अंतरिक्ष सदियों से इंसान की जिज्ञासा का केंद्र रहा है...और इस
अंतहीन अंतरिक्ष में छिपे रहस्य और जानकारियां हमेशा से हम इंसानों को चौंकाती
रहती हैं...जिसके लिए वैज्ञानिक लगातार शोध करने में लगे हुए हैं...और इन शोधों का
मकसद कहीं न कहीं आमजन के स्वार्थ से भी जुड़ा हुआ है...अठारहवीं शताब्दी में शुरू
हुई...औद्योगिक क्रांति ने जहां पूरे विश्व को...उद्योग और प्रौद्योगिकी के
क्षेत्र में तो शीर्ष पर तो पहुंचा दिया...लेकिन उसके साथ ही जलवायु परिवर्तन और
ग्लोबल वॉर्मिंग का एक ऐसा...दंश भी दिया जो अब धीरे धीरे हमारी अपनी ही पृथ्वी को
खाता हुआ नजर आ रहा है...और अगर अभी इनमे सुधार न किया गया तो...जलवायु परिवर्तन
और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दुनिया ऐसे मोड़ पर पहुंच जाएगी... जहां से पीछे लौटना
या...कोई सुधार करना मुमकिन नहीं हो पाएगा...जिसका सबसे बड़ा कारण है...कार्बन गैसों
का उत्सर्जन...वैज्ञानिकों का कहना है..कि जल्द ही दुनिया ऐसे पड़ाव पर पहुंच जाएगी...जब जलवायु
परिवर्तन के खतरनाक और विनाशक नतीजों को रोक पाना संभव नहीं रह
जाएगा...यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन ने भी अपने शोध में पाया कि...कार्बन गैसों के
उत्सर्जन को घटाने की चाहे कितनी भी कोशिश कर ली जाए... लेकिन 90
प्रतिशत संभावना यही है कि...इस सदी के अंत तक दुनिया का तापमान 2
डिग्री सेल्सियस तक बढ़कर 4.9 सेल्सियस हो जाएगा...धरती पर कारखानों के लगने
और औद्योगिक क्रांति होने से पहले के तापमान के मुकाबले यह 2
डिग्री सेल्सियस अधिक होगा...वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके बाद से ही धरती को
जलवायु परिवर्तन के बेहद घातक परिणामों से बचा पाना असंभव हो जाएगा...दुनिया के
अलग-अलग हिस्सों में सूखा आएगा.... तापमान में बहुत ज्यादा तब्दीलियां नजर आएंगी
और समुद्र का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगा....वैज्ञानिकों का कहना है कि
धरती के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की यह वृद्धि वह मोड़
होगी.... जिसके बाद फिर कभी पीछे लौटना मुमकिन नहीं हो सकेगा...इसके बाद धरती के
हालातों को सुधारने की कोई भी कोशिश संभव नहीं रह जाएगी...और फिर बढ़ती जनसंख्या
और जलवायु परिवर्तन से इस धरती पर रहना मुशकिल हो जाएगा...अगर ऐसा होता है तो
पृथ्वा पर रहने वाले सभी इंसानों और जीव जन्तुओं को एक वैकल्पिक आवास की जरूरत
होगी...और हमारे वैज्ञानिक लगातार इस खोज में लगे हुए हैं...कि क्या हमारी पृथ्वी
के अलावा भी ऐसी कोई जगह मौजुद है...जहां मानव जीवन संभव हो सकता है...और उस समय
जब हमारी पृथ्वी का अंत निकट हो...मानव सभ्यता को वहां फिर से बसाया जा सके...
मानव सभ्यता को एक नया घर देने और इस ब्रहमांड
में जीवन की खोज करते हुए...ब्रह्मांड के रहस्यों की खोज कर रहे...वैज्ञानिकों ने
ऐसे 20 नए संभावित ग्रहों की खोज की है...जहां जीवन
जीवन की संभावना हो सकती है...नासा के केपलर टेलिस्कोप से मिले डेटा से पता चला है
कि…सोलर
सिस्टम से बाहर मौजूद इन ग्रहों पर ऐलियन मौजूद हो सकते हैं… वैज्ञानिक
इस खोज से काफी उत्साहित हैं….इस लिस्ट में कई ग्रह ऐसे हैं….जो
हमारे सूरज की तरह ही एक स्टार की परिक्रमा करते हैं....एक परिक्रमा पूरी करने में
कुछ ग्रह तो काफी लंबा समय लेते हैं...लेकिन वहीं कुछ ग्रह पृथ्वी के 395
दिन के बराबर समय में एक भी परिक्रमा पूरी
करते हैं...जबकि कुछ ग्रहों को एक परिक्रमा करने में सबसे कम समय पृथ्वी के 18
दिन के बराबर लगता है...नासा के K2 मिशन से जुड़े जेफ कॉगलिन ने कहा कि...लिस्ट
में शामिल एक साल में 395 दिन वाले एक्सोप्लेनेट पर जीवन की उम्मीद सबसे
ज्यादा है...K2, नासा के ग्रहों की खोज से जुड़े केपलर मिशन का
दूसरा फेज है...KOI-7923.01 ग्रह पृथ्वी के 97%
आकार का ही है...अपने स्टार सूरज जैसा स्टार से दूर होने के कारण यह ग्रह पृथ्वी
से ठंडा है....और पृथ्वी से इतनी समानताओं के कारण ही वैज्ञानिक इस ग्रह की ओर
बड़ी आशा से देख रहे हैं....गौर करने वाली बात यह है कि इसका स्टार भी हमारे सूरज
से थोड़ा ठंडा है...ऐसे में माना यह जा रहा है कि यह पृथ्वी पर टुंड्रा क्षेत्र की
तरह हो सकता है...हालांकि यह इतना गर्म है कि वहां पानी की मौजूदगी संभावना बहुत
अधिक है....नासा की टीम 70 से 80 फीसदी आश्वस्त है कि ये ठोस ग्रह हैं...'न्यू
साइंटिस्ट' की रिपोर्ट के मुताबिक अभी स्पष्ट रूप से
वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते हैं...क्योंकि इसके लिए और ज्यादा डेटा
और निगरानी की जरूरत है...लेकिन वैज्ञानिक अभी भी इन ग्रहों को पृथ्वी की सिस्टर
प्लेनेट ही मान रहे हैं...पानी की मौजूदगी के कारण इन ग्रहों में जीवन मौजूद होने
की मजबूत संभावना नजर आ रही है... इन नए ग्रहों की खोज के साथ ही हमारे सौर मंडल
से बाहर स्थित संभावित ग्रहों की कुल संख्या 4,000 तक पहुंच गई है....इन सभी को केपलर अंतरिक्ष
दूरबीन की मदद से खोजा गया है...केपलर की मदद से अब तक ऐसे 4,034
खगोलीय पिंडों की तलाश की जा चुकी है... जो ग्रह कहलाने की दावेदारी रखते हैं...
इनमें से 2,335 पिंड हमारे सौर मंडल के बाहर हैं...इसके अलावा, केपलर
के आंकड़ों से जुड़े नतीजों को देखने से हमें...छोटे-छोटे ग्रहों का 2
काफी बड़ा जमावड़ा भी मिला है...इन दोनों खोजों का जीवन की तलाश में काफी अहम
योगदान हो सकता है...
मशहूर भौतिकशास्त्री स्टीवन हॉकिंग ने दावा
किया है...कि पृथ्वी और मानवता के लिए समय तेजी खत्म हो रहा है...बीबीसी की शुरू
होने जा रही एक नई सीरीज में उन्होंने कहा है कि..मौसम में हो रहे
बदलावों...ऐस्टरॉइड्स के टकराने और बढ़ती जनसंख्या के खतरे के चलते इंसानों
को...अगले सौ सालों में एक नए ग्रह पर बसने की जरूरत होगी...भविष्य के निवास के
रूप में जो ग्रह अभी जिन ग्रहों पर इंसानो का ध्यान सबसे ज्यादा है...उनमें
से चांद और मंगल सबसे पास और सुगम दिखाई
पड़ते हैं...हालिया खोजों में जो चीजें और तथ्य निकल कर सामने आए है...और हमारे नए
घर की संभावनाएं और प्रबल होती जा रही है...हाल में चांद और मंगल पर ज्वालामुखी से
संबंधित गतिविधियों की वजह से बनीं भूमिगत गुफाओं लावा ट्यूब्स से चांद और मंगल
ग्रह पर मनुष्य के रहने की संभावनाओं को और भी बल मिला है...वैज्ञानिकों ने कहा कि
चांद और मंगल ग्रह पर छिपे हुए लावा ट्यूब्स से मनुष्य को सुरक्षित आवास मिल सकता
है और...यहां तक कि इनमें गलियां या शहर भी बसाए जा सकते हैं...हवाई, आइसलैंड, ऑस्ट्रेलिया
में उत्तर क्वींसलैंड, सिसली और गलापागोस द्वीपों समेत पृथ्वी पर कई
ज्वालामुखी क्षेत्रों में ऐसी लावा ट्यूब्स पाई गई हैं....इन ट्यूबों का भूमिगत
नेटवर्क 65 किलोमीटर तक या अधिक भी हो सकता है...
अंतरिक्ष में गए अभियानों में चांद और मंगलग्रह पर गड्ढे देखे गए जिससे लावा
ट्यूब्स के पुख्ता सबूत मिलते हैं....पृथ्वी,
चंद्रमा और मंगल ग्रह पर मिले इन
ट्युब्स की तुलना से पता चला कि...गुरत्वाकर्षण का लावा ट्यूब्स के आकार पर बड़ा
प्रभाव पड़ता है...पृथ्वी पर ये 30 मीटर तक हो सकती है और....मंगल के कम
गुरत्वाकर्षण वाले वातावरण में 250 मीटर तक चौड़ी लावा ट्यूब्स भी देखी गयी
हैं...वहीं चांद पर ये सुरंगें एक किलोमीटर या उससे ज्यादा और लंबाई में सैकड़ों
किलोमीटर की गहराई तक फैली हो सकती हैं...शोध के ये नतीजे चांद पर आवास की
संभावनाओं और मानव जीवन के लिए बहुत ही अहम हैं...और साथ ही मंगल ग्रह पर किसी और
ग्रह के लोगों के रहने की संभावनओं के लिए भी महत्वपूर्ण हैं...लावा ट्यूब्स
कॉस्मिक किरणों और परग्रही कणों से सुरक्षा प्रदान करती है...जिससे संभावित रूप से
भविष्य में मनुष्यों को सुरक्षित आवास उपलब्ध हो सकते हैं... मानव बस्तियां बसाने
के लिए लावा ट्यूब्स पर्याप्त रूप से काफी बड़ी भी होती हैं...वहीं दुसरी ओर इस
बात की भी पुष्टि हो चुकी है कि...पृथ्वी के ही सोलर सिस्टम में शनि ग्रह के
चंद्रमा एनसेलडस पर जीवन हो सकता है....नासा द्वारा की गई यह अपनी तरह की पहली
पुष्टि है...शनि ग्रह को लेकर नासा के जांच अभियान में बर्फ से ढके एनसेलडस पर एक
दरार के अंदर पानी जैसी चीज देखी गई...जांच करने पर पता चला कि उसमें 98
प्रतिशत पानी ही है...बाकी दो प्रतिशत में हाइड्रोजन, कार्बन
डाइऑक्साइड और मीथेन के अलावा और भी कार्बनिक निशान पाए गए हैं...ये सभी जीवन की
संभावना का संकेत देते हैं....
किसी भी ग्रह पर इंसानी जीवन के लिए सबसे जरूरी
होता है...पानी और खाना...चांद पर भेजे गए अपोलो मून मिशन के दौरान चंद्रमा से जमा
किए गए खनिज पदार्थों की दोबारा की गई जांच से कई चौंकाने वाली नई जानकारियां
सामने आई हैं...वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद से लाए गए खनिजों की फिर से जांच
करने से वहां बड़ी मात्रा में पानी मौजूद होने की बात सामने आई है...वैज्ञानिकों
का मानना है कि चांद की सतह के नीचे बहुत बड़ी मात्रा में पानी का भंडार है...जिन
क्रिस्टल कणों में वैज्ञानिकों को अब पानी के चिह्न मिले हैं...वे चांद की सतह पर
दूर-दूर तक फैले हैं...मालूम हो कि जल्द ही यूरोपीय देश और चीन साथ मिलकर चांद पर
एक गांव बसाने जा रहे हैं... 1970 के दौर में चंद्रमा पर भेजे गए अपोलो 15 और
17
अभियानों में इस सैंपल को धरती पर लाया गया था....इसके अंदर भी उतना ही पानी
पाया...जितना कि धरती पर पाई जाने वाली आग्नेय चट्टानों (बासॉल्ट रॉक्स) में होता
है... इस नई खोज के कारण वहां जाने वाले अंतरिक्षयात्री धरती से पानी ले जाने की
जगह वहीं चंद्रमा पर पानी निकाल सकेंगे...इसके अलावा कई अन्य शोध भी बताते हैं
कि...चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में पानी मौजूद है...इसी साल
अप्रैल में यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने चीन के साथ मिलकर चांद पर गांव बसाने की
योजना का ऐलान किया था...यह 3डी प्रिंटेड बस्ती भविष्य में मंगल पर जाने
वाले अभियानों के दौरान एक पड़ाव की तरह इस्तेमाल की जा सकेगी...इस गांव के निर्माण
पर नवंबर में काम शुरू होना है...चीन चंद्रमा पर पत्थर और मिट्टी के नमूने लेने के
लिए वहां एक मून मिशन रवाना कर रहा है...वहीं दुसरी तरफ नई शोधों से अंतरिक्ष में
जाने और वहां ठहरने वाले अंतरिक्षयात्री अब खुद खेती कर अपने खाने का इंतजाम कर
सकेंगे...स्पेस एजेंसी NASA ने पौधों का एक ऐसा सिस्टम विकसित किया
है...जिसकी मदद से इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन में रहने वाले अंतरिक्षयात्री खुद अनाज
और फल-सब्जियां उगा सकेंगे...यह नया प्लांट सिस्टम इसी महीने ISS में
पहले से सक्रिय 'शाकाहारी'
फूड ग्रोथ सिस्टम का हिस्सा बनेगा...यह
प्लांट हैबिटैट इस तरह से विकसित किया गया है कि...इन पौधों पर ज्यादा मेहनत करने
की जरूरत नहीं पड़ेगी...इन्हें स्पेस स्टेशन के पास एक कक्ष में उगाया जाएगा...यह
चेंबर लाल, नीले, सफेद और हरे LED लाइट्स का इस्तेमाल करता है...सिस्टम
में लगे 180 सेंसर्स तापमान, ऑक्सीजन और नमी जैसी बातों की सही-सही
जानकारी भी देंगे... पृथ्वी पर मानव अस्तित्व के अलावा अनंत ब्रह्माण में किसी और
जीवन का होने या ना होने के दावे लंबे वक्त से बहस का मुद्दा रहे हैं...लेकिन वो
दिन भी अब दुर नहीं जब इंसान का नया बसेरा अंतहिन अंतरिक्ष होगा...
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