रविवार, 14 जनवरी 2018

पर्ल हार्बर


7 दिसंबर 1941...  वो दिन जिसे अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट ने काला दिन कहा.. वो दिन जब अमेरिका के ढाई हजार सैनिकों की कब्रगाह बन गया एक बंदरगाह.. वो दिन जिसके बाद अमेरिका भी दूसरे विश्व युद्ध का हिस्सा बन गया.. पर्ल हार्बर हमला जिसने अमरीका को वर्ल्ड वॉर में जाने पर मजबूर कर दिया..  आज से 78 साल पहले 7 दिसंबर ही वो दिन था, जब जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर अपने बॉम्बर्स से बिना चेतावनी हमला किया.. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 7 दिसंबर, 1941 में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर जापानी एयरफोर्स ने चुपके से हमला किया था.. इस हमले में 2,403 अमेरिकी सैनिक मारे गए.. और इस हमले में 1,178 जख्मी हुए थे.. हमले के दौरान अमेरिका के 18 नेवल शिप और 328 अमेरिकी विमान पूरी तरह से नष्ट हो गए थे.. 7 दिसंबर, 1941 की सुबह... जापानी बॉम्बर्स ने पर्ल हार्बर स्थित यूएस नेवल बेस पर बिना चेतावनी कार्पेट बॉम्बिंग कर दी थी.. हमले में अमेरिका के आठ में से छह जंगी जहाज, क्रूजर, डिस्ट्रॉयर समेत 200 से ज्यादा एयरक्राफ्ट्स तबाह हो गए..  जापान ने दो फेज में हमले किए थे.. इसके लिए उसने फाइटर जेट्स, बॉम्बर्स और टारपीडो मिसाइल्स का इस्तेमाल किया था.. कमांडर मिस्तुओ फुचिदा के नेतृत्व में 183 फाइटर जेट्स ने ओहियो के ईस्ट में तैनात जापान के छह जंगी जहाजों से उड़ान भरी.. इसके बाद लेफ्टिनेंट कमांडर शिगेकाजू शिमाजाकी के नेतृत्व में 171 फाइटर जेट्स ने पर्ल हार्बर को टारगेट किया.. जापानी यह बात अच्छी तरह जानते थे कि अमेरिकंस रविवार का दिन मौज-मस्ती और आराम करने में बिताते हैं.. कई लोग इस दिन देर से जागते हैं.. इसीलिए जैपनीज आर्मी को रविवार के दिन और सुबह हमला करने का आदेश दिया गया.. हालांकि, जापानी फौज पर्ल हार्बर पर तड़के सुबह हमला करना चाहती थी, लेकिन कोहरे और धुंध के कारण सुबह साढ़े सात बजे का टाइम चुना..  जापान ने यूएस पेसिफिक बेड़े को बेअसर करने का इरादे से पर्ल हार्बर पर हमला किया था..  इसी बमबारी के साथ जापान ने अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ जंग का एलान कर दिया. फिर जो हुआ, वह इतिहास में दर्ज हो गया.. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने 7 दिसंबर, 1941 को 'कलंक का दिन' कहा और हमले के दूसरे ही दिन 8 दिसंबर, 1941 को अमेरिका भी सेकंड वर्ल्ड वॉर में कूद पड़ा.. उसने भी जापान के खिलाफ जंग का एलान कर दिया.. जापान को इसका अंजाम हिरोशिमा और नागासाकी पर 'एटम बम' अटैक के रूप में भुगतना पड़ा।

पर्ल हार्बर के ऊपर.. सुबह लगभग आठ बजे जापानी प्लेन्स से आसमान भर गया.. आसमान से बम और गोलियां बरस रही थीं.. नीचे अमरीकी प्लेन्स खड़े थे.. और साथ ही हजारों की संख्या में सैनिक भी मौजूद थे... सुबह 8 बजकर 10 मिनट पर एक 1800 पाउंड का बम USS-Arizona जहाज के ऊपर गिरा... जहाज फट पड़ा और अपने अन्दर 1000 के आस-पास लोगों को समेटे हुए डूबने लगा... अगला टार्गेट था दूसरा युद्धपोत USS-Oklahoma... उस पर टोर्पीडो से हमला किया गया... इस वक़्त जहाज पर कुछ 400 लोग सवार थे... जहाज पूरी तरह तो नहीं फटा लेकिन एक ओर झुकने लगा और पानी के नीचे पहुंच गया... जब तक अटैक खतम होता, पर्ल हार्बर में मौजूद सभी युद्धपोत USS Arizona.. USS Oklahoma.. USS California.. USS West Virginia.. USS Maryland.. USS Pennsylvania.. और USS Nevada को अच्छा-खासा नुकसान हो चुका था... पर्ल हार्बर के हमले में लगभग 20 अमरीकी जहाज पूरी तरह तबाह हो गए थे... वैसे तो अमेरिका और जापान के रिश्तों में पहले विश्व युद्ध के बाद से ही तनाव बना हुआ था लेकिन इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी कि जापान पर्ल हार्बर पर अचानक इतनी बड़ी कार्रवाई कर देगा। यही वजह है कि इस घटना से अमेरिकी स्तब्ध रह गए थे.. 7 दिसंबर 1941 को जापान की नौसेना- इम्पीरियल जैपनीज नेवी ने इस पर बिना किसी पूर्व चेतावनी के धावा बोल दिया था.. इस हमले को हवाई ऑपरेशन या ऑपरेशन एआई भी कहा जाता है.. हमले में अमेरिका को भारी नुकसान उठाना पड़ा था.. उसके 2400 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे.. पर्ल हार्बर में मौजूद आठों अमेरिकी युद्धपोतों को भारी क्षति हुई थी। इनमें से चार पोत डूब गए थे.. पोतों पर मौजूद उसके 188 विमान पूरी तरह नष्ट हो गए थे.. हमले को अंजाम देने के लिए जापान ने दो चरणों में अपने लड़ाकू विमानों, बमवर्षक विमानों का इस्तेमाल किया था जिसकी संख्या 353 थे.. पहले चरण में उसके 183 लड़ाकू विमान ओहायू के उत्तर में मौजूद उसके युद्धपोतों से उड़े थे.. दूसरे हमले में 171 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल हुआ था.. ये दोनों ही प्राकृतिक संसाधनों, तेल और रबड़ की प्रचुरता वाले इलाके थे.. जापान इन इलाकों को अमेरिका की बढ़ती पहुंच से सुरक्षित बनाना चाहता था.. लेकिन हमले के अगले ही दिन 8 दिसंबर, 1941 को अमेरिका सेकंड वर्ल्ड वार में प्रत्यक्ष रूप से कूद पड़ा.. उसने जापान के खिलाफ जंग का भी ऐलान कर दिया जिसका एक अंजाम हिरोशिमा-नागासाकी पर एटम बम गिराने के रूप में निकला.. हलांकि जापान ने यह कार्रवाई प्रिवेंटिव ऐक्शन के तौर पर की थी.. जापान चाहता था कि अमरीका उस पर लगी पाबंदियां हटा दे लेकिन उस हमले की वजह से पूरी दुनिया एक बार फिर से युद्ध के दरवाजे पर खड़ी घंटी बजा रही थी...

दुनिया में हर देश का किसी दूसरे देश से अपना एक अलग संबंध होता है... ऐसे में दो देशों के बीच शुरू हुआ संघर्ष सिर्फ 2 देशों के बीच नहीं रह पाता बल्कि उसमें और भी देश शामिल हो जाते हैं... यही हुआ दूसरे वर्ल्ड वॉर के वक़्त साल 1937 में... जापान चाहता था उसकी इकॉनोमिक ग्रोथ.. चीन की मार्केट में सेंध मारकर और चीन के इम्पोर्ट को ख़त्म करके हो सकती है... जिसके लिए 1937 में जापान ने चीन के ऊपर वॉर डिक्लेयर कर दिया... जापान की ये हरकत अमरीका को कतई रास नहीं आया... मगर अमेरीका डायरेक्ट तरीके से लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहता था... उसने कुछ नियम बना दिए... अमेरीका के बनाए नियम को जापान मानने से इंकार कर दिया... जिसके बाद अमरीका ने जापान के ऊपर पेनाल्टी लगा दीं... जिसमें काफी सारे जापानी ट्रेड्स पर बैन भी लगा दिया गया... अमरीका का सोचना था कि बिना रुपये-पैसों के, और तेल जैसी ज़रूरी चीज़ों के अभाव में जापान पर नकेल कसी जा सकेगी... मगर हुआ इसका उल्टा... जापान अपनी जिद्द पर अड़ गया.. टोक्यो और वाशिंगटन डीसी के बीच चल रही समझौते की बातें एक डेड-लॉक में चली गईं... मगर इस वक़्त तक किसी को भी ऐसा नहीं लगता था कि जापान अमरीका पर अटैक कर देगा. इसके पीछे दो वजहें थीं... पहली कि जापान और अमरीका 4 हज़ार मील दूर हैं... इससे जापान को अटैक करने में जंग से कहीं ज़्यादा दिक्कतें होंगी... दूसरी ये कि अमेरिकन इंटेलिजेंस ऑफिशियल को ये यकीन था कि जापान अमरीका पर साउथ पैसिफ़िक यूरोपियन कॉलोनी में या उसके आस-पास अटैक करेगा... पर्ल हार्बर जापान से काफी दूर था इसलिए वहां अमरीका ने उतनी चौकसी नहीं बरती हुई थी... उधर जापान के लिये पर्ल हार्बर एक ऐसा टार्गेट बन गया था जिसे वो चाह कर भी अवॉइड नहीं कर सकता था... जापान का प्लानिगं सिंपल था जो पैसिफ़िक फ्लीट को खत्म कर था... इस लिहाज़ से अमरीका साउथ पैसिफ़िक में फ़ैली जापान की फ़ोर्स से लड़ाई नहीं कर पाता और 7 दिसंबर को भरपूर प्लानिंग के साथ जापान ने अमेरीका के पर्ल हार्बर पर अटैक कर दिया... इससे पहले 78 साल पहले ऐसा कुछ हुआ था जिसने दुनिया को व्यापक रूप से बदल डाला... वह 1 सितंबर 1939 का दिन था जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला कर दिया था और फिर शुरू हो गया था द्वितीय विश्व युद्ध सन 1945 तक करीब छह साल चले इस युद्ध में दुनिया के करीब 70 देशों की सेनाएं आपस में भिड़ गई थीं. यह ऐसा वैश्विक संघर्ष था जिसने दुनिया की तब की जनसंख्या की 3फीसदी आबादी खत्म कर दी थी.. करोड़ों लोग घायल हुए थे और अरबों रुपये का नुकसान हुआ था. इस युद्ध के दौरान देशों की सीमाएं बदलती रहीं... दूसरे विश्व युद्ध में 10 करोड़ से ज्यादा सैन्य कर्मी शामिल थे... यह मानव इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है. इसको टोटल वॉर भी कहा जाता है क्योंकि इसमें सेनाओं के साथ-साथ आम लोग भी शामिल थे. इस नीति विहीन युद्ध में दुश्मन देशों में आम जनता पर भी बम बरसाए गए थे.

हर एक नई लड़ाई पुरानी लड़ाई का परिणाम होती है. पर्ल हार्बर के हमले ने जहां अमेरिका को सेकंड वर्ल्ड वॉर में कूदने को मजबूर किया, तो वहीं इस भावना ने जापान के तत्कालीन विनाश की कहानी लिख डाली... कुछ इतिहासकारों का मानना है कि अगर पर्ल हार्बर पर हमला न हुआ होता, तो शायद ही अमेरिका इस युद्ध में शामिल होता और न ही मानव सभ्यता को एटम बम जैसी चीज़ का सामना करना पड़ता... एक गलती कितना कहर ढा सकती है इसका अंदाजा एक घटना से लगाया जा सकता है, जिसकी बदौलत कुछ सौ, हजार या लाख नहीं बल्कि करोड़ों लोग मौत के मुंह में समा गए.. सुनने में ऐसा लगता है कि बात बड़ी आसान और छोटी सी रही होगी.. मगर, यहाँ मैं ये कहूँ कि अमेरिका ने पर्ल हार्बर का बदला जापान पर परमाणु हमला करके लिया तो शायद कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.. क्योंकि अलग अलग मतों के बीच ये भी माना जाता रहा है कि पर्ल हार्बर पर जिस तरह का कहर जापान के 353 लड़ाकू विमानों ने ढाया था उससे अमेरिका को काफी नुक्सान और अपने ढाई हज़ार सैनिकों को खोने का गम भी देखा था.. लेकिन जिस समय ये सब जापान ने हमले किये उस समय जवाबी करवाई अमेरिका ने भी नहीं की.. शायद वो इसका बदला सस्ते में नहीं चाहता था.. 7 दिसम्बर 1941 का वह दिन था.. जब जापान ने पर्ल हार्बर पर अमेरिका के लड़ाकू बेड़े.. हथियार.. जहाज सब सुबह ही सुबह नष्ट करके निकल लिया था.. ऐसा भी प्रतीत होता है कि अमेरिका जर्मनी पर युद्ध की अपनी तैयारी कर रहा था लेकिन युद्ध की एक धुरी की भयानक दास्तां जापान ने अपनी ओर भी मोड़ ली थी.. वैसे ये तो अमेरिका को भी पता था की जापान साम्राज्यवाद की तरफ निकल लिया है और रूस उसे बराबर टक्कर दे रहा है.. पर शायद अब जापान का अंजाम कुछ ज्यादा दहशत भरा होने वाला था.. उस समय अमेरिका अपने मैनहट्टन प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था, जिसमें प्रमाणु संबंधी हथियारों को एक अन्य आयाम देने की तैयारी में था.. पर्ल हार्बर पर हमले से चार साल पहले हिटलर ने बर्लिन के बंकर में आत्महत्या कर ली थी, इटली और जर्मनी की हार भी हो चुकी थी, और इधर... मैनहट्टन प्रोजेक्ट अब लगभग पूरा हो चुका था.. अब जापान की बारी थी.. अमेरिका ने जापान को सन्देश भेज कि आत्मसमर्पण करो.. साम्राज्यवाद की गति को रोको और अपने देश पर ही टीके रहो... अब जापान के लिए आत्मसमर्पण करना मानो एक भद्दा सा सन्देश लगा क्योंकि इससे एम्परर पॉवर को खतरा था। जापान का होरोहितो भी इसे मानने से मना कर दिया.. बस फिर क्या था?... जपानी हमले का बदला लेने में अमेरीका को चार साल इंतजार करना पड़ा लेकिन उसने ऐसा बदला लिया कि आज भी वो जख्म ताजा है... अमेरिका ने अपने एनोला गे को तैयार किया और लाद दिए परमाणु बेम उसपर.. 6 अगस्त 1945 लिटिल बॉय हिरोशिमा पर और दो दिन के बाद 9 अगस्त 1945 फैट मैन नागासाकी पर.. भीषण तबाही, भयानक लाशों का समंदर बने दो शहर जापान को झुकने पर मजबूर कर दिया.. नागरिक बेबस थे, और सरकार बदले के मूड में.. लेकिन 5-6 दिन बाद आखिर जापान ने अमेरिका के सामने अपने आप को सरेंडर कर दिया..

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