रविवार, 14 जनवरी 2018

शिरडी के साईंबाबा


कहते हैं जिसका कोई नहीं उसका सांई है... सांई बाबा हर इंसान के दूख-दर्द को दूर करते हैं... जो भी सांई राम की शरण में जाता है वो उनके दर से खाली नहीं आता... बाबा को मन से याद करो तो वो सारे संकट दूर कर देते हैं.... साईं बाबा अपने भक्तों की जीवनशक्ति हैं. उनका नाम लेकर ही भक्त अपने जीवन की हर उलझन सुलझा लेते हैं... कुछ लोग साईं को भगवान कहते हैं तो कुछ अवतार... जबकी कुछ भक्त साईं को फरिश्ता भी मानते हैं... साईं बाबा सभी कामों को निर्विघ्न संपन्न कराने वाले गणपति के ही स्वरूप हैं... भक्त बाबा के भीतर भगवती सरस्वती का भी अंश पाते हैं.... साईं संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार के अधिष्ठाता देवों यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी अभिन्न अंग हैं... साईं ही स्वयं गुरु बनकर भवसागर से पार उतारते हैं... शिरडी के सांईबाबा अपने चमत्कारों और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए दुनिया में जाने जाते है.. सांई के बारे में कहा जाता है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग उनके भक्त थे, लेकिन सांई किस धर्म के थे इस बात में आज भी रहस्य बना हुआ है। सांईबाबा का जीवन जितना रहस्यमयी था उतना ही उनका जन्म भी। भक्त इस बात को मानते हैं कि सांई के जन्म और परिवार के बारे में कोई भी विश्वनीय आधार मौजूद नहीं है.. साईं शब्द उन्हें शिरडी में पहुंचने के बाद मिला। कहा जाता है कि सांई ने अपने जीवन का काफ़ी समय मुस्लिम फकीरों के साथ बिताया, लेकिन ये भी माना जाता है कि उन्होंने किसी के साथ कोई भी व्यवहार धर्म के आधार पर नहीं किया…  सांई के भक्त उन्हें सद्गुरु और फकीर कहकर भी पुकारते थे। सांई अक्सर अपने शिष्यों को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ाते थे। सांई के चमत्कारों की चर्चा देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैली हुई थी... जिसके कारण दूर-दूर से लोग उनसे मिलने आया करते थे... कहा जाता है लगभग 16 साल की उम्र में सांई महाराष्ट्र के शिरडी आए थे और जीवन के अंतिम समय तक वहीं रहे।  शिरडी में साईं का एक विशाल मंदिर है. मान्यता है कि, चाहे गरीब हो या अमीर साईं के दर्शन करने इनके दरबार पहुंचा कोई भी शख्स खाली हाथ नहीं लौटता है. सभी की मुरादें और मन्नतें पूरी होती हैं... साईं बाबा को बच्चों से बहुत स्नेह था. साईं ने सदा प्रयास किया कि लोग जीवन की छोटी-छोटी समस्याओं और मुसीबतों में एक दूसरे की सहायता करें और एक दूसरे के मन में श्रद्धा और भक्ति का संचार करें... इस उद्देश्य के लिए उन्हें अपनी दिव्य शक्ति का भी प्रयोग करना पड़ा...  शिरडी के साईं बाबा का वास्तविक नाम, जन्मस्थान और जन्म की तारीख किसी को पता नहीं है. हालांकि साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है... शिरडी में साईं कहां से प्रकट हुए यह कोई नहीं जानता. साईं असाधारण थे और उनकी कृपा वहां के सीधे-सादे गांववालों पर सबसे पहले बरसी. आज शिरडी एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है...

शिरडी के साईं की प्रसिद्धि दूर दूर तक है और यह पवित्र धार्मिक स्थल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है. यह साईं की धरती है जहां साईं ने अपने चमत्कारों से लोगों को विस्मृत किया. साईं का जीवन शिरडी में बीता जहां उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्य किए. उन्होंने अपने अनुयायियों को भक्ति और धर्म की शिक्षा दी. साईं के अनुयायियों में देश के बड़े-बड़े नेता, खिलाड़ी, फिल्म कलाकार, बिजनेसमैन, शिक्षाविद समेत करोड़ों लोग शामिल हैं... शिरडी में साईं बाबा का पवित्र मंदिर साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया है. साईं के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस मंदिर का निर्माण 1922 में किया गया था. साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहे. साईं को लोग आध्यात्मिक गुरु और फकीर के रूप में भी जानते हैं. साईं के अनुयायियों में हिंदू के साथ ही मुस्लिम भी हैं. इसका कारण है कि अपने जीवनकाल के दौरान साईं मस्जिद में रहे थे जबकि उनकी समाधि को मंदिर का रूप दिया गया है.... हर साल करोड़ो भक्त सांई के दर्शन के लिए शिरडी आते हैं.. साईं मंदिर में प्रतिदिन लाखों लोग सांई के दर्शन करते हैं और साईं की झोली में अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार कुछ दान भी कर जाते हैं.. कोई साईं बाबा पर सोने का मुकुट चढ़ाता है तो कोई सोने का सिंहासन.. सांई के दरबार में किसी ने चांदी की बेशकीमती आभूषण दान में दिए तो किसी ने करोड़ों की संपत्ति.. भक्तों में सांई की श्रृद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ लोग सांई के दरबार में करोड़ों का गुप्तदान भी करके चले जाते है तो कईयों ने अपनी पूरी जायदाद सांई के हवाले कर दी.. शिरडी के साईं बाबा का मंदिर अपने रिकार्ड तोड़ चढ़ावे के लिए खबरो में बना रहता है.. जो कि हर साल टूटता रहता है.. सांई बाबा के दर्शन का अगर मौका मिल जाए तो भक्त धन्य हो जाए..शिरडी में साईं का एक विशाल मंदिर है और यह पवित्र धार्मिक स्थान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में है। यह वहीं जगह है जहां साईं ने अपने चमत्कारों से लोगों को आश्चर्यमय किया। शिरडी में साईं बाबा का पवित्र मंदिर साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया है। शिरडी में स्थित इस मंदिर का निर्माण 1922 में किया गया था.. साईं का मंदिर सुबह 4 बजे खुल जाता है.. सुबह की आरती 5 बजे होती है.. जिसके बाद भक्त सांई के दर्शन कर सकते हैं.. दोपहर 12 बजे और शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद भी सांई की आरती की जाती है.. रात 10.30 बजे दिन की अंतिम आरती के बाद साईं की विशाल मूर्ति के चारो ओर एक शॉल लपेट दी जाती है और साईं बाबा को एक रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है.. और मूर्ति के समीप एक गिलास पानी भी रख दिया जाता है.. फिर मच्छरदानी लगा दिया जाता है... रात 11.15 बजे मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है.
साईं के उपदेशों से लगता है कि इस संत का धरती पर प्रकट होना लोगों में धर्म, जाति का भेद मिटाने और शान्ति, समानता की समृद्धि के लिए हुआ था... सांईबाबा की निधन दशहरा के दिन 15 अक्टूबर,1918 को हुआ था। सांईबाबा का कहना था कि दशहरा का दिन धरती से विदा होने का सबसे अच्छा दिन है। सांई को हिंदू और मुस्लिम दोंनो ही भगवान की तरह मानते थे जिसके कारण बाबा के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार किस तरह से किया जाए, इस बात को लेकर दोनों पक्षों में मतभेद था। सांई बाबा के अंतिम संस्कार को लेकर सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में वोटिंग कराई गई जिसके बाद बाबा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से करने की बात सामने आई लेकिन दूसरा पक्ष बाबा का शव कब्रिस्तान में दफन करने के पक्ष में ही था।

शिरडी वाले सांई बाबा को भक्त कई रूप में पूजते हैं... बाबा को कोई संत कहता है तो कोई फकीर.. साईं बाबा के चमत्कार के किस्से अनंत हैं.. मान्यता है कि, चाहे गरीब हो या अमीर, साईं के दरबार में दर्शन करने पहुंचा तो वो खाली हाथ नहीं लौटता है, सब की मुरादें और मन्नतें यहां पूरी होती है... शिरडी में साईं कहां से प्रकट हुए यह कोई नहीं जानता, विद्वानों का मानना है कि साईं असाधारण थे और उनकी कृपा वहां के सीधे-साधे गांववालों पर सबसे पहले बरसी। साईं के उपदेशों से लगता है कि इस संत का धरती पर प्रकट होना लोगों में धर्म, जाति का भेद मिटाने और शान्ति, समानता की समृद्धि के लिए हुआ था... शिरडी के लोग शुरू में साईं बाबा को पागल समझते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानने के बाद भक्तों की संख्या बढ़ती गयी.. साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे.. वे टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा किया करते थे। सभी सामग्रियों को वे द्वारका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे। कुत्ते, बिल्लियां, चिड़िया निःसंकोच आकर खाने का कुछ अंश खा लेते थे, बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बांट कर खाते थे.. साईं ने अपने जीवनकाल में कई ऐसे चमत्कार दिखाए जिससे लोगों ने इनमें ईश्वर का अंश महसूस किया। इन्हीं चमत्कारों ने साईं को भगवान और ईश्वर का अवतार बना दियासाईं मस्जिद में पवित्र धार्मिक आग भी जलाते थे जिसे उन्होंने धुनी का नाम दिया था... सांई भक्त के मुताबिक सांई के धुनी में एक अद्भुत चमत्कारिक शक्तियां थी सांई बाबा संत के साथ-साथ स्थानिक लोगों के लिए हकीम की भूमिका भी निभाते थे और बीमार लोगो को अपनी धुनी से ठीक करते थे...शिरडी के साईं बाबा के दरबार में मत्था टेकने के बाद उसकी पहली मुराद होती है कि वो बाबा के रसोई में बना प्रसाद ग्रहण करें... इसलिए साईं मंदिर में भक्तों के लिए रोजाना भंडारा आयोजित किया जाता है. भंडारे में करीब 40 से 50 हजार लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं... भंडारे में बनने वाला सारा सामान टेक्नॉलाजी के उपयोग से बनाया जाता है, जिसके लिए करीब एक हजार लोग काम करते हैं... साईं बाबा की रसोई में दाल, चावल, सब्जी और रोटी मशीन से बनाए जाते हैं. भक्तों के खाने के लिए एक बड़े हॉल में व्यवस्था की गई है. यहां एक बार में 3500 लोग एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं... इस रसोई की खास बात है कि यहां पर बनने वाली अधिकतर चीजें गैस या इलेक्ट्रिसिटी की बजाय सौर ऊर्जा से बनती हैं. 73 सोलर डिश के जरिए हर दिन करीब 3000 केजी स्टीम तैयार की जाती है. सोलर सिस्टम के इंजीनियर शरद शिरोले बताते हैं कि इससे चावल दाल, सब्जी सभी चीजें बनती हैं.
सबका मालिक एक साईं बाबा का ये पैगाम धर्म की दीवारों को लांघ कर पिछले करीब सवा सौ सालों से शिरडी की फिजाओं में गूंज रहा है. अमीर हो या गरीब, हिंदू हो या मुसलमान या फिर औरत हो या मर्द, इंसान की पहचान का हर फर्क साईं बाबा के दरबार में आकर मिटता रहा है.. यही वजह है कि शिरडी का ये साईं धाम देश और दुनिया में आज करोडो़ं भक्तों की आस्था का अहम केंद्र बन चुका है. शिरडी के इस संत को उनके भक्त, भगवान मानते हैं. भगवान की तरह साईं बाबा की पूजा भी करते हैं. साईं बाबा को यूं तो दुनिया से गुजरे 97 साल बीत चुके हैं लेकिन आज भी शिरडी में उनकी समाधि पर भक्तों का मेला लगा रहता हैं... साईं सदैव कहते थे कि जाति, समाज, भेदभाव को भगवान ने नहीं बल्कि इंसान ने बनाया है. ईश्वर की नजर में कोई ऊंचा या नीचा नहीं है.. जो कार्य स्वयं ईश्वर को पसंद नहीं है उसे इंसानों को भी नहीं करना चाहिए. अर्थात जाति, धर्म, समाज से जुड़ी मिथ्या बातों में ना पड़कर प्रेमपूर्वक रहें और गरीबों और लाचार की मदद करें क्योंकि यही सबसे बड़ी पूजा है. उनका कहना था कि जो व्यक्ति गरीबों और लाचारों की मदद करता है ईश्वर स्वंय उसकी मदद करते हैं... साईं ने सदैव माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करने की सीख दी. उनका कहना था कि ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे हमारे जीवन की मुश्किलें आसान हो जाती हैं... साईं के सिद्धांतों में दया और विश्वास अंतर्निहित है. उनके अनुसार अगर इन दोनों को अपने जीवन में समाहित किया जाए तभी भक्ति का अनुराग मिलता है... आज शिरडी कहने को तो गांव है लेकिन असलियत में यह एक शहर में बदल चुका है जहां सांई के आध्यामिक ज्ञान की लहर हमेशा बहती रहती है.. राजदानी दिल्ली से करीब 12 सौ किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की कोपरगांव तहसील में शिरडी शहर बसा हुआ है. और शिरडी में नीम का पेड हैं जो साईं भक्तों के लिए आस्था का सबसे अहम केंद्र है... अगर आप शिरडी जाना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि शिरडी सड़क और रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है.. प्रतिदिन दिल्ली से पंजाब मेल, स्वर्ण जयंती जैसी ट्रेने जाती हैं जोकि लगभग एक दिन के सफर के बाद कोपरगांव तक पहुंचा देती है। जिसके बाद आप वहां से ऑटो या टैक्सी लेकर आसानी से शिरडी जा सकते हैं.. ट्रेन के अलावा आप बस और हवाई रास्ते से भी शिरडी में बाबा के दर्शन के लिए जा सकते है..




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