बात 1971 की है जब भारत के पूरब और पश्चिम दोनों में ही पाकिस्तान हुआ करता था।
पूर्वी पाकिस्तान में बांग्ला बोलने वाले लोग थे जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू
जबान बोली जाती थी.. पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान में दो हजार किलोमीटर का फासला था, लेकिन ये एक ही
मुल्क के दो हिस्से थे.. फौज, और सरकारी नौकरियों में पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों का दबदबा था..
जिसके चलते पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने बगावत कर दी... इस बगावत को दबाने के लिए
पाकिस्तान की सेना ने मोर्चा संभाला.. 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म
ढाहना शुरू कर दिया... रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी फौज ने दो लाख महिलाओं से
बलात्कार किया.. और लाखों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया था.. इस कार्रवाई को
पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया.. बांग्लादेश के लोगों ने जब
पाकिस्तानी सरकार से थोड़ी आजादी चाही और अपने जीवन को अपने तरीके से नियंत्रित
करने के लिए अपनी सरकार चाही, तो इस मांग को पाकिस्तानी हुक्मरानों ने बर्बरतापूर्वक दबा दिया. जिसका परिणाम हुआ कि पूर्वी पाकिस्तान के
आवाम उठ खड़े हुए और बांग्लादेश के रूप में खुद को आजाद करा लिया... दरअसल पाकिस्तान
के सैनिक तानाशाह याहया खान ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जनभावनाओं को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश
दे दिया था... इसके बाद शेख मुजीद गिरफ्तार कर लिए गए... पूर्वी पाकिस्तान से
शरणार्थी भारत आने लगे... पाकिस्तान की नापाक हरकतें बढ़ती जा रही थीं... 3 दिसंबर 1971 को इंदिरा कोलकाता
में एक जनसभा कर रहीं थी... उसी दिन शाम को पाकिस्तानी वायु सेना के विमानों ने
भारतीय वायु सीमा पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर और आगरा के सैनिक हवाई अड्डों पर बमबारी कर दी... इंदिरा ने
ठान लिया कि पाकिस्तान को सबक सिखाना है... भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारा
जवाब दिया.... 13 दिन में लड़ाई खत्म हो गई. 16 दिसंबर को हमारी सेना ने पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को
बंदी बना लिया... इंदिरा ने पाकिस्तान का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल दिया....
पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया... इंदिरा की पहल पर बांग्लादेश नाम से नया देश बना...
जिसके राष्ट्रपति बने शेख मुजिबिल रहमान. उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा को
दुर्गा का अवतार तक कहा था... उस समय भारत के लिए पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण करना
कोई आसान काम नहीं था... अमेरिका और चीन की तरफ से भी भारत पर दबाव बनाया जा रहा
था... लेकिन इंदिरा उस समय आत्मविश्वास से लबरेज थीं... उन्होंने एक कार्यक्रम में
बीबीसी से कहा था, ‘हमलोग इस बात पर निर्भर नहीं है कि दूसरे क्या सोचते हैं. हमें यह पता
हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और हम क्या करने जा रहे हैं. चाहे उसकी कीमत कुछ भी
हो...
युद्ध की पृष्ठभूमि साल 1971 की शुरुआत से ही बनने लगी थी... पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया
ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जन भावनाओं को जब सैनिक ताकत से कुचलने का
आदेश दे दिया... दरअसल जब पूर्वी पाकिस्तान में लोकप्रिय नेता शेख मुजीबुर रहमान
को सत्ता सौंपने की जनता की भारी मांग को पाकिस्तान मानने से इंकार कर दिया था... बंग
बंधु के नाम से लोकप्रिय शेख मुजीबुर रहमान को पूर्वी पाकिस्तान स्टेट इलेक्शन में
169 में से 167 सीटें हासिल हुई
थीं और उन्हें पाकिस्तान संसद के निचले सदन में भी बहुमत मिल गया था. इस बहुमत का
मतलब था कि उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया जाए.. लेकिन पाकिस्तान के
सैनिक शासक जनरल याहिया खान ने सेना को ढाका में आवामी लीग के खिलाफ हमला बोलने का
आदेश दे दिया और मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान ले जाया गया... मुजीबुर
रहमान के गिरफ्तारी के बाद जनरल याहिया खान ने पूर्वी पाकिस्तान में अशांति को दूर
करने के लिए जनरल टिक्का खान को वहां भेजा... इस बर्बर जनरल के नेतृत्व में जनता
पर कभी न खत्म होने वाले जुल्म ढाए जाने लगे..... लाखों निर्दोष लोगों को मौत के
घाट पहुंचा दिया गया जिसके बाद एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए
भारत में आकर शरण ली... पूर्वी पाकिस्तान में हालात को देखते हुए 27 मार्च 1971 को भारत की
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आगे आकर पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता का
समर्थन किया.. और भारत की सीमा.. पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों के लिए खोल दिया...
उधर पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने खुद को जनरल टिक्का खान के दमनकारी शासन से
मुक्ति पाने के लिए 'मुक्ति वाहिनी' जनसेना का निर्माण कर लिया.. जिसने पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया..
भारत ने हथियारों के माध्यम से मुक्ति वाहिनी को खुलकर समर्थन देना शुरू कर दिया..
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि पाकिस्तान पर अप्रैल में आक्रमण
किया जाए. इस बारे में इंदिरा गांधी ने थलसेनाध्यक्ष जनरल मानेकशॉ की राय ली...
तब मानसून भी दस्तक देने ही वाला था. ऐसे समय में पूर्वी पाकिस्तान पर हमला करना
मुसीबत मोल लेने जैसा था... 3 दिसंबर, 1971 को इंदिरा गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित करने पहुंची थीं...
तभी उन्हें पाकिस्तान द्वारा हमले की सूचना मिली.. हमले की खबर मिलते ही दिल्ली
लौटकर इंदिरा गांधी सीधे मैप रूम पहुंची, जहां उन्हें हालात का ब्यौरा दिया गया. उस वक्त रात के 11 बज चुके थे. सेना
के अफसरों से बैठक के बाद इंदिरा गांधी ने कैबिनेट बैठक बुलाई और फिर विपक्ष के
नेताओं से मुलाकात कर उन्हें भी पूरे हालात की जानकारी दी... आधी रात हो चुकी थी
जब इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए पूरे देश को संबोधित किया... इंदिरा ने
भारतीय सेना को ढाका की तरफ बढ़ने का हुक्म दे दिया. वहीं भारतीय वायुसेना ने
पश्चिमी पाकिस्तान के अहम ठिकानों और हवाई अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिये... इस
दौरान भारत की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान की जबरदस्त नाकेबंदी की थी....
साल 1971 में भारत के पूरब में बसा पाकिस्तान का वो हिस्सा जिसे अब
बांग्लादेश कहा जाता है, वहां ऐसा कुछ हो रहा था जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा था... भारत की
प्रधानमंत्री होने के नाते इंदिरा पर इस बात का दबाव बढ़ रहा था कि वो जल्द से
जल्द इस मसले का हल निकालें और जरूरी कार्रवाई करें. इसीलिए इंदिरा गांधी ने एक
तरफ भारतीय फौज को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दे दिया और दूसरी तरफ
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश शुरू कर दी.. पूर्वी
पाकिस्तान की समस्या को पाकिस्तान अपना अंदरूनी मामला बता रहा था लेकिन इंदिरा ने
साफ कर दिया पूर्वी पाकिस्तान में जो हो रहा है वो पाकिस्तान का अंदरूनी मामला
नहीं है क्योंकि उसकी वजह से भारत के कई राज्यों में शांति भंग हो रही थी... प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी एक तरफ पाकिस्तान की डिप्लोमैटिक घेराबंदी कर रही थीं और दूसरी तरफ
दुनिया भर में भारत के पक्ष में समर्थन जुटा रही थीं. उधर पाकिस्तान चीन और
अमेरिका के दम पर लगातार भारत को उकसा रहा था... पाकिस्तान को उस वक्त ये अंदाजा
भी नहीं था कि भारतीय सेना पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर चुकी है... सवाल ये था कि
पहला हमला कौन करेगा... पाकिस्तान भारत की तैयारी का अंदाजा नहीं लगा पाया 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी
विमानों ने भारत के कुछ शहरों पर बमबारी करने की गलती कर दी... 3 दिसंबर के हमले का
जवाब भारत ने आपरेशन ट्राइडेंट शुरु करके दिया था... चार दिसंबर, 1971 को आपरेशन
ट्राइडेंट शुरू हुआ.. 5 दिसंबर को भारतीय नौसेना ने कराची बंदरगाह पर जबरदस्त बमबारी कर
पाकिस्तानी नौ सैनिक मुख्यालय को तबाह कर दिया... पाकिस्तान पूरी तरह घिर चुका था...
अब पाकिस्तानी नौसेना की कमर टूट चुकी थी.. उधर अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद के लिए
अपनी नौसेना का सबसे शक्तिशाली सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की तरफ भेज दिया जिसके
जवाब में इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ के साथ हुई संधि के तहत उन्हें अपने जंगी
जहाजों को हिंद महासागर में भेजने के लिए कहा. इस तरह से दो महाशक्तियां
अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध में शामिल हो चुकी थीं.. अमेरिकी बेड़े के आने पर युद्ध
की दिशा बदल सकती थी, पर अमेरिकी बेड़े के पहुंचने के पहले ही भारतीय सेनाओं ने युद्ध को ही
निर्णायक मोड़ दे दिया.. पाकिस्तान की पनडुब्बी 'गाजी' को विशाखापट्टनम नौसैनिक अड्डे के पास डुबो दिया गया.. भारतीय नौसेना
का पराक्रम चरम पर था.. इतिहास में पहली बार किसी नौसेना ने दुश्मन की नौसेना को
एक सप्ताह के अंदर पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया था.... 14 दिसंबर को भारतीय
सेना ने एक गुप्त संदेश को पकड़ा कि दोपहर ग्यारह बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में
एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं... भारतीय
सेना ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर बम गिराए जाएं. बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर
बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी. इस
हमले ने युद्ध के रूख को एकदम स मोड़ दिया.. और पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर
कर दिया......
15 दिसंबर को पाकिस्तानी सेनापति जनरल एके नियाजी ने युद्धविराम की
प्रार्थना की.. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी फौजों ने आत्मसमर्पण कर दिया.. 16 दिसंबर की सुबह
लेफ्टिनेंट जनरल जैकब को मानेकशॉ का संदेश मिला कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए
तुरंत ढाका पहुंचें। जैकब की हालत बिगड़ रही थी... नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास
सिर्फ़ 3000 सैनिक और वे भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर.. लेकिन भारतीय सेना ने युद्ध पर पूरी तरह से अपनी पकड़
बना ली थी.. लेफ्टिनेंट जनरल जगत सिंह अरोड़ा अपने दलबल समेत एक दो घंटे में ढाका
लैंड करने वाले थे और युद्ध विराम भी जल्द ख़त्म होने वाला था.. जैकब के हाथ में
कुछ भी नहीं था.. जैकब जब नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था..
शाम के साढ़े चार बजे लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा हेलिकॉप्टर से ढाका हवाई अड्डे पर
उतरे.. आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ एक मेज़ पर रखा हुआ था.. अरोड़ा और नियाज़ी मेज़
के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज़ पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने
अपने बिल्ले उतारे और अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। नियाज़ी की
आंखों में आंसू थे.. अंधेरा घिरने के बाद स्थानीय लोग नियाज़ी की हत्या पर उतारू
नजर आ रहे थे... भारतीय सेना के वरिष्ठ अफ़सरों ने नियाज़ी के चारों तरफ़ एक
सुरक्षित घेरा बना दिया... बाद में नियाजी को बाहर निकाला गया... उधर दिल्ली में इंदिरा
गांधी संसद भवन के अपने दफ़्तर में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं. तभी जनरल मानेक
शॉ ने उन्हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की ख़बर दी... इंदिरा गांधी ने
लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की कि युद्ध में भारत को विजय मिली है...
इंदिरा गांधी के बयान के बाद पूरा सदन जश्न में डूब गया... कुल 13 दिन तक चले युद्ध
के बाद आखिरकार भारत के जांबाज सैनिकों के आगे पाकिस्तानियों को धूल चाटनी पड़ी और
उन्होंने बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण का प्रस्ताव रखा... भारत ने अश्वासन दिया
कि उन्हें सुरक्षित पूर्वी पाकिस्तान से उनके देश पाकिस्तान भेजा जाएगा... आत्मसमर्पण
के दस्तावेज पर 16 दिसंबर को ढाका में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी और
भारतीय सेना के पूर्वी आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जे अरोड़ा ने दस्तखत किए...
मुक्ति वाहिनी ने ढाका पर नियंत्रण हासिल किया और बांग्लादेश का निर्माण हुआ....
ये किस्सा एक जंग का है.. ये किस्सा बहादुरी का है... ये किस्सा है एक
विकासशील देश के ऐसी कुटनीति का जिसने महाशक्ति अमेरीका को उसके ही खेल में उलझा
दिया था.. ये कहनी एक ऐसी फौज की है जो असल्हे से भले कमजोर रही हो पर उसके हौसले
फौलाद थी.... ये किस्सा हिन्दुस्तान की फतह का है और पाकिस्तान के शिकस्त का और आत्मसमर्पण का.
हजारों किलोमाटर का फासला लेकिन देश एक.. 24 साल से दूर की कौड़ी बना पूर्वी पाकिस्तान 1971 में अपनी नई नायति से मुलाकात करने जा रहा था.. और उसके साथ शुरू हो रहा
था वो किस्सा जो दुनिया के नक्से को बदलने का किस्सा है..
ये वो दौर था, जब पूर्वी पाकिस्तान में
पाकिस्तान की सेना ने आम लोगों की जिंदगी जहन्नुम बना दी थी... रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी फौज ने दो लाख महिलाओं से बलात्कार
किया.. और लाखों बच्चों को भी मौत के घाट उतार दिया था.. इस कार्रवाई को
पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया.
पाकिस्तान की सिविल-मिलिट्री नौकरशाही ने जिसमें अब राजनीतिक लोग भी
शामिल हो गए थे सब ने मिलकर मुजीबुर्रहमान को इजाजत नहीं दी की वो पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री बने... खास बात ये थी कि सेना के इस फैसले के साथ जुल्फीकार अली
भुट्टो भी थे... लिहाजा, पूर्वी पाकिस्तान में इसका जमकर विद्रोह शुरु हो गया...
पाकिस्तान ने यही सबसे बड़ी गलती कर बैठा की उसने चुनाव के नतीजों को
मानने से इंकार कर दिया... अगर पाकिस्तान उस वक्त चुनाव का फैसला मान लेता तो उसके
टुकड़े नहीं होते...
ये वो दास्तान है जिसकी इबारत लिखनी की ताकत किसी स्याही में नहीं
थी.. ये दास्तान जाबांजो के हौसले और उनके लहू से लिखी गई है.. वो दास्तान जो
हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नो पर चस्पा हो गया है...
1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध में उन्होंने ही पाकिस्तानी सेना को
आत्मसमर्पण की शर्तें सुनाई... जिसमें ये शर्त थी कि पाकिस्तानी सेना न सिर्फ
भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करेगी बल्कि बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के सामने
भी आत्मसमर्पण होगा... पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के पास अकेले ढाका में 26 हजार 400 सैनिक थे... लेकिन
उन्हें सिर्फ 3000 भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा... इसी जंग के बाद
बांग्लादेश का जन्म हुआ जो उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था. इस
युद्ध में भारत के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए और करीब 93 हजार पाकिस्तानी
सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे.
यह युद्ध भारत के लिए ऐतिहासिक और हर देशवासी के दिल में उमंग पैदा
करने वाला साबित हुआ... देश भर में 16 दिसम्बर को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. वर्ष 1971 के युद्ध में करीब 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि 9,851 घायल हो गए थे.
16 दिसंबर 1971.. ये वो दिन है जब हमारे देश के जांबाज सैनिकों को
पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारी जीत मिली थी... इस विजय के बाद पाकिस्तान के दो
टुकड़े हो गए थे और विश्व के नक्शे पर बांग्लादेश नामक एक नए राष्ट्र का उदय हुआ
था... इसी दिन पूर्वी पाकिस्तान में 92,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था... भारत-पाक युद्ध की
शुरुआत तब हुई, जब 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत पर हमले शुरू कर दिए...
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