रविवार, 14 जनवरी 2018

अयोध्या- 6 दिसंबर 1992


विरासत जब सदियों पुरानी हो, तो सियासत की कहानी में तमाम पेंच तो अपने आप ही जुड़ जाते हैं... ऐसे में अयोध्या की ये जमीन और इस पर खड़ी ये विरासत भला अपवाद कैसे हो सकती है... अगर अपवाद होती, तो इसके वजूद की कहानी में विवादों और बवाल से भरा ये पन्ना नहीं जुड़ा होता...  इस पर मस्जिद और मंदिर की दावेदारी नहीं होती.... 6 दिसंबर 1992 को बीते 25 साल हो गये.. मगर आज भी मजहब को लेकर जनमानस की संवेदना दो धड़ों में बंटी दिखाई देती है... तभी तो अयोध्या का मसला आज सियासत का सबसे बड़ा एजेंडा बन गया है... इस बात का जिक्र सीबीआई ने भी अपनी चार्जशीट में किया है... 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद कारसेवकों पर दर्ज हुए मामलों की जांच करते हुए सीबीआई ने महसूस किया है कि ये एक दिन की औचक घटना नहीं, बल्कि इसके पीछे बड़ी तैयारी और साजिश थी... 6 दिसंबर 1992 की उस घटना में वो शायद साजिश के ही सुराग थे, जिसके साथ सियासत के मंसूबे और इसे लेकर अयोध्या की आशंकाएं बदलती चली गईं... मंदिर-मस्जिद को लेकर दलीलें दोनों तरफ से उग्र हो चली थीं... सियासी तनाव के बीच मजहबी टकराव की घटनाएं भी उस दौर में बढ़ती चली गई... कई शहर जले और कई घर इस आंच में झुलस गये... विवादात ढांचा गिराने होने की घटना को आज पूरे 25 बरस हो गए हैं... 6 दिसंबर 1992 को हिंदू कार सेवकों की लाखों की भीड़ ने विवादात ढांचा को ढहा दिया, जिसके बाद देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे हुए... जब विवादित ढांचा गिराया गया, उस समय राज्य में कल्याण सिंह की सरकार थी. उस दिन सुबह करीब साढ़े दस बजे हजारों-लाखों की संख्या में कारसेवक विवादित स्‍थल पर पहुंचने लगे... भीड़ की जुबां पर उस वक्त जय श्री राम  का ही नारा था... भीड़ उन्मादी हो चुकी थी... विश्व हिंदू परिषद, बीजेपी के कुछ नेता वहां मौजूद थे... भारी सुरक्षा के बीच लोग लगातार विवादात ढांचा की तरफ कदम बढ़ा रहे थे... दोपहर 12 बजे के करीब कारसेवकों का एक बड़ा जत्था मस्जिद की दीवार पर चढ़ने लगा... लाखों के भीड़ में कारसेवक मस्जिद पर टूट पड़े और कुछ ही देर में विवादात ढांचा को कब्जे में ले लिया... पुलिस के आला अधिकारी मामले की गंभीरता को समझ रहे थे लेकिन गुंबद के आसपास मौजूद कार सेवकों को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी... दोपहर के तीन बजकर चालीस मिनट पर पहला गुंबद भीड़ ने तोड़ दिया और फिर 5 बजने में जब पांच मिनट का वक्त बाकी था तब तक पूरा का पूरा विवादित ढांचा जमींदोज हो चुका था... पूरा अयोध्या भगवा झंडों से पट चुका था. हर तरफ कार सेवक नजर आ रहे थे. 25 साल पहले अयोध्या में जो भी हुआ वो खुल्लम खुल्ला हुआ. हजारों की तादाद में मौजूद कारसेवकों के हाथों हुआ... घटना के दौरान मंच पर मौजूद मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और लालकृष्ण आडवाणी के सामने हुआ... ये सभी नाम तब दर्ज की गई सीबीआई की चार्जशीट में शामिल किये गये थे. इन पर आपराधिक साजिश में शामिल होने के सुराग भी सीबीआई की उसी जांच के दौरान सामने आए थे.

अयोध्या हिंदुस्तान की वो नगरी, जो मंदिर-मस्जिद विवाद के साए में तीन चश्मों से देखी जा रही है. इसे लेकर मजहब का नजरिया कुछ और है और सियासत का कुछ और. तीसरा चश्मा अयोध्या के अतीत का है, इसे लेकर ऐतिहासिक दस्तावेजों और आंखों देखी बयान हैं. इस नजरिए से देखें, तो अयोध्या में मंदिर-मस्जिद जैसा विवाद होना ही नहीं चाहिए... अयोध्या किस साजिश का शिकार हुई कि अमन की नगरी सुलगने लगी?..  इसे किसने बांट दिया मंदिर और मस्जिद के खेमे में? एक हिन्दू बड़े वर्ग का कहना है कि भगवान श्रीराम की नगरी में विवाद का बीज 5 सौ साल पहले मुगल शासक बाबर ने बोया. उसी के शासन में राममंदिर तोड़ा गया और इसकी जगह मस्जिद बनवाई गई. यहीं से नफरत का बीज पनपा और समाज में दो खेमों में बंट गया... अयोध्या विवाद आजादी के बाद से अब तक न जाने कितने जख्म दे चुका है, हिंदुस्तान की साझी विरासत के खाके को मजहब की दीवार के साथ ऐसे बांट चुका है, कि ऐतिहासिक दस्तावेज भी इसके आगे बेमतलब हो चुके हैं. इनके मुताबिक बात तो ये सामने आती है, कि इसे तो बाबर ने बनवाया ही नहीं था... मुगलिया इतिहास की तारीखें ये बताती है कि बाबर मार्च 1526 में हिंदुस्तान आया था. मात्र 12 हजार सैनिकों के साथ उसने पानीपत में दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी के साथ जंग लड़ी थी. 20 अप्रैल को इब्राहिम लोदी का कत्ल करने के एक हफ्ते बाद दिल्ली में उसकी ताजपोशी हुई.... उसके आयोध्या आने की बात 1528 में की जाती है... राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात इसी साल की जाती है.. पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी रह चुके किशोर कुणाल ने 20 साल के शोध के बाद अयोध्या रीविजिटेड नाम की किताब लिखी है. इस किताब में वो ऐसे तमाम तथ्यों को खारिज करते हुआ लिखा है कि- बाबर एक आक्रमणकारी के तौर पर अयोध्या आया, यहां एक लाख 74 हजार हिंदुओं का नरसंहार कराया और उनके अराध्य का मंदिर तोड़कर अपने नाम से मस्जिद बनवाई...

साजिश के सुराग मिले, चेहरे भी पहचाने गए, फिर हालात जस का तस क्यों? सियासी रस्साकशी के साथ अयोध्या में वो हुआ, जिसकी कल्पना भी नहीं कोई कर सकता था. 25 साल पहले का वो मंजर आज भी कल्पना से बाहर हो सकता है. आखिर कारसेवकों के जमावड़े के साथ ऐसे कैसे हो गया, जिसे कानून व्यवस्था के तमाम इंतजामों और सख्त पहरेदारों के बीच रोका नहीं गया?..  6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ, वो सरेआम हुआ, मगर सीबीआई जांच में सुराग कुछ साजिशों के भी हाथ लगे... राम मंदिर मामले पर कोर्ट से बाहर सेटलमेंट के लिए सुप्रीम कोर्ट की पहल पर तमाम पक्षों को अपनी राय रखनी है... इस बीच कोर्ट ने मामले पर तुरंत सुनवाई से इनकार किया है.. इससे पहले की सुनवाई में देश की शीर्ष अदालत ने इसे धर्म और आस्था से जुड़ा मामला बताते हुए तमाम पक्षकारों से आपसी बातचीत के जरिए हल खोजने को कहा था... यहां तक कि कोर्ट ने जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता की पेशकश भी की थी.. कोर्ट ने एक हफ्ते का समय दिया था.. अब अदालत सुलह की कोशिशों के लिए और समय देने के पक्ष में है.. अदालत की इस पहल से पूरे देश को दशकों से चले आ रहे इस संवेदनशील मामले के जल्द समाधान की उम्मीद जगी है... लेकिन कितनी गुंजाइश है इस मामले में कोर्ट से बाहर सुलह की कहना थोड़ा मुश्किल है.. अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद बातचीत की पहल हुई.. दोनों पक्षकारों से इस मामले पर बात की और मुद्दे के समाधान को लेकर कोशिश की... हिंदू और मुसलमान दोनों ही पक्षों ने कहा कि इस मामले पर केंद्र सरकार दोनों पक्षों से अलग-अलग बात करे... पक्षकारों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कई बाते रखीं जिनमें चार शर्तें सामने आईं.. शर्त नम्बर 1- उसी 2.7 एकड़ जमीन पर बने राम मंदिर-मस्जिद... शर्त नम्बर दो- पहल आगे बढ़ाने के लिए केंद्र नुमाइंदे भेजे... तीसरे शर्त के तहत सुब्रमण्यम स्वामी और हाजी महबूब जैसे विवाद बढ़ाने वाले लोग दूर रखे जाने की बात कही गई है.. और चौथे शर्त के तहत अयोध्या में दोनों पक्षकार एक साथ बैठें.... अयोध्या मामले का एक सबसे बड़ा पहलू है कि इस मामले को लेकर देश में जितना भी विवाद उठा हो लेकिन अयोध्या में कभी दंगे नहीं हुए. इस मामले के तमाम पक्षकार कहते हैं कि इसका शांतिपूर्वक समाधान संभव है.. बस बाहर के लोग माहौल खराब न करें... हनुमानगढ़ी मंदिर के महंत ज्ञानदास का भी कहना है कि सबकी सहमति से और न्यायलय की मध्यस्थता में इस मामले का शांतिपूर्ण समाधान होना चाहिए... दोनों पक्ष इसपर सहमत हो सकते हैं. वहीं दूसरे पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि परिसर में ही राम मंदिर और मस्जिद का निर्माण हो सकता है... हाईकोर्ट ने इसी आधार पर फैसला सुनाया था... इस मामले में नए राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिशें नहीं होनी चाहिए...

ऐसा नहीं है कि इस मामले में सुलह की ये पहली कोशिश है. इससे पहले 9 बार सुलह की कोशिश हो चुकी है और प्रधानंमत्री के स्तर से भी कोशिशें हो चुकी हैं.. बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर सुलह की पहली कोशिश 1859 में हुई थी. हिन्दू और मुसलमान के बीच दंगे के बाद अंग्रेज अफसरों ने दोनों पक्षों के जिम्मेदार लोगों को बैठाकर मामले को खत्म कराने की कोशिश की और बाड़ लगाकर विवादित जगह को दो भागों में बांट दिया. लेकिन इससे हल नहीं निकला... 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के बाद नमाज पढ़ा जाना बंद हो गया... साल 1984 में मंदिर निर्माण के लिए एक कमेटी का गठन किया गया... साल 1986 में राजीव गांधी के शासनकाल में फैजाबाद सेशन कोर्ट ने विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया... 1986 में इस विवादित स्थल को श्रद्धालुओं के लिए खोला गया. इसी साल 1986 में ही बाबरी मस्जिद कमेटी का गठन किया गया... 1989: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी... 1990 लाल कृष्ण आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा की शुरुआत की. साल 1991 में रथयात्रा का पायदा बीजेपी को हुआ और वो यूपी की सत्ता में आ गई. मंदिर बनाने के लिए देशभर से ईंटें भेजी गईं...  6 दिसंबर 1992 के दिन हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया, जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे हुए. पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री के काल में एक कमीशन गठित किया गया, दोनों पक्षों से बातचीत की कोशिशें हुईं लेकिन बातचीत नतीजे तक ना पहुंच पाई... प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपने कार्यकाल के दौरान सुलह करने की कोशिश की... वाजपेयी ने इसको लेकर दोनों पक्षों से बात भी की लेकिन वो दोनों पक्षों को समझौतों के लिए एक मंच पर नहीं ला पाए... 31 मई 2016 को भी विवाद को लेकर हाशिम अंसारी और महंत नरेंद्र गिरी के बीच बैठक तय हुई थी लेकिन हाशिम अंसारी का इससे पहले की इंतकाल हो गया और ये बैठक फिर कभी नही हो पाई...

आज से ठीक 25 साल पहले तारीख 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या पहुंचकर हजारों की संख्या में कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया था... इसके बाद हर तरफ सांप्रदायिक दंगे हुए. पुलिस द्वारा लाठी चार्ज और फायरिंग में कई लोगों की मौत हो गई. जल्दबाजी में एक अस्थाई राम मंदिर बनाया गया... प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुनर्निर्माण का वादा किया... 16 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की जांच के लिए एमएस लिब्रहान आयोग का गठन किया गया.. आयोग के गठन के दो साल बाद 1994 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ... हाई कोर्ट में केस दर्ज होने के लगभग 7 साल बाद.. 4 मई, 2001 को स्पेशल जज एसके शुक्ला ने बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी सहित 13 नेताओं से साजिश का आरोप हटा दिया... 1 जनवरी, 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक अयोध्या विभाग शुरू किया. इसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था... 1 अप्रैल 2002 को अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की... 5 मार्च 2003 को इलाहबाद हाई कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अयोध्या में खुदाई का निर्देश दिया, ताकि मंदिर या मस्जिद का प्रमाण मिल सके... 22 अगस्त, 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई के बाद इलाहबाद हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश किया... भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपने रिपोर्ट में कहा गया कि मस्जिद के नीचे 10वीं सदी के मंदिर के अवशेष प्रमाण मिले हैं... मुस्लिम समाज में इसे लेकर अलग-अलग मत दिखे... जिसके बाद इस रिपोर्ट को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने चैलेंज किया... सितंबर 2003 में एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए... जुलाई 2009 में लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.. 26 जुलाई, 2010 को इस मामले की सुनवाई कर रही इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने फैसला सुरक्षित किया और सभी पक्षों को आपस में इसका हल निकाले की सलाह दी.....  लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी कोई आगे नहीं आया... फिर 30 सितंबर 2010 को  इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया... इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले के तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा दिया गया... इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला... लेकिन जल्द ही सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी... और फिर से 21 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही... 19 अप्रैल 2017 को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 10 लोगों के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का आदेश दिया है.


अयोध्या की कहानी एक रथयात्रा के साथ बदलनी शुरू होती है.

13 मार्च, 2002: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में यथास्थिति बरक़रार रखने का आदेश दिया.
22 जून, 2002: विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की मांग की.
जनवरी 2003: विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर की हकीकत पता लगाने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया गया पर इसका कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला.
मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया.
अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसमें मंदिर से मिलते जुलते अवशेष मिले हैं.
मई 2003: 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ सीबीआई ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किए.
जून 2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई लेकिन कुछ नहीं हुआ.
अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए.
जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए.
जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या मामले में अदालत में तलब किया गया.
28 जुलाई 2005: लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में रायबरेली की अदालत में पेश हुए. अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ आरोप तय किए.
जुलाई 2006: सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया.
30 जून 2009: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 17 वर्षों के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी. इस आयोग का गठन बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की जांच के लिए गठित किया गया था.
7 जुलाई, 2009: उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफ़नामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं.
24 नवंबर, 2009: संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रपट पेश. अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया. नरसिंह राव को साफ-साफ बचा लिया.
मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में ख़ारिज.
जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी.
17 सितम्बर 2010: कोर्ट ने दोनों पक्षों को कोर्ट के बाहर सुलह के लिए बुलाया ताकि मामले का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके.
17 सितम्बर 2010: कोर्ट के बाहर निर्मोही अखाड़ें ने समझौते पर अपनी रजामंदी जताई. 10 दिन का मोहलत मांगी.
24 सितम्बर 2010: मालिकाना हक पर फैसला दिया जाएगा.
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