रविवार, 14 जनवरी 2018

पुर्नजन्म का रहस्य


हमारे जीवन के शुरूआत से ही हमारे मन में... हमारे सोच में.. हमारे बुद्धि में... हमारे कार्यों में.. यहां तक की हमारे पूरे अस्तित्व में यही भर दिया गया है.. कि जिन्दगी नहीं मिलेगी दुबारा.. यानी ही एक ही जीवन है इसलिए मौज मस्ती करो.. पैसा कमाना.. शक्तिशाली बनना और मौज मस्ती करना यही जीवन का लक्ष्य है.. इंसान इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है.. इंसान को खुशियां पाने के लिए गलत भी करना पड़े तो वो गलत नहीं है.. क्योंकि एक ही जीवन है और मौज मस्ती करना जीवन का लक्ष्य.. अगर मेरे पास पैसा है.. पावर है.. और मैं कानून औऱ समाज से बच निकल सकता हूं तो मैं कुछ भी करू मूझे रोकने और दंड देने वाला कोई नहीं है.. एक ही जीवन है और फिर सब खत्म.. आज पूरा समाज जिसमे हम सब सम्मलित है इसी दृष्टी से अपने जीवन को देखते हैं.. कि यही एक जीवन है.. और जो करना है इसी जीवन में करना है.. पर क्या ये सत्य है.. क्या वस्तव में एक ही जीवन है.. क्या इस जीवन के बाद और कुछ नहीं.. यदि एक गुनाहगार समाज और कानून से बच निकले तो क्या वह जीवन के अंत तक किसी के उतरदायी नहीं और उसके किये का सजा कभी नहीं मिलती.. जीवन के इस ज्ञान का एक और दृष्टी कोण है और वो है... पुनर्जन्म... पुनर्जन्म एक सिद्दान्त है जिसके अनुसार शरीर के मर जाने के बाद हम एक नया शरीर धारण करते हैं जिसे हम जन्म कहते हैं.. वेद कहते हैं आत्मा.. कुराण कहती है रूह और बाइबिल कहती है सोल... यहुदी, ईसाइ और इस्लाम तीनो धर्म पुनर्जन्म मे यकीन नहीं करते है, लेकिन इनके विपरीत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म पुनर्जन्म मे यकीन करते है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है.. आज से 30-40 साल पहले दुनिया के सिर्फ 10 प्रतिशत लोग विश्वास करते थे पुनर्जन्म होता है पर आज दुनिया के 60 प्रतिशत लोग विश्वास करने लगे हैं कि पुनर्जन्म होता है.. जैसे भूत, प्रेत, आत्मा, से जुडी घटनाएं हमेशा से एक विवाद का विषय रही है वैसे हि पुनर्जन्म से जुड़ी घटनाय और कहानियां भी हमेशा से विवाद का विषय रही है.. इन पर विश्वास और अविश्वास करने वाले, दोनो हि बड़ी संख्या मे है, जिनके पास अपने अपने तर्क है। पिछले जन्म में आप क्या थे.. क्या वाकई आपके पिछले जन्म के कर्म इस जन्म पर असर डालते हैं... महान लोग क्या वाकई दोबारा महान बनने के लिए ही जन्म लेते हैं. ये वो सवाल है जो आज भी अनसुलझे हैं.. लेकिन पुनर्जन्म की पहेलियो को सुलझाने का दावा करने वालों की माने तो पिछले जन्म की शख्सियत का अक्स इस जन्म में साफ दिखाई देता है... जो पैदा हुआ है, एक दिन उसका अंत भी होगा, यही कुदरत का कायदा है। विज्ञान भी नहीं मानता कि कोई मरने के बाद फिर पैदा हो सकता है। इंसान का पुर्नजन्म भी होता है। लेकिन समय समय पर अलग अलग जगहों पर ऐसी कहानी सुनने और देखने को मिलती है, जो विज्ञान की आंख से आंख मिलाकर कहती है कि वैज्ञानिकों के सारे तर्क बेकार हैं..

क्या पुनर्जन्म का कोई वैज्ञानिक सिद्धान्त है.. या फिर समाज का एक धार्मिक वर्ग ही इस पर विश्वास करता है... पुनर्जन्म को लेकर कुछ वैज्ञानिक तथ्य है जो आपको चौंका देंगे.. आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे.. विश्व भर में फैले ऐसे कई वैज्ञानिक हैं जिन्होंने पुनर्जन्म पर शोध किया है... और पुनर्जन्म पर अनेक किताबे भी लिखी गई है.. पुनर्जन्म के ऊपर अब तक हुए रिसर्च मे दो रिसर्च बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहला अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन का। जिन्होंने 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक किताब रिइकार्नेशन एंड बायोलॉजी लीखी जो कि पुनर्जन्म से सम्बन्धित सबसे महत्तवपूर्ण किताब मानी जाती है.. दूसरा शोध बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत पसरिया द्वारा किया गया है... डॉ. सतवंत पसरिया ने भी एक बुक श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया लिखी है। डॉ. सतवंत पसरिया के किताब में 1973 के बाद से भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओं का उल्लेख है.. आधुनिक गैलीलियों कहे जाने वाले वैज्ञानिक डा. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है.. अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्हीं की टीम द्वारा किए प्रयोग और अऩुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स किताब में लिखा गया है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित सी हैं। डॉ. सतवंत पसरिया के मुताबिक इस जन्म के संस्कार सूक्ष्म रूप से अन्तर्मन में प्रवेश होकर सूक्ष्म आत्मा से घुल मिल जाते हैं और मरने के बाद भी वे संस्कार अगले जन्म को स्थानांतरित हो जाते हैं.. अपने पूर्व जीवन की स्मृति सूक्ष्म रूप में प्रत्येक व्यक्ति के मनोमस्तिष्क में रहती ही है, भले ही वह उसके सामने कभी निंद्रावस्था में स्वप्न के माध्यम से प्रकट हो या जाग्रतावस्था में बैठे-बैठे उसके मन में किसी विचार अथवा किसी बिंब के माध्यम से प्रकट हो। पुनर्जन्म अर्थात मरने के बाद फिर से नया जन्म होता है या नहीं, इस बारे में विज्ञान अब तक किसी एक नतीजे पर पहुंच नहीं पाया है... पुनर्जन्म को लेकर धर्म दर्शन में भी एक मत नहीं है। भारतीय मूल के सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं, यहां तक कि आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को ले कर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म की संभावना को निश्चित मानते हैं.. फिर से जन्म लेने की तकनीक पर भले ही मतभेद हों, पर दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान रहे हैं। विज्ञान दूसरी तरह से मानता है कि शरीर या जीवन का अंत नहीं होता। उसका रूप बदलता रहता है क्योंकि पदार्थ और शक्ति का कभी नाश नहीं होता। विभिन्न तत्वों यानी की पंचतत्वों के संयोग से जो जीव बनते हैं, मृत्यु के समय वे नष्ट होते तो दिखाई देते हैं पर वास्तव में वे मिट नहीं जाते।

प्राचीन काल से ही जन्म-जन्मांतर के फेरे यानी पिछला जन्म के सूत्र मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई जातक पैदा होता है, तो वह अपनी भक्ति और भोग्य दशाओं के साथ पिछले जन्म के भी कुछ सूत्र लेकर आता है। ऐसा कोई भी जातक नहीं होता है जो अपनी भुक्त दशा और भोग्य दशा के शून्य में पैदा हुआ हो.. ज्योतिष शास्त्र के  मुताबिक मनुष्य के वर्तमान जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा अनायास घट रहा है, वह क्या पिछले जन्म का प्रारब्ध या भोग्य अंश है? दर्शनशास्त्र भी यही कहता है कि पिछले जन्म के अच्छे कर्म इस जन्म में सुख दे रहे हैं या पिछले जन्म के पाप इस जन्म में उदय हो रहे हैं। हो सकता है इस जन्म में हम जो भी अच्छा या बुरा कर रहे हैं, उसका खामियाज या फल अगले जन्म में भोगेंगे या पाप के घड़े को तब तक संभाले रहेंगे जब तक वह फूटता नहीं है। हो सकता है.. इस जन्म में किए गए अच्छे या बुरे कर्म अगले जन्म तक हमारा पीछा करें। पुनर्जन्म की कई अवस्थाओं में व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म की कई बातें याद रहती हैं। कई साधकों ने इस बात का अनुभव किया है कि उन्हें ध्यानावस्था में भांति-भांति के दृश्य और भांति-भांति के विचार आकर घेर लेते हैं। कई बार व्यक्ति के मन में वर्तमान समय में चल रहा कोई द्वंद्व होता है, वहीं उनका एक सूत्र पूर्व जीवन में भी छुपा होता है। प्रायः इसी कारण कई साधकों को विचित्र अनुभव होते रहते हैं। किसी को स्वप्न में बार-बार उफनती नदी का दृश्य, किसी को हथकड़ी तो किसी को कोई स्थान विशेष दिखाई देता है। यह अकारण नहीं है। कभी किसी जन्म में किसी व्यक्ति ने कोई दुष्कर्म किया होगा जिसकी स्मृति में उसके साथ हथकड़ी चलती रहती है। कहीं किसी जन्म की आत्महत्या की स्मृति व्यक्ति के साथ कभी रस्सी के रूप में तो कभी नदी के रूप में चलती रहती है। पिछले जन्म के संस्मरण और यादों को व्यक्त करने वाले कई उदाहरण हमारे सामने पत्र पत्रिकाओं में, टेलिविजन चैनलों में और अखबरों में आए दिन देखने को मिलते हैं। अगर उदाहरण दें तो आम आदमी ही नहीं दुनिया के खास आदमी भी अपनी पिछले जन्म की यादों को लेकर हमारे बीच में विराजमान है। कुलमिलाकर पुनर्जन्म यानी पिछला और यह जीवन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इस मनुष्य लोक में प्राणी मात्र को लाखों योनियां जन्म-जन्मातर तक भोगनी पड़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि सर्प यानी नाग को अपने सात जन्मों की सम्पूर्ण स्मृति दिमाग में रहती है। ऊंट भी अपने तीन जन्मों का पूरा हाल जानते हैं। ऊंट और नाग योनि में ऐसे उदाहरण आते हैं, जब ऊंट अपने पुराने क्रूर स्वामी को जब भी इस जन्म में पहचान लेगा तो अपनी लातों से उस पर आक्रमण करने से बाज नहीं आएगा। सर्प दंश का सार यही है कि वह जब भी आपको आक्रमण करेगा तो यही सोच कर करेगा कि पिछले जन्मों में आपने भी उसे कहीं पर तंग किया होगा। अपने शत्रु से बदला लेने के लिए मगरमच्छ, उदबिलाव और भालू जैसे जानवर भी हैं जो अपने पर उपकार करने वाले पिछले जन्मों के पात्रों को भी नहीं भूलते हैं और हमला करने वाले शत्रुओं को भी कई जन्मों तक दिमाग में संजोये हुए रहते हैं..

मनोवैज्ञानिक भी यही कहते हैं कि व्यक्ति जीवन कई कड़ियों में बंधा है और प्रत्येक कड़ी दूसरी कड़ी के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए एक जन्म के कार्यों का प्रभाव दूसरे जन्म के कार्यों पर भी पड़ता है। मनुष्य की आंतरिक खोज और वाह्य खोज अर्थात आधुनिक विज्ञान की खोज दोनों से यह तो सिद्ध हो चुका है कि मृत्यु के पश्चात भी मनुष्य का अस्तित्व होता है और यदि मृत्यु के बाद उसका अस्तित्व है, तो जन्म से पूर्व भी उसका अस्तित्व होना ही चाहिए। किसी बालक को पिछले जन्म की याद आने और जांच करने पर उन विवरणों को सही साबित होने की बात तो मामूली से प्रमाण हैं। इन विवरणों में कई गप्प और तुकबंदी जैसे भी साबित हो सकते हैं, पर जिन समाजों और संप्रदायों में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता उनमें भी उस तरह की घटनाएं हुई हैं और परखने के बाद सही साबित हुई है। हमारे पास कुछ ऐसे वृतांत हैं जो अपने नश्वर शरीर को त्याग कर अगले जन्म में भी अपने पिछले संस्कारों को लेकर विख्यात हुए हैं। तिब्बत में जन्मे बौद्ध गुरु दलाईलामा जन्म-जन्म से अपने संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। बौद्धावतार की श्रृंखला में आज भी उनकी पूजा तिब्बती नागरिक देवता के रूप में करते हैं। ऐसी मान्यता है कि उन्हें अपने पिछले जन्म और अगले जन्म का पूरा ही वृतान्त याद है। पिछले जन्म में वे कहां पैदा हुए थे और इस शरीर को त्यागने के बाद उनका अगला जन्म कहां होगा वह शरीर त्यागने से पहले ही अपने शिष्यों को बता जाते हैं। उनके शिष्य उनके देह त्याग के तत्काल बाद उनके अगले जन्म के रूप को खोजबीन कर पहचान लेते हैं और मठ लाकर उसे बाल्यकाल से ही श्रेष्ठ धर्म गुरु की पदवी मिल जाती है। उनका दर्शन और ज्ञान और भाषा का उच्चारण जन्म-जन्मान्तर से उनके साथ जुड़ा हुआ रहता है और यह भी कहते हैं कि वे जहां भी जाते हैं उस देश की ही भाषा में बात करते हैं। दूसरा सबसे बड़ा उदाहरण है सत्य सांई बाबा का... सन् 1926 में आंध्र प्रदेश के एक गांव में पैदा हुए सत्य साईं बाबा इस युग के ऐसे चमत्कारी पुनर्जन्मधारी हैं, जो शिरडी के साईं बाबा के अवतार माने गये हैं। उनकी सिद्धियां और तत्व ज्ञान की बातें उस गरीब नवाज साईं बाबा की ही पुनर्जन्म की गाथा है जिसको उसके भक्तगण उनके साक्षात्कार के उपरान्त ही समझ पाते हैं। सत्य साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में खुद को शिरडी के साईं बाबा का पुनर्जन्म के रूप में स्थापित किया था। इस संदर्भ में भी एक कथा है। पहले इनका नाम सत्यनारायण राजू था और बचपन से ही इनमें कई चमत्कारी शक्तियां थीं। यह हवा में हाथ हिलाकर मिठाई एवं खाने-पीने की कई चीजें पैदा कर देते थे। इनकी बुद्घि प्रखर थी। संगीत, नृत्य, गीत, लेखन, इन सभी कलाओं में यह अव्वल थे। 14 वर्ष की उम्र में इन्हें एक दिन एक बिच्छू ने काट लिया। बिच्छू के जहर के कारण सत्यनारायण राजू कई घंटे तक बेहोश रहे। जब इन्हें होश आया उसके बाद से इनके व्यक्तित्व में काफी बदलाव आ गया। कहा जाता है कि सत्यनारायण राजू ने अपनेआप ही संस्कृत बोलना शुरू दिया जबकि संस्कृत भाषा का ज्ञान उन्हें नहीं था। इसी समय सत्यनारायण राजू ने खुद को साईं बाबा कहा और बताया कि वह पूर्व जन्म में शिरडी के साईं बाबा थे। धीरे-धीरे लोगों को इस घटना की जनकारी मिलती गई और सत्यनाराण राजू सत्य साईं के नाम से विख्यात हो गए। सत्य साईं की चमत्कारी शक्तियों से इनके भक्तों की संख्या बढ़ती चली गई और देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित और सम्मानित लोग भी इनके भक्त है।

जन्म और मृत्यु ये दो अटल सत्य माने गए हैं.. जिस जीव ने धरती पर जन्म लिया है उसे एक दिन अवश्य ही मृत्यु प्राप्त होती है। जीव की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा पुन: जन्म लेती है, यह भी एक सत्य है। शास्त्रों के अनुसार जीवन और मृत्यु का यह चक्र अनवरत चलता ही रहता है। आत्मा फिर से जन्म क्यों लेती हैं? यहां पुनर्जन्म का अर्थ है दुबारा जीवन प्राप्त करना। किसी भी जीवात्मा का पुन: यानि फिर से जन्म होता है। आत्मा शरीर धारण करके शिशु रूप में इस धरती पर जन्म प्राप्त करती है और जीवनभर कर्म करती है। अंत में मृत्यु होने पर उसे शरीर छोड़कर जाना पड़ता है। ऐसे में आत्मा को पुन: जन्म लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार आत्मा के पुनर्जन्म के संबंध में बताए गया है कि आत्मा किसी से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लेती है.. यदि किसी व्यक्ति को धोखे से, कपट से या अन्य किसी प्रकार की यातना देकर मार दिया जाता है तो वह आत्मा पुनर्जन्म लेती है..


जो लोग पुनर्जन्म का अस्तित्व नही मानते, मनुष्य को एक चलता-फिरता पौधा भर मानते है, शरीर के साथ चेतना का उद्भव और मरण के साथ ही उसका अंत मानते हैं वे इन असमय उदय हुई प्रतिभाओं की विलक्षणताका कोई समाधान नहीं ढूँढ पायेंगे । वृक्ष-वनस्पति, पशु-पक्षी सभी अपने प्रगति क्रम से बढते हैं, उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विशेषताएँ समयानुसार उत्पन्न होती हैं । फिर मनुष्य के असमय ही इतना प्रतिभा सम्पन्न होने का और कोई कारण नहीं रह जाता कि उसने पूर्व जन्म में उन विशेषताओं का संचय किया हो और वे इस जन्म में जीव चेतना के साथ ही जुडी चली आई हों ।


पुनर्जन्म पर हमेशा से ही भ्रम रहा है। कई लोगों ने इसे माना है तो कई लोगो को आज भी इस पर संदेह है। विज्ञान की बात करें तो विज्ञानिकों में भी अभी तक इसपर भ्रम ही है। हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म कि याद बहुत हि कम लोगो को रह पाती है। इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती है। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों मे सुनने को मिलती है।
आत्मा के अमरत्व तथा शरीर और आत्मा के द्वैत की स्थापना से यह शंका होती है कि मरण के बाद आत्मा की गति क्या है। अमर होने से वह शरीर के साथ ही नष्ट हो तो नहीं सकती। तब निश्चय ही अशरीर होकर वह कहीं रहती होगी। पर आत्माएँ एक ही अवस्था में रहती होंगी, यह नहीं स्थापित किया जा सकता, क्योंकि सबके कर्म एक से नहीं होते। अतएव ऋग्वेदकालीन भारतीय चिंतन में आत्मा के अमरत्व, शरीरात्मक द्वैत तया कर्मसिद्धांत की उपर्युक्त प्रेरणा से यह निर्णय हुआ कि मनुष्य के मरण के बाद, कर्मों के शुभाशुभ के अनुसार, स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है।

आईए जानते है पुनर्जन्म से जुड़ी कुछ और रोचक जानकारी:-

1). ऐसा नहीं हैं कि हर मौत के बाद को इंसान इंसान के रुप में ही जन्म ले. वो अगले जन्म में क्या बनेगा ये उसके कर्मों पर भी निर्भर करता है, कई बार मनुष्य को पशु योनि भी मिलती हैं।

2). अधिकतर बार मनुष्य, मनुष्य के रूप में जन्म लेता है. लेकिन कई बार वो पशु रूप में भी जन्म लेता है जो कि उसके कर्मों पर निर्भर करता है।
  कई बार हम देखते हैं कि हम किसी का बुरा नहीं चाहते है, लेकिन फिर भी हमारे साथ बुरा होता है. इसकी वजह है पिछले जन्मों के कर्म जो कि मनुष्य को भोगना ही पड़ते हैं. ये बात अलग है कि अच्छे कर्मों की वजह से सुख भी मिलता हैं।

4). हिन्दू मानते हैं कि केवल यह शरीर ही नश्वर है जो कि मरने के बाद नष्ट हो जाता है. शायद इसीलिए मृत्यु क्रिया के समय सिर पर मारकर उसे तोड़ दिया जाता है जिससे कि व्यक्ति इस जन्म की सारी बातें भूल जाये और अगले जन्म में इस जन्म की बातें उसे याद ना रहे. उनका मानना है कि आत्मा बहुत ऊंचाई में आकाश में चली जाती है जो कि मनुष्य की पहुँच से बाहर है और यह नए शरीर में ही प्रवेश करती है।

5). कहा जाता है कि मुक्ति सिर्फ मानव जन्म में ही मिलती है. कहते है कि मानव जीवन अनमोल है, इसके लिए उसे 84 लाख योनियों से गुजरना पड़ता हैं, तब जाकर मनुष्य जीवन मिलता हैं।
कुछ ऋषियों के अनुसार पूर्वजन्म के समय हमारे दिमाग में हर चीज रहती है लेकिन बहुत कम बार ही ऐसा होता है कि इंसान को उसके पिछले जन्म की बातें याद रहें इसका मतलब है कि हमारे पूर्व जन्मों की बातें हमारे दिमाग में रिकॉर्ड रहती हैं लेकिन हम इन्हें कभी याद नहीं कर पाते हैं।

मांड्‌या में बाबा के सम्मान में 2003 में स्थापित किए गए सत्य साईं मंदिर के प्रमुख माधेगौडा का कहना है, ''1963 में ही हमें बता दिया गया था कि बाबा का अगला अवतार मांड्‌या में होगा. अब हम इंतजार नहीं कर सकते, मांड्‌या को वरदान मिला है.'' माधेगौडा ने सत्य साईं स्पीक्स, खंड3 में दर्ज ब्यौरे को उद्‌धृत किया है. इस ग्रंथ में साफ कहा गया है कि 16 जुलाई, 1963 को गुरुपूर्णिमा के दिन बाबा ने अपने भक्तों के बीच घोषणा की थी कि वे बंगलुरू और मैसूर (1972 में मैसूर को कर्नाटक नाम दे दिया गया) के बीच स्थित मैसूर राज्‍य में प्रेम साईं के रूप में पुनर्जन्म लेंगे.


बताया जाता है कि सत्य साईं बाबा ने 1970 में अपने श्रद्धालु जॉन हिस्लॉप को एक अंगूठी दी थी, जिसमें उनके अगले अवतार की अस्पष्ट छवि थी. वह छवि वक्त के साथ बदलती रही और फिर एक दाढ़ी वाले युवक के रूप में दिखने लगी. हिस्लॉप ने अपनी पुस्तक माई बाबा ऐंड आइ में लिखा है, ''उस छवि में सौम्य चेहरे, कंधे तक बाल, मूंछ दाढ़ी वाला व्यक्ति है और उसका आसन कमल है या वह उससे उभर रहा है.''

हिस्लॉप के अनुसार, बाबा ने उन्हें बताया था, ''अब वह जन्म लेने की प्रक्रिया में है, लिहाजा मैं अभी उसे ज्‍यादा नहीं दिखा सकता. उसे पहली बार दुनिया को दिखाया गया है.'' 1980 तक हिस्लॉप को विश्वास हो चला था कि चेहरा पूरी तरह आकार ले चुका है. 1995 मेंहिस्लॉप की मौत कैंसर से हो गई और उस अंगूठी का अभी तक कोई पता ठिकाना नहीं है, हालांकि पुट्टपर्थी आश्रम के लोग कई रेखाचित्र पेश कर चुके हैं.

बंगलुरू स्थित साईं मंदिर के प्रमुख साईं लोकेश मूर्ति का कहना है, ''1940 में पुट्टपर्थी ऐसा गांव था जहां न बिजली थी, न पानी. कोई अखबार नहीं था और टेलीविजन तो था ही नहीं. फिर भी बाबा को अपने देवत्व के बारे में लोगों को समझने में कोई समस्या नहीं हुई. आज, प्रेम साईं पहले से ही विकिपीडिया में जगह पा चुके हैं. मुझे पक्का यकीन है कि शीघ्र ही एक फेसबुक पेज भी बन जाएगा. और तिथि या साल के बारे में कोई भ्रम नहीं है.

देवतागण अपनी तरह से गणना करते हैं, जो जरूरी नहीं है कि हमारी गणना से मेल खाए.'' 64 वर्षीय मूर्ति ने इस साल के आखिर तक कावेरी के पास श्रीरंगपट्टन में डेरा डालने और वहीं अवतार का इंतजार करने का फैसला किया है. दूसरे लाखों लोगों की तरह इसमें कोई भी शामिल हो सकता है.







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