रविवार, 14 जनवरी 2018

सरहद का पहरेदार- पोरस



एक ऐसा राजा जो हराया था दुनिया पर राज करने वाले सम्राट सिकंदर को..  उस महान राजा के शौर्य और इंसानियत की सीख को लोग आज भी महसूस करते हैं.. वो महान योद्धा, जिसने सिकंदर को दी थी चुनौती... जिसका नाम इतिहास में आज भी दर्ज है सबसे शक्तिशाली राजा के तौर पर... उसने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे काम किए जिससे उसकी लोकप्रियता आज भी दुनिया भर में मौजूद है.. आज भी उस नायक को सरहद का पहला पहरेदार कहा जाता है.. उस महान शासक का नाम था पोरस... पोरस की साम्राज्य झेलम नदी से लेकर चेनाब नदी तक फैला था.. कहा जाता है पोरस हार कर भी नहीं हारा और सिकंदर जीत कर भी हार गया.. इतिहास के मुताबिक राजा पोरस का काल 340 ईसापूर्व से 315 ईसापूर्व तक माना जाता है.. अपने इस कार्यकाल के दौरान राजा पोरस ने कई ऐसे काम किए जिससे उनकी लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ी.. पोरस को इतिहास में प्राचीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक कहा जाता है... कहा जाता है कि पोरस का राज्य झेलम से लेकर चिनाब तक था जो कि अब पाकिस्तान में है... भारतीय इतिहासकारों ने पोरस के राज्य कि भौगोलिक स्थिति के आधार पर उसका सम्बन्ध प्राचीन पुरुवाश वंश से भी जोड़ते हैं... इतिहासकारों के मुताबिक पोरस का नाम पुरु भी था... यह भी कहा जाता है कि प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ मुद्राराक्षस में राजा पवर्तक कोई और नहीं पोरस ही थे... संस्कृत ग्रन्थ मुद्राराक्षस के अनुसार धनानंद के विरुद्ध युद्ध में पश्चिमी भारत के एक राजा पवर्तक ने चन्द्रगुप्त का साथ दिया था... इतिहासकार मानते हैं कि यह राजा पवर्तक और कोई नहीं बल्कि राजा पोरस ही था... यूनान के इतिहासकार सिकन्दर से युद्ध करने वाले भारतीय राजा का नाम अपनी भाषा में पोरस बताते हैं... कटोच इतिहास में इस वीर राजा का नाम परमानन्द कटोच बताया जाता है। पोरस अपनी बहादुरी के लिए विख्यात था.. इतिहासकार मानते हैं‍ कि पुरु को अपनी वीरता और हस्तिसेना पर विश्वास था.. सिकंदर को दुनिया जितना महान मानती है, उतना ही सम्मान भारत में राजा पोरस का भी हैं.. यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क ने लिखा है.. सिकंदर सम्राट पुरु यानी.. पोरस की 20,000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया। आगे सिकंदर विश्व की महानतम राजधानी मगध के सम्राट धनानंद से कैसे लोहा ले पाते क्योंकि मगध के सम्राट धनानंद की सेना में 3,50,000 सैनिक थे.. जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और झेलम नदी के समीप पोरस के साथ उसका संघर्ष हुआ, तब पोरस को खुखरायनों का भी भरपूर समर्थन मिला था.. सिन्धु और झेलम को पार किए बगैर पोरस के राज्य में पैर रखना मुश्किल था.. राजा पोरस अपने राज्य की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे.. जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया तो उसका गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने स्वागत किया और आम्भी ने सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता भी की.. आम्भी राजा पोरस को अपना दुश्मन समझता था। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस से सिकंदर के समक्ष समर्पण करने की बात लिखी थी, लेकिन पोरस ने तब सिकंदर की अधीनता नहीं स्वीकार किया..

हम बात कर रहे हैं राजा पोरस की... राजा पोरस कौन थे, कहां के राजा थे और अक्सर कहानियों में सिकंदर और उनकी लड़ाई का ज़िक्र क्यों मिलता है, ये ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब रोचक हैं... इतिहास में पोरस और सिकंदर की लड़ाई काफ़ी चर्चित है. पोरस और सिकंदर के युद्ध और उनकी दोस्ती के क़िस्से भी ख़ूब सुनाए जाते हैं... पोरस कौन थे और सिकंदर से उनकी दोस्ती किन वजहों से हुई उसके पीछे इतिहासकार कूटनीति की तरफ़ इशारा करते हैं... पोरस की कहानी आपको बताएं उससे पहले जान लीजिए उस सम्राट की कहानी.... जो विश्व विजेता बनने के लिए खूनी जंग पर उतारू हो गया था.... दरअसल सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात अपने सौतेले और चचेरे भाइयों का कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिन्हासन पर बैठा था.. अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला था.. इतिहासकारों के मुताबिक यूनान के मकदूनिया का यह राजा सिकंदर कभी भी महान नहीं रहा। यूनानी योद्धा सिकंदर एक क्रूर, अत्याचारी व्यक्ति था.. इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर ने कभी भी उदारता नहीं दिखाई.. उसने अपने अनेक सहयोगियों को उनकी छोटी-सी भूल से रुष्ट होकर तड़पा-तड़पाकर मारा था.. ऐसा क्रूर सिकंदर अपने क्या, महान सम्राट पोरस के प्रति उदार हो सकता था?...  यदि पोरस हार जाते तो क्या वे जिंदा बचते और क्या उनका साम्राज्य यूनानियों का साम्राज्य नहीं हो जाता?... कुछ इतिहासकारो ने लिखा है कि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था। यदि ऐसा होता तो सिकंदर मगध तक पहुंच जाता और इतिहास कुछ और होता.. लेकिन इतिहास लिखने वाले यूनानियों ने सिकंदर की हार को पोरस की हार में बदल दिया.. जवाहरलाल नेहरू अपनी पुस्तक ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्रीमें लिखा है- 'सिकंदर अभिमानी, उद्दंड, अत्यंत क्रूर और हिंसक था.. वह स्वयं को ईश्वर के समान समझता था.. क्रोध में आकर उसने अपने निकटतम मित्रों और सगे-संबंधियों की हत्या की और महान नगरों को उसके निवासियों सहित ध्वस्त कर दिया.. ईरान और यूनान के बीच शत्रुता काफी समय से चली आ रही थी। सिकन्दर ने विश्वविजेता बनने का प्रण लिया और बड़ी सेना के साथ अपनी विजय यात्रा शुरू कर दी। उस समय यूरोप में यूनान, रोम को छोडकर सभी जगह सभ्यता न के बराबर थी और प्राचीन सभ्यताएं एशिया महाद्वीप, मिस्र, में ही मौजूद थी। इसलिए सिकन्दर ने सेना लेकर पूर्व का रूख किया वह थीव्स, मिस्र, इराक, मध्य एशिया को जीतता हुआ ईरान पहुंचा जहां क्षर्याश का उतराधिकारी दारा शासन कर रहा था। सिकंदर ने दारा को हराकर उसके महल को आग लगा दी...  दारा को हराने के बाद सिकंदर आगे बढकर हिरात, काबुल, समरकंद को जीतता हुआ सिंध नदी की उत्तरी घाटी तक पहुंच गया। जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी को पार किया तो भारत के उत्तरी इलाके में तीन राज्य थे... झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी। पोरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था। तीसरा राज्य अभिसार था जो कश्मीर क्षेत्र में था...   

राजा पोरस और सिकंदर के बीच हुए युद्ध के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि रणक्षेत्र से पहले भी इनकी मुलाकात हो चुकी थी और ये कोई साधारण मुलाकात नहीं थी.. पोरस और सिकंदर की ये ऐसी मुलाकात थी जिसने सिकंदर को हिला कर रख दिया था.. बात 326 ईसा पहले की है, जब मेसिडोनिया का बादशाह सिकंदर विश्व विजेता बनने के लिए निकल पड़ा था.. पूरी सेना सहित उसने भारत की सीमा पर डेरा डाल दिया था.. परंतु भारत पर अपना कब्ज़ा करने से पहले उसे सिंध के राजा पोरस से युद्ध करना जरूरी था.. राजा पोरस की वीरता के किस्से वह पहले ही सुन चुका था.. पोरस की विशाल सेना और उसके ताकतवार हाथियों से भिड़ना उसकी सेना के लिए कठिन था.. सिकंदर ने योजना के तहत महाराजा पोरस से दुश्मनी की जगह दोस्ती का हाथ बढ़ाना ही ठीक समझा.. सिंध को पार किए बगैर भारत में पैर रखना उसके लिए मुश्किल था.. संधि करने का फैसला तो सिकंदर ने ले लिया लेकिन, संधि का प्रस्ताव लेकर महाराज पोरस के पास जाए कौन?... सिकंदर के सामने ये सबसे बड़ी समस्या थी, क्योंकि वह जानता था कि पोरस से संधि करना बच्चों का खेल नहीं होगा.. जब सिकंदर को कुछ नहीं समझ आया तो वह एक दिन खुद दूत बन कर महाराजा पोरस के दरबार पहुंच गया.. पोरस के बारे में कहा जाता था कि वह महान शासक के साथ साथ उन्हें इंसान की परख भी बखूबी थी.. उनकी तेज नज़रें, दूत के भेष में आए सिकंदर को पहचान गई। लेकिन पोरस चुप रहे.. उन्होंने दूत को पूरा सम्मान दिया.. दूत भेषधारी सिकंदर ने अपने सम्राट का आदेश सुनाते हुए कहा, ‘सम्राट सिकंदर विश्व विजय के लिए निकले हैं और राजा-महाराजाओं के सिर पर पैर रखकर चल सकने में समर्थ हैं, वह सम्राट सिकंदर आपसे मित्रता करना चाहते हैं.. राजदूत बनकर आये सिकंदर की बात सुनकर पोरस ने बोला... राजदूत, हम पहले देश के पहरेदार हैं, बाद में किसी के मित्र और फिर देश के दुश्मनों से मित्रता कैसी....  दुश्मनों से तो रणभूमि में तलवारें लड़ाना ही पसंद करते हैं.. दरबार में बतचीत का सिलसिला ज़ारी ही था, तभी रसोइए ने भोजन के लिए आकर कहा.. दूत को साथ लेकर महाराज पोरस भोजनालय पहुंच गए। भोजन कक्ष में मंत्री, सेनापति, स्वजन सभी मौजूद थे.. महाराज पोरस ने आदेश दिया, हमारे प्रिय अतिथि को इनका मनपसंद भोजन परोसा जाए.... पोरस के आज्ञा के मुताबिक दूत भेषधारी सिकंदर की थाली में सोने की रोटियां और चांदी की कटोरियों में हीरे-मोती का चूर्ण परोसा गया। सभी ने भोजन शुरू किया, किंतु सिकंदर की आश्चर्य भरी निगाहें महाराज पर थीं। दूत को परेशान देख महाराज पोरस बोले, ‘खाइए न राजदूत, इससे महंगा भोजन प्रस्तुत करने में हम असमर्थ हैं...  महाराज पोरस के इस वचन को सुनकर विश्व विजय का सपना देखने वाला सिकंदर गुस्से से लाल हो गया और बोला, ये क्या मज़ाक है.. दूत की बात सुनकर पोरस ने कहा कि यह कोई मज़ाक नहीं, आपका प्रिय भोजन है.. यह सुनकर सिकंदर तिलमिला उठा... फिर पोरस ने कहा कि सिकंदर जब आप ये जानते हो कि मनुष्य का पेट अन्न से भरता है, सोने-चांदी, हीरे-मोती से नहीं भरता, फिर तुम क्यों लाखों घर उजाड़ते हो?.. आपको सोने-चांदी की भूख ज़्यादा थी, इसलिए मैंने यह भोजन बनवाया था.. अपने पहचाने जाने पर सिकंदर घबरा गया.. परंतु महाराज पोरस ने बिना किसी विरोध और क्षति के सिकंदर को सम्मान सहित उसकी सेना तक भिजवा दिया..


भारत मे एक कहावत प्रचलित है- जो जीता वही सिकंदर... लेकिन भारतीयों ने पश्चिम नहीं, भारतीय इतिहासकारों को पढ़ा होता तो वे कहते... 'जो जीता वही पोरस'.. इतिहास के मुताबिक सिकंदर ने जब भारत पर हमला किया था तो अन्य राज्यों कि तरह पोरस ने अपनी आधीनता स्वीकार नहीं की... सिकंदर की सेना जहां 50 हजार से भी अधिक थी वहीं पोरस की सेना कि अधिकतम संख्या लगभग 20 हजार के आसपास ही थी. राजा पुरु ने अपनी सेना के हाथियों को सिकंदर कि सेना के सामने पहले पंक्ति में खड़ा कर दिया जिसके संगठन को देखकर सिकंदर भी हैरान रह गया था... और पोरस के सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो गया था.. कहा जाता है कि युद्ध के समय भारी बारिश हो रही थी जिसने इसे सिकंदर के लिए और भी ज्यादा कठिन बना दिया था... सिकंदर ने राजा पुरु यानी पोरस को संधि का प्रस्ताव भेजा जिसे पोरस ने मान लिया था... कहा जाता है कि पोरस को पता था कि इतनी बड़ी सेना के सामने वो बहुत ज्यादा देर तक युद्ध नहीं कर पायेगा इसलिए उस संधि को स्वीकार कर लिया... भारतीय इतिहासकारों के मुताबिक राजा पोरस के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया। ऐसा यूनानी सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था। सिकंदर जमीन पर गिरा तो सामने राजा पोरस तलवार लिए सामने खड़ा था.. सिकंदर बस पलभर का मेहमान था... तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहां से भगा ले गए.. सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट गया था और उसने नए अभियान के लिए आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था.. पहले ही भारी क्षति उठाकर यूनानी सेनापति अब समझ गए थे कि अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं नष्ट कर दिए जाएंगे। सेना में विद्रोह की स्थिति पैदा होने लगी थी तब सिकंदर ने वापस जाने का फैसला किया.. सिकंदर ने सेना को प्रतिरोध से बचने के लिए नए रास्ते से वापस भेजा और खुद सिन्धु नदी के रास्ते गया, जो छोटा और सुरक्षित था.. लेकिन सिकंदर जिस रास्ते से वापस यूनान जा रहा था वो रास्ता और भी खतरनाक था... जिस रास्ते से सिकंदर वापस भाग रहा था उसी रास्ते में क्षत्रिये और जाटों का साम्राज्य हुआ करता था.. जाटों के इलाके में पहुंचते ही सिकंदर का सामना जाट वीरों से हुआ.. सिकंदर के अधिकतर पलटन का सफाया जाटों ने कर दिया.. भागते हुए सिकंदर पर एक जाट सैनिक ने बरछा फेंका, जो उसके वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया.. इतिहासकारों के मुताबिक पोरस और सिकंदर के बीच समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत पोरस, सिकंदर को आगे जाने देगा और आगे के युद्ध में सिकंदर की मदद करेगा... सिकंदर ब्यास नदी तक जो भाग भी जीतता हुआ जाएगा वो पोरस को दे देगा क्योंकि सिकंदर उसे आगे जाने का रास्ता दे रहा था... पोरस सिकंदर को रोक सकता था लेकिन जब सिकंदर ने आगे का राज्य देने का प्रस्ताव दिया तो फिर उसने उसे स्वीकार कर लिया... इसलिय इतिहासकारों का मानना है कि पोरस एक महान योद्धा तो था लेकिन वो एक देशभक्त ना होकर स्वार्थी राजा था.


भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफुटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई-कई शत्रु सैनिकों और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिकों भी मार गिरा सकता था.. इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिली... सिकंदर की सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए.. यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा 
कहा जाता है कि इस युद्ध के शुरु होते ही पोरस ने महाविनाश का आदेश दे दिया उसके बाद पोरस के सैनिकों ने और हाथियों ने जो विनाश मचाना शुरु किया कि सिकन्दर और उसके सैनिक बस देखते ही रह गए.. जिसके बाद सिकंदर के सैनिकों का मनोबल टूटने लगा था... सिकंदर ने लौटने का फैसला लिया और जाते हुए सेल्युक्स सहित कुछ यूनानी गवर्नर यहां नियुक्त कर गया.. किन्तु जल्दी ही चाणक्य के मार्गदर्शन में भारतवर्ष में एक महान क्षत्रिय राजपूत सम्राट का उदय हुआ वो थे "चन्द्रगुप्त मौर्य" जिन्होंने इन यूनानियों को जल्द ही परास्त कर भगा दिया.. 
पंजाब में झेलम से लेकर चेनाब नदी तक राजा पोरस का राज्य था... जिसकी राजधानी मौजूदा लाहौर के आस-पास थी... राजा पोरस पोरवा के वशंज थे... उनका साम्राज्य वर्तमान पंजाब में झेलम और चेनाब नदियों तक था. पोरस का कार्यकाल 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है...  
साल 1991: 'चाणक्य' नाम से आई टीवी सिरीज़ में अरुण बाली ने पोरस का किरदार निभाया था.
साल 2004: फ़िल्म 'अलेक्जेंडर' में थाई अभिनेता बिन बनल्यूरिट पोरस की भूमिका में दिखे.
साल 2011: चंद्रगुप्त मौर्य नाम से शुरू हुई टीवी सिरीज़ में भी पोरस का जिक्र आया.
साल 2017: भारत में पोरस नाम से एक टीवी सिरीज़ हाल ही में शुरू हुई है.




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