर की नजर पड़ी उन्होंने चार्ली की अभूतपूर्व क्षमता को उसी वक्त पहचान लिया...उस डायरेक्टर के माध्यम से चार्ली की मुलाकात E हैमिल्टन से हुई...हेमिल्टन ने चार्ली को शरलॉक होम्स नाटक में रोल ऑफर किया था...चार्ली को पढ़ना नहीं आता था...तो इसलिए डायलॉगों को उन्होंने रटना शुरू किया...शरलौक होम्स सीरीज में एक्टिंग करके उन्होंने खूब शौहरत कमाई.....हालांकि इसके बाद भी कुछ समय तक चार्ली का जीवन गर्दिशों के दौर में गुजरा...

वैसे तो चार्ली की जिंदगी बड़ी ही प्रेणादायक थी...और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से औऱ भी ज्यादा रोमांचक...आइए आपको ऐसे ही एक वाक्ये से रूबरू कराते हैं...चार्ली की एक बीवी लिटा ग्रे ने बताया था कि चैपलिन ने 15 साल की उम्र में उन्हें सिड्यूस किया था...हालांकि चार्ली ने ग्रे से 16 साल की उम्र में शादी कर ली थी...हालांकि उनकी शादी एक विपदा थी...एक वेबसाइट ने यहां तक दावा किया कि चैपलिन के तलाक के पेपरों से पता चला कि उन्हें लिटा से शादी करनी पड़ी थी क्योंकि वो प्रेग्नेंट हो गई थीं....ऐसा ही एक और दिलचस्प और रोमांचक किस्सा है...चार्ली की जीन्दगी का... एक दिन चार्ली चैपलिन के एक दोस्त अलेक्जेन्डर कोरदा ने....ये गौर किया कि चार्ली चैपलिन और हिटलर के चेहरे में काफी समानताएं हैं...बाद में चार्ली को भी ये बात पता चला कि...उसके और हिटलर के जन्म में एक हफ्ते का ही अंतर था...दोनों ही घोर गरीबी का ताप झेलते शिखरों पर बैठे हैं...लेकिन इतनी समानता होने के बावजूद चार्ली ने हिटलर के अमानवीय क्रत्यो को...अपने हास्य नाटको में प्रदशित करने का मन बना लिया....चार्ली ने वर्ष 1937 में 'द ग्रेट डिक्टेटर' फिल्म तैयार कर डाली....जिसमे हूबहु हिटलर के चेहरे की नक़ल उतारते हुए...वह स्वयं एक यहूदी नाई भी बना और तोमनिया राज्य का क्रूर तानाशाह एडीनॉड हेंकल भी...इस फिल्म में जर्मनी में हिटलर द्वारा यहूदियो पर जिए जा रहे अत्याचारो की कहानी बयां की गयी....हालाँकि यह फिल्म वर्ष 1937 में तैयार हो चुकी थी...लेकिन हिटलर के यूरोप में मचाये हाहाकार के कारण वर्ष 1940 तक रिलीज़ नहीं हो सकी....यह फिल्म हिटलर और मुसोलिन के बढ़ते अत्याचारो पर सीधा कटाक्ष थी...स्पेन में तो यह फिल्म वर्ष 1975 तक फ्रांसिसको फ्रांसो की मृत्यु तक थिएटर पर भी नहीं आ सकी....फिल्म में चार्ली ने एक बड़े से ग्लोब के गिर्द नाचते हुए....विश्व शांति का सन्देश दिया था 'द ग्रेट डिक्टटर' का अंत यहूदी नाई के रूप में चार्ली के 6 मिनट लंबे भाषण से होता हैं...जिसमे वह विश्व के अत्याचारो से मुक्त होने के और...एक सुन्दर भविष्य होने की कामना करता है...चैप्लिन की प्रसिद्धि का आलम ये था कि...1981 में सोवियत यूनियन के खगोल विज्ञानी ल्यूडमिला जोर्गिएवना कराच्किना द्वारा खोजे गए...एक छोटे ग्रह 3623 चैप्लिन का नाम भी...चार्ली के नाम पर रखा गया है... चैप्लिन ने दर्जनों फीचर फिल्म और छोटे विषयों पर लिखा...और उनका निर्देशन और अभिनय किया था...जिनमें विशेष रूप से द इमिग्रंट (1917)... द गोल्ड रश (1925)...सिटी लाइट्स (1925).... मौडर्न टाइम्स (1936) और...द ग्रेट डिक्टेटर (1940) शामिल हैं....जो सभी राष्ट्रीय फिल्म रजिस्ट्री में शामिल होने के लिए चुनी गई हैं....


चार्ली 5 फुट 5 इंच की छोटी हाइट वाले एक दुबले पतले इंसान थे...जो लोगों को अपनी एक्टिंग से गरीबी और बेकारी में भी...खुश मिजाजी भरा जीवन जीने की प्रेरणा देते थे...इतिहास गवाह है कि उस दौर में जब पूरी दुनिया विश्वयुद्ध और आर्थिक मंदी की तबाही से गुजर रही थी...चारों तरफ तानाशाहों का आतंक था...हर तरफ मौत युद्ध और आतंक का खौफ पसरा था....उस दौर में चार्ली हास्य खुशी और राहत का उपहार लाए जब अमेरिका प्रथम युद्ध के बाद बिखर रहा था...ऐसे मैं उनसे लड़ने के लिए चार्ली ने कॉमेडी का सहारा लिया...चार्ली के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया....जब वो अपने इंटरव्यू में वामपंथियों का पक्ष लेते हुए दिखे...जिसके बाद मीडिया ने चार्ली पर रूसी एजेंट होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया...10 साल तक अमेरिकी सरकार और मीडिया चार्ली के लिए आफत बनी रही...अमेरिका को लगता था कि चार्ली कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित हैं...और वे समाज में लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करते हैं....यह बात अमेरिका को खटक रही थी....इसलिए उसने अपने देश की खुफिया एजेंसी एफबीआई को चार्ली चैपलिन की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारी जुटाने को कहा....दरअसल चार्ली चैपलिन ज्यादातर लंदन में ही रहा करते थे...इसलिए एफबीआई ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने का जिम्मा 'एमआई 5' को सौंप दिया...चार्ली की फिल्म लाइमलाइट 1952 में रिलीज हुई लेकिन अमेरिका में उस फिल्म को बैन कर दिया गया...चार्ली को अमेरिका से बहुत लगाव था...उन्होंने यहीं पर अपनी पहली शादी की थी...लेकिन अमेरिका की बेरुखी से वह अंदर तक टूट चुके थे...उनकी पत्नी और वह अमेरिका की नागरिकता वापस लौटा कर लंदन आ गए...लेकिन यहां पर सही घर नहीं मिलने की वजह से वो स्विट्जरलैंड जाकर बस गए...यहीं पर चार्ली की मुलाकात जवाहरलाल नेहरू और...उनकी बेटी इंदिरा से हुई चार्ली ने अपनी आत्मकथा में लिखा वह महात्मा गांधी के विचारधारा से प्रेरित हुए....एक बार चार्ली कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से मुलाकात के दौरान उन्होंने गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की...संयोग से उस समय गांधीजी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन आए हुए थे....जहां चार्ली की गांधी जी से मुलाकात बहुत ही रोमांचक ढंग से हुई...गांधी जी एक झुग्गियों वाले इलाकों में डेरा डाले हुए थे...जहां चार्ली चैप्लिन खुद जाकर उनसे मिलने पहुंच गए....जहां चार्ली ने भारत की आजादी पर हो रहे आंदोलनों पर अपना नैतिक समर्थन दिया...चार्ली को अपने अभिनय और कॉमेडी के लिए अनेक अवार्ड मिले....1940 में द ग्रेट डिटेक्टर के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर....1952 में उनकी फिल्म लाइमलाइट ने म्यूजिक के लिए ऑस्कर अवार्ड जीता...चार्ली की प्रसिद्धि इतनी है कि...1995 में ऑस्कर अवॉर्ड के दौरान द गार्जियन न्यूज़ पेपर ने एक सर्वे किया....जो यह जानना चाहता था कि दर्शकों का पसंदीदा एक्टर कौन है...सर्वे रिपोर्ट को देखते हुए किसी को आश्चर्य नहीं हुआ कि...चार्ली अधिकतर लोगों की पसंद है....आज भी वह लगभग सभी के दिलों में बसते हैं....उनकी एक्टिंग से आज की पीढ़ी भी सीख ले रही है....और आज भी कई एक्टर उनके एक्टिंग की नकल करते हैं....माइकल जैक्सन ने चार्ली चैप्लिन के लिए कहा था कि वह उनके जैसा बनना चाहते हैं....उनका जीवन एक ऐसा कहानी है जो दुख दर्द और आंसुओं के साए में भी खुशियों से हंसना सिखाती है....1977 में जब दुनिया 25 दिसंबर यानी क्रिसमस के दिन जीसस क्राइस्ट का जन्म दिन मना रही थी....उसी दिन कॉमेडी के महानायक चार्ली चैप्लिन इस दुनिया को अलविदा कह गए...चार्ली की मुफलिसी का दौर उनकी मौत के बाद भी नहीं थमा...चैपलिन की मौत के लगभग दो महीने बाद अचानक एक दिन उनकी कब्र खाली मिली....जांच में पता चला कि चैपलिन के कॉफिन को चुरा लिया गया है...और चोरों ने कॉफिन लौटाने के लिए 600,000 स्विस फ्रैंक्स की मांग रखी...चैपलिन की पत्नी ऊना चैपलिन ने यह पैसे देने से यह कहकर मना कर दिया कि चैपलिन मेरे दिल में...और स्वर्ग में हैं...आज भले ही चार्ली चैप्लिन इस दुनिया में ना हो पर उनका अभिनय आज भी उदास चेहरों पर मुस्कान ला रहा है....

पुर्नजन्म का रहस्य


हमारे जीवन के शुरूआत से ही हमारे मन में... हमारे सोच में.. हमारे बुद्धि में... हमारे कार्यों में.. यहां तक की हमारे पूरे अस्तित्व में यही भर दिया गया है.. कि जिन्दगी नहीं मिलेगी दुबारा.. यानी ही एक ही जीवन है इसलिए मौज मस्ती करो.. पैसा कमाना.. शक्तिशाली बनना और मौज मस्ती करना यही जीवन का लक्ष्य है.. इंसान इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है.. इंसान को खुशियां पाने के लिए गलत भी करना पड़े तो वो गलत नहीं है.. क्योंकि एक ही जीवन है और मौज मस्ती करना जीवन का लक्ष्य.. अगर मेरे पास पैसा है.. पावर है.. और मैं कानून औऱ समाज से बच निकल सकता हूं तो मैं कुछ भी करू मूझे रोकने और दंड देने वाला कोई नहीं है.. एक ही जीवन है और फिर सब खत्म.. आज पूरा समाज जिसमे हम सब सम्मलित है इसी दृष्टी से अपने जीवन को देखते हैं.. कि यही एक जीवन है.. और जो करना है इसी जीवन में करना है.. पर क्या ये सत्य है.. क्या वस्तव में एक ही जीवन है.. क्या इस जीवन के बाद और कुछ नहीं.. यदि एक गुनाहगार समाज और कानून से बच निकले तो क्या वह जीवन के अंत तक किसी के उतरदायी नहीं और उसके किये का सजा कभी नहीं मिलती.. जीवन के इस ज्ञान का एक और दृष्टी कोण है और वो है... पुनर्जन्म... पुनर्जन्म एक सिद्दान्त है जिसके अनुसार शरीर के मर जाने के बाद हम एक नया शरीर धारण करते हैं जिसे हम जन्म कहते हैं.. वेद कहते हैं आत्मा.. कुराण कहती है रूह और बाइबिल कहती है सोल... यहुदी, ईसाइ और इस्लाम तीनो धर्म पुनर्जन्म मे यकीन नहीं करते है, लेकिन इनके विपरीत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म पुनर्जन्म मे यकीन करते है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है.. आज से 30-40 साल पहले दुनिया के सिर्फ 10 प्रतिशत लोग विश्वास करते थे पुनर्जन्म होता है पर आज दुनिया के 60 प्रतिशत लोग विश्वास करने लगे हैं कि पुनर्जन्म होता है.. जैसे भूत, प्रेत, आत्मा, से जुडी घटनाएं हमेशा से एक विवाद का विषय रही है वैसे हि पुनर्जन्म से जुड़ी घटनाय और कहानियां भी हमेशा से विवाद का विषय रही है.. इन पर विश्वास और अविश्वास करने वाले, दोनो हि बड़ी संख्या मे है, जिनके पास अपने अपने तर्क है। पिछले जन्म में आप क्या थे.. क्या वाकई आपके पिछले जन्म के कर्म इस जन्म पर असर डालते हैं... महान लोग क्या वाकई दोबारा महान बनने के लिए ही जन्म लेते हैं. ये वो सवाल है जो आज भी अनसुलझे हैं.. लेकिन पुनर्जन्म की पहेलियो को सुलझाने का दावा करने वालों की माने तो पिछले जन्म की शख्सियत का अक्स इस जन्म में साफ दिखाई देता है... जो पैदा हुआ है, एक दिन उसका अंत भी होगा, यही कुदरत का कायदा है। विज्ञान भी नहीं मानता कि कोई मरने के बाद फिर पैदा हो सकता है। इंसान का पुर्नजन्म भी होता है। लेकिन समय समय पर अलग अलग जगहों पर ऐसी कहानी सुनने और देखने को मिलती है, जो विज्ञान की आंख से आंख मिलाकर कहती है कि वैज्ञानिकों के सारे तर्क बेकार हैं..

क्या पुनर्जन्म का कोई वैज्ञानिक सिद्धान्त है.. या फिर समाज का एक धार्मिक वर्ग ही इस पर विश्वास करता है... पुनर्जन्म को लेकर कुछ वैज्ञानिक तथ्य है जो आपको चौंका देंगे.. आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे.. विश्व भर में फैले ऐसे कई वैज्ञानिक हैं जिन्होंने पुनर्जन्म पर शोध किया है... और पुनर्जन्म पर अनेक किताबे भी लिखी गई है.. पुनर्जन्म के ऊपर अब तक हुए रिसर्च मे दो रिसर्च बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का। जिन्होंने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब रिइकार्नेशन एंड बायोलॉजी लीखी जो कि पुनर्जन्म से सम्बन्धित सबसे महत्तवपूर्ण किताब मानी जाती है.. दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है... डॉ. सतवंत पसरिया ने भी एक बुक श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया लिखी है। डॉ. सतवंत पसरिया के किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख है.. आधुनिक गैलीलियों कहे जाने वाले वैज्ञानिक डा. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है.. अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अऩुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स किताब में लिखा गया है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित सी हैं। डॉ. सतवंत पसरिया के मुताबिक इस जन्म के संस्कार सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन में प्रवेश होकर सूक्ष्म आत्मा से घुल मिल जाते हैं और मरने के बाद भी वे संस्कार अगले जन्म को स्थानांतरित हो जाते हैं.. अपने पूर्व जीवन की स्मृति सूक्ष्म रूप में प्रत्येक व्यक्ति के मनोमस्तिष्क में रहती ही है, भले ही वह उसके सामने कभी निंद्रावस्था में स्वप्न के माध्यम से प्रकट हो या जाग्रतावस्था में बैठे-बैठे उसके मन में किसी विचार अथवा किसी बिंब के माध्यम से प्रकट हो। पुनर्जन्म अर्थात मरने के बाद फिर से नया जन्म होता है या नहीं, इस बारे में विज्ञान अब तक किसी एक नतीजे पर पहुंच नहीं पाया है... पुनर्जन्म को लेकर धर्म दर्शन में भी एक मत नहीं है। भारतीय मूल के सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं, यहां तक कि आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को ले कर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म की संभावना को निश्चित मानते हैं.. फिर से जन्म लेने की तकनीक पर भले ही मतभेद हों, पर दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान रहे हैं। विज्ञान दूसरी तरह से मानता है कि शरीर या जीवन का अंत नहीं होता। उसका रूप बदलता रहता है क्योंकि पदार्थ और शक्ति का कभी नाश नहीं होता। विभिन्न तत्वों यानी की पंचतत्वों के संयोग से जो जीव बनते हैं, मृत्यु के समय वे नष्ट होते तो दिखाई देते हैं पर वास्तव में वे मिट नहीं जाते।

प्राचीन काल से ही जन्म-जन्मांतर के फेरे यानी पिछला जन्म के सूत्र मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है, तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो.. ज्योतिष शास्त्र के  मुताबिक मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, वह क्या पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश है? दर्शनशास्त्र भी यही कहता है कि पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं। हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाज या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे जब तक वह फूटता नहीं है। हो सकता है.. इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें। पुनर्जन्म की कई अवस्थाओं में व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म की कई बातें याद रहती हैं। कई साधकों ने इस बात का अनुभव किया है कि उन्हें ध्यानावस्था में भांति-भांति के दृश्य और भांति-भांति के विचार आकर घेर लेते हैं। कई बार व्यक्ति के मन में वर्तमान समय में चल रहा कोई द्वंद्व होता है, वहीं उनका एक सूत्र पूर्व जीवन में भी छुपा होता है। प्रायः इसी कारण कई साधकों को विचित्र अनुभव होते रहते हैं। किसी को स्वप्न में बार-बार उफनती नदी का दृश्य, किसी को हथकड़ी तो किसी को कोई स्थान विशेष दिखाई देता है। यह अकारण नहीं है। कभी किसी जन्म में किसी व्यक्ति ने कोई दुष्कर्म किया होगा जिसकी स्मृति में उसके साथ हथकड़ी चलती रहती है। कहीं किसी जन्म की आत्महत्या की स्मृति व्यक्ति के साथ कभी रस्सी के रूप में तो कभी नदी के रूप में चलती रहती है। पिछले जन्म के संस्मरण और यादों को व्यक्त करने वाले कई उदाहरण हमारे सामने पत्र पत्रिकाओं में, टेलिविजन चैनलों में और अखबरों में आए दिन देखने को मिलते हैं। अगर उदाहरण दें तो आम आदमी ही नहीं दुनिया के खास आदमी भी अपनी पिछले जन्म की यादों को लेकर हमारे बीच में विराजमान है। कुलमिलाकर पुनर्जन्म यानी पिछला और यह जीवन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इस मनुष्य लोक में प्राणी मात्र को लाखों योनियां जन्म-जन्मातर तक भोगनी पड़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि सर्प यानी नाग को अपने सात जन्मों की सम्पूर्ण स्मृति दिमाग में रहती है। ऊंट भी अपने तीन जन्मों का पूरा हाल जानते हैं। ऊंट और नाग योनि में ऐसे उदाहरण आते हैं, जब ऊंट अपने पुराने क्रूर स्वामी को जब भी इस जन्म में पहचान लेगा तो अपनी लातों से उस पर आक्रमण करने से बाज नहीं आएगा। सर्प दंश का सार यही है कि वह जब भी आपको आक्रमण करेगा तो यही सोच कर करेगा कि पिछले जन्मों में आपने भी उसे कहीं पर तंग किया होगा। अपने शत्रु से बदला लेने के लिए मगरमच्छ, उदबिलाव और भालू जैसे जानवर भी हैं जो अपने पर उपकार करने वाले पिछले जन्मों के पात्रों को भी नहीं भूलते हैं और हमला करने वाले शत्रुओं को भी कई जन्मों तक दिमाग में संजोये हुए रहते हैं..

मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि व्यक्ति जीवन कई कड़ियों में बंधा है और प्रत्येक कड़ी दूसरी कड़ी के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए एक जन्म के कार्यों का प्रभाव दूसरे जन्म के कार्यों पर भी पड़ता है। मनुष्य की आंतरिक खोज और वाह्य खोज अर्थात आधुनिक विज्ञान की खोज दोनों से यह तो सिद्ध हो चुका है कि मृत्यु के पश्चात भी मनुष्य का अस्तित्व होता है और यदि मृत्यु के बाद उसका अस्तित्व है, तो जन्म से पूर्व भी उसका अस्तित्व होना ही चाहिए। किसी बालक को पिछले जन्म की याद आने और जांच करने पर उन विवरणों को सही साबित होने की बात तो मामूली से प्रमाण हैं। इन विवरणों में कई गप्प और तुकबंदी जैसे भी साबित हो सकते हैं, पर जिन समाजों और संप्रदायों में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता उनमें भी उस तरह की घटनाएं हुई हैं और परखने के बाद सही साबित हुई है। हमारे पास कुछ ऐसे वृतांत हैं जो अपने नश्वर शरीर को त्याग कर अगले जन्म में भी अपने पिछले संस्कारों को लेकर विख्यात हुए हैं। तिब्बत में जन्मे बौद्ध गुरु दलाईलामा जन्म-जन्म से अपने संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। बौद्धावतार की श्रृंखला में आज भी उनकी पूजा तिब्बती नागरिक देवता के रूप में करते हैं। ऐसी मान्यता है कि उन्हें अपने पिछले जन्म और अगले जन्म का पूरा ही वृतान्त याद है। पिछले जन्म में वे कहां पैदा हुए थे और इस शरीर को त्यागने के बाद उनका अगला जन्म कहां होगा वह शरीर त्यागने से पहले ही अपने शिष्यों को बता जाते हैं। उनके शिष्य उनके देह त्याग के तत्काल बाद उनके अगले जन्म के रूप को खोजबीन कर पहचान लेते हैं और मठ लाकर उसे बाल्यकाल से ही श्रेष्ठ धर्म गुरु की पदवी मिल जाती है। उनका दर्शन और ज्ञान और भाषा का उच्चारण जन्म-जन्मान्तर से उनके साथ जुड़ा हुआ रहता है और यह भी कहते हैं कि वे जहां भी जाते हैं उस देश की ही भाषा में बात करते हैं। दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण है सत्य सांई बाबा का... सन् 1926 में आंध्र प्रदेश के एक गांव में पैदा हुए सत्य साईं बाबा इस युग के ऐसे चमत्कारी पुनर्जन्मधारी हैं, जो शिरडी के साईं बाबा के अवतार माने गये हैं। उनकी सिद्धियां और तत्व ज्ञान की बातें उस गरीब नवाज साईं बाबा की ही पुनर्जन्म की गाथा है जिसको उसके भक्तगण उनके साक्षात्कार के उपरान्त ही समझ पाते हैं। सत्य साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में खुद को शिरडी के साईं बाबा का पुनर्जन्म के रूप में स्थापित किया था। इस संदर्भ में भी एक कथा है। पहले इनका नाम सत्यनारायण राजू था और बचपन से ही इनमें कई चमत्कारी शक्तियां थीं। यह हवा में हाथ हिलाकर मिठाई एवं खाने-पीने की कई चीजें पैदा कर देते थे। इनकी बुद्घि प्रखर थी। संगीत, नृत्य, गीत, लेखन, इन सभी कलाओं में यह अव्वल थे। 14 वर्ष की उम्र में इन्हें एक दिन एक बिच्छू ने काट लिया। बिच्छू के जहर के कारण सत्यनारायण राजू कई घंटे तक बेहोश रहे। जब इन्हें होश आया उसके बाद से इनके व्यक्तित्व में काफी बदलाव आ गया। कहा जाता है कि सत्यनारायण राजू ने अपनेआप ही संस्कृत बोलना शुरू दिया जबकि संस्कृत भाषा का ज्ञान उन्हें नहीं था। इसी समय सत्यनारायण राजू ने खुद को साईं बाबा कहा और बताया कि वह पूर्व जन्म में शिरडी के साईं बाबा थे। धीरे-धीरे लोगों को इस घटना की जनकारी मिलती गई और सत्यनाराण राजू सत्य साईं के नाम से विख्यात हो गए। सत्य साईं की चमत्कारी शक्तियों से इनके भक्तों की संख्या बढ़ती चली गई और देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित और सम्मानित लोग भी इनके भक्त है।

जन्म और मृत्यु ये दो अटल सत्य माने गए हैं.. जिस जीव ने धरती पर जन्म लिया है उसे एक दिन अवश्य ही मृत्यु प्राप्त होती है। जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा पुन: जन्म लेती है, यह भी एक सत्य है। शास्त्रों के अनुसार जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनवरत चलता ही रहता है। आत्मा फिर से जन्म क्यों लेती हैं? यहां पुनर्जन्म का अर्थ है दुबारा जीवन प्राप्त करना। किसी भी जीवात्मा का पुन: यानि फिर से जन्म होता है। आत्मा शरीर धारण करके शिशु रूप में इस धरती पर जन्म प्राप्त करती है और जीवनभर कर्म करती है। अंत में मृत्यु होने पर उसे शरीर छोड़कर जाना पड़ता है। ऐसे में आत्मा को पुन: जन्म लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार आत्मा के पुनर्जन्म के संबंध में बताए गया है कि आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है.. यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म लेती है..


जो लोग पुनर्जन्म का अस्तित्व नही मानते, मनुष्य को एक चलता-फिरता पौधा भर मानते है, शरीर के साथ चेतना का उद्भव और मरण के साथ ही उसका अंत मानते हैं वे इन असमय उदय हुई प्रतिभाओं की विलक्षणताका कोई समाधान नहीं ढूँढ पायेंगे । वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी सभी अपने प्रगति क्रम से बढते हैं, उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विशेषताएँ समयानुसार उत्पन्न होती हैं । फिर मनुष्य के असमय ही इतना प्रतिभा सम्पन्न होने का और कोई कारण नहीं रह जाता कि उसने पूर्व जन्म में उन विशेषताओं का संचय किया हो और वे इस जन्म में जीव चेतना के साथ ही जुडी चली आई हों ।


पुनर्जन्म पर हमेशा से ही भ्रम रहा है। कई लोगों ने इसे माना है तो कई लोगो को आज भी इस पर संदेह है। विज्ञान की बात करें तो विज्ञानिकों में भी अभी तक इसपर भ्रम ही है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है।
आत्मा के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है। अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती। तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित किया जा सकता, क्योंकि सबके कर्म एक से नहीं होते। अतएव ऋग्वेदकालीन भारतीय चिंतन में आत्मा के अमरत्व, शरीरात्मक द्वैत तया कर्मसिद्धांत की उपर्युक्त प्रेरणा से यह निर्णय हुआ कि मनुष्य के मरण के बाद, कर्मों के शुभाशुभ के अनुसार, स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है।

आईए जानते है पुनर्जन्म से जुड़ी कुछ और रोचक जानकारी:-

1). ऐसा नहीं हैं कि हर मौत के बाद को इंसान इंसान के रुप में ही जन्म ले. वो अगले जन्म में क्या बनेगा ये उसके कर्मों पर भी निर्भर करता है, कई बार मनुष्य को पशु योनि भी मिलती हैं।

2). अधिकतर बार मनुष्य, मनुष्य के रूप में जन्म लेता है. लेकिन कई बार वो पशु रूप में भी जन्म लेता है जो कि उसके कर्मों पर निर्भर करता है।
  कई बार हम देखते हैं कि हम किसी का बुरा नहीं चाहते है, लेकिन फिर भी हमारे साथ बुरा होता है. इसकी वजह है पिछले जन्मों के कर्म जो कि मनुष्य को भोगना ही पड़ते हैं. ये बात अलग है कि अच्छे कर्मों की वजह से सुख भी मिलता हैं।

4). हिन्दू मानते हैं कि केवल यह शरीर ही नश्वर है जो कि मरने के बाद नष्ट हो जाता है. शायद इसीलिए मृत्यु क्रिया के समय सिर पर मारकर उसे तोड़ दिया जाता है जिससे कि व्यक्ति इस जन्म की सारी बातें भूल जाये और अगले जन्म में इस जन्म की बातें उसे याद ना रहे. उनका मानना है कि आत्मा बहुत ऊंचाई में आकाश में चली जाती है जो कि मनुष्य की पहुँच से बाहर है और यह नए शरीर में ही प्रवेश करती है।

5). कहा जाता है कि मुक्ति सिर्फ मानव जन्म में ही मिलती है. कहते है कि मानव जीवन अनमोल है, इसके लिए उसे 84 लाख योनियों से गुजरना पड़ता हैं, तब जाकर मनुष्य जीवन मिलता हैं।
कुछ ऋषियों के अनुसार पूर्वजन्म के समय हमारे दिमाग में हर चीज रहती है लेकिन बहुत कम बार ही ऐसा होता है कि इंसान को उसके पिछले जन्म की बातें याद रहें इसका मतलब है कि हमारे पूर्व जन्मों की बातें हमारे दिमाग में रिकॉर्ड रहती हैं लेकिन हम इन्हें कभी याद नहीं कर पाते हैं।

मांड्‌या में बाबा के सम्मान में 2003 में स्थापित किए गए सत्य साईं मंदिर के प्रमुख माधेगौडा का कहना है, ''1963 में ही हमें बता दिया गया था कि बाबा का अगला अवतार मांड्‌या में होगा. अब हम इंतजार नहीं कर सकते, मांड्‌या को वरदान मिला है.'' माधेगौडा ने सत्य साईं स्पीक्स, खंड3 में दर्ज ब्यौरे को उद्‌धृत किया है. इस ग्रंथ में साफ कहा गया है कि 16 जुलाई, 1963 को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा ने अपने भक्तों के बीच घोषणा की थी कि वे बंगलुरू और मैसूर (1972 में मैसूर को कर्नाटक नाम दे दिया गया) के बीच स्थित मैसूर राज्‍य में प्रेम साईं के रूप में पुनर्जन्म लेंगे.


बताया जाता है कि सत्य साईं बाबा ने 1970 में अपने श्रद्धालु जॉन हिस्लॉप को एक अंगूठी दी थी, जिसमें उनके अगले अवतार की अस्पष्ट छवि थी. वह छवि वक्त के साथ बदलती रही और फिर एक दाढ़ी वाले युवक के रूप में दिखने लगी. हिस्लॉप ने अपनी पुस्तक माई बाबा ऐंड आइ में लिखा है, ''उस छवि में सौम्य चेहरे, कंधे तक बाल, मूंछ दाढ़ी वाला व्यक्ति है और उसका आसन कमल है या वह उससे उभर रहा है.''

हिस्लॉप के अनुसार, बाबा ने उन्हें बताया था, ''अब वह जन्म लेने की प्रक्रिया में है, लिहाजा मैं अभी उसे ज्‍यादा नहीं दिखा सकता. उसे पहली बार दुनिया को दिखाया गया है.'' 1980 तक हिस्लॉप को विश्वास हो चला था कि चेहरा पूरी तरह आकार ले चुका है. 1995 मेंहिस्लॉप की मौत कैंसर से हो गई और उस अंगूठी का अभी तक कोई पता ठिकाना नहीं है, हालांकि पुट्टपर्थी आश्रम के लोग कई रेखाचित्र पेश कर चुके हैं.

बंगलुरू स्थित साईं मंदिर के प्रमुख साईं लोकेश मूर्ति का कहना है, ''1940 में पुट्टपर्थी ऐसा गांव था जहां न बिजली थी, न पानी. कोई अखबार नहीं था और टेलीविजन तो था ही नहीं. फिर भी बाबा को अपने देवत्व के बारे में लोगों को समझने में कोई समस्या नहीं हुई. आज, प्रेम साईं पहले से ही विकिपीडिया में जगह पा चुके हैं. मुझे पक्का यकीन है कि शीघ्र ही एक फेसबुक पेज भी बन जाएगा. और तिथि या साल के बारे में कोई भ्रम नहीं है.

देवतागण अपनी तरह से गणना करते हैं, जो जरूरी नहीं है कि हमारी गणना से मेल खाए.'' 64 वर्षीय मूर्ति ने इस साल के आखिर तक कावेरी के पास श्रीरंगपट्टन में डेरा डालने और वहीं अवतार का इंतजार करने का फैसला किया है. दूसरे लाखों लोगों की तरह इसमें कोई भी शामिल हो सकता है.