लाक्षागृह... यानि वो महल जो बना था लाख और
घासफूस से... वो महल जो बन गया कौरवों के अंत की वजह... महाभारत में दुर्योधन ने पांडवों का अंत करने
के लिए लाख के महल का सहारा लिया जो बाद में बन गया उसके ही वंश के अंत का कारण... महाभारत में पांडवों को जान से मारने के लिए
कौरवों ने लाख का महल बनवाया था जिसमें पांडवों को जिंदा जलाने की योजना थी लेकिन
पांडवों को विदुर के जरिए इसकी भनक लग गई और वो जलते हुए महल से सुरंग के रास्ते
बचकर निकल गए... महाभारत में पांडवों को जान से मारने के लिए कौरवों ने जो
लाक्षागृह बनवा था उसकी तलाश लगता है पूरी हो गई है.. दिल्ली से 90
किलोमीटर दूर बागपत में पांडवों के महल लाक्षागृह होने के सबूत मिले हैं.. उत्तर
प्रदेश में बागपत के बरनावा गांव में हो सकता है पांच हज़ार साल पुराना पांडवों का
लाक्षागृह.. इतिहासकारों के मुताबिक बागपत के बरनावा में ही वो जगह हो सकती है जहां
लाक्षागृह मौजूद था.. बागपत के बरनावा में लाक्षागृह होने के सबूत दो सुरंगों से
मिलते हैं.. यहां के खंडर इलाके में ये दोनों सुरंग आमने सामने बनी हैं। किसी ने
इन सुरंगों को पूरा पार तो नहीं किया लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं ये सुरंग
लाक्षागृह से निकल कर हिंडन नदी तक पहुंचती हैं.. इतिहासकारों के मुताबिक पांडवों
ने लाक्षागृह के नीचे खुफिया तरीके से इन दो सुरंगों को निर्माण करवाया था..
स्थानीय लोगों के मुताबिक ये सुरंग तीन से चार किलोमीटर लंबी हैं.. सुरंग में कई
मोड़ हैं.. जैसे जैसे सुरंग में घुसते हैं आगे का रास्ता दिखाई देता है.. ये सुरंग
इस इलाके से होते हुए हिंडन नदी तक तो पहुंची हैं लेकिन जहां से सुरंग शुरू होती
हैं क्या यहीं पर था लाक्षागृह यही पता लगाने के लिए अब ASI ने
इस इलाके में खुदाई करने का फैसला किया। दिसंबर में ये तलाश शुरू होगी जो तीन से
छह महीनों में पूरी होगी। इतिहासकारों की माने तो ये सुरंग पांडवों ने अपनी जान
बचाने के लिए बनाई थी। खुफिया तरीके से बनवाई इसी सुरंग के रास्ते पांडव आग में
जलने से बच गए थे। ASI की लाक्षागृह की खोज की खबर लगते ही बागपत के
इस इलाके में सुरंग को देखने लोग पहुंचने लगे हैं। लोग देखना चाहते हैं क्या है
सुरंग की सच्चाई। क्या वाकई में यहां होगा लाक्षागृह। दोनों सुरंग जमीनी सतह से
करीब 200 मीटर नीचे बनीं है। कहा जा रहा है कि इन
सुरंगों के ऊपरी हिस्से में ही कहीं हो सकता है लाक्षागृह। मिट्टी के टीले से करीब
200
मीटर नीचे आने पर ये सुरंग दिखाई देती हैं। इस सुरंग से 100
फीट ऊपर बना किले का एक भी हिस्सा दिखाई देता है। जानकारों के मुताबिक गुमब्दनुमा
ये इमारत भी लाक्षागृह का ही हिस्सा है। इतिहासकारों के मुताबिक इसी गुम्बद के
नीचे मौजूद हो सकता है पांच हज़ार साल पुराना पांडवों का लाक्षागृह। इतिहासकार
काफी समय से बागपत के इस इलाके में लाक्षागृह होने की संभावना जता रहे थे।
इतिहासकारों की मांग पर ASI यहां लाक्षागृह के बारे में जानने के लिए काम
शुरू करेगी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई जल्द ही
महाभारत के प्रसिद्ध लाक्षागृह की तलाश में बागपत जिले के भरनावा इलाके में खुदवाई
करवाने की योजना कर रहा है.. ASI को उम्मीद है कि लाक्षागृह के साथ साथ इस इलाके
की मिट्टी से कई महत्वपूर्ण चीज़े मिल सकती है.. स्थानीय इतिहासकारों और
पुरात्तववेत्ताओं की सालों पुरानी इस मांग पर आखिरकार एएसआई ने अपनी मंजूरी की
मुहर लगा दी है... एएसआई के दो संस्थान एएसआई की उत्खनन ब्रांच और दिल्ली के लाल
किले स्थित पुरातत्व विज्ञान संस्थान संयुक्त रूप से खुदाई कर लाक्षागृह का पता
लगाएंगे... अगले महीने की शुरुआत में ये खुदाई शुरू हो जाएगी और तीन महीने चलेगी...
खुदाई में पुरात्तवविज्ञान संस्थान के छात्र भी शामिल रहेंगे... एएसआई को इस खुदाई
से इसलिए भी उम्मीद है क्योंकि इससे पहले आसपास के इलाकों में हुई खुदाई से उसे कई
महत्वपूर्ण चीजें मिली थीं... एएसआई ने इस साइट का चुनाव इसलिए किया है क्योंकि ये
चंदायन और सनौली के नजदीक है... सनौली में उत्खनन के दौरान हड़प्पा के समय की कई
महत्वपूर्ण चीजें मिली थीं... 2005 जब सनौली में उत्खनन हुए थे तब यहां से बड़ी
मात्रा में कंकाल और बर्तन भी
मिले थे... 2014 में उत्खनन के दौरान चंदायन गांव में तांबे का
एक मुकुट मिला था जो रत्नों से जड़ा था... एएसई की दिलचस्पी सबसे ज्यादा उस सुरंग
को खोजने में है जहां से पांडव महल से बचकर बाहर निकले थे... देहरादून के लाखामंडल
में भी एक लाक्षागृह है.. देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे मौजूद लाखामंडल चकराता
से 60 किमी दूर है। 2 फुट की खुदाई करने से ही यहां हजारों
साल पुरानी कीमती मूर्तियां निकली हैं। इसी कारण इस स्थान को आर्कियोलॉजिकल सर्वे
ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है। यहां एक सुरंग भी है जिसके चलते इसके
लाक्षागृह होने की अटकलें लगाई जाती है.. लाक्षागृह गुफा के अंदर स्थित शेषनाग के
फन के नीचे प्राकृतिक शिवलिंग के ऊपर टपकता पानी यहां की खासियत है। हालांकि
महाभारत के अनुसार पांडवों का लाक्षागृह वारणावत में ही था.. बरनावा.. हिण्डन और
कृष्णा नदी के संगम पर बागपत जिले की सरधना तहसील में मेरठ से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी स्थित है.. बरनावा गांव का
प्राचीन नाम 'वारणावत'
है.. वारणावत
उन 5 गांव में से था जिनकी मांग पांडवों ने
दुर्योधन से महाभारत युद्ध से पहले की थी.. महाभारत के मुताबिक ये 5
गांव वर्तमान नाम हैं पानीपत, सोनीपत,
बागपत, तिलपत और वारणावत.. बरनावा गांव में
महाभारतकाल का लाक्षागृह टीला है। यहीं पर एक सुरंग भी है। यहां की सुरंग हिंडनी नदी
के किनारे पर खुलती है। टीले के पिलर तो कुछ असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिए और उसे वे
मजार बताते थे। यहीं पर पांडव किला भी है जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियां देखी जा सकती
हैं.. गांव के दक्षिण में लगभग 100 फुट ऊंचा और 30 एकड़ में फैला हुआ यह टीला लाक्षागृह
का अवशेष है.. इस टीले के नीचे 2 सुरंग भी बने हुए हैं.. वर्तमान में टीले के पास की भूमि पर एक गौशाला, श्रीगांधीधाम
समिति, वैदिक अनुसंधान समिति तथा महानंद संस्कृत
विद्यालय स्थापित है..
जब भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर का
राज्याभिषेक कर देने के लिए कहा, तब दुर्योधन ने पिता धृतराष्ट्र से कहा, 'पिताजी!
यदि एक बार युधिष्ठिर को राजसिंहासन प्राप्त हो गया तो यह राज्य सदा के लिए
पांडवों के वंश का हो जाएगा और हम कौरवों को उनका सेवक बनकर रहना पड़ेगा.. इस पर धृतराष्ट्र बोले, 'वत्स
दुर्योधन! युधिष्ठिर हमारे कुल की संतानों में सबसे बड़ा है इसलिए इस राज्य पर उसी
का अधिकार है.. फिर भीष्म तथा प्रजाजन भी उसी को राजा बनाना चाहते हैं। हम इस विषय
में कुछ भी नहीं कर सकते। तुम पांडवों को रोकने का प्रबंध करो।.. धृतराष्ट्र की
बातों को सुनकर दुर्योधन ने कहा, 'ठीक है पिताजी! मैंने इसका प्रबंध कर लिया है।
बस आप किसी तरह पांडवों को वारणावत भेज दें.. दुर्योधन ने वारणावत में पांडवों के
निवास के लिए पुरोचन नामक शिल्पी से एक भवन का निर्माण करवाया था, जो
कि लाख, चर्बी, सूखी घास,
मूंज जैसे अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों से
बना था। दुर्योधन ने पांडवों को उस भवन में जला डालने का षड्यंत्र रचा था।
धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर अपनी माता तथा भाइयों के साथ वारणावत जाने के लिए
निकल पड़े.. दुर्योधन के षड्यंत्र के बारे में जब विदुर को पता चला तो विदुर ने
तुरंत ही वारणावत जाते हुए पांडवों से मार्ग में मिले और उन्होंने दुर्योधन के
षड्यंत्र के बारे में बताया.. फिर उन्होंने कहा कि 'तुम लोग भवन के अंदर से वन तक पहुंचने
के लिए एक सुरंग अवश्य बनवा लेना जिससे कि आग लगने पर तुम लोग अपनी रक्षा कर सको..
मैं सुरंग बनाने वाला कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज रहा हूं.. जिस दिन
पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी,
उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों
और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया.. रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके
कमरे में आग लगा दी... धीरे-धीरे आग चारों ओर फैल गई.... लाक्षागृह में पुरोचन अपने
बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई.. लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर
पहुंचा तो पांडवों को मरा समझकर वहां की प्रजा अत्यंत दुःखी हुई। दुर्योधन और
धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अंत में उन्होंने
पुरोचन, भीलनी और उसके बेटों को पांडवों का शव समझकर
अंत्येष्टि करवा दी.... लाक्षागृह की सुरंग से निकलकर पांडवजन हिंडनी नदी किनारे
पहुंच गए थे, जहां पर विदुर द्वारा भेजी गई एक नौका में सवार
होकर वे नदी के उस पार पहुंच गए।
महाभारत के कई रहस्य ऐसे हैं जो आज भी सुलझ
नहीं पाए हैं. आज महाभारत का एक हिस्सा... खुद अपने आपमें एक ख़बर बन गया है... हस्तिनापुर
को भरत वंश के सम्राटों की राजधानी कहा जाता है और बरनावा हस्तिनापुर के पास है.. महाभारत
के मुताबिक पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह यानी तेज़ी से जलने वाले महल का
निर्माण करवाया था.. लाक्षागृहयानी की लाख का महल.. लाख एक प्रकार का कीट होता है..
जो पेड़ों पर पनपता है... लाख ज्यादातर भारत, बर्मा, इंडोनेशिया और थाईलैंड में उपजते हैं.. यह कॉक्सिडी (Coccidae) समुदाय का कीट है... यह
उसी गण के अंतर्गत आता है जिस गण का कीट खटमल है.. कुसुम, खैर, बेर, पलाश, अरहर, शीशम, पीपल, बबूल
जैसे पेड़ों पर लाख पनपता है.. लाख के वे ही उपयोग हैं, जो
चपड़े के हैं। लाख के शोधन से और एक विशेष रीति से चपड़ा तैयार होता है। इससे और
भी कई हजारों तरह के सामान बनाए जाते हैं। लाख तेजी से जलने वाला पदार्थ है... ये घटना जिस जगह पर हुई थी.. उसे लेकर तरह तरह
के दावे होते रहे हैं... माना जाता है कि ये घटना 5
हजार वर्ष पुरानी है... लेकिन महाभारत की कहानी इतनी दिलचस्प
है कि लोग आज भी महाभारत से जुड़े रहस्यों के बारे में जानना चाहते है. बहुत से लोगों
का दावा है कि महाभारत में जिस लाक्षागृह का जिक्र है वो बागपत के बरनावा गांव में
मौजूद है. अब Archaeological Survey of
India इस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश कर
रहा है. जब से लाक्षागृह को लेकर अखबारों में खबरें आ रही है तभी से ASI ने
भी इसमें दिलचस्पी ली है. हालांकि इसके बारे में संपूर्ण सत्य तो अब ASI की
खुदाई के बाद ही सामने आएगा. यहां पर कई Board
भी लगे हुए हैं जिनमें इस जगह को
महाभारत के दौर का बताया गया है... यहां पर सुरंग भी मौजूद है.. जिसको लेकर लोग दावा करते हैं कि ये वही सुरंग है जिसकी मदद
से पाण्डव लाक्षागृह से बाहर निकल गए थे.. इतिहास के जानकार कई वर्षों से इस जगह
की खुदाई की मांग कर रहे थे... अगर हम भारत के नक्शे पर देखें तो ये जगह उत्तर
प्रदेश के बागपत जिले में बरनावा गांव में मौजूद है... बहुत से लोगों का मानना है
कि ये गांव जिसे आज बरनावा कहा जाता है.. महाभारत के समय में इसे वारणा-वत कहा
जाता था... ये जगह मेरठ में मौजूद हस्तिनापुर से करीब 66
किलोमीटर दूर है और अब इसी जगह पर खुदाई होगी...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें