रविवार, 14 जनवरी 2018

कैलाश पर्वत


कैलाश पर्वत को लेकर सनातन धर्म भगवान शिव का निवास स्थान मानते हैं.. बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि यह भगवान बुद्ध का निवास स्थल है.. तिब्बती इसे अपनी आध्यात्मिक शक्ति का आधार मानते हैं। जबकि जैन धर्म की यह मान्यता है की आदिनाथ रेशव देव का यह निर्माण स्थल अष्ट पद है... सिख लोगों का मानना यह है कि गुरुनानक देव जी ने यहां कुछ दिन रुक के ध्यान किया था इसी लिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है.. कैलाश पर्वत प्रकृति की एक सुंदर रचना है। माना जाता है यदि कोई पिरामिड प्रकृति ने खुद बनाया है तो वह कैलाश पर्वत ही है। प्राचीन सनातन ग्रंथों में भगवान शिव को कैलाश पर्वत का स्वामी बताया गया है.. पुरणों के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती यहीं पर निवास करते हैं। कैलाश पर्वत को एक्सिस मुंडी भी कहा जाता है जो ब्रह्मांड का केंद्र.. दुनिया की नाभि.. या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव भी कहा जाता है.. यह स्थान आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है जहां चारों दिशाएं मिल जाती हैं। एक्सिस मुंडी वह स्थान है जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और हम उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं.. रशिया के वैज्ञानिक ने भी इस स्थान को कैलाश पर्वत बताया है। कैलाश पर्वत और उसके आस पास के वातावरण पर अध्यन कर रहे रसिया के वैज्ञानिक Tsar Nikolai Romanov और उनकी टीम ने तिब्बत के मंदिरों में धर्मं गुरुओं से मुलाकात की... वैज्ञानिकों के मुताबिक कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ telepathic संपर्क करते है। भगवान शिव और देवी पार्वती का निवास कैलाश पर्वत लोगों के लिए किसी कल्पना लोक से कम नहीं है। कैलाश मानसरोवर अपने धार्मिक मूल्य और अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह अत्यंत दुष्कर यात्राओं में से एक है। कैलाश मानसरोवर केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि लोगों की आस्था का मानक भी है, कहते है सारे 'तीरथ सौ बार, कैलाश यात्रा एक बार' इसलिए हर भक्त की दिली ख्वाईश होती है कि वो अपने जीवन के अंतिम सांस से पहले एक बार कैलाश पर्वत की यात्रा जरूर कर ले। धर्म-ग्रंथों के मुताबिक तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव ने कैलाश पर्वत पर ही समाधि लगाई थी। जबकि तिब्बती बौद्धों का मानना ​​है कि परम आनन्द के प्रतीक बुद्ध धर्मपाल कैलाश पर्वत के अधिष्ठाता देव हैं और वे कैलाश पर्वत पर ही निवास करते हैं। जैन धर्म के अनुयायी कैलाश को अष्टापद कहते हैं। उनका मानना है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध धर्म का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष मौजूद है जिसके फलों में चिकत्सीय गुण है जो सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम है हलाकि कैलाश मानसरोवर से जुड़े हज़ारो रहस्य पुराणों में भरे पड़े है। शिव पुराण, स्कन्द पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खुंड नाम से एक अलग ही अध्याय है.. कैलाश पर्वत की महिमा का गुणगान किया गया है यह तक पहुंच कर ध्यान करने वालो को मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारतीयों का यह प्रमुख स्थल है यहां की जाने वाली तपस्या तुरंत ही मोक्ष प्रदान करने वाली होती है.

देखने में तो कैलाश पर्वत एक विशाल कैथेड्रिल जैसा है…..पर्वत एक दम सीधा सा है इसकी साइड्स भी एक दम सीधी हैं और हजारों फीट तक की हैं, पर्वत को अलग करने वाली रेखायें साफ दिखाई देती हैं.. इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इस पूरे पर्वत को बहुत ही विशाल हाथों ने बनाया होगा... आज तक कोई भी मनुष्य कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है। जिसने भी कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की.. उसकी मृत्यु हो गई। इस पर्वत से जुड़ी काफी दंतकथाएं भी प्रचलित हैं, इन्हीं कथाओं की सच्चाई का पता लगाने के लिए 1999 में रूस के आई स्पेशलिस्ट डॉ एर्नस्ट मुल्दाशिफ ने यह तय किया कि वे कैलाश पर्वत के रहस्यों को खोलने के लिए उस इलाके में जाएंगे, जिसके लिए उन्होंने एक टीम बनाई थी, इस टीम में पर्वतारोहण, भूविज्ञान और भौतिकी विज्ञान के विशेषज्ञों के अलावा कई इतिहासकार भी शामिल थे। अपने रिसर्च के बाद डॉ मुल्दाशिफ ने ये दावा किया कि कैलाश पर्वत एक विशाल मानव निर्मित पिरामिड है, जिसका निर्माण प्राचीन काल में किया गया था। यह पिरामिड कई छोटे-छोटे पिरामिडों से घिरा हुआ है जो कि पारलौकिक गतिविधियों का केन्द्र है... लेकिन डॉक्टर एर्नस्ट के इस दावे को बाद में एक वेबसाइट ने अपने रिसर्च के माध्यम से खारिज कर दिया था... रसिया के वैज्ञानिकों का दावा है की कैलाश पर्वत प्रकृति निर्मित सबसे उच्चतम पिरामिड है और यह दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी, पवित्र स्थान है जिसके आस-पास प्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है। कैलाश पर्वत के आसपास का इलाका इतना रहस्यमयी है कि यहां की घटनाओं को वैज्ञानिक तरीके से समझ पाना मुश्किल है। प्राचीन काल से विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं..जो है ईश्वर ही सत्य है, सत्य ही शिव है। इस क्षेत्र को स्वंभू भी कहा गया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत समागम होता है, जो की प्रतिध्वनि करता है। इस पावन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है, जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक प्रतिबिंबित होती है। कैलाश पर्वत को लेकर काफी रहस्यमयी बातें भी कही जाती है, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा है कि इस पर्वत पर रहना असंभव था, वहां किसी अनजान वजह से दिशा भ्रम होता है और दिशा का ज्ञान नहीं रहता है, वहां पर चुंबकीय कंपास भी धोखा देने लगता है, शरीर के बाल और नाखून भी ज्यादा तेजी से बढ़ने लगते हैं वह जगह बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव है। ये जगह बेहद पावन, शांत और शक्ति देने वाली है.. धर्म चाहे जो भी हो, सच तो यही है, इस जगह पर खुद ब खुद सिर्फ श्रद्धा से सिर झुकता है। आज तक कोई भी मनुष्य कैलाश पर्वत के शिखर पर नहीं चढ़ पाया। जहां एक तरफ दुनिया भर के पर्वता रोहियों ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी हिमालय पर्वत पर जिसकी ऊंचाई 8840 मीटर है कई पर्वता रोहि फतह कर चुके हैं. लेकिन दूसरी तरफ तमाम कोशिशों के बादजूद भी आज तक कोई भी पर्वता रोहि कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया। कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6638 मीटर है जो माऊंट कैलाश की ऊंचाई माउंट एवेरेस्ट से 2210 मीटर काम है... हलांकि अब माउंट कैलाश पर चढ़ने पर रोक लगा दी गयी है।

कैलाश पर्वत को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है और हिन्दुओं का सबसे पवित्र तीर्थ सथल भी है.. कैलाश पर्वत एक ऐसा भव्य पर्वत शिखर है जिसके सामने सब फीके लगते है... आप ने जितने भी सुंदर और मनमोहक दृष्य देखें होंगे सब के सब इस कैलाश के भव्य उपस्थिति के आगे धुंधला पड़ जाता है.. कैलाश पर्वत की यात्रा बहुत पीड़ा दायक होती है.. पर एक बार कैलाश का भव्य रूप देख लेने के बाद यह सब कुछ सामान्य लगने लगता है.. इन सब के बाबजूद भी कैलाश पर्वत एक रहस्य मय पर्वत है. जिसमे आज भी कई राज दफ़न है. कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22068 फुट ऊँचा है और हिमालय से उत्तरी क्षेत्र तिब्बत में स्थित है क्योंकि तिब्बत चीन के अधीन है, इसलिए कैलाश पर्वत चीन में आता है... कैलाश पर्वत चार धर्म.. बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म और सनातन धर्म का आध्यात्मिक केंद्र है. कैलाश पर्वत के चारो दिशों से चार नदियों का उद्गम हुआ है ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज और कर्णाली। कैलाश पर्वत के चारो दिशाओ में विभिन जानवरों के मुख है, जिसमे से नदियों का उधगम होता है. पूर्व में अश्व मुख है पश्चिम में हाथी का मुख है उतर में सिंह का मुख है तथा दक्षिण में मोर का मुख है। कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चमी को रूबी, और उत्तर को स्वर्ण रूप का मन जाता है। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी भी कहा जाता है। यही से भगवान विष्णु के कर कमलो से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है। जहां भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धाराओं के रूप में प्रवाहित करते है... कैलाश पर्वत जिसके बारे में यह कहा जाता है की इसी में शेष शयीया पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी विराजित हो पुरे संसार को संचालित करते हैं। यह छीरसागर भगवान विष्णु का स्थाई निवास है। जब की हिन्द महासागर अस्थाई निवास है। ऐसा माना जाता है महाराज मानदता ने मानसरोवर झील की खोज की थी और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या भी की थी जो की इन पर्वतों की तालहटी में स्थित है। कैलाश पर्वत पर शिव सदा विराजते हैं। पर्वत के ऊपर स्वर्ग और निचे मृत्यु लोक है। बौद्ध धर्म बालों का मानना है की इसी स्थान पर आ कर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है. जबकि जैन धर्म की यह मान्यता है की आदिनाथ रेशव देव का यह निर्माण स्थल अष्ट पद है. कहते है रेशव देव ने 8 पग में ही कौलश की यात्रा पूरी की थी। हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की मान्यता है की कैलाश पर्वत मेरु पर्वत है जो भ्रमांड की धुड़ी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यह देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था.. इसलिए यहां एक पुराने पत्थर को देवी का रूप मान कर पूजा जाता है।

हिन्दू धर्म में हिमालय को काफी पूज्य माना गया है। इसे काफी श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। इसके ऊंचे शिखरों और गहरी घाटियों में एक से बढ़कर एक रहस्य छिपे हैं, जो किसी को भी अचंभित कर देता है। मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक प्रवक्ता को और अधिक बढ़ाता देता है। कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है. इसका मतलब कैलाश पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है. इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है. यह सदैव बर्फ से ढका रहता है। इसकी परिक्रमा का भी कभी महत्व बताया गया है... तिब्बत के लोग मानसरोवर की 3 अथवा 13 प्ररिक्रमा का महत्व मानते है। और अनेक यात्री दंड प्रणिपात करने से एक जन्म का 10 प्रक्रिमा करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता है, जो प्राणी 108 वार परिक्रमा पूरा करता है उन्हें इस जन्म और मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है, कैलाश पर स्थित बुद्धभगवान के अलौकिक रूप डैमचौक बौद्ध धर्म बालो के लिए पूजनीय है. बह बुध के इस रूप को धर्मपाल की संज्ञा देते है. बौद्ध धर्म बालों का मानना है की इसी स्थान पर आ कर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है. जबकि जैन धर्म की यह मान्यता है की आदिनाथ रेशव देव का यह निर्माण स्थल अष्ट पद है. कहते है रेशव देव ने 8 पग में ही कौलश की यात्रा पूरी की थी। हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की मान्यता है की कैलाश पर्वत मेरु पर्वत है जो भ्रमांड की धुड़ी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यह देवी सती के शरीर का दया हाथ गिरा था तथा इसी लिए यह एक पाषाण शिला को उसका रूप मान कर उसको पूजा जाता है। सिख लोगो का मानना यह है कि गुरुनानक देव जी ने यहां कुछ दिन रुक के ध्यान किया था इसी लिए सिखों के लिए भी यह पवित्र स्थान है इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगो और ध्वनि तरंगो का अद्भुत समागम होता है. जो ॐ की प्रति-ध्वनि करता है इस पवन स्थल को भारतीय दर्शन के हृदय की उपमा दी जाती है। जिसमें भारत की सभ्यता की झलक प्रतिबिम्बित होती है.. यहां बर्फ के बीच शब्द का स्पष्ट पैटर्न लिखा हुआ दिखता है, जो देखने वाले को रोमांचित कर देता है। लोगों का कहना है कि जिस साल हिमालय का मौसम संतुलित और खुशगवार होता है, उस साल ॐ का पैटर्न सबसे साफ नजर आता है। यही कारण है कि इसे ओम पर्वत कहते हैं। जब इस शिखर पर जमी बर्फ के उपर सूर्य की किरणें पड़ती है, तो इसकी सुन्दरता स्वर्गिक अनुभूति देती है। कैलाश पर्वत की तलछटी में कल्प बृक्ष लगा हुआ है. कैलाश पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को क्रिस्टल, पश्चमी को रूबी, और उत्तर को स्वर्ण रूप का मन जाता है। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार यह जगह कुबेर की नगरी है। यही से महा विष्णु के कर कमलो से निकल कर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है। जहां भगवान शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धाराओं के रूप में प्रवाहित करते है पर कैलाश पर्वत पर कैलाश शिव सदा विराजे है। जिसके ऊपर स्वर्ग और निचे मृत्यु लोक है। इसकी भरी परिधि 92 किलोमीटर की है यहां मानसरोवर पहाड़ से घिरी झील है। जो पुराणों में छीरसागर के नाम से वर्णित है। छीरसागर कैलाश से 40 किलोमीटर की दुरी पर है। कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है. इसका मतलब कैलाश पृथ्वी के मध्य भाग में स्थित है. इस शिखर की आकृति विराट शिवलिंग की तरह है. यह सदैव बर्फ से ढका रहता है।

OPNING ANC
आज हम धरती के एक ऐसे रहस्य से पर्दा उठाने जा रहे है... जो वाकई अबूझ हैं. ये वो रहस्य हैं, जो अब तक हम किस्से-कहानियों में सुनते आए हैं.. वैसे तो उस स्थान को लेकर अलग अलग धर्म के लोगों की अगल अगल मान्यताएं है.. लेकिन विज्ञान इसे धरती का केंद्र माना है... उस स्थान के रहस्यों से जुड़े ऐसे कई सबूत मौजूद हैं. जो हैरान करते हैं. बने रहिए

ANC-1
कैलाश पर्वत जो भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है... यह एक ऐसा भव्य पर्वत शिखर है जिसके सामने सब फीके लगते है... आप ने जितने भी सुन्दर और मनमोहक दृष्य देखें होंगे सब के सब कैलाश के भव्य उपस्थिति के आगे धुंधला पड़ जाता है... तभी तो सभी चार धर्म सनातन, बौद्ध, जैन और सिख धर्म में हिमालय को काफी पूज्य माना गया है। इसे काफी श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है।  

ANC-2
इन सब के अलावा माउंट कैलाश से जुड़ा एक ऐसा रहस्य है जिसके बारे में सुन कर आप हैरान हो जाएंगे... जी हां आज तक कोई भी मनुष्य कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया है। और जिसने भी कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की.. उसकी मृत्यु हो गई। इस पर्वत से जुड़ी और भी कई दंतकथाएं प्रचलित हैं जो काफी प्रचलित है

BREAK ANC
आखिर कैलाश पर्वत पर कौन रोक देता है पर्वत रोहियों के पैर। आखिर क्यों घवराते है पर्वत रोहि माउंट कैलाश पर जाने से, पर्वत रोहियों का क्या का कहना है माउंट कैलाश के बारे में, जानेंगे... लेकिन उससे पहले यहां एक ब्रेक के लिए रूकेंगे.. कहीं मत जाइएगा तुरंत हाजिर होते हैं

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भगवान शिव और देवी पार्वती का निवास कैलाश पर्वत लोगों के लिए किसी कल्पना लोक से कम नहीं है। कैलाश मानसरोवर अपने धार्मिक मूल्य और अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यह अत्यंत दुष्कर यात्राओं में से एक है। इस यात्रा में दुर्गम परिस्थितियों में लगभग 22 हजार फीट की ऊंचाई पर ट्रैक करना पड़ता है

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हिमालय की शृंखलाओं में स्थित कैलाश पर्वत को आदि कैलाश, बाबा कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। कैलाश पर्वत हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख.. चारों धर्मों के लोगों के लिए पूज्यनीय है। इस पर्वत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां प्रकृति ने स्वयं हिन्दू धर्म के पवित्र शब्द की रचना की है।










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