रविवार, 14 जनवरी 2018

रानी पद्मावती


चांद सा रोशन चेहरा.... झील सी नीली आंखें.. कोई राज है इन तस्वीरों में जो खूबसूरती के सारी हदें पार कर किसी कवि की कल्पना बन जाती है... खूबसूरती के तमाम पैमाने पर खड़ी उतरने वाली यह तस्वीर है महारानी पद्मावती की.. किस्सा कई सौ साल पुराना है.. रानी पद्मावती की कोई असल तस्वीर तो नहीं मिलती लेकिन तमाम कल्पनाओं ने रानी पद्मावती के खूबसूरती के तस्वीरे बनाई वो कुछ ऐसी ही नजर आती है.. रानी पद्मावती कौन थी.. सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी से पद्मावती का क्या रिश्ता था.. पद्मावती ने क्यों जौहर करके अपनी जान कुर्बान कर दिया औऱ लगभग 800 साल बाद क्यो सुर्खियों में है रानी की ये कहानी.. ऐसे तमाम सवालों में ही छुपा है पद्मावती का किरदार.. उसकी खूबसूरती और उसकी शख्सियत की कहानी या जायसी की वो कल्पना जिसने पद्मावती के किरदार को अजर और अमर कर दिया.. पद्मावती की कहानी आपको बताएं उससे पहले जान लीजिए उस सुल्तान की कहानी.... जो उस मल्लिका को पाने के लिए खूनी जंग पर उतारू हो गया था.... उस सुल्तान का नाम था अलाउद्दीन खिलजी... अलाउद्दीन....... खिलजी वंश का दूसरा शासक था, जो बहुत ही महत्वाकांक्षी था.... सन 1250 में बंगाल के वीरभूमि जिले में जन्मे अलाउद्दीन खिलजी को बचपन में लोग जुना मोहम्मद खिलजी के नाम से भी बुलाते थे... पिता का नाम शाहिबुद्दीन मसूद था..और माता कमला देवी थी.. अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन फिरुज ख़िलजी को छल से मारकर 19 जुलाई 1296 ई. में स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया... और दिल्ली की राजगद्दी पर हुकुमत करने लगा... अलाउद्दीन ने अपने चाचा जलालुद्दीन के दोनों बेटों अर्कली खान और रुकुनुद्दीन को अंधा कर देने के हुक्म के साथ-साथ उसकी विधवा मलिका जहां को कैद कर लिया और बलपूर्वक अमीरों का धन लूटता रहा.. अलाउद्दीन खिलजी... खिलजी वंश की विरासत को आगे बढ़ाया और पूरे भारत वर्ष में अपना साम्राज्य फैलाता रहा... अलाउद्दीन खिलजी को अपने आपको दूसरा अलेक्जेंडर बुलवाना अच्छा लगता था.... तभी तो अपनी शुरुआती सफलताओं से प्रोत्साहित होकर खुद-ब-खुद अपने आप को उसने सिकन्दर द्वितीय की उपाधि प्राप्त कर इसका उल्लेख अपने सिक्कों पर करवाया था... अलाउद्दीन.. खिलजी साम्राज्य के दूसरा शासक था जिसने 1296 से 1316 तक शासन किया था.. इतिहासकारों की माने तो उस समय खिलजी साम्राज्य के सबसे शक्तिशाली शासक अलाउद्दीन खिलजी ही था लेकिन वह एक धूर्त, अहंकारी, कपटी, दुश्चरित्र शासक भी था... अलाउद्दीन खिलजी पहले मुस्लिम शासक था, जिन्होंने दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फैलाया था... दूसरे राज्यों पर विजय पाने के लिए उसका जुनून ही उसे युद्ध में सफलता दिलाता था.. धीरे-धीरे अलाउद्दीन खिलजी का दक्षिण भारत में भी प्रभाव बढ़ता गया, और उसके साम्राज्य का विस्तार होता गया... खिलजी की बढ़ती ताकत के साथ, उनके वफादारों की भी संख्या बढ़ती गई.... दक्षिण भारत में धीरे धीरे खिलजी का आतंक बढ़ता गया.. दक्षिण भारत के राज्यों में खिलजी लूट मचाया करता था, और वहां के जो शासक इनसे हार जाते थे, उनसे खिलजी सालाना टैक्स वसूला करता था...


अलाउद्दीन खिलजी ने खिलजी राजवंश का नेतृत्व कर भारतीय इतिहास में अपना जगह तो बना लिया लेकिन इतिहासकार अलाउद्दीन खिलजी को एक धूर्त, अहंकारी, दुश्चरित्र शासक मानते हैं.. अलाउद्दीन ने अपने शासन काल में 4 अध्यादेश जारी किये। पहले अध्यादेश के तहत अलाउद्दीन ने दान, उपहार और पेंशन के रूप मे अमीरों को दी गयी भूमि को जब्त कर उस पर अधिक से अधिक कर लगा दिया... दूसरे अध्याधेश के तहत अलाउद्दीन ने गुप्तचर विभाग को संगठित कर बरीदऔर मुनहिनकी नियुक्ति की थी.. तीसरे अध्यादेश के तहत अलाउद्दीन ख़िलजी ने शराब पीने,  भाँग खाने और जुआ खेलने पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया.. चौथे अध्यादेश के तहत अलाउद्दीन ने अमीरों के आपस में मेल-जोल, सार्वजनिक समारोहों एवं वैवाहिक सम्बन्धों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अलग अलग इतिहासकारों के मुताबिक लूटेरे होने की वजह से खिलजी के पास अपार पैसा था... कई इतिहासकारों ने अल्लाउद्दीन खिलजी के बारे में लिखा है कि समलैंगिक था, उसने मालिक काफूर नाम के एक दास लड़का खरीदा, जो बाद में खिलजी का प्रेमी और सेनानायक बना और उसे भविष्य में कई लड़ाइयों में मदद की.. खिलजी ने दुनिया के सबसे बेशकीमती कोहिनूर हीरे को भी हथिया लिया था.. दरअसल प्राचीन भारत की शान कोहिनूर हीरे कभी 12वीं शताब्दी में काकतीय साम्राज्य के पास था। जहां वारंगल के एक मंदिर में कोहिनूर हीरा देवता की आंख के तौर पर मंदिर की शोभा बढ़ाता था.. सबसे पहले वहां से अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मालिक काफूर ने 1310 में इसे लूट लिया और खिलजी को भेंट कर दिया.. अलाउद्दीन को अच्छी शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन वे शक्तिशाली और बड़ा योद्धा बनकर उभरा था.... अपने साम्राज्य को बचाने के लिए खिलजी ने 1298 में 30 हजार मंगोलियों को एक साथ मार डाला और उनके पत्नी और बच्चों को अपना गुलाम बना लिया.... सन 1299 में गुजरात पर चढ़ाई की जिसमे अलाउद्दीन ने न सिर्फ सोमनाथ मंदिर को लूटा बल्कि पवित्र शिवलिंग भी खंडित कर दिया था... खिलजी ने 1303 में रंथाम्बोर के राजपूताना किले में पहली बार हमला किया, जिसमे वो असफल रहा... खिलजी ने यहाँ दूसरी बार हमला किया, जिसमें उनका सामना पृथ्वीराज चौहान के वंशज के राजा राना हमीर देव से हुआ. राना हमीर बहादुरी से लड़ते हुए युद्ध में मारे गए, जिसके बाद रंथाम्बोर में खिलजी का राज्य हो गया.. 1303 में वारंगल में खिलजी ने अपनी सेना भेजी, लेकिन काकतीय शासक से उनकी सेना हार गई. 1303 में खिलजी ने चितौड़ में हमला किया था. वहां रावल रतन सिंह का राज्य था, जिनकी पत्नी पद्मावती थी. पद्मावती को पाने की चाह में खिलजी ने वहां हमला किया था, जिसमें उन्हें विजय तो मिली लेकिन रानी पद्मावती ने जौहर कर लिया था... 1316 ईसवी में जलोदर यानी ड्रॉप्सी रोग से अल्लाउद्दीन खिलजी की मौत को गयी, और पीछे रह गए खिलजी वंश का उत्तराधिकारी बना कुतुब-उद-दीन मुबारक शाह।


वो इतनी खूबसूरत थी की उसे हांसिल करने के लिए एक सुल्तान खूनी जंग पर उतारू हो गया.. वो इतनी जांबाज थी की अपनी छोटी सी टुकड़ी लेकर सुल्तान के लश्कर से दो दो हाथ कर बैठी.. वो इतनी स्वाभीमानी थी कि दुश्मन के हाथ आने से पहले उसने अपनी जिन्दगी खत्म करली.. लगभग 800 साल पूरानी उस रानी की कहानी और किरदार की चर्चा आज देश के हर गली हर मुहल्ले में हो रही है.. दरअसल राजस्थान के चितौड़गढ़ के किलों का इतिहास बड़ा ही रोचक है. यहां के किलों को सिर्फ यहां के राजपूतों की बहादुरी के लिए नहीं जाना जाता है, बल्कि इसे जाना जाता है.. रानी पद्मावती के लिए भी... रानी पद्मावती के जीवन की कहानी वीरता, त्याग, त्रासदी, सम्मान और छल को दिखाती है... रानी पद्मिनी अपनी सुंदरता के लिए पूरे भारतवर्ष में मशहूर थी... वैसे ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि रानी पद्मिनी वास्तव में अस्तित्व में थी या नहीं. पद्मावत एक कविता है, जिसे मालिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में लिखा, जिसमें पहली बार पद्मावती के बारे में लिखित दस्तावेज मिले थे, जो कि लगभग उस घटना के 240 सालों बाद लिखा गया था... कुछ लोग पद्मावती को सिर्फ कहानी का एक पात्र ही मानते है.... वैसे ज्यातर इतिहासकार इस कहानी को एक कहानी ही मानते है और इस पर विश्वास भी नहीं करते... रानी पद्मावती राजा गन्धर्व और रानी चम्पावती की बेटी थी... रानी पद्मावती के पास एक बोलने वाला तोता हीरामणि भी था, जो उनके बेहद करीब था... पद्मावती बहुत सुंदर राजकुमारी थी, जिनकी सुन्दरता के चर्चे दूर-दूर तक थे... पद्मावती के लिए उनके पिता ने एक स्वयंवर आयोजित करवाया, जिसमें चितौड़ के राजा राणा रतन सिंह ने मलखान सिंह को इस स्वयंवर में हरा कर रानी पद्मावती से विवाह कर लिया. राजा रतन सिंह को कला का बहुत शौक था. देश के सभी तरह के कलाकारों  का राजा स्वागत करते और उन्हें सम्मानित भी करते थे.... उनके राज्य में एक बहुत अच्छा गायक राघव चेतनथा.... लेकिन गायकी के अलावा राघव को काला जादू भी आता था, जो बात किसी को नहीं पता थी.... राघव ने अपनी इस प्रतिभा का इस्तेमाल अपने ही राजा के खिलाफ करना चाहा और वह एक दिन रंगे हाथों पकड़ा भी गया. राजा को जब ये बात पता चली तो उसने सजा के रूप में राघव चेतन को राज्य से निकाल दिया...  बहिष्कृत होने के बाद राघव चेतन ने राजा के खिलाफ बगावत कर दी. तभी इस कहानी में अलाउद्दीन खिलजी आते है... राघव चेतन ने अपने उस अपमान के बदला लेने के लिए दिल्ली के सुल्तान से अलाउद्दीन खिलजी से हाथ मिलाता है... रागव चेतन अलाउद्दीन को राजा रत्न सिंह से जुड़े कई महत्वपूर्ण जानकारी देता है जिसमें रानी पद्मावती की सुन्दरता का बखान भी वो करता है... राघव रतन के बहकावे में आकर अलाउद्दीन चितौड़ पर हमला तो कर देता है लेकिन राजा रतन सिंह से बूरी तरह पराजित होकर दिल्ली लौटना पड़ता है... समय बितता रहता है लेकिन पद्मावती को देखने की अलाउद्दीन खिलजी की चाह बढ़ती ही रहती थी... फिर एक सुनियोजित चाल के तहत अलाउद्दीन राणा रतन सिंह को एक सन्देश भेजता है, जिसमें लिखा होता है वो राजा रतन सिंह से दोस्ती करना चाहता है और रानी पद्मावती को एक बहन की हैसियत से मिलना चाहता है. राजा रतन सिंह अलाउद्दीन खिलजी की बात तो मान जाते है.. लेकिन अलाउद्दीन की चालाकी को नहीं समझ पाते हैं... 


राजा रतन सिंह के पास जब कोई विकल्प नहीं बचा तो वो रानी पद्मिनी की छवि को एक शीशे में दिखाने के लिए तैयार हो गए.... लेकिन रानी पद्मिनी का इरादा खुद को किसी अजनबी के सामने पेश करने का नहीं था... मुश्किल घड़ी को देखते हुए रानी पद्मावती अपने राजा की बात मान लेती है. लेकिन उनकी एक शर्त होती है, कि सुल्तान उन्हें सीधे नहीं देख सकते बल्कि वे उनका आईने में प्रतिबिम्ब देख सकते है... अलाउद्दीन खिलजी उनकी इस बात को मान जाते है. उन दोनों का एक निश्चय किया जाता है, जिसके लिए विशेष तैयारी की जाती है. खिलजी अपने सबसे ताकतवर सैनिकों के साथ किले में जाता है, जो किले में गुप्त रूप से देख रेख भी करते है. अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती को आईने में देखने के बाद मदहोश हो जाता है, और निश्चय कर लेता है कि वो रानी पद्मावती को पाकर ही रहेगा. अपने शिविर में लौटते समय, रतन सिंह उसके साथ आते है. खिलजी इस मौके का फायदा उठा लेता है और रतन सिंह को अगवा कर लेता है, वो पद्मावती एवं उनके राज्य से राजा के बदले रानी पद्मावती की मांग करते है...संगारा चौहान राजपूत जनरल गोरा और बादल ने अपने राजा को बचाने के लिए सुल्तान से युद्ध करने का फैसला किया. पद्मावती के साथ मिलकर दोनों सेनापति एक योजना बनाते है. इस योजना के तहत वे खिलजी को सन्देश भेजते है कि रानी पद्मावती उनके पास आने को तैयार है... अगले दिन सुबह पालकी खिलजी के शिविर की ओर पलायन करती है.... इन पालकियों से रानी या उनकी दासी नहीं बल्कि रतन सिंह की सेना के जवान निकलते है, जो रतन सिंह को छुड़ाकर खिलजी के घोड़ों से चितौड़ की ओर भाग जाते है. गोरा युद्ध में पराक्रम के साथ लड़ता है, लेकिन शहीद हो जाता है, जबकि बादल राजा को सही सलामत किले में वापस लाने में सफल होता है. अपनी हार के बाद खिलजी क्रोध में आ जाता है और अपनी सेना से चितौड़ पर दुबारा चढ़ाई कर देता है.... अलाउद्दीन खिलजी की सेना रतन सिंह के किले पर कब्जा कर लेता है... दुश्मनों के हौसले को देखकर रानी हताश हो जाती है, उसे लगता है कि खिलजी की विशाल सेना के सामने उसके राजा की हार हो जाएगी, और उसे विजयी सेना खिलजी के साथ जाना पड़ेगा. इसलिए पद्मावती निश्चय करती है कि वो जौहर कर लेगी. जौहर का मतलब होता है, आत्महत्या, इसमें रानी के साथ किले की सारी औरतें आग में कूद जाती है. आग में कूद कर अपने पतिव्रता होने का प्रमाण देती है. किले की महिलाओं के मरने के बाद, वहां के पुरुषों के पास लड़ने की कोई वजह नहीं होती है. उनके पास दो रास्ते होते है या वे दुश्मनों के सामने हार मान लें, या मरते दम तक लड़ते रहें. अलाउद्दीन खिलजी की जीत हो जाती है और वो चितौड़ के किले में प्रवेश करता है, लेकिन उसे वहां सिर्फ मृत शरीर, राख और हड्डियाँ मिलती है.

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