भारत में भले ही एक वर्ग के लोग रामसेतु को
काल्पनिक बताते हों, पर अमेरिकी भूगर्भ वैज्ञानिकों की एक टीम ने
रामसेतु के अस्तित्व पर मुहर लगा दी है... अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु को
लेकर कहा है कि रामसेतु मानव निर्मित है... वैज्ञानिकों
का कहना है कि रामायण में जिस सेतु का जिक्र है, वह 7 हजार साल पुराना है... अमेरिकी साइंस चैनल ने वैज्ञानिकों और
आर्कियोलॉजिस्ट के अध्ययन की रिपोर्ट के आधार पर यह दावा किया है... अमेरिकी आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने सेतु स्थल के
पत्थरों और बालू के सैटेलाइट से मिले चित्रों का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट
जारी की है... रिपोर्ट में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने रामसेतु के अस्तित्व के दावे
को सच बताया है... वैज्ञानिकों ने इसको एक सुपर ह्यूमन एचीवमेंट भी बताया है...
अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो भारत-श्रीलंका के बीच 30 मील के क्षेत्र में बालू की
चट्टानें पूरी तरह से प्राकृतिक हैं, लेकिन उन पर रखे गए पत्थर कहीं और से लाए गए
प्रतीत होते हैं... नासा की रिपोर्ट में इन पत्थरों की उम्र करीब सात हजार साल से
भी पुरानी बताई जा रही है... वहीं रिपोर्ट में यहां मौजूद पत्थरों नीचे वाले भाग
को भी करीब चार-पांच हजार साल पुराना बताया गया है... ‘एंसिएंट लैंड ब्रिज’ के
नाम से बने इस प्रोग्राम में पुल को ‘ मनुष्य-निर्मित’ होने के पीछे के वैज्ञानिक आधार भी
बताए गए हैं जिसमें कई पुरातत्वविदों की रिसर्च का उल्लेख भी किया गया है.. पुरातत्वविदों
के अनुसार अगर एक बार के लिए मान भी लिया जाए कि यह पुल चूना पत्थर के जमा होने से
अपने आप ही बन गया, तो भी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि
इसके ऊपर जो पत्थर हैं वे अपने आप समुद्र द्वारा निर्मित नहीं हैं... भू-वैज्ञानिकों ने नासा की तरफ से ली गई
तस्वीर को प्राकृतिक बताया है.. वैज्ञानिकों ने अपने विश्लेषण में यह पाया कि 30
मील लंबी यह श्रृंखला चेन मानव निर्मित है.. अपने विश्लेषण में भू-वैज्ञानिकों को
यह पता चला कि जिस जगह पर यह पत्थर रखा हुआ है ये कहीं दूर जगह से यहां पर लाया
गया है.. उनके मुताबिक, यहां पर लाया गए पत्थर करीब 7 हजार साल पुराना
है.. जबकि, जिस सैंड के ऊपर यह पत्थर रखा गया है वह मजह
सिर्फ चार हजार साल पुराना है.. खास बात यह है कि हमारे पौराणिक ग्रंथो के अनुसार
भी रामायण की घटनाओं का जो समय बताया जाता है वह भी यही है.. इस रामसेतु को लेकर
विवाद भी कम नहीं हुए हैं.. बहरहाल नासा की तस्वीरों से इतना तो तय हो गया है कि
रामसेतु की पूरी संरचना मानव निर्मित है। भविष्य में यह संभव है कि भगवान राम से
जुड़े और भी तथ्य औऱ प्रमाण हमारे सामने आएं। फिलहाल डिस्कवरी कम्युनिशेन के साइंस
चैनल ने रामसेतु पुल को एक बार फिर चर्चा में लाकर खड़ा कर दिया है.. अमेरिकन
भू-वैज्ञानिक ने कहा है कि भारत में रामेश्वर के नजदीक पामबन द्वीप से श्रीलंका के
मन्नार द्वीप तक लंबी इस बनी पत्थरों की यह श्रृंखला मानव निर्मित है।
भारतीय इतिहास की प्रामाणिकता पर संदेह करने
वालों की लंबी तादाद है.. लेकिन रामसेतु को लेकर नासा की रिपोर्ट ने इतिहासकारों
को एक बार फिर इतिहास के पन्नों को पलटने पर विवश कर दिया है.. नासा की रिपोर्ट ने
ये साबित कर दिया है कि हमारा इतिहास वही है जो आज भी हमारे हृदय में संरक्षित है..
श्रुति एवं स्मृति परम्परा से अपने इतिहास को जानने सीखने वाले भारतीय जनमानस ने
अपने इतिहास और संस्कृति पर दृढ़ विश्वास कायम रखा है और अब सत्य सामने आ रहा है..
लेकिन अभी भी हमारे समाज में ऐसे हजारों लोग हैं जो इस तथ्य को मानने से इंकार कर
रहे हैं और अब भी राम और कृष्ण को कल्पना के नायक मानते हैं... लेकिन ज्यादातर
भारतीय ऐसे हैं जो अपने विश्वास पर हमेशा से अटल हैं.. रामेश्वरम् से श्री लंका के
मन्नार द्वीप तक समुद्र पर सेतु की पूरी रिपोर्ट को अमरीकन वैज्ञानिकों ने अचरज से
स्वीकारा है और श्रीराम द्वारा इस सेतु निर्माण को स्वीकारा है.. सालों के शोध के बाद वैज्ञानिकों ने रामसेतु
पुल में इस्तेमाल हुए पत्थरों का वजूद खोज निकाला है.. विज्ञान का मानना है कि
रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के
पत्थर हैं.. जिन्हें प्यूमाइस स्टोन कहा
जाता है.. वैज्ञानिकों के मुताबिक यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होता है..
वैज्ञानिकों का मानना है कि जब ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी हवा से
मिलता है तो हवा का संतुलन बिगड़ जाता है.. यह प्रक्रिया एक ऐसे पत्थर को जन्म देती
है जिसमें कई सारे छिद्र होते हैं। छिद्रों की वजह से यह पत्थर स्पॉंजी रूप ले
लेता है जिस कारण इनका वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है.. इस खास पत्थर
के छिद्रों में हवा भरी रहती है। यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता
नहीं है.. लेकिन कुछ समय के बाद जब धीरे-धीरे इन छिद्रों में हवा के स्थान पर पानी
भर जाता है तो इनका वजन बढ़ जाता है और यह पानी में डूबने लगते हैं.. यही कारण है
कि रामसेतु पुल के पत्थर कुछ समय बाद समुद्र में डूब गए और उसके भूभाग पर पहुंच गए..
नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा जो कि विश्व की सबसे विख्यात वैज्ञानिक
संस्था में से एक है उसने सैटलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोज निकाला है.. इन
तस्वीरों के मुताबिक वास्तव में एक ऐसा पुल जरूर दिखाया गया है जो कि भारत के
रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक पहुंचता है.. परन्तु किन्हीं
कारणों से अपने आरंभ होने से कुछ ही दूरी पर यह समुद्र में समा गया है.. रामेश्वरम
में कुछ समय पहले लोगों को समुद्र तट पर कुछ वैसे ही पत्थर मिले जिन्हें प्यूमाइस
स्टोन कहा जाता है... लोगों का मानना है कि यह पत्थर समुद्र की लहरों के साथ बहकर
किनारे पर आए हैं.. बाद में लोगों के बीच यह मान्यता फैल गई कि हो ना हो यह वही
पत्थर हैं, जिन्हें श्रीराम की वानर सेना द्वारा रामसेतु
पुल बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया होगा... कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सच
है कि प्यूमाइस स्टोन पानी में नहीं डूबते और ऊपर तैरते हैं और यह ज्वालामुखी के
लावा से बनते हैं.. लेकिन उनका यह भी मानना है कि रामेश्वरम में दूर-दूर तक सदियों
से कोई भी ज्वालामुखी नहीं देखा गया है..
रामसेतु जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एडेम्स
ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है.. हिन्दू धार्मिक ग्रंथ
रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम की
वानर सेना द्वारा भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम पर बनाया गया था, जिसका
दूसरा किनारा वास्तव में श्रीलंका के मन्नार तक जाकर जुड़ता है... ऐसी मान्यता है
कि इस पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वह पत्थर पानी में
फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे.. बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे.. ऐसा
क्या कारण था कि यह पत्थर पानी में नहीं डूबे?.. कुछ
लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इसके पीछे
क्या तर्क देता है यह बिल्कुल विपरीत है... लेकिन इससे ऊपर एक बड़ा सवाल यह है कि ‘क्या
सच में रामसेतु नामक कोई पुल था’.. क्या सच में इसे हिन्दू धर्म के भगवान
श्रीराम ने बनवाया था? और यदि बनवाया था तो अचानक यह पुल कहां गया... धार्मिक
मान्यता के मुताबिक जब असुर सम्राट रावण माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका
ले गया था, तब श्रीराम ने समुद्र पार कर लंका जाने की
योजना बनाई... लेकिन यह सब कैसे होगा, यह एक बड़ा सवाल था। क्योंकि रास्ते में था एक
विशाल समुद्र जिसे पार करने का कोई जरिया हासिल नहीं हो रहा था.. अपनी मुश्किल का
हल निकालने के लिए श्रीराम द्वारा समुद्र देवता की पूजा आरंभ की गई। लेकिन जब कई
दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र
को सुखा देने के उद्देश्य से अपना धनुष-बाण उठा लिया.. तभी भयभीत होकर समुद्र
देवता प्रकट हुए और बोले, “श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर
पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा.. समुंद्र के
आज्ञा के बाद यह विशाल पुल वानर सेना द्वारा केवल 5 दिनों में ही तैयार कर लिया
गया था.. निर्माण पूर्ण होने के बाद इस पुल की लम्बाई 30 किलोमीटर और चौड़ाई 3
किलोमीटर थी.. 3 किलोमीटर चौड़ा और 30 किलोमीटर लंबे इस पुल की सत्यता क्या है समय-समय
पर इसपर बहस होती रही है और भूगर्भ-वैज्ञानिकों की रिसर्च इसपर लगातार जारी है..
हिंदू धार्मिक मान्यता अनुसार समुद्र के रास्ते श्रीलंका से भारत को जोड़ता हुआ यह
पुल रामायण काल में बना था.. कई इतिहासकारों
के अनुसार यह समुद्र के खारे पानी में चूना पत्थर के इकट्ठा होने से बना है जिसने
प्राकृतिक रूप से पुल का आकार ले लिया, जबकि कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार यह 7000 वर्ष
पुराना है जो रामायणकाल में इसके बने होने की बात पुख्ता करता है..
राम सेतु रामेश्वरम में स्थित है और रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र
तीर्थ स्थल है.... रामेश्वरम् वाकई एक तीर्थ स्थान होने के साथ साथ एक मनमोहक स्थल
भी है....जो हमें त्रेतायुग का अनुभव करा ही देता है...रामेश्वरम का चप्पा चप्पा
प्रभु श्रीराम का गुणगान करता है और यह एक अटल सत्य है... यह तमिलनाडु के
रामनाथपुरम जिले में स्थित है....यह तीर्थ हिन्दुओं के चार पवित्र धामों में से एक
है...यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है....
भारत के उत्तर में काशी की जो मान्यता है, वही दक्षिण में रामेश्वरम् धाम की है... रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा
425 मील दक्षिण-पूर्व में है....यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से
घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार का द्वीप है...यह द्वीप एक समय में भारत की मुख्य भूमि
के साथ जुड़ा हुआ था, समय के साथ वह चारों ओर पानी से घिरकर एक टापू बन गया...जिस स्थान पर
यह टापु मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था, वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी है....शुरू में इस खाड़ी को नावों
से पार किया जाता था...बताया जाता है, कि बहुत पहले धनुष्कोटि से मन्नार् द्वीप तक लोग पैदल भी जाते
थे....लेकिन सन 1480 में एक चक्रवाती तूफान से उठी सागर की लहरों ने इस मिलाने
वाली कड़ी को काट डाला.... यहां समुद्र में लहरे बहुत कम होती है.....और शांत बहाव
को देखकर ऐसा लगता है, कि मानो वह किसी बड़ी नदी को पार कर रहे हों.... वाकई रामेश्वरम का खूबसूरत नज़ारा आँखों में कैद
करने जैसा होता है.. रामेश्वरम मंदिर के पास ही सागर में आज भी आदि-सेतु के अवशेष
दिखाई देते हैं.. कहा जाता है कि लंका पर चढ़ाई करने से पहले वानर सेना की मदद से
इस सेतु का निर्माण किया गया था लेकिन लंकाविजय के बाद जब विभीषण को सिंहासन सौंप
दिया गया तो विभिषण के अनुरोध पर धनुषकोटि नामक स्थान पर इस सेतु को तोड़ दिया गया
था.. आज भी लगभग 48 किलोमीटर लंबे इस सेतु के अवशेष मिलते हैं..
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