साल 2019 में देश की राजनीति में बड़े बदलावों के तौर पर देखा जाएगा। इस साल
में में बड़े से बड़े दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी तो वहीं कई दिग्गजों ने अपने
जीत का परचम लहराया। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश से लंबे समय से चली आ रही
सपा-बसपा संस्कृति का अंत हुआ और बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई। इस साल
राजनीतिक कद के लिए बाप और बेटे की लड़ाई तक देखी गई। देश मे जयललिता जैसी दिग्गज
राजनेता को खोया। इस साल में कई राजनेता तो सुपरहिट हुए तो कई बुरी तरह फ्लॉप हुए।
हम आपको 2017 के फ्लॉप राजनेताओं की कहानी बता रहे हैं। *धरतीपुत्र, उत्तर
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव
ने यूं तो सियासत में कई उतार चढ़ाव देखे हैं... सियासी उठापटक से गुजरे हैं, कुशल
रणनीतिकार माने जाते हैं... लेकिन पिछली दीपावली के पहले से लेकर अब इस दीपावली तक..
इस एक साल के सियासी उठापटक ने नेताजी को कुछ परेशान सा कर दिया... साथ ही सियासी
सफर में नेताजी के साथ साए की तरह रहने वाले शिवपाल सिंह यादव भी राजनीतिक हाशिए
पर हैं.. ऐसे में इनकी दीपावली कैसी है... ये जानना भी बड़ा दिलचस्प है... देखिए
रिपोर्ट
मुलायम सिंह
यादव
मुलायम सिंह
यादव के साथ वो हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था यूपी के सबसे बड़े सियासी परिवार में
ऐसा रार चला कि अखिलेश यादव ने आपातकालीन राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिवेशन में
सदस्यों के भारी समर्थन के साथ पिता मुलायम सिंह को गद्दी से उतार कर खुद राष्ट्रीय
अध्यक्ष बन गए। मुलायम सिंह यादव ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक वक्त ऐसा आएगा जब
उनका बेटा उन्हें कुर्सी से उतार देगा लेकिन ऐसा हुआ। वहीं अखिलेश यादव ने नेतृत्व
में भी समाजवादी पार्टी को बड़ी हार मिली। पूरे साल मुलायम सिंह यादव अपने बेटे
अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव का समझौता कराने में लगे रहे। यूपी में समाजवादी
पार्टी को बुरी दुर्गती देखनी पड़ी है।
START
WITH- मन से हैं मुलायम
मजबूत इरादों वाले नेता जी यानि मुलायम सिंह
यादव.. जिनसे उनके समर्थक जितना प्यार करते हैं... उनके विरोधी उतना ही घबराते
हैं... कहा जाता है कि नेताजी कब कौन सा फैसला लेंगे... और क्या करेंगे... ये किसी
को पता नहीं रहता... दाएं हाथ से क्या करेंगे ये बाएं को नहीं पता होता... नेताजी
ने अपने विरोधियों को ऐसी ऐसी पटखनी दी हैं कि आज भी जब पुरवइया चलती है तो दर्द
उठता है... लेकिन नेताजी को बेटा ऐसा दर्द देगा ये नेताजी ने सपने में भी नहीं
सोचा था... नेताजी जी के रहते ही अखिलेश ने रामगोपाल की मौजूदगी में खुद को सपा का
अध्यक्ष बना लिया... विधानसभा चुनाव में प्रचार से नेता जी ने खुद को और शिवपाल ने
खुद को दूर रखा था.... शिवपाल ने कई बार हार का दर्द बयां किया... ठीकरा अखिलेश पर
फोड़ा... BYTE-- शिवपाल
सिंह यादव, विधायक
नेताजी के मजबूत इरादे भी बेटे के सामने कमजोर
पड़ गए... शिवपाल चाहते थे.. कि वो नई पार्टी बनाएं, नेताजी उसके सर्वेसर्वा बनें... लेकिन
हमने आपको पहले ही बताया कि नेताजी क्या सोचते हैं, क्या करते हैं.. कि उनके सिवा कोई नहीं
जानता... जब शिवपाल का दबाव बहुत बढ़ा तो नेता जी ने पीसी तो की... लेकिन नई
पार्टी का ऐलान नहीं किया...
मुलायम सिंह यादव, (जो
बाप का नहीं हुआ)
ये नेताजी का दर्द ही था जो जुबान पर आ गया...
लेकिन सबसे बड़ा दर्द था वो शिवपाल को था... एक वक्त में शिवपाल के इशारे के बिना
सपा में पत्ता तक नहीं हिलता था... जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे, तो
अप्रत्यक्ष तौर पर सत्ता शिवपाल ही चलाते थे.. अधिकारियों की पोस्टिंग से लेकर
मंत्रियों के मंत्रालय तक शिवपाल ही तय करते थे... लेकिन भतीजे के बढ़ते कद के आगे
शिवपाल छोटे होते चले गए... और इतने छोटे हुए कि आज सपा में उनकी कोई पूछ नहीं... टीम अखिलेश ही अब सपा है... मुलायम
सिंह को अखिलेश ने सपा का संरक्षक बना दिया... यानि नेताजी को जबरिया
रिटायरमेंट... इतना ही नहीं हाल ही में घोषित हुआ सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
में नेताजी और शिवपाल को जगह तो छोड़िए कहीं.. उनके नाम तक का जिक्र नहीं है..
इससे एक बार फिर साफ हो गया कि शिवपाल और मुलायम कालीन सपा का अब अस्तित्व ही नहीं
है... अखिलेश ने दीवाली से पहले ही दोनों को फुस्स कर दिया... शिवपाल जसवंतनगर से
विधायक और पूर्व मंत्री के तमगे के सिवा सपा में कुछ नहीं.... शिवपाल सपा में एक
ऐसे किनारे पर खड़े हैं... जहां से बीच में आने की कोई गुंजाइश ही नहीं... लेकिन
चाचा ने भतीजे को अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी....
अब सवाल ये है कि सपा में हाशिए पर चले गए ये
दोनों भाई, सियासत के ये दोनों धुरंधर आज हैं कहां...
दोनों का सपा में वजूद बचा भी है या नहीं... या बीजेपी के आडवाणी और मुरली मनोहर
की तरह ये भी अब मूक मार्गदर्शक हैं...
क्या 2019 के आम चुनाव और उससे पहले स्थानीय निकाय चुनाव में मुलायम सिंह
की सपा में क्या भूमिका होगी, प्रत्याशियों के चयन, टिकटों
के वितरण में क्या नेताजी की चलेगी... या अब सिर्फ और सिर्फ अखिलेश यादव जो
चाहेंगे वहीं होगा... ना खाता ना बही जो अखिलेश कहें वही सही... क्या अब सपा की
यही स्थिति है.... ऐसे में मुलायम और शिवपाल की दिवाली कितनी बेरंग है ये शायद
बताने की ज़रूरत नहीं है.... दोनों सियासी गुमनामी में जाते दिखाई दे रहे हैं...
लेकिन क्या पता कि दिवाली के बाद नेताजी कोई ऐसा बम फोड़ें... ऐसा धमाका करें...
कि उनकी धोबीपछाड़ से अखिलेश चारों खाने चित हो जाएं... अब आगे क्या होगा ये तो
आगे ही पता चलेगा... लेकिन दीपावली में नेताजी की खुशी के लिए कोई वजह नहीं
दिखती...
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*अखिलेश
यादव की पहचान एक सांसद के तौर पर रही, मुलायम सिंह के बेटे के तौर पर रही, सपा
के स्टार प्रचारक, सपा के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर रही... लेकिन
ये दीपावली उनके लिए इस बार ज्यादा खास है क्योंकि वो सपा के पांच साल के लिए
राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं... और नई ऊर्जा के साथ सपा में जान फूंक रहे हैं...
अखिलेश यादव
का फॉर्मूला फ्लॉप
अखिलेश यादव
का फॉर्मूला फ्लॉप रहा अखिलेश यादव अपने पिता और चाचा को दरकिनार कर यूपी को जितने
का दांव लगाया लेकिन बुरे तरीके से फेल हो गए। यूपी विधासभा चुनाव में अखिलेश यादव
की पार्टी समाजवादी पार्टी को ऐसी हार मिली की जिसकी उन्होंने कल्पना कभी भी नहीं
की थी। विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने समाजवादी पार्टी को बुरी तरह से पटखनी दी।
बात यही खत्म नहीं हुई अखिलेश यादव के कई करीबियों ने बीजेपी का दामन थाम लिया।
अखिलेश ने फिर भी अपने आप को संभालने की कोशिश की लेकिन 2017 के अंत तक उनकी पार्टी को निकाय चुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा। साल
2017 में समाजवादी पार्टी के अंदर खूब कलह
हुआ जिसको रोकने में अखिलेश यादव नाकामयाब रहे।
शिवपाल यादव
को भतीजे ने दिया जोर का झटका राजनीति के माहिर खिलाड़ी और लंबे समय तक अपने भाई
मुलायम सिंह यादव का झंडा बुलंद करते रहे शिवपाल यादव को उनके भतीजे ने जोर का
झटका दिया। पारिवारिक कलह की वजह से समाजवादी पार्टी यूपी में हार गई वहीं
समाजवादी पार्टी में शिवपाल का कद भी कुछ नहीं रहा। शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के
बीच लंबे समय तक 'शीतयुद्ध' चला जो अभी भी खत्म नहीं हुआ है। शिवपाल यादव अभी यूपी में पार्टी को बढ़ाने
और खुद के लिए समाजवादी पार्टी में ओहदा दोनों के लिए लड़ रहे हैं। एक वक्त था जब
यूपी की राजनीति में शिवपाल यादव की तूती बोलती थी।.. START
WITH SONG- यूपी को अखिलेश पसंद है...
ये वो गाना है जो 2017 के विधानसभा चुनावों में
आपने बहुत बार सुना होगा... यूपी की जनता ने अखिलेश का साथ नहीं दिया... उनकी और
राहुल गांधी की जोड़ी यूपी में धमाल नहीं कर पाई... सपा 47 तो कांग्रेस 7 सीटों पर
सिमट गई... बीजेपी की आँधी में दोनों नेता धुआं हो गए.... अखिलेश ने लोगों को दुआएं मांगी और अपनी हार को
स्वीकार किया...
SONG-
अच्छा चलता हूं दुआओं में याद रखना
सपा में पारिवारिक संग्राम से लाख इनकार किए गए
हों... लेकिन राजनीति से कोई मतलब ना रखने वाला शख्स भी जानता है कि सपा में ऑल
इज़ वेल नहीं है.. अखिलेश मुलायम और शिवपाल के बीच की रार कई बार साफ दिखी... सीएम
की कुर्सी जाने से पहले ही अखिलेश ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी हथिय़ा ली थी....
लेकिन चुनाव हारने के बाद चाचा शिवपाल ने कई बार कहा कि हार के लिए भतीजा
जिम्मेदार है... उसी ने लुटिया डुबो दी... और अब अध्यक्ष का पद नेताजी को वापस कर
दें.... BYTE- शिवपाल सिंह यादव
लेकिन चाचा शिवपाल के भतीजे अखिलेश नहीं
माने... और वो अध्यक्ष बने रहे, साथ ही आगरा अधिवेशन में बाकायदा अखिलेश को पांच
साल के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया... अखिलेश एक बार फिर बोले... सॉन्ग-
अखिलेश यादव बोल रहा हूं...
अखिलेश ने
बड़ा ऐलान किया कि उनकी पत्नी और वर्तमान मे कन्नौज की सांसद डिंपल यादव
चुनाव नहीं लड़ेंगी... यानि परिवारवाद के जो आरोप सपा पर लगते हैं.. अखिलेश उनसे
खुद को अलग करना चाहते हैं... लेकिन सियासी जानकारों का कहना है कि ऐसा कहकर
अखिलेश असल में अपनी राह आसान कर रहे हैं... और खुद कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे...
क्योंकि सपा के लिए कन्नौज हमेशा से ही सेफ सीट के तौर पर जाना जाता है... अखिलेश
यादव नई ऊर्जा से लबरेज हैं... सपा के अध्यक्ष बन गए हैं... यानि नए सपा सुप्रीमो
यानि नए नेताजी.... की इस बार की दीपावली कई मायनों में खास है... अखिलेश अब 2019
के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं... सपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी भी बन
चुकी है... यानि अब टीम अखिलेश ही सपा की सर्वेसर्वा है... और अपने नेता अखिलेश के
नेतृत्व में काम करेगी... 2017 की करारी हार के बाद अखिलेश यादव सपा को नए सिरे से
खड़ा कर रहे हैं... दीपावली के खत्म होते ही प्रदेश में निकाय चुनाव की सरगर्मियां
उफान पर होंगी... और हर दल नगर निकाय चुनाव में जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर
लगाएगा... अखिलेश के लिए हैप्पी दीपावली के लिए कई वजह हैं... इसलिए अखिलेश यादव
पूरी तरह खुश हैं..
मायावती का
बुरा हाल
*बहुजन
समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती
की अगर बात करें... तो 2012 के बाद से 2017 तक उन्होंने खुशी से दीपावली नहीं
मनाई.. इसके पीछे कई वजह हैं... आखिर 5 सालों से मायावती के लिए दीपावली क्यों
ख़ास नहीं रही, क्यों उन्होंने उमंग के साथ ये दीपोत्सव नहीं
मनाया...
मायावती का
बुरा हाल
मायावती का
बुरा हाल 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का बुरा
हाल देखने के बाद मायावती ने साल 2017 के यूपी
विधानसभा चुनाव से बहुत उम्मीदें लगा रखी थी लेकिन उनका सपना टूटा और उनको
विधानसभा चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं मायावती पर यूपी में
हिंसा कराने के आरोप भी लगे। हार का सिलसिला विधानसभा चुनाव तक ही नहीं रूका
मायावती को निकाय चुनाव में भी हार का ही सामना करना पड़ा। अब फिर से मायावती
पार्टी को खड़ा करने में लगी हुई हैं।
मायावती सॉन्ग
खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता, सबसे
बड़ा रहनुमा, सबसे बड़ी हितैषी बताने वाली मायावती आज
राजनीतिक हाशिए पर हैं... 2007.... ये वो साल था, जब मायावती ने तमाम पॉलिटिकल पंडितों
के अनुमानों को ध्वस्त कर दिया था और प्रदेश की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ
काबिज़ हुई थी.... 5 सालों की अपनी सरकार में मायावती का पत्थर प्रेम सबको दिखा...
मायावती ने खुद अपनी और कांशीराम की कई मूर्तियां लगवाईं... लेकिन 2012 में माया
बुआ के भतीजे अखिलेश ने ही अपनी बुआ को पटखनी दे दी... और खुद प्रदेश का
मुख्यमंत्री बन गया... 2012.. यही वो साल था जब मायावती के राजनीतिक हाशिए पर जाने
की शुरुआत हो गई... मायावती ने सोचा कि वो मेहनत करेंगी और प्रदेश की जनता 2014 के
लोकसभा चुनाव में तो हाथी पर ही सवार होगी... लेकिन जनता इस बार तो मायावती को
इतना बड़ा झटका दिया जिसके बारे में खुद मायावती ने कभी नहीं सोचा था... प्रदेश की
80 लोकसभा सीटों में मायावती की पार्टी बीएसपी का खाता तक नहीं खुला... और सियासत
की पिच पर मायावती जीरो पर आउट हो गईं...
मायावती के लिए ये अबतक का सबसे बड़ा सियासी झटका था... मायावती समझ नहीं पा रही थीं.. कि क्या करें...
कैसे संगठन को मजबूत करें, कैसे जनता का खोया हुआ विश्वास हासिल करें...
ये सोचते सोचते यूपी के विधानसभा चुनाव नज़दीक आ गए.. मायावती मुद्दों की तलाश कर
रही थी... जीरो पर आउट होने के बाद मैदान में उतरते वक्त खिलाड़ी किस दबाव में
होता है कि ये क्रिकेट को समझने वाले लोग जानते ही होंगे... लेकिन ये गेंद और
बल्ले का खेल नहीं था... ये तो सियासी जंग थी... और माया के लिए करो या मरो की
स्थिति.. इसी बीच बीजेपी के नेता और आज यूपी सरकार में मंत्री स्वाति सिंह के पति
दयाशंकर सिंह ने मायावती पर अमर्यादित टिप्पणी कर दी... मायावती को लगा कि ये सही
मौका है... दलितों के बीच में ये मैसेज देने का कि ये अपमान दलितों का है... उनकी
नेता का है... मायावती ने अपनी माउज़र के सारे छर्रों को लगा दिया... कि जाओ मैदान
में उतरो इसे चुनावी मुद्दा बना दो... इतना ही नहीं मायावती ने अपने इस दर्द को
सदन में बयां किया...
MAYAWATI
BYTE-
लेकिन कभी सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन ना करने
वाले बसपाई कुछ ज्यादा जोश में आ गए और उस वक्त के बड़े बसपाई नेता नसीमुद्दीन
सिद्दीकी की अगुवाई में सड़कों पर उतर पड़े... लेकिन राजधानी की सड़कों पर ऐसे
विवादित पोस्टर दिखे... जिसमें दयाशंकर के लिए अपशब्द लिखे थे... बसपाईयों ने भी
नारों के साथ गालियां देने में कोई कोताही नहीं की.... और ये पूरा मामला गाली
वर्सेस गाली का बन गया... लेकिन मायावती के इस प्लान को बीजेपी ने ऐसे फेल किया...
कि पूरा मामला उल्टा हो गया.... और बीजेपी भी मैदान में उतरी... बीजेपी ये साबित
करने में कामयाब हो गई.,. कि बसपाई नेताओं ने एक महिला का अपमान किया
है... और ये सब मायावती के इशारे पर हुआ है....
अब मायावती 2017 की तैयारी में कूद गई... अकेले
चुनाव लड़ने का ऐलान किया... ताबड़तोड़ रैलियां की, सभाएं की... माया को लगा इस बार जनता
उनके साथ आ जाएगी.... लेकिन जनता को तो छोड़िए.. अपनों ने ही मायावती का साथ नहीं
दिया.... कभी मायावती के चरणों में ही सियासत तलाशने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने
बीएसपी को टाटा कह दिया... और अकेले नहीं अपने समर्थकों के साथ... जय भीम बोलने
वाले मौर्या इन दिनों जय श्री राम कर रहे हैं... और प्रदेश सरकार में मंत्री
हैं.... कभी बीएसपी में ब्राह्मण समाज के सबसे बड़े नेताओं में से एक ब्रजेश पाठक
भी अब प्रदेश सरकार में मंत्री हैं..... साथ ही कई और बसपाइयों ने भी मायावती को
प्रणाम करके दूसरे दलों में भविष्य तलाशना शुरू कर दिया.... और मायावती 2017 के
चुनावों में महज़ 19 सीटों पर सिमट गईं.... राजनीतिक गलियारों और पॉलिटिकल पंडितों
ने मायावती के राजनीतिक भविष्य पर ही सवालिया निशान लगा दिए... माया इस गम से
उबरती कि सबसे खासमखास, सबसे करीबी,
हमराज़ नसीमुद्दीन ने बहन जी से खुद को
अलग कर लिया... वो भी टेपबम फोड़कर... मायावती के करीबी नेता पूर्व मंत्री
इन्द्रजीत सरोज भी हाथी से उतरकर साइकिल की सवारी करने लगे
USE
SOME PART OF NASEEMUDDIN TAPE
मायावती अपनी हार से इस कदर बौखलाई हुई थी...
कि उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा भी दे दिया.... और देश ने पहली बार मायावती का
ऐसा रूप देखा था...
BYTE
MAYA RAJYSABHA ISTEEFA
अब मायावती के पास खोने के लिए कुछ नहीं है...
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मायावती लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगी या नहीं...
लेकिन फिलहाल मायावती का पूरा फोकस नगर निकाय चुनाव पर है... और पहली बार मायावती
की पार्टी बीएसपी निकाय चुनाव में ताल ठोक रही है.... कुल मिलाकर ये दीवाली
मायावती के लिए कहीं से भी खास नहीं है...
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राजनैतिक रूप से हमेशा जागरूक रहे बिहार राज्य
का सियासी ड्रामा इस जाते हुए वर्ष में काफी रोमांचक रहा. यहां नेताओं ने सीधे
रास्तों पर भी कई ऐसी चालें चलीं, जिनसे राज्य में सत्ता का चेहरा तक बदल गया.
जो युवराज सत्ता में थे, बेदखल हो गए. और जो विपक्ष में बैठे थे, वे
सत्ता में आ गए. CBI को नया काम मिल गया. लोगों ने कई चेहरे देखे, जिन
पर जांच एजेंसियों ने भ्रष्टाचार की मुहर लगाई. इस साल बिहार की राजनीति में जो
हलचल हुई, उसकी धमक केंद्र तक सुनाई दी. नए समीकरण बने, और
जो कभी दोस्त थे, वे प्रखर विरोधी बन गए, और
साल के जाते-जाते कद्दावर नेता जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए. इसी के साथ नई
सियासी जंग भी शुरू हुई, जिसका नेतृत्व विपक्ष के एक मजबूत युवा नेता
के हाथ में है.
शरद यादव
शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता तक चली गई कभी देश की राजनीति के केंद्र
में रहे शरद यादव के लिए साल 2017 कई मायनों में अच्छा नहीं रहा। इस साल के अंत उन्हें अपनी राज्यसभा
सदस्यता तक गंवानी पड़ी। इतना ही नहीं बिहार के सीएम नीतीश कुमार से टक्कर लेने
वाले शरद यादव को जेडीयू से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। फिर बाद में उन्होंने
जेडीयू पर दावा ठोका लेकिन उसमें भी फेल रहे और चुनाव आयोग ने उनकी मांगों को सिरे
से नकार दिया। दरअसल बिहार में लालू यादव के साथ चल रही महागठबंधन की सरकार से
बाहर होकर नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर सरकार बना ली जिस वजह से शरद यादव
नीतीश कुमार खफा हो गए और नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया लेकिन इस लड़ाई में शरद
यादव फेल साबित हुए लेकिन हां समय- समय पर शरद यादव को आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव
का साथ मिलता रहा। संभव है शरद यादव और लालू यादव मिलकर देश की राजनीति में कुछ
नया खेल करने की कोशिश करें। दोनों मिलकर नए समीकरण तलाशने की कोशिश में लगे हुए
हैं। महागठबंधन के टूटने और BJP के
साथ नीतीश कुमार के जाने के बाद JDU में भी विरोध के स्वर मुखर हो गए. JDU के
पूर्व अध्यक्ष शरद यादव और राज्यसभा सांसद अली अनवर ने नीतीश के खिलाफ विद्रोह कर
दिया. दोनों नेता खुलकर नीतीश के विरोध में आए. इसके बाद चुनाव आयोग में दोनों
धड़ों ने खुद को असली JDU बताते हुए लड़ाई लड़ी. यह अलग बात है कि अंत
में फैसला नीतीश कुमार के पक्ष में आया. लेकिन इस विरोध के कारण शरद यादव और अली
अनवर को राज्यसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी
लालू पर भारी पड़ा साल 2017
लालू पर भारी पड़ा साल 2017 आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के लिए साल 2017 अच्छा नहीं रहा।
बिहार में लालू यादव की पार्टी सरकार में थी लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घुमा की
आरजेडी सरकार से बाहर हो गई। नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर सरकार बना ली।
लालू यादव के दोनों बेटे जो बिहार में मंत्री थे अचानक सड़क पर संघर्ष करने को
मजबूर हो गए। उधर रेलवे टेंडर घोटाले में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के
पटना में स्थित 3 एकड़ की बेनामी जमीन को प्रवर्तन निदेशालय ने जब्त कर लिया। साल 2017 में लालू यादव के
ठिकानों पर रेड पड़ी। इतना ही पूरे लालू परिवार और उनके करीबियों को सीबीआई और ईडी
के सामने कई मामलों में पेश होना पड़ा। साल
के अंतिम दिनों में बिहार के दिग्गज नेता लालूप्रसाद यादव चारा घोटाले के एक मामले
में अदालत द्वारा दोषी पाए जाने के बाद जेल भेज दिए गए. बिहार में सियासत अभी उबाल
पर है. लालू के बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार पर जमकर आरोप लगा रहे हैं.
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