रविवार, 14 जनवरी 2018

मकर संक्रांति


'तमसो मा ज्योतिर्गमय' यानी की... हे सूर्य! हमें भी अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो... सूर्य पर आधारित मकर संक्रांति के त्योहार का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना गया है.. वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है.. विज्ञान के मुताबिक मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है.. हिंदू धर्म के मुताबिक महीने को दो पक्षों में बांटा गया है पहले पक्ष को कृष्ण पक्ष कहा जाता है तो दूसरे पक्ष को शुक्ल पक्ष.. इसी तरह साल को भी दो भागों में बांटा गया है.. पहला भाग को उत्तरायण कहते हैं और दूसरे को दक्षिणायन... यानी दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है... मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहा जाता है.. मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य के उत्तरायन होने पर मनाया जाता है... हर साल 14 जनवरी को मनाया जाने वाला यह त्योहार हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है... कभी-कभी यह एक दिन पहले या बाद में यानि 13 या 15 जनवरी को भी मनाया जाता है.. लेकिन ऐसा कम ही होता है.. सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है.. इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं.. इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है.. 14 जनवरी ऐसा दिन है, जब धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है.. ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है.. जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है... लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं.. मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्म के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय है.. मकर संक्रांति का संबंध सीधा पृथ्वी के भूगोल और सूर्य की स्थिति से है.. जब भी सूर्य मकर रेखा पर आता है, वह दिन 14 जनवरी ही होता है.. इसलिए इस दिन मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है.. ज्योतिष की दृष्ट‍ि से देखें तो इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के उत्तरायण की गति प्रारंभ होती है.. जनवरी के शुरुवात में पूरी दुनिया नए वर्ष का स्वागत करती है और इसके बाद साल का पहला त्यौहार मकर संक्रांति आता है.. इसलिए इस त्यौहार का महत्व और भी बढ़ जाता है.. मकर संक्रांति के दिन से बसंत ऋतु की शुरुवात मानी जाती है..  और दिन की लम्बाई बढ़नी और रात की लम्बाई छोटी होनी शुरू हो जाती है..

यह त्यौहार पूरे देश में फसलों के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.. खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती है.. पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है.. सही मायने से देखा जाए तो यह भारत में एक महापर्व की तरह मनाया जाता है, जहां एक ही मान्यता अपने अंदर विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराएं समेटे हुए है. उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा में इस समय नई फसलों का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है.. जबकी असम में बिहू के रूप में इस पर्व को हर्ष-उल्लास के साथ मनाया जाता है.. तमिलनाडु में पोंगल, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल में संक्रांति, उत्तर प्रदेश, बिहार में खिचड़ी पर्व के रूप के मनाया जाता है... हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है.. अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार इस पर्व के पकवान भी अलग-अलग होते हैं.. लेकिन दाल और चावल की खिचड़ी इस पर्व की प्रमुख पहचान होती है.. मकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से गुड़ और घी के साथ खिचड़ी खाने का महत्व है.. इसेक अलावा तिल और गुड़ का भी मकर संक्राति पर बेहद महत्व है.. घरों में तिल और गुड़ के लड्डू और तिल के अन्य व्यंजन भी बनाए जाते हैं.. वैसे भी हमारे समाज में हर त्योहार पर विशेष पकवान बनाने और खाने की परंपराएं भी प्रचलित है.. मकर संक्रांति के अवसर पर विशेष रूप से तिल व गुड़ के पकवान बनाने व खाने की परंपरा है.. कहीं पर तिल और गुड़ के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाकर तिल और गुड़ का सेवन किया जाता है.. तिल और गुड़ की गजक भी लोग खूब पसंद करते हैं.. मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का ही सेवन किया जाता है इसके पीछे भी वैज्ञानिक आधार है..  दरअसल सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है तब तिल और गुड़ के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं, क्‍योंकि तिल में तेल की प्रचुरता रहती है जिसका सेवन करने से हमारे शरीर में पर्याप्त मात्रा में तेल पहुंचता है और जो हमारे शरीर को गर्माहट देता है.. इसी प्रकार गुड़ की तासीर भी गर्म होती है.. यही कारण है कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल और गुड़ के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं.. सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगती है.. इसलिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते है.. इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी मिलते हैं.. इसलिए इस दिन खासतौर से तिल और गुड़ के लड्डू खाए जाते है.. इस दिन कुछ लोग सुबह उठकर तिल का उबटन लगाकर स्नान करते हैं..

ठंडी-ठंडी सुबह... हल्की-हल्की सूर्य की किरणे... सुहावना मौसम और मकर संक्रांति का त्यौहार.. खुशनुमा माहौल बना देता है.. पौराणिक कथाओं के मुताबिक कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर आते हैं.. ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नही है, लेकिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते है... इसलिए पुराणों में यह दिन पिता पुत्र के संबंधो में निकटता के रूप में मनाया जाता है.. शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है.. ऐसा कहा जाता है की इसी दिन भगवान विष्णु ने मधु कैटभ से युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी.. भगवान विष्णु ने मधु के कंधो पर मंदार पर्वत रख कर उसे दबा दिया था.. मां दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए इसी दिन धरती में कदम रखा था.. इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है.. यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी.. कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन में आया.. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर से मिली थीं.. इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है.. महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था.. कहा जाता है कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है.. जबकी दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है.. भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है ऐसे में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त हैं.. इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है.. मकर संक्रांति को स्नान और दान का पर्व भी कहा जाता है.. इस दिन तीर्थों एवं पवित्र नदियों में स्नान का बेहद महत्व है साथ ही तिल, गुड़, खिचड़ी, फल और राशि अनुसार दान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है.. ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन किए गए दान से सूर्य देवत प्रसन्न होते हैं... मकर संक्रांति का त्योहार उत्साह से भी जुड़ा हुआ है.. इस दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है.. इस दिन लोग बड़ी तैयारी के साथ पतंगबाजी करते हैं.. हिन्दी सिनेमा से लेकर टीवी सिरियलों में भी मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन दिखाए जाते रहे हैं.. जगह जगह पर सुबह सूर्य उदय के साथ ही पतंग उड़ाना शुरू हो जाता है... पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। ये समय सर्दी के मौसम का होता है और इन मौसम में सुबह के सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है।

हिन्‍दू धर्म के विभिन्‍न अन्‍य त्‍यौहारों की तरह ही मकर संक्रांति भी हिन्‍दू धर्म का प्रमुख त्‍यौहार है। मकर संक्रांति को मनाने के संदर्भ में कई तरह की बाते और तथ्‍य कहे जाते हैं.. उत्तर प्रदेश में यह अवसर दान पर्व के रूप में मनाया जाता है.. इलाहाबाद में इस पर्व को माघ मेले के नाम से जाना जाता है.. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि तक चलता है.. संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान को महत्वपूर्ण माना जाता है.. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता है.. मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते हैं.. लोगों में ऐसा विश्वास है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है.. उत्तर प्रदेश में यह पर्व खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन तिल और तिल से बनी चीजों के दान के साथ खिचड़ी का दान भी विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है.. लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ देते हैं और कहते हैं तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो.. मकर संक्रांति सूर्य उपासना का विशेष पर्व है. इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना शुरू होते हैं और इसके बाद से धरती के उत्तरी गोलार्ध में शीत ऋतु की ठंडक में कमी आनी शुरू होती है. मकर संक्रांति के दिन तिल दान का अपना एक अलग ही महत्व है.. इस दिन विशेष कर तिल दान किया जाता है. इस दिन लोग पानी में तिल डालकर स्नान करते हैं. साथ ही स्नान के बाद आग में तिल का तेल या तिल के पौधे के सूखे डंठल डालकर हाथ सेंकते हैं... मकर संक्रांति के दिन महाराष्ट्र में सुहागन महिलाएं पुण्यकाल में स्नान कर तुलसी की आराधना और पूजा करती हैं... इस दिन महिलाएं मिट्टी से बना छोटा घड़ा में तिल के लड्डू, सुपारी, अनाज, खिचड़ी और दक्षिणा रखकर दान का संकल्प लेती हैं... खासकर गुजरात में मकर संक्रांति के दिन पतंगबाजी और खूब मौज-मस्ती करते है लोग है. क्या छोटा क्या बड़ा सभी इस दिन पतंग उड़ाने में मशगूल रहते हैं... मकर संक्रांति के दिन पूरा परिवार घर की छत पर सामूहिक रूप से भोजन करते हैं.. यहां तिल और गुड़ के लड्डुओं के अंदर सिक्के रखकर दान करने की भी परंपरा है... मकर संक्रांति के दौरान सिंधी समाज में कन्याओं को दान दिया जाता है... इस दिन पूर्वजों के नाम पर बेटियों को आटे के लड्डू, तिल के लड्डू, चिक्की और मेवा दान स्वरूप दी जाती है. वहीं बंगाली समाज में भी विशेष रूप से संक्रांति का महापर्व मनाया जाता है. बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है.. यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है.. इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है.. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं.. वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहां लोगों की अपार भीड़ होती है..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें