सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए
एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। सालासर बालाजी के
दरबार में हर दिन हजारों भक्त इसलिए आते हैं कि इस दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ
वापस नहीं जाता है.. देश विदेश से भक्तगण श्री बालाजी के दर्शन के लिए सालासर आते
हैं। मंगलवार और शानिवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होती है। चैत्र और
आश्विन महीने की पूर्णिमा को यहां विशाल मेला लगता है जो कई दिनों तक चलता है। इस
अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में होती हैं। पैदल चलकर भी लाखों श्रद्धालु सालासर
आते हैं श्री बाला जी के दर्शन करने। राजस्थान के अलावा पंजाब हरियाणा दिल्ली सहित
पूरे देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मेले के दौरान 6 से
7
लाख भक्त सालासर बालाजी पहुंच कर श्रीराम भक्त हनुमान के दर्शन करते हैं.. हनुमान
सेवा समिति.. मंदिर
और मेलों के प्रबंधन का काम करती है.. यहां रहने के लिए कई धर्मशालाएं और खाने
पीने के लिए कई रेस्टूरेंट भी मौजूद हैं.. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई
धर्मशालाएं बनी हुई हैं, जहां रुकने की निशुल्क व्यवस्था है। आवागमन के
साधन भी यहां पर्याप्त मात्रा में हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन सुजानगढ़ यहां से 24
किलोमीटर दूर है, जबकि सीकर 57 किलोमीटर है। सालासर बालाजी के
नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की स्थापना मोहनदास महाराज ने की थी। ऐसी मान्यता है कि
मोहनदासजी भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी आसोटा में मूर्ति रूप में प्रकट हुए और
अपने भक्त की मनोकामना पूर्ण की। तत्पश्चात मूर्ति की सालासर में प्राण प्रतिष्ठा
हुई। सालालर बालाजी का प्राकट्य दिवस श्रावण शुक्ल नवमी को यहां बड़े धूमधाम से
मनाया जाता है। साथ ही पितृपक्ष में मोहनदासजी का श्राद्ध दिवस त्रयोदशी को मनाया
जाता है। इन दोनों ही उत्सवों में भारी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। हनुमान
जयंती और शरद पूर्णिमा पर भी यहां बड़े पैमाने पर उत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिर
के संचालन का जिम्मा मोहनदास जी की बहन कान्ही बाई के वंशज संभाल रहे हैं। फिलहाल
यहां शासन का कोई हस्तक्षेप नहीं है। हनुमान सेवा समिति मंदिर की व्यवस्था के साथ
ही सामाजिक कार्य भी कर रही है। इलाके में पेयजल व्यवस्था, चिकित्सा
शिविरों का आयोजन, यात्रियों के लिए आवास व्यवस्था का इंतजाम भी
समिति करती है। मंदिर परिसर में ही मोहनदास जी की समाधि है। बहन कान्हीबाई के
पुत्र और अपने शिष्य उदयराम को मंदिर की जिम्मेदारी सौंपकर वैशाख शुक्ल त्रयोदशी
को मोहनदास जी ने जीवित समाधि ली थी। यहां वह बैलगाड़ी भी है, जिससे
हनुमानजी की मूर्ति आसोटा से लाई गई थी। शेखावाटी की सुजानगढ़ में तहसील में स्थित
यह मंदिर हनुमान भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी
मनोकामना लेकर आते हैं। यहां मनोकामना की पूर्ति के लिए नारियल बांधे जाते हैं, जिनकी
संख्या लाखों में बताई जाती है
दिव्य धर्म की इस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे
हैं अंजनी नंदन हनुमानजी के मंदिर सालासर धाम। मरुधरा राजस्थान के चूरू जिले में
स्थित है राम के प्रिय भक्त और महाबली हनुमान का सिद्ध मंदिर। हनुमान जी पूरे भारतवर्ष
में पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं.. बिना भेदभाव के सभी तरह के भक्त हनुमान
जी के पूजा के अधिकारी हैं.. हलांकि देश के प्रत्येक इलाके में हनुमान जी की पूजा
की अलग अलग परम्परा है... अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की
संज्ञा दी गई है.. राजस्थान में बालाजी के नाम से विख्यात हनुमान जी के अनेक
प्रसिद्ध मन्दिर हैं जिनमें सालासर के चमत्कारी श्री बालाजी मन्दिर का विशेष महत्व
है। सालासर स्थित इस मन्दिर में श्री बालाजी की भव्य प्रतिमा सोने के सिंहासन पर
विराजमान है। मंदिर के उपर वाले भाग में श्री राम दरबार है और निचले भाग में श्री
राम चरणों में दाढ़ी, मूंछ से सुशोभित हनुमान जी श्री बालाजी के रूप में विराजमान
हैं.. मुख्य प्रतिमा शालिग्राम पत्थर की है जिसे गेरूए रंग और सोने से सजाया गया
है.. बालाजी का यह रूप अद्भुत आकर्षक और प्रभावशाली है। प्रतिमा के चारों ओर सोने
से सजावट की गई हैं और सोने का रत्न जड़ित भव्य मुकुट चढ़ाया गया है। मंदिर में
स्थापित बालाजी के प्रतिमा पर लगभग 5 किलोग्राम सोने से निर्मित स्वर्ण छत्र भी
सुशोभित है.. कहा जाता है कि शुरू से ही मन्दिर के प्रांगण में अखण्ड दीप
प्रज्वलित हैं। मन्दिर परिसर में एक कुंआ भी बना हुआ है.. जिसके बारे में बताया
जाता है कि कुंए का जल आरोग्यवर्धक है। श्रद्धालु यहां स्नान कर अनेक रोगों से
छुटकारा पाते हैं। जब मंदिर का स्थापना हुआ था उन्ही दिनों का जांटी का वृक्ष आज
भी मंदिर परिसर में मौजूद हैं.. इस जांटी वृक्ष पर भक्तजन नारियल एवं ध्वजा चढ़ाते
हैं और लाल धागे बांधकर मन्नत मांगते हैं। मन्दिर के ऊपर स्थापित भारतीय संस्कृति
की झलक देने वाली लाल ध्वजाएं अनवरत रूप से लहराती रहती हैं। श्री बालाजी की दैनिक
परम्परागत भोग और पूजा अर्चना भक्त श्री मोहनदास जी के वशंजों द्वारा की जाती है।
बालाजी को चूरमा, लड्डू, पेड़े, मिश्री, मेवा के अलावा राजस्थान के परम्परागत रोट
और खिचड़ा का भोग लगाया जाता हैं। मंदिर परिसर में श्री बालाजी महाराज की कथा पाठ
के अलावा कीर्तन अनवरत चलते रहते हैं। श्री बालाजी महाराज की कृपा से भक्तजनों की
मनोकामनाओं की पूर्ति के बाद भक्त हनुमान जी को प्रिय लड्डू, नारियल और छत्र प्रसाद
के तौर पर अर्पित करते हैं.. मनोकामना पूर्ण होने पर कुछ भक्त भण्डारे का भी आयोजन
करते हैं और कछ भक्त सवामणी का आयोजन करते हैं.. सवामणी श्री बालाजी महाराज को
अर्पित की जाने वाले सवामण लगभग 50 किलोग्राम भोग सामग्री होती है। यह भोग
सामग्री एक ही प्रकार की होती है जो लड्डू पेड़ा बर्फी और चूरमा होते हैं... भोग
के बाद सवामणी को भक्तों में वितरण करना होता है।
संकट मोचक पवन पुत्र हुनुमान.. जिनकी भक्ती..
चरित्र, शौर्य और पराक्रम के बखान से शास्त्र भरे पड़े
हैं.. वही राम भक्त हनुमान अपने परम भक्त बाबा मोहनदास के भक्ती से प्रसन्न होकर
विराजे हैं राजस्थान के सलासर में और कहलाते हैं सालासर के बाला जी.. राजस्थान में
जयपुर से लगभग 175 किलोमीटर दूर है सालासर.. चुरू जिले का वो पावन धाम जहां लाखों
भक्तों के आस्था का समागम होता है.. मान्यता है कि पवन पुत्र हनुमान ने स्वयं इस
पावन धाम में प्रतिष्ठित होने की इच्छा जताई थी.. लगभग ढाई सौ साल पहले केसरी नंदन
के परम भक्त बाबा मोहनदास ने यहां लाकर प्रतिष्ठित किया था अपने बाला जी को.. सालासर
राजस्थान प्रान्त के चुरू जिले की सुजानगढ़ तहसील में पड़ता है.. सुजानगढ़ से लगभग
25
किलोमीटर दूर मरूस्थल कटीलों के बीच सालासर स्थित है... सालासर के कण-कण में श्री
बालाजी विद्यमान हैं.. श्री बालाजी मन्दिर सालासर राजस्थानी शैली में निर्मित एक
भव्य एवं विशाल मन्दिर है.. सालासर में स्थापित सिद्धपीठ बालाजी की प्रतिमा आसोटा
गांव के एक खेत में प्रकट हुई थी.. बालाजी के परम भक्त मोहनदास जी को हल चलाते समय
इस प्रतिमा के प्रथम दर्शन हुए थे। तत्पश्चात भक्त श्री मोहनदास द्वाराए श्री
बालाजी महाराज की दिव्य प्रेरणा से आज से लगभग 253 साल पहले 1754 में सावन महीने के शुक्लपक्ष नवमी.. दिन शानिवार
को श्री बालाजी के श्रीविग्रह को प्राण प्रतिष्ठा दिया गया... भक्त मोहनदास जी और
उनकी बहन कान्ही बाई ने भक्ति भाव से बालाजी की सेवा की और बालाजी के साक्षात्
दर्शन प्राप्त किए.. कहते हैं कि श्री बालाजी एवं मोहनदास जी आपस में वार्तालाप
करते थे। एक दिन भक्त शिरोमणि मोहनदास जी भगवत् भजन में इतने लीन हो गए कि
उन्होंने घी और सिंदूर से मूर्ति को पूर्णत: श्रृंगारित कर दिया और उन्हें कुछ
ज्ञात भी नहीं हुआ। उस समय बालाजी का पूर्व दर्शित रूप जिसमें वह श्रीराम और
लक्ष्मण को कंधे पर धारण किए थे, अदृश्य हो गया। उसके स्थान पर दाढी-मूंछें, मस्तक
पर तिलक, विकट भौंहें, सुंदर आंखें, पर्वत
पर गदा धारण किए अद्भुत रूप के दर्शन होने लगे। देश के समस्त बालाजी के मन्दिरों
में सालासर बालाजी के अलावा किसी ओर मन्दिर में बालाजी के दाढ़ी-मूंछ नहीं है।
इसका कारण यह बताया जाता है कि मोहनदास जी ने बालाजी से कहा था कि आप उसी स्वरूप
में विराजमान हों, जिस स्वरूप में आपने मुझे सर्वप्रथम दर्शन दिये
थे। मोहनदास जी ने बालाजी का प्रथम साक्षात्कार दाढ़ी-मूंछ के रूप में ही किया था।
श्री बालाजी मन्दिर से लगभग 1
किलोमीटर की दूरी पर श्री अंजनी माता का मन्दिर है। अंजनी माता का यह मंदिर भव्य
एवं प्रतिमा सोने से बनी हुई हैं। जो भी भक्तजन सालासर बालाजी के दर्शन के लिए आते
है वो सबसे पहले श्री अंजनी माता मन्दिर में पूजा अर्चना करते हैं और प्रसाद
चढ़ाते हैं। और फिर श्री बालाजी मन्दिर की तरफ प्रस्थान करते हैं.. कुछ भक्त मन्नत
के मुताबिक पेट के बल चलते हुए मन्दिर तक पहुंचते हैं और पैदल चलकर आने वाले
यात्री हाथों में लाल घ्वजा लेकर चलते हैं। सालासर स्थित अंजनी माता का यह
प्रसिद्ध मंदिर केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं का प्रमुख
तीर्थस्थल है। श्री अंजनी माता का मन्दिर सालासर धाम से लक्षमनगढ़ जाने वाली रोड
पर लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है.. इस मंदिर में माँ की जो मूर्ति स्थापित
है उसमें हनुमानजी अपने बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। अपने चतुर्भुजी
आदमकद रूप में अंजनी माता शंख और सुहाग-कलश धारण किए हैं यहां एक साथ ही बालाजी
हनुमान और उनकी माँ अंजनी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते है कि जो सालासर आकर इन
दोनों की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करता है। उसकी प्रत्येक मनोकामना पूरी होती है..
अंजनी माता के इस मंदिर को साल 1963 में सीकर नरेश ने पन्डित जी के पर मन्दिर का
जीर्णोद्धार कराया। अंजनी माता मंदिर में सुहागन स्त्रियां यहां आकर अपने वैवाहिक
और पारिवारिक जीवन की सफलता के लिए नारियल और सुहाग चिन्ह चढ़ाती हैं। अंजनी माते
के इस मंदिर में दूर-दूर से लोग विवाह का पहला निमंत्रण पत्र लेकर आते हैं.. कहा
जाता है अंजना माता की कृपा से न केवल विवाह सफल होता है बल्कि नवविवाहित को सभी
प्रकार का सुख भी मिलता है। महीलाओं और बच्चों के कष्ट निवारण में माता अंजनी को
विशेष रूचि है। माई के नाम की तांती बांध देने मात्र से रोगी अपने आप को पूर्ण
सुरक्षित समझन लेता है। अंजना माई को निरन्तर याद रखने से महिलाओं का सुहाग
सुरक्षित रहता है, उनके पति,
पुत्र एवं भाई लम्बी आयु पाते हैं तथा
पूरा परिवार सुखी एवं खुशहाल रहता है। मां अन्नपूर्णा है, स्मरण
रखने से कभी भण्डार खाली नहीं होने देती है। माई अक्षय निधि की दाता है। स्त्री
जाति होने से मां को भी वस्त्राभुषण प्रिय है। मंगल, शनि व उजियाला चौदस माई के विशेष दिन
है। इन दिनों में की गई प्रार्थना माई तुरन्त सुनती है
भारत के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक तिरुपति सलासर मंदिर की बड़ी
मान्यता है....इस मंदिर से जुड़ी
आस्था, प्यार और चमत्कार
की वजह से लाखों लोगों की भीड़ यहां खिची चली आती है...हनुमान जी,एक ऐसे भगवान है ....जो अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते है...250 साल पहले बालाजी के परम
भक्त मोहन दास ने यहां बालाजी की स्थापना की थी..
दिव्य धर्म की इस कड़ी में हम आपको लेकर चल रहे
हैं अंजनी नंदन हनुमानजी के मंदिर सालासर धाम। मरुधरा राजस्थान के चूरू जिले में
स्थित है राम के प्रिय भक्त और महाबली हनुमान का सिद्ध मंदिर। राजस्थान में बालाजी
के नाम से विख्यात हनुमान जी के अनेक प्रसिद्ध मन्दिर हैं जिनमें सालासर के
चमत्कारी श्री बालाजी मन्दिर का विशेष महत्व है।
देश विदेश से भक्तगण श्री बालाजी के दर्शन के
लिए सालासर आते हैं... सालासर बालाजी के दरबार में हर दिन
हजारों भक्त इसलिए आते हैं कि इस दरबार से कोई भी भक्त खाली हाथ वापस नहीं जाता
है.. मंगलवार और शानिवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होती है।
हनुमान जी पूरे भारतवर्ष में पूजे जाते हैं और
जन-जन के आराध्य देव हैं.. बिना भेदभाव के सभी तरह के भक्त हनुमान जी के पूजा के अधिकारी
हैं.. यहां रूकेंगे एक ब्रेक के लिए कहीं मत जाइएगा.. तुरंत हाजिर होते हैं
राजस्थान के चुरू जिले का सालासर बालाजी का धाम, जहां स्थापित होने की इच्छा स्वयं बजरंगबली ने
प्रकट की थी. तब करीब ढाई सौ साल पहले बालाजी के परम भक्त बाबा मोहनदास ने यहां
बालाजी की स्थापना की. यहां बाबा मोहनदास के भक्त की समाधि के दर्शन करके ही भक्त
बालाजी के दर्शनों के लिए आगे बढ़ते हैं.
कहते हैं जो भी भक्तजन सालासर बालाजी के दर्शन
के लिए आते है वो सबसे पहले श्री अंजनी माता मन्दिर में पूजा अर्चना कर प्रसाद
चढ़ाते हैं। और फिर श्री बालाजी मन्दिर की तरफ प्रस्थान करते हैं.. कहा जाता है
अंजना माता की कृपा से न केवल विवाह सफल होता है बल्कि नवविवाहित को सभी प्रकार का
सुख भी मिलता है। अंजनी माते के मंदिर में दूर-दूर से लोग विवाह का पहला निमंत्रण
पत्र भी लेकर आते हैं..
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