बुधवार, 19 जनवरी 2022

मच्‍छर काटते के बाद वहां खुजली मचनी शुरू हो जाती है


दोस्तों आपको तो पता ही होगा कि सिविल सेवा परीक्षा में कितने ट्रिकी सवाल पूछे जाते हैं... वो भी Interview के दौरान.. इसलिए हम आपको हमेशा IAS Interview के लिए Tricky Questions बताते रहते हैं.. हालांकि इसमें कोई गारंटी नहीं है कि Interview में इसके समान ही प्रश्न पूछे जायेंगे... तो चलिए शुरू करते है आज का ये सफर एक इंटरेस्टिंग सवाल से.. अक्सर लोगों को मच्‍छर काटते के बाद वहां खुजली मचनी शुरू हो जाती है... ऐसा कुछ घंटों तक होता है और वहां पर एक लाल निशान बन जाता है, कभी सोचा है कि ऐसा क्‍यों होता है... दरअसल इसका कनेक्‍शन इंसान के ब्‍लड से होता है. लेकिन सवाल का पूरा जवाब जानना चाहते हैं तो इस वीडियो को अंत तक जरूर देखिएगा... नहीं तो दोस्तों आपको पता ही है आधी अधूरी जानकरी खतरनाक साबित हो सकती है... तो चलिए ढूंढते हैं अपने सवाल का वैज्ञानिक तरीके से जवाब कि मच्छर के काटने पर खुजली क्यों होती है... तो दोस्तों सवाल का जवाब जानने के लिए एक बात को समझना जरूरी है कि इंसान को काटने का काम मादा मच्‍छर ही करती है... नर मच्‍छर लोगों के इर्द-गिर्द जाकर भिनभिनाते हैं लेकिन काटते नहीं हैं... ये अपनी भूख फूलों के रस से मिटाते हैं. अब जानते हैं कि मच्‍छर के काटने के बाद उस जगह पर खु‍जली क्‍यों मचती है?.. विज्ञान कहता है कि जब मच्‍छर इंसान को काटता है और खून पीता है तो अपनी लार को इंसान के ब्‍लड में छोड़ता है. मच्‍छा की लार में ऐसे प्रोटीन और एंटीकोएगुलेंट होते हैं जो शरीर में एलर्जी पैदा करने का काम करते हैं. एलर्जी के असर को कम करने के लिए इम्‍यून सिस्‍टम एक्टिवेट हो जाता है. इसलिए जब भी मच्‍छर शरीर में अपनी लार छोड़ते हैं तो इंसान के शरीर का इम्‍यून सिस्‍टम पहचान लेता है. बचाव के लिए इम्‍यून सिस्‍टम हिस्‍टामाइन नाम का रसायन रिलीज करता है जो लार के खतरे को कम करता है. इसी रसायन के कारण खुजली मचती है... और फिर इंसान उस जगह को बार-बार खुजलाता है इसलिए वहां पर सूजन आ जाती है... रिसर्चर ये भी मानते हैं कि अगर किसी इंसान को पहली बार मच्‍छर ने काटा है तो हो सकता है कि उसे उस हिस्‍से में खुजली न महसूस हो... इसकी भी एक वजह है जब पहली बार इंसान के साथ ऐसा होता है तो बॉडी में इम्‍यून रेस्‍पॉन्‍स ही नहीं डेवलप होता, इसलिए खुजली नहीं मचती.... तो दोस्तों हैं ना बिल्कुल दिमाग को हिला देने वाला सवाल.. आशा करते हैं दोस्तो मच्छर बारे में इतनी सारी जानकारियां आपको जरूर अच्छी लगी होगी... आगे भी अगर आपको इस तरह के सवालों के जवाब चाहिए तो हमें कम्मेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर लिखिएगा...

नारियल के अंदर पानी कहां से आता है


दोस्तों क्या आपने कभी ये सोचा है कि नारियल के अंदर पानी कहां से आता है, कई बार इन्टरव्यू के दौरान ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जिनका जवाब आपके पास नहीं होता... अक्सर ऐसे सवालों को कैडिट्स टाल देते हैं... कुछ कैडिट्स मन ही मन सोचते होंगे की क्या फालतू का सवाल पूछा जा रहा है... लेकिन आप यह जान कर हैरान हो जाएंगे की यह सवाल फालतू नहीं है... बेहतर होगा आप अध्ययन करें और जवाब की तलाश करें... चलिए तो आज मैं आपको बताते हैं कि आखिर नारियल के अंदर पानी कहां से आता है.. असल मैं नारियल मैं जो पानी होता है वो पोधे का एण्डोस्पर्म वाला भाग होता है.. और वनस्पति विज्ञान में एण्डोस्पर्म के तीन प्रकार होते हैं... पहला न्यूक्लियर दुसरा सेलुलर और तीसरा हीलोबियल.... कच्चे नारियल में न्यूक्लियर एण्डोस्पर्म पाए जाते हैं.. जो रंगहीन तरल के रूप मैं होता है और उसमें अनेको न्यूक्लि तैरते रहते है.. नारियल के फल मैं यह तरल पदार्थ यानी की न्यूक्लियर एण्डोस्पर्म पूरी तरह भरा रहता है, और इसी से फल का विकास होता है... बाद की अवस्था मैं, कई न्यूक्लियस सेल्ज़ के साथ मिल कर किनारों पर जमते चले जाते है, जो कुछ समय बाद सफ़ेद मोटी परत के रूप मैं बन जाते है। जो अंत मैं नारियल गिरी बन जाती है.... आम बोल चाल की भाषा में बात करें तो नारियल के बनने और बढ़ने की प्रक्रिया तभी शुरू होती है जो उसके अंदर तरल पदार्थ एकत्रित होना शुरू होता है... जैसे-जैसे तरल पदार्थ की मात्रा बढ़ती जाती है वैसे-वैसे नारियल का आकार भी बढ़ता जाता है... कुछ समय बाद नारियल पानी के अंदर मौजूद प्राकृतिक तत्व नारियल के अंदर चारों तरफ दीवार यानी सतह से चिपकना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे उनका एक आकार बन जाता है। इसी को हम नारियल की मलाई या नारियल की गिरी कहते हैं... नारियल में न्यूक्लियर एण्डोस्पर्म की उपस्थिति के कारण यह बहुत ही पोषक होता है और इसमें दूध से कहीं अधिक प्रोटीन की मात्रा होती है... प्रोटीन के अलावा नारियल पानी में सबसे अधिक मात्रा होती है पोटेशियम और मेग्निसियम की.. नारियल का सनातन धर्म में पूजन कार्य में विशेष महत्व है... हवन में नारियल चढ़ाया जाता है.. प्रसाद के रूप में नारियल को बांटा जाता है... मान्यता है कि विष्णु भगवान अपने साथ माता लक्ष्मी, कामधेनु और नारियल को संसार में लेकर आए थे... उम्मीद करता हूं आपको ये जानकारी जरूर रोचक लगी होगी.. अगर आप आगे भी एसी साइंटिफिक फैक्ट्स के बारे में जानने चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइव कजिए और कॉमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर लिखीए...

जानिए पुलिस कैसे ट्रैक करती है अपराधी का लोकेशन


 हलों दोस्तों आज इस वीडियो में हम जानेंगे कि पुलिस किसी चोरी हुए मोबाइल फोन को या फिर मोबाइल फोन के जरिए किसी अपराधी को कैसे Track करती है.. फिल्मों को देखकर हम सभी के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि क्या हम भी फोन को ट्रैक कर सकते हैं या नहीं... दोस्तों इस वीडियो को अंत तक देखिएगा फिर आपको पता चल जाएगा कि आखिर कैसे पुलिस मोबाइल फोन ट्रैक करके अपराधी या फिर मोबाइल चोर को पकड़ती है... इस वीडियो में हम जानेंगे कि मोबाइल ट्रैकिंग कैसे की जाती है... मोबाइल फोन के बदौलत अपराधी को तीन तरह से ट्रेक किया जा सकता है... पहला जीपीएस ट्रैकिंग, दूसरा आईपी एडरेस से और तीसरा IMEI Number ट्रैकिंग सिस्टम से.. जब भी किसी का मोबाइल खो जाता है तो वह उस समय पुलिस स्टेशन जाता है जहां वह जाकर अपने खोए हुए मोबाइल फोन की रिपोर्ट लिखवाता है जिसके बाद पुलिस उस व्यक्ति से उसका IMEI नंबर मांगती है जो हमें मोबाइल फोन खरीदते समय IMEI नंबर हमें मिलता है उसी की मदद से पुलिस हमारे मोबाइल फोन को खोजना शुरू कर दी है... लेकिन क्या आपको पता है कि IMEI number क्या होता है... नहीं पता है तो हम आपको बताते हैं.. दरअसल IMEI जिसका पुल फॉर्म होता है international mobile equipment identity. और IMEI नंबर सभी मोबाइल कंपनियों द्वारा मोबाइल को एक अलग पहचान देने के लिए उसमें IMEI number दिया जाता है और इसकी मदद से गायब या चोरी हुए मोबाइल फोन की लोकेशन का पता किया जा सकता है... जब हम मोबाइल खरीदते हैं तो मोबाइल फोन के बॉक्स पर IMEI नंबर लिखा होता है... आप अपने IMEI Number को मोबाइल फोन से भी आसानी से जान सकते हैं इसके लिए हमें अपने डॉयलर पैड पर जाकर *#06# को लिखना होगा जिसके बाद हमें हमारा IMEI नंबर हमारे मोबाइल स्क्रीन पर दिख जाएगा.. पुलिस इसी मोबाइल IMEI नंबर को सभी टेलीकॉम ऑपरेटर या सिम ऑपरेटर कंपनी के पास भेज देती है और उनसे कह दिया जाता है कि आप इस IMEI number को सर्विलांस पर रखिए... उसके बाद अगर कोई उस मोबाइल फोन में सिम कार्ड डाला और फोन को चालू किया तो मोबाइल का location सिम ऑपरेटर कंपनी को तुरंत मिल जाती है... अब बात करते हैं दूसरे तरीका GPS यानी की Global Positioning System से पुलिस कैसे अपराधियों को ट्रैक करती है... GPS mobile tracking काफी आसान और सरल तरीका है इसमें सबसे जरूरी GPS system हमारे मोबाइल फोन में मौजूद होना चाहिए और जिस मोबाइल फोन को हम ट्रैक कर रहे है उसमें GPS on होना चाहिए... अब बात करते है IP Address के बदौलत किसी अपराधी पुलिस कैसे पहुंचती है... दरअसल जब हम सिम कार्ड खरीदने जाते हैं तो हमें आधार कार्ड देना पड़ता है जिससे हमें हमारा सिम कार्ड मिलता है और कंपनी को जानकारी हो जाती है कि यह सिम कार्ड इस व्यक्ति का है... ठीक उसी प्रकार आईपी एड्रेस होता है जब हम Internet का इस्तेमाल करते हैं तो यह आईपी एड्रेस Telecom company द्वारा हमें दिया जाता है.. लेकिन हमें यह जानकर हैरानी होगी कि टेलीकॉम कंपनी आईपी एड्रेस खुद नहीं बनाती है टेलीकॉम कंपनियों को आईपी एड्रेस देने वाली संस्थान IANA यानी Internet Assigned Numbers Authority है जो सभी टेलीकॉम कंपनियों को आईपी एड्रेस प्रोवाइड कराती है.. जब भी कोई अपने फोन से इंटरनेट का इस्तेमाल करता हैं तो उस वक्त उसके मोबाइल में आईपी ऐड्रेस जेनरेट होता है... और जब हम किसी Website या Apps पर visit करते है तो उनके पास हमारा आईपी ऐड्रेस पहुंच चुका होता है जो अपराधी के real time location को ट्रैक कर लेता हैं और फिर यह पता चल जाता है कि अपराधी ने किस किस मोबाइल से उस website या Apps पर visit किया है.. यानी की जब तक अपराधी इंटरनेट का इस्तेमाल करता हैं तब तक ही उसके रियल टाइम लोकेशन या वर्तमान लोकेशन का पता चलता रहता है... आईपी एड्रेस की सहायता से पुलिस अपराधियों पर दबिस आसानी से दे सकती है बशर्ते उसे कोर्ट से मंजूरी लेना पड़ता है... अगर पुलिस Keypad Mobile को ट्रैक करती है तो इसमें काफी समय लगता है क्योंकि यह प्रक्रिया IMEI नंबर के द्वारा की जाती है और इसमें GPS भी नहीं लगा होता है इससे पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ती है... तो दोस्तों आशा करते हैं अब इस वीडियो को देखने के बाद आप सबको ये पता चल गया होगा कि पुलिस किसी चोरी हुए मोबाइल फोन को या फिर मोबाइल फोन के जरिए किसी अपराधी को कैसे Track करती है.. अपको ये वीडियों कैसा लगा कमेंट बॉक्स में अपना कॉमेंट लिखना मत भूलिएगा

RO Water में RO का मतलब क्या होता है?

                                          

जल ही जीवन है… पर साफ और स्वच्छ पानी नहीं मिलने के कारण आज अधिकतर लोग बीमार हो रहे हैं... हलांकि हर आम इंसान तक शुद्ध पानी कैसे पहुंचे इसके लिए विशेषज्ञों ने वाटर प्यूरीफायर का अविष्कार किया.. वाटर प्यूरीफायर पानी में मौजूद केमिकल और अन्य पदार्थ को अलग कर पानी को साफ और पीने लायक बनाता है.. आज हम इस वीडियो में आपको बताएंगे की पानी को पीने लायक बनाने के लिए किसी विधि का प्रयोग किया जाता है.. वैसे आप लोग अपने घरों में या फिर दफ्तर में वाटर प्यूरीफायर जरूर यूज कर रहे होंगे... लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस टेक्नॉलजी के आधार पर पानी को पीने लायक बनाया जाता है.. आप इस वीडियो को अंत तक देखिएगा इस वीडियो में आगे हम आपको बताएंगे कि वर्तमान समय में उपयोग की जाने वाली RO यानी की रिवर्स ऑस्मोसिस और UF अल्ट्रा फिल्ट्रेशन क्या होती है और इन दोनों में क्या अंतर होता है.. और दोनों में कौन सा प्यूरीफायर बेहतर होता है... हम सभी ने RO Water Purifier के बारे में जरूर सुना होगा लोकिन शायदा RO का मतलब हम में से बहुत कम लोगों को मालूम होगा... दरअसल RO को ही रिवर्स ऑस्मोसिस कहा जाता है.. यह घरों में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाला वाटर प्यूरीफायर सिस्टम है.. हलांकि रिवर्स ऑस्मोसिस एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके तहत पानी के तरल पदार्थों को एक सेमी परमेबल मेम्ब्रान में से अलग किया जाता है, तो पानी Lower Concentration से Higher Concentration की तरफ जाता है... रिवर्स ऑस्मोसिस वाटर प्यूरीफायर क्रॉस फिल्ट्रेशन के सिद्धांत पर काम करते हैं जिसमें पानी निकलने की 2 आउटलेट होते हैं... एक साफ पानी के लिए और दूसरा अशुद्ध पानी को बाहर निकालने के लिए.. इस अशुद्ध पानी को Reject Water भी कहते हैं... RO Purifier में जब पानी सेमी परमेबल मेम्बरान से निकलता है तो यह मेंब्रान उसमें से 99% TDS यानी की Total Dissolved Solids को निकाल देती है.. इस फिल्टर का उपयोग घरों और कंपनियों में किया जाता है... RO की प्रक्रिया में हम पानी के इसी गुण को Reverse या उल्टा करते हैं। इसके लिए बिजली का उपयोग किया जाता है जो कि एक बाहरी बल का काम करती है जिसे हम रिवर्स ऑस्मोसिस कहते हैं... समुद्र के पानी से नमक को अलग करना रिवर्स ऑस्मोसिस प्रक्रिया का एक उदाहरण है

और अब बात करते है UF यानी की अल्ट्रा फिल्ट्रेशन वाटर प्यूरीफायर टेक्नॉलोजी की... RO Water Purifier की तुलना में UF Water Purifier में ज्यादा बड़े छिद्र वाली Membrane यूज किया जाता है...  अल्ट्रा फिल्ट्रेशन फिल्टर से वायरस, बैक्टीरिया और दूसरे Micro Organism खत्म हो जाते हैं... इसमें हाइड्रोस्टेटिक प्रेशर की सहायता से पानी को सेमी परमेबल मेम्ब्रान से निकाला जाता है.. इसमें सबसे खास बात यह है कि इस प्रक्रिया में बिजली का उपयोग नहीं होता है.. यह Gravity Based Water Purifier होते हैं....अल्ट्रा फिल्ट्रेशन वाटर प्यूरीफायर से TDS अशुद्धियां के साथ साथ पानी में मौजूद आरसेनिक और लीड जैसी अशुद्धियां दूर नहीं होती है... इस मशीन को चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता नहीं होती है.. यह एक Gravity पर आधारित वाटर प्यूरीफायर है.. और इसको आसानी से साफ किया जा सकता है जिससे इसका रखरखाव आसान है... तो दोस्तों हम अपनी जरूरत के हिसाब से कोई भी वॉटर प्यूरीफायर का उपयोग कर सकते हैं.. आज के इस बदलते समय में हर दिन नई टेक्नोलॉजी आ रही हैं.. आने वाले दिनों में और भी नई टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा सकता है जिससे हमें साफ और स्वच्छ पानी मिल सकेगा.. उम्मीद है कि आपोक ये जानकरी अच्छी लगी होगी.. आप में से कितने लोगों को इसके वाटर प्यूरीफायर के बारे में नहीं पता था वो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं... अगर आपको ये वीडियों अच्छी और उपयोगी लगीं तो अपने दोस्तों से शेयर करना ना भूलें।

त्याग और बलिदान की महारानी पन्ना धाय

                  

ये कहानी है एक ऐसे बहादुर महिला की... जो थी तो मामूली सी पर उसकी रगो में दौड़ता था राष्ट्र भक्ति... वो महल में रहती थी पर राज परिवार से उसका कोई रिश्ता नहीं था.... वो नरम दिल वाली साधारण महिला थी लेकिन उसके फैसले थे पर्वत जैसे अविचल.. वो एक ऐसी मां थी जिसने अपने पुत्र को मरने के लिए दुश्मनों के पास छोड़ दिया... मगर स्वामी भक्ति पर आंच नहीं आने दिया.. उसने राष्ट्रधर्म की ऐसी मिसाल कायम की.. जिसका विश्व में कोई उदाहरण आज भी नहीं है... जी हां हम बात कर रहे है त्याग और बलिदान की महारानी पन्ना धाय की.. अपना सर्वस्व लुटाने वाली वीरांगना पन्ना धाय किसी राजपरिवार से नहीं बल्कि एक गुर्जर परिवार से थी.... उदयसिंह को दूध पिलाने के कारण इन्हें धाय मां कहा गया..  हलांकि मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ महाराणा प्रताप को याद किया जाता है..  उसी गौरव के साथ पन्नाधाय का नाम भी लिया जाता है जिसने स्वामी भक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चंदन का बलिदान दे दिया था...  अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्नाधाय का जन्म मेवाड़ के कमेरी गांव में हुआ था...  पन्ना के पिता हरचंद हांकला एक वीर योद्धा थे.. पन्ना का पुत्र चंदन और राजकुमार उदय सिंह साथ-साथ बड़े हुए थे.. उदय सिंह को पन्ना ने अपने पुत्र की तरह पाला था.. कहते हैं कि रानी कर्णावती से जब उदय सिंह का जन्म हुआ तो रानी तभी से बीमार रहने लगी..  तब उदय सिंह का लालन-पालन के लिए पन्ना को धाय माता बनाया गया...  इस धाय मां ने अपनी स्वामी भक्ति से सिद्ध कर दिया था कि वह जन्मजात शेरनी है.. उसने उदय सिंह की मां.. महारानी कर्णावती को वचन दिया था कि वह हर परिस्थिति में उदय सिंह की रक्षा करेगी.. बात उस समय की है जब चित्तौड़गढ़ का किला चारों ओर से आन्तरिक विरोध से घिरा हुआ था... उस समय उदयसिंह की आयु मात्र लगभग 14 साल थी.. रात्रि का समय था उदय सिंह सो रहे थे, तभी पन्नाधाय को अंदेशा हुआ कि किसी भी समय बनवीर यहां आ सकता है और उदय सिंह की हत्या कर सकता हैऐसे में पन्नाधाय ने उदय सिंह के पलंग पर अपने पुत्र चंदन को सुला दिया और उदय सिंह को कहीं ओर छुपा दिया... कुछ ही समय में वहां पर क्रोध से भरा हुआ बनवीर पहुंचा.. उसने आकर पन्नाधाय से पूछा कि उदयसिंह कहां है?.. तो पन्नाधाय ने पलंग की तरफ हाथ से इशारा किया और बोला कि वह सो रहे है... बनवीर ने पलंग के पास जाते ही सो रहे चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और बाहर आकर जश्न मनाने लगा.... और फिर स्वयं को मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया.. यह देखकर पन्नाधाय की आंखें तो भर आई लेकिन वह रो भी नहीं सकी क्योंकि अगर वह रोती तो बनवीर समझ जाता कि उसने पन्नाधाई के बेटे की हत्या की है ना कि उदयसिंह की.. सुबह का सूरज उगते ही पन्नाधाय उदय सिंह को लेकर बाहर निकल गई.... यहां से निकलने के बाद पन्नाधाय दर दर भटकती रही लेकिन हर कोई बनवीर के डर से पन्नाधाय को अपने महल में रखने से मना कर दिया... लेकिन त्याग और बलिदान की मूर्ति पन्नाधाय ने हार नहीं मानी और उदय सिंह को लेकर वह आखिर में कुंभलगढ़ पहुंची.... जहां राजकुमार उदय सिंह का पालन-पोषण छिपाकर किया गया. आगे चलकर कुंभलगढ़ से ही उदयसिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक हुआ... और 1537 ई. में उदयसिंह ने हत्यारे बनवीर को परास्त कर चित्तौड़ पर वापस अपना अधिकार स्थापित किया... पन्ना धाय का योगदान मेवाड़ राजवंश के लिए वरदान साबित हुआ... नहीं तो यह राजवंश हमेशा के लिए खत्म हो सकता था आगे चलकर इसी मेवाड़ राजघराने में महाराणा प्रताप जैसे सूर्यवीर राजा का जन्म हुआ जिन्होंने ताउम्र मुगलों को धूल चटाई और कभी भी अकबर जैसे योद्ध को मेवाड़ पर अधिकार करने का मौका नहीं दिया... धन्य हैं वो मां जिसने अपने स्वामी भक्ति के आगे अपने बेटे का बलिदान कर दिया... काश कि हम इतना ना करके कुछ थोड़ा कर सके..

इंडियन सिविल सर्विस ज्वाइन करने वाले पहले भारतीय


 इंडियन सिविल सर्विस यानि IAS इंग्लिश वर्णमाला के इन तीन लेटर्स में कुछ ऐसा है कि कोई भी स्टूडेंट खुद को इनके आकर्षण से बचा नहीं पाता करियर चाहे मेडिकल में बनाना हो या IIT  या फिर कोई और प्रोफेशन अपनाने की चाह हो, लेकिन जीवन में कम से कम एक बार सभी छात्र सिविल सर्विस की परीक्षा में भाग्य जरूर आजमाना चाहते हैंलेकिन कभी आपने सोचा है कि देश में सबसे पहले किसने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की होगी?..  अपने नाम के आगे ये तीन प्रतिष्ठित लेटर्स लिखने वाला कौन था देश का पहला IAS?... अगर नहीं जानते तो हमारे इस वीडियो को अंत तक देखिएगा... आज हम आपको बताते हैं देश के पहले आईसीएस के बारे में.... सत्येंद्रनाथ टैगोर इंडियन सिविल सर्विस जॉइन करने वाले पहले भारतीय थे.. वे श्री देवेन्द्रनाथ ठाकुर के पुत्र और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे सत्येंद्रनाथ लेखक, कवि और साहित्यकार भी थे.... उन्होंने महिलाओं के उत्थान में काफी योगदान दिया... सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून, 1842 को कोलकाता में हुआ था.. शुरुआती पढ़ाई घर पर हुई और बाद में प्रेसिडेंसी कॉलेज चले गए.. 1859 में उनका विवाह ज्ञानंदिनी देवी से हुआ.. और फिर 1862 में वे ICS की परीक्षा के लिए लंदन चले गए... 1863 में उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की... सत्येन्द्रनाथ ठाकुर इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले प्रथम भारतीय थेट्रेनिंग के बाद वह नवंबर, 1864 में भारत लौट आए उनकी पहली नियुक्ति बांबे प्रेसिडेंसी में हुई उसके बाद अहमदाबाद में 1865 में असिस्टेंट मजिस्ट्रेट और कलक्टर के पद पर सेवाएं दी 1882 में उनकी नियुक्ति कर्नाटक के कारवार में जिला न्यायाधीश के रूप में हुई.. 1897 में महाराष्ट्र के सतारा के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए.. 1832 से पहले तक सभी प्रशासकीय पदों पर अंग्रेज ऑफिसर ही नियुक्त किए जाते थे और भारतीयों को प्रमोशन बहुत ही कम दिया जाता था.. इस कारण अवकाश प्राप्ति के समय तक उनको सिर्फ जिला और सेशन जज के पद पर ही प्रमोशन मिल सका। 30 सालों तक वह सिविल सर्विस में रहे.. महिलाओं की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले IAS सत्येंद्रनाथ टैगोर रिटायरमेंट के बाद कलकत्ता लौट आए जहां 9 जनवरी 1923 को उनका निधन हो गया..

किसान दिवस क्यों मनाया जाता


हम भोजन के बिना जीवित नहीं रह सकते..... और भोजन का अधिकांश हिस्सा हमें किसानों के उपजाए हुए अनाज और फल-सब्जियों से मिलता है... किसान खेतों में मेहनत कर के जो उपजाते हैं, उन्हीं से हमारा पेट भरता है... किसान न हो तो हमारा अस्तित्व नहीं रह पाएगा... लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में किसान दिवस कब और क्या मनाया जाता है.... हमारे इस वीडियों को अंत तक देखिएगा आपको किसान दिवस से जुड़ी बहुत अहम जानकारी मिलने वाली है.... आज 23 दिसंबर है... और आज पूरे देश में राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जा रहा है... दरअसल इसी दिन भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जन्म हुआ था, जिन्होंने किसानों के जीवन और स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए कई नीतियों की शुरुआत की थी... भारत सरकार ने साल 2001 में चौधरी चरण सिंह के सम्मान में हर साल 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था... और इस खास मौके पर किसानों के मसीहा कहलाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को किसान समेत देश भर के लोग उन्हें याद कर रहे हैं.. दरअसल चौधरी चरण सिंह को भारतीय किसानों की स्थिति में सुधार लाने का श्रेय दिया जाता है.. खुद किसान परिवार से होने के कारण वे किसानों की समस्या और स्थिति से अच्छी तरह वाकिफ होते थे, इसलिए उन्होंने किसानों के लिए कई सुधार कार्य किए थे.. चौधरी चरण सिंह को जमीनी और अपनी धुन के पक्के नेताओं में शुमार किया जाता रहा है.. यहां तक कि उन्होंने अपनी केंद्र की गठबंधन सरकार को भी एक जिद के चलते ही कुर्बान कर दिया था और पीएम पद से तिलांजलि दे दी थी... उन्होंने 21 अगस्त, 1979 को अपनी 23 दिनों की सरकार का इस्तीफा राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को सौंप दिया था.. उन्होंने साफ कहा था कि भले ही उनकी सरकार चली जाए, लेकिन वह इंदिरा गांधी की कांग्रेस से समर्थन नहीं लेंगे.. किसानों के नेता होने के साथ ही चौधरी चरण सिंह को पिछड़े वर्ग की आवाज के तौर पर भी याद किया जाता है... आज यूपी में जाट, यादव, गुर्जर जैसी ओबीसी बिरादरियों की जो मजबूत लामबंदी दिखती है, उसको आवाज देने का काम चौधरी चरण सिंह ने ही किया था... देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान चौधरी चरण सिंह ने किसानों की भलाई के लिए कड़ी मेहनत की... 1962-63 तक, उन्होंने सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में कृषि और वन मंत्री के रूप में भी कार्य किया.. उन्होंने किसानों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू कीं. किसानों को साहूकारों और उनके अत्याचारों से राहत देने के लिए, उन्‍होंने 1939 में ऋण मोचन विधेयक वापस पेश किया था... 2001 में, तत्कालीन सरकार ने चरण सिंह की जयंती को किसान दिवस के रूप में घोषित किया... सादा जीवन जीने में विश्वास रखने वाले चौधरी चरण सिंह ने अपना अधिकांश खाली समय पढ़ने और लिखने में बिताया करते थे... उन्‍होंने अपने जीवनकाल में कई किताबें भी लिखी है.. उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं.. सहकारी खेती एक्स-रे, जमींदारी का उन्मूलन....  भारत की गरीबी और इसका समाधान... आज पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का ही योगदान है कि देश का किसान आज देश की प्रगति में बड़ा योगदान दे रहा है... किसान दिवस को मनाने के पीछे एक और उद्देश्य यह भी है कि यह कृषि क्षेत्र की नवीनतम सीखों के साथ समाज के किसानों को सशक्त बनाने का विचार देता है.. केंद्र और राज्यों की सरकारें किसानों के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती हैं... इस विशेष दिवस का उद्देश्य ही यही है कि किसानों के योगदान को सराहा जाए.. देश में इस अवसर पर किसान जागरूकता से लेकर कई तरह के कार्यक्रम होते हैं

दुनिया की सबसे ठंडी जगह

                                          

 इंसान को लगता है की वह दुनिया में सबसे ज्यादा ताकतवर है.. लेकिन वह भूल जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा ताकतवर कई है तो वो इंसान नही बल्कि नेचर है और नेचर सबसे ज्यादा दयालु भी है... आप तो जानते ही होंगे की पूरी दुनिया मे एक जैसा मौसम नही होता है.. कहीं पर बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है तो कही पर गर्मी... इसी क्रम मे आज हम बात कर रहे है दुनिया की ठंडी जगह के बारे मे.. जी हां आज हम आपको दुनिया की उन सबसे ठंडी जगहों के बारे में बताने वाले हैं, जहां का तापमान -65 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है... हालांकि भारत में भी कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां ज्यादा ठंड पड़ती है... यहां तापमान कभी-कभी शून्य से भी नीचे चला जाता है और भारी बर्फबारी होती है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है... लेकिन क्या आप दुनिया के ठंडे देशों के बारे में जानते हैं, जिनके कुछ इलाके तो पूरे साल बर्फ की चादर से ढंके रहते हैं.. जी हां दुनिया में ऐसी कुछ जगह हैं, जहां का तापमान इतना नीचे चला जाता है कि इंसान का खून जमने लगता है... दुनिया में ऐसे-ऐसे शहर भी हैं, जहां इतनी ठंड पड़ती है क‍ि लोगों को पानी पीने के लि‍ए भी बर्फ को पिघलाना पड़ता है. इनमें से बहुत सारे शहर आर्कटिक सर्कल से केवल कुछ किलोमीटर ही दूर हैं... यदि आप सर्दी में रहने के आदी नहीं हैं, तो इन स्‍थानों पर जाना आपके लिए खतरनाक हो सकती है. मगर इंसान का स्‍वभाव, और जिंदा रहने की उसकी इच्छाशक्ति इन स्थानों पर जीवन को आसान बना सकती है. वहां जीवन गुजार रहे लोग इसके जीते-जागते उदाहरण हैं... आइए इस कड़ी में सबसे पहले बात करते हैं ग्रीनलैंड की... ग्रीन लैंड डेनमार्क राजशाही के अधीन एक स्वायत्त घटक देश है, जो आर्कटिक और अटलांटिक महासागर के बीच कनाडा आर्कटिक द्वीपसमूह के पूर्व में स्थित है... चारों तरफ से समुद्र से घिरा हुआ यह देश दुनिया के सबसे ठंडे देशों में से एक है... यहां गर्मियों के मौसम में भी तापमान शून्य होता है.. क्षेत्रफल के मामले में ग्रीनलैंड दुनिया का 12वां सबसे बड़ा देश है और ब्रिटेन से 10 गुना ज़्यादा बड़ा है. इसके 20 लाख वर्ग किमी. में चट्टान और बर्फ़ हैं... ग्रीनलैंड की जनसंख्या सिर्फ़ 56 हज़ार है जो इंग्लैंड के लगभग एक शहर के बराबर है. यहां की 88 प्रतिशत जनसंख्या इनूएट की है और बाक़ी डेनिश लोग रहते हैं... आपको बता दें कि ग्रीनलैंड को दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप कहा गया है। अपने अधिकांश हिस्से में बर्फ की चादर ओढ़े हुए ग्रीनलैंड काफी खूबसूरत दिखाई देता है। इसकी खूबसूरती के कारण पर्यटकों के लिए भी यह द्वीप आकर्षण का केंद्र है। जहां एक तरफ भौगोलिक दृष्टि से यह द्वीप उत्तरी अमेरिका का भाग है। वहीं दूसरी ओर 18 वीं सदी के बाद से यूरोप से सियासी संबंध जोड़े हुए है।

अब बात करते है आइसलैंड की... आइसलैंड गणराज्य उत्तर पश्चिमी यूरोप में उत्तरी अटलांटिक में ग्रीनलैंड, फरो द्वीप समूह और नॉर्वे के मध्य बसा एक द्वीपीय देश है... ग्रीनलैंड की तरह आइसलैंड भी दुनिया के सबसे ठंडे देशों में से एक है.. यहां का तापमान आसानी से माइनस 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है.. अगर हम यह कहें कि भगवान ने पूरी फुर्सत से आइसलैंड का निर्माण किया है तो इसमें कोई दो राय नहीं होगी.. आइसलैंड में आप जहां भी सिर घुमाकर देखेंगे आपको बेहद खूबसूरत और पिक्चर परफेक्ट प्राकृतिक दृश्य नजर आएगा... आमतौर पर आपने भूरे रंग के पहाड़ देखे होंगे या फिर पेड़ पौधों से भरे हों तो पहाड़ों और पर्वतों का रंग हरा नजर आता है और अगर बर्फ से ढकी पहाड़ियां हों तो पहाड़ का रंग सफेद होगा। लेकिन क्या आपने कभी पिंक, येलो, पर्पल या ब्लैक कलर के पहाड़ देखे हैं? अगर नहीं तो चले आइए आइसलैंड के लैंडमैन्नालॉगर जहां आपको दिखेंगे मल्टीकलर राइयोलिट  के पहाड़। यह एक पॉप्युलर डेस्टिनेशन है जहां नेचर लवर्स के साथ ही हाइकिंग में दिलचस्पी रखने वाले लोग भी आते हैं.. आइसलैंड की बहुत सी नदियां ऐसी हैं जो ग्लेशियर आइस, ग्रीनस्केप और ज्वालामुखी की राख से होते हुए बहती हैं। अगर आप आकाश से देखें तो ज्वालामुखी की राख से होकर बहती हुई नदियां आपको किसी बेहद खूबसूरत डिजिटल आर्ट या काल्पनिक पेंटिंग जैसी दिखेंगी। इसे देखने भी आइसलैंड में दूर-दूर से पर्यटक आते हैं।

अब बात करते हैं एक ऐसी जगह की जहां चलते चलते जावनर बर्फ में तब्दील हो जाते हैं... जी हां हम बात कर रहें है कजाकिस्तान की.. आर्कटिक सर्कल के अंदर स्थित यह देश रूस के ठीक नीचे स्थित है.. सर्दियों के मौसम में यहां का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है.. लेकिन यहां हमेसा ठंड के सारे रिकॉर्ड टूटते रहते हैं... यहां की ठंड नें पुरे कजाकिस्तान को हिला कर रख देता है... यहां का आलम ऐसा होता की कभी कभी जानवर जमकर पत्थर हो जाते हैं... आप इन होश उड़ाने वाली तस्वीरों को देख कर अंदाजा लगा सकते हैं...

जानलेवा ठंड सिर्फ यहीं नहीं बल्कि दुनिया भर में कई और भी ऐसे डेस्टीनेशन है जहां की ठंड जीवन पर भारी पड़ता है लेकिन यहां लुत्फ उठाने के लिए पर्यटक दूर दूर से आते हैं... अब बात करते है रूस के कुछ ऐसे इलाकों की जहां की ठंड अपने आप में एक अगल कहानी बताती है.. रूस के साइबेरियाई इलाके में ओइमयाकॉन एक ऐसी जगह है जहां सालो भर ठंड पड़ती है...  आर्कटिक सर्कल से सिर्फ कुछ सौ किलोमीटर दूर 500 की आबादी वाला यह गांव ओइमयाकॉन, धरती पर सबसे ठंडे जगहों में से एक है. जनवरी में यहां का औसत तापमान -50 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है... यहां ठंड इतनी भीषण होती है कि इंजनों को बंद होने से बचाने के लिए यहां के निवासी अपनी गाड़ियों को हीटेड गैरेज में पार्क करते हैं... चेहरे पर फ्रेम जम जाने के कारण यहां के लोग चश्में तक नहीं पहनते. यहां खेती करना नामुमकिन है, इसलिए यहां के लोग रेनड‍ियर या मछली खाते हैं, और यहां तक कि खुद को गर्म रखने के लिए मैकरॉनी के साथ घोड़े के खून से बने बर्फ के क्यूब्स का सेवन करते हैं..

पृथ्वी पर सबसे ठंडे स्थान की बात होती है तो कनाडा का भी नाम आता है.. कनाडा को दुनिया के सबसे ठंडे देशों में से एक माना जाता है। यहां इतनी ठंड पड़ती है कि समुद्र का पानी तक जम जाता है। सर्दियों के दौरान लगभग पूरे कनाडा में भारी बर्फबारी होती है और तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे तक गिर सकता है... यहां सर्दियों में इतनी ठंड बढ़ जाती है कि आमतौर पर लोग ठंड से बचने के लिए घर के अंदर ही रहते हैं.

और अब बात करते है चीन के हार्बिन की.... अपनी तीव्र शीतकालीन जलवायु के कारण, हार्बिन को आइस स‍िटी के नाम से जाना जाता है. यह चीन के हेइलोंगजियांग प्रांत की राजधानी है... इसकी आबादी लगभग एक करोड़ है. यह शहर दुनिया के सबसे बड़े बर्फ त्योहारों में से एक की मेज़बानी करता है, इस त्यौहार को हार्डिन इंटरनेशनल शो और आइस फेस्टिवल कहा जाता है... आम तौर पर यहां सर्दियों में तापमान -22 से -24 डिग्री सेल्सि‍यस तक ग‍िर जाता है, लेकिन यहां पर -44 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान भी दर्ज किया गया है. ज्यादातर चीनी शहरों में हार्बिन को सबसे ठंडे और सबसे लंबी सर्दियों के मौसम वाले शहर के लिए जाना जाता है... 

खुशियों का त्योहार- हैप्पी क्रिसमस


                                            

चांद ने अपनी चांदनी बिखेरी है,.. और तारों ने आस्मां को सजाया है,.. लेकर तौहफा अमन और प्यार का... देखो स्वर्ग से कोई फ़रिश्ता आया है.. जी हां आप समझ ही गये होंगे की बात खुशियों की त्योहार क्रिसमस की हो रही है... क्रिसमस ईसाई समुदाय का सबसे प्रमुख त्योहार है जो हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है. दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इसे प्रभु यीशु के जन्मदिवस के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है. यूरोपियन देशों में तो इस दिन कई लोग जुलूस भी निकालते हैं, जिसमें प्रभु यीशु की झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं... क्रिसमस जीसस क्रिस्ट के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। जीसस क्रिस्ट को भगवान का बेटा कहा जाता है। क्रिसमस का नाम भी क्रिस्ट से पड़ा। बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। इस तारीख को लेकर कई बार विवाद भी हुआ। लेकिन 336 ई। पूर्व में रोमन के पहले ईसाई रोमन सम्राट के समय में सबसे पहले क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया गया। इसके कुछ सालों बाद पोप जुलियस ने आधिकारिक तौर पर जीसस के जन्म को 25 दिसंबर को ही मनाने का ऐलान किया... बहुत कम लोगों को यह जानकारी होगी की क्रिसमस का पर्व 1 दिन का नहीं बल्कि पूरे 12 दिन का पर्व है और यह पर्व क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू हो जाता है। क्रिसमस ईव यानि क्रिसमस की पूर्व संध्या धार्मिक और गैर-धार्मिक दोनों परंपराओं से जुड़ी है। इन परम्पराओं का मुख्य केंद्र प्रभु यीशु का जन्म है। ईसाई धर्म में भी अपनी विभिन्न संप्रदाय हैं जिनकी अलग परंपराएं हैं। इस दिन रोमन कैथोलिक और एंग्लिकन मिडनाइट मास का आयोजन करते हैं। लुथेरन कैंडल लाइट सर्विस और क्रिसमस कैरोल के साथ जश्न मनाते हैं। कई एवेंजेलिकल चर्च में शाम की सेवाओं का आयोजन होता है जहां परिवार पवित्र भोज बनाते हैं.. क्रिसमस के साथ कुछ मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। क्रिसमस डे के दिन सैंटा क्लॉज का बच्चे बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। दरअसल सैंटा क्लॉज क्रिसमस के दिन बच्चों के लिए कई सारे गिफ्ट लेकर आता है। सैंटा क्लॉज को एक देवदूत की तरह माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि वह बच्चों के लिए चॉकलेट, गिफ्ट सभी चीजें स्वर्ग से लेकर आता है और वापस वहीं चला जाता है.. रब ऐसी क्रिसमस बार-बार लाए कि क्रिसमस पार्टी में चार चांद लग जाएं..  सांता क्लॉज से हर दिन मिलवाएं जिससे कि सभी रोजाना नए-नए तोहफे पाएं.. इसी शुभकामनाएं के साथ आप सभी को क्रिसमस की ढेर सारी बधाई..

विनोद दुआ की कहानी

                                                                

 पत्रकार की जुबान मिसाल-ए-हिनदुस्तान... धरा में जन्म लिया धरा पर ही कुर्बान... पत्रकारिता के रास्ते हक की पहचान..  पिछड़ों के मसीहा.... दबे कुचले लोगों का अभिमान... शान-ए-हिनदुस्तान... शान-ए-हिनदुस्तान.. कुशाग्र वुद्धि.. निर्भीक... निडर.. और विलक्ष्ण प्रतिभा के धनी विनोद दुआ आज हमारे बीच नहीं हैं.. धरती मां के गोद में पलने.. बढ़ने वाले वो धरा पुत्र .. जो जिए तो बस गरीब मजदूर और पिछड़ों के खातिर... इनकी हर सांस में थी समाज के पिछरे वर्गों की आवाज.... हर धड़कन में अन्याय और शोषण के खिलाफ धड़कते शोले... साल 1954 में हिन्दुस्तान की क्षीतिज पर ऐसे सूरज का उदय हुआ जो 67 साल तक आसमान में कोहनूर बनकर चमकते रहे.. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का एक ऐसा निडर जर्नलिस्ट जो भोजन, राजनीति और संस्कृति के क्षेत्र में समान रूप से पकड़ रखते थे। ब्लैक एंड वॉइट युग में दूरदर्शन के साथ अपना करियर शुरू करने और बाद के दशकों में डिजिटल दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाले जानेमाने पत्रकार विनोद दुआ कभी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया... पहली पीढ़ी के टीवी पत्रकारों में विनोद दुआ ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने टीवी पत्रकारिता का आइकॉन कहा जाता है उन्होंने रिपोर्टिंग से लेकर शो होस्ट करने में अपनी अलग छाप छोड़ी है परख, सुरभि और विनोद दुआ लाइव जैसी खबरों की बुलेटिन करने वाले विनोद दुआ का कार्यक्रम जायका इंडिया का उनकी विविधता का प्रमाण है.. विनोद दुआ को साल 1996 में रामनाथ गोयनका पत्रकारिता सम्मान पाने वाले पहले टीवी पत्रकार थे..... उन्हें केंद्र में मनमोहन सिंह सरकार के वक्त 2008 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था... पत्रकारिता में सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिए मुंबई प्रैस क्लब ने जून 2017 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट रेड लिंक अवार्ड दिया था.... विनोद दुआ ने विजय नगर के सरकारी स्कूल से मिडिल तक पढ़ाई की थी। उसके बाद वे रूप नगर के धनपतराय स्कूल में चले गए थे और फिर वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज में... कह सकते हैं कि विनोद दुआ का युववाणी के माध्यम से मीडिया की दुनिया से पहला साक्षात्कार हुआ था.. यह 1970 के दशक के मध्य की बातें हैं। वे डीयू में पढ़ते हुए युववाणी में कार्यक्रम पेश किया करते थे.... यहां से ही उनकी प्रतिभा को पहचाना शिव शर्मा ने, जो आगे चलकर दूरदर्शन के महानिदेशक बने... उन्होंने विनोद दुआ को 1984 के अंत में चालू हुए जनवाणी कार्यक्रम का एंकर बनाया... तब तक देश ने उन्हें 1984 के लोकसभा चुनावों को टीवी पर प्रणय राय़ के साथ पेश करते हुए देख लिया था... शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि लेने वाले खूबसूरत आवाज के धनी विनोद दुआ महफिलों की शान हुआ करते थे.. विनोद दुआ के आदर्श आज भी हमारे साथ है और हमेशा रहेंगे..

केरल के जुड़वा बच्चे का गांव

                              

किसी शायर ने खूब कहा है, तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत, हम जहां में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं... लेकिन केरल में एक गांव ऐसा है जो शायर की इन पंक्तियों को झूठा साबित कर रहा है... जी हां हम बात कर रहे हैं जुड़वा लोगों के उस गांव की जो आज भी रिसर्चर्स के लिए एक रहस्‍य बना हुआ है... केरल का एक गांव जिसे गॉड्स ओन कंट्री कहा जाता है... इस रहस्‍यमय गांव के हर घर में जुड़वा बच्‍चे ही पैदा होते हैं... केरल का यह गांव मल्‍लपुरम जिले में आता है और आज तक इसके रहस्य से अब तक पर्दा नहीं उठा है... इस गांव में देश के सबसे ज्‍यादा जुड़वा लोग पाए जाते हैं... आपको इस गांव में, स्कूल में और पास के बाजार में कई हमशक्ल बच्चे नजर आ जाएंगे... केरल के कोच्चि शहर से करीब 150 किलोमीटर के फासले पर स्थित कोडिन्ही गांव के कारण पूरी दुनिया के वैज्ञानिक सकते में हैं कि ऐसा क्या है इस गांव की आबो हवा में कि यहां पैदा होने वाले जुड़वां बच्चों का औसत सारी दुनिया के औसत से सात गुना ज्यादा है.. दुनियाभर में इस शहर को जुड़वां गांव के नाम से ही जाना जाता है। इस गांव की 85 फीसदी आबादी मुस्लिम है, लेकिन ऐसा नहीं कि हिन्दू परिवारों में जुड़वां पैदा नहीं होते.. स्थानीय लोग बताते हैं कि जुड़वां बच्चों का सिलसिला यहां करीब 60 से 70 साल पहले शुरू हुआ... इस गांव में रहने वाले जुड़वां जोड़ों में सबसे उम्रदराज 65 साल के अब्दुल हमीद और उनकी जुड़वा बहन कुन्ही कदिया है. ऐसा माना जाता है इस गांव में तभी से जुड़वां बच्चे पैदा होने शुरू हुए थे. शुरू में तो सालों में कोई इक्का दुक्का जुड़वा बच्चे पैदा होते थे लेकिन बाद में इसमें तेजी आई और अब तो बहुत ही ज्यादा रफ्तार से जुड़वां बच्चे पैदा हो रहे हैं... इस गुत्थी को समझने के लिए कुछ समय पहले भारत, जर्मनी और ब्रिटेन का एक संयुक्त अध्ययन दल यहां आया था और उन्होंने यहां के लोगों के डीएनए का अध्ययन करने के लिए कुछ नमूने एकत्र किए.. इसी तरह बहुत से दल यहां आते हैं और अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए यहां के लोगों के चेहरे मोहरे, यहां की आबो हवा, खान पान जैसे तमाम तरह के अध्ययन करते हैं, लेकिन जुड़वां बच्चे पैदा होने की कोई वजह आज तक मालूम नहीं हो पाई..  केरल के कोडिन्ही जैसे दुनिया में दो और गांव हैं, नाइजीरिया का इग्बो ओरा और ब्राजील का कैंडिडो गोडोई। यहां भी वैज्ञानिकों ने जुड़वां बच्चों की प्रक्रिया को समझने की कोशिश की। नाइजीरिया में पाया गया कि वहां मिलने वाली एक सब्जी के छिलके में रसायन की अधिक मात्रा के कारण ऐसा हुआ। वहीं ब्राजील वाले मामले में रिसर्चरों को कहना है कि उस समुदाय में सब आपस में ही शादी करते हैं और वहां शायद इसलिए ऐसा होता है। लेकिन कोडिन्ही का मामला अब भी रिसर्चरों के लिए चुनौती बना हुआ है और बाकायदा सरकारी तौर पर यह पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि यहां इतनी बड़ी संख्या में जुड़वां पैदा होने की वजह क्या है।

महात्मा गांधी का फुटबॉल प्रेम

                                           

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमारे देश के ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के नेता थे.. वो एक एसे युगपुरुष थे जिन्होंने समस्त मानव जाति को सत्य और अहिंसा  का मार्ग अपनाने का संदेश दिया..  देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने वाले गांधी जी फुटबॉल प्रेमी भी थे..  दरअसल गांधीजी जब पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए तो वहां उन्हें कई चीजों के प्रति रुचि पैदा हुई... फुटबॉल से भी वे वहीं परिचित हुए... हलांकि कानून की शिक्षा हासिल करके गांधीजी भारत लौट आए... इसके बाद एक मुकदमे के सिससिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा.. दक्षिण अफ्रीका में उन दिनों रंगभेद जोरों पर था... जिसे देखकर गांधीजी को रहा नहीं गया.. और फिर उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की.. इसी दौरान वहां उन्होंने देखा कि वैसे लोग जो अपेक्षाकृत कम पैसे वाले हैं, उनके बीच फुटबॉल बहुत लोकप्रिय है.. यह देख कर इस खेल के प्रति उनकी पुरानी रुचि जाग गई.. उन्हें यह भी लगा कि इस खेल से जुड़ कर इन लोगों के बीच अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ अहिंसक विरोध की अपनी नीति का वे प्रचार कर सकते हैं। इसके बाद 1896 में गांधीजी ने तीन फुटबॉल क्लब की स्थापना की... गांधी जी ने डरबन, प्रेटोरिया और जोहान्सबर्ग में फुटबॉल क्लब की स्थापना की... इन तीनों फुटबॉल क्लब को 'पैसिव रेसिस्टर्स सॉकर क्लब' कहा जाता था, जिसका मतलब था अहिंसक विरोध करने वालों का फुटबॉल क्लब। गांधीजी वैसे तो नियमित फुटबॉल नहीं खेलते थे, क्योंकि उनकी व्यस्तता बहुत ज्यादा थी... लेकिन कहते हैं कि जिन क्लबों की उन्होंने शुरुआत की थी, उनके लिए कभी फुटबॉल खेला भी था... वैसे वे अक्सर फुटबॉल के मैचों में जो भीड़ जुटती थी, वहां अंग्रेजों के रंगभेद कानून के खिलाफ पर्चे और पैम्फलेट्स बंटवाते थे, ताकि उनमें जागरूकता बढ़े और वे उनके आंदोलन से जुड़ सकें.. गांधी की टीमें जो भी मैच जीततीं, उससे मिलने वाली राशि का उपयोग उन लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए किया जाता था, जो अहिंसा की लड़ाई में जेल में डाल दिए गए थे.. यह काफी समय तक चलता रहा, लेकिन अंतत: महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा लेकिन उन क्लबों को बंद नहीं किया। इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी.. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबाल टीम का गठन किया। इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल के खिलाड़ियों को रखा गया... बापू ने हालांकि हमेशा से यह माना कि फुटबाल में लोगों को एकीकृत करने की ताकत है और इस ताकत का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए। उनके इस कथन में इस खेल के प्रति उनका जुनून छुपा था, जो उनके युवाकाल से ही परिलक्षित हो रहा था। फुटबॉल की नियामक संस्था फीफा ने कुछ समय पहले अपनी अधिकारिक वेबसाइट पर एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें उसने गांधी को एक फुटबाल लेजेंड करार दिया था।

सांप सीधे चलने के बजाय बाएं से दाएं क्यों रेंगते हैं?

                                 

सांप वो प्राणी है जिसका नाम सुनते ही हर किसी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.. सांप का नाम ही थरथराहट पैदा करता है लेकिन सांप का नाम आते ही हर किसी के जेहन में ये सवाल उठता है कि आखिर सांप सीधे चलने के बजाय बाएं से दाएं क्यों रेंगते हैं.. दूसरे जानवरों की तरह उसके पैर क्यों नहीं होते आइए जानते हैं साप के पैरों से जुड़ी इस दिलचस्प जानकारी के बारे में जो आपको एकबार चौंकने पर मजबूर कर देगीवैज्ञानिकों ने सांप के जीवाश्मों का गहन अध्ययन करके इस बात का पता लगाया है कि सांप के पैर क्यों नहीं होते.. दरअसल सांपों के पैर नहीं होते हैं इसलिए वे नहीं चल सकते... वे रेंगते हैं यानी जमीन के साथ-साथ खिसकते हुए... दरअसल सांप अपने लचीले शरीर का उपयोग करके चलते हैं.. सांपों की एक लंबी रीढ़ होती है जिससे पसलियां जुड़ी होती है... इन पसलियों से जुड़ी मांसपेशियां सांप को हिलने या रेंगने में मदद करती है... आपको शायद जान कर हैरानी होगी लेकिन अगर आप यह समझते हैं कि सांप केवल एक ही तरीके से चल सकता है, तो आप गलत सोचते हैं.. जी हां आज के इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि कैसे अलग अलग सांपों के चलने के अलग अलग अंदाज हो सकते हैं.. आपको जानकर हैरानी होगी कि सांपों के चलने के कुल 5 प्रकार होते हैं... पहला सर्पेटाइन लोको मोशन, दूसरा साइडविंडिग लोकोमोशन, तीसरा कॉन्सर्टिना, चौथा रेक्टिलिनियर मोशन औऱ पांचवा सलाइड पुशिंग मोशन.... सरपेंटाइन लोकोमोशन वह कॉमन सांप के चलने का तरीका होता है, जो हमने फिल्मों में या अपने आसपास सांपों को चलते हुए देखा हैं, चलने की प्रक्रिया के दौरान सांप इग्लिश लेटर के S आकार बना कर चलता है, उसे ही सरपेंटाइन लोकोमोशन कहते हैं... सांप के इस तरीके के motion में जब सांप चलता है, तब सांप ज्यादातर खुद को या तो सरफेस के मुकाबले या किसी भी ऑब्जेक्ट से खुद को पुश करता है... सांप के रेंगने का दूसरा तरीका है साइड वाइंडिंग लोकोमोशन इसके तहत सांप का यह मोशन किसी रेगिस्तान में बहुत ही सूखे जगह में देखा जाता है। क्योंकि ऐसे सूखे जगहों में surface इतना गर्म होता है कि सांप कम से कम अपनी बॉडी को सरफेस से कांटेक्ट में लाना चाहते हैं... इस तरह की मूवमेंट में सांप आगे चलने के साथ-साथ दाएं और बाएं भी मूवमेंट करता है। बेसिकली इस मूवमेंट में जब सांप चलता है, तो वह अपने शरीर से सरफेस पर कुल 3 एंकर प्वाइंट बनाता है, जिससे उसका अधिकतम बॉडी सरफेस से ऊपर रहे... सांपों के रेंगने का तीसरा प्रकार है कंसर्टिना लोकोमोशन... इस प्रक्रिया के तहत सांप सबसे पहले अपने आगे के हिस्से को फॉरवर्ड करके, यहां पर एक एंकर पॉइंट बनाता है, फिर इस एंकर पॉइंट के बदौलत वह अपने पीछे की बॉडी को आगे की ओर को लाता है, वह अपने पीछे पूछ पर एक एंकर प्वाइंट बनाकर अपने पूरी बॉडी को आगे की ओर बढ़ा लेता है... सांपों के इस तरह की मोशन को तो बहुत कम देखा गया है, खास तौर से भारत में.. सांपों के चलने का जो चौथा तरीका है, वह है रेक्टिलिनियर लोकोमोशन, इस प्रकार की मोशन बहुत ही खास प्रकार के सांप करते हैं, जिनके पेट की मसल्स कुछ खास प्रकार की सेल से बनी हुई होती हैं..  इसमें सबसे पहले तो सांप अपने पेट के smooth मसल्स वाली स्किन के आगे वाले पोर्सन पर एक एंकर पॉइंट बनाता है, फिर अपने बाकी के पीछे की बॉडी को आगे लाता है। फिर… वह अपने आगे वाले पेट पर एक एंकर प्वाइंट बनाता है, फिर पीछे की बॉडी को आगे लाता है। और इस तरह से वह बहुत ही स्लो मोशन करके एक जगह से दूसरी जगह पर जा पाता है... इसी तरह सांप के एक और चलने का मूवमेंट होता है, जिसे slide pushing movement कहते हैं। इसमें सांप अपने पीछे के पूरी की पूरी बॉडी को आगे की ओर लाकर, वहां से एंकर पॉइंट बनाकर अपनी बॉडी को आगे की ओर push करता है.. तो ये रहा साप के रंगने से जुड़ी दिलचस्प जानकारी उम्मीद है दोस्तों आपको ये वीडियो पसंद आया होगा... अगर आप आगे भी एसी रोचक तथ्यों के बारे में जानने चाहते हैं तो हमें सब्सक्राइव कजिए और कॉमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर लिखीए..

जानिए चुनाव आयोग के बारे में

 

                      

चुनाव आयोग के बारे में तो आपने बहुत सुना होगा... लेकिन क्या आप जानते है चुनाव आयोग की नियुक्ति कौन करता.. चुनाव आयुक्त का कार्यकाल कितना होता है.. उन्हें वेतन और भत्ता कितना मिलता है.. पहले चुनाव आयोग में कितने सदस्य थे.. निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है भी या नहीं... जैसी बहुत सारी बातें हैं जो शायद आपको मालूम नहीं होगी... दरअसल भारत एक समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के साथ साथ विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है... जिस दिन से देश आजाद हुआ तब से संविधान में प्रतिस्‍थापित सिद्धान्तों, निर्वाचन विधियों के मुताबिक नियमित अन्तराल पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष निर्वाचनों का संचालन किया गया है... भारत के संविधान ने संसद और प्रत्येक राज्य के विधान मंडल के साथ साथ भारत के राष्‍ट्रपति और उप राष्‍ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के संचालन की पूरी प्रक्रिया का अधीक्षण, निदेशन तथा नियंत्रण का उत्तरदायित्व भारत निर्वाचन आयोग को सौंपा है.... भारत निर्वाचन आयोग एक स्थायी संवैधानिक निकाय है... संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी.. शुरुआती दौर में आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे.. वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं 16 अक्तूबर, 1989 को पहली बार दो अतिरिक्त आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी परन्तु उनका कार्यकाल बहुत कम था जो 01 जनवरी, 1990 तक चला फिर उसके बाद 01 अक्तूबर, 1993 को दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई थी.. तब से आयोग की बहु-सदस्यीय अवधारणा प्रचलन में है, जिसमें निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है... मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष, या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तक होता है। उनका दर्जा भारत के उच्चतम न्यायालय के न्‍यायाधीशों का होता है तथा उन्हें उनके समतुल्य ही वेतन और अनुलाभ मिलते हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त को पद से केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही हटाया जा सकता है.. आयोग के कार्यों में सहयोग देने के लिए सचिवालय के वरिष्‍ठतम अधिकारी के रूप में दो या तीन उप निर्वाचन आयुक्त और महानिदेशक होते हैं... वे सामान्यतः देश  की राष्‍ट्रीय सिविल सेवा से नियुक्त किए जाते हैं.. राज्य स्तर पर निर्वाचन कार्य का अधीक्षण राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा किया जाता है, और आयोग द्वारा इन मुख्य निर्वाचन अधिकारियों की नियुक्ति संबंधित राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित वरिष्ठ सिविल सेवकों में से की जाती है। अधिकतर राज्यों में वे पूर्णकालिक अधिकारी होते हैं और उनके पास सहायक स्टाफ की छोटी सी एक टीम होती है... जिला एवं निर्वाचन क्षेत्र स्तरों पर जिला निर्वाचन अधिकारी, निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी और रिटर्निंग अधिकारी होते हैं जिन्हें बड़ी संख्या में कनिष्‍ठ पदाधिकारियों का सहयोग मिलता है और वे निर्वाचन कार्य निष्‍पादित करते हैंआयोग के निर्णयों को भारत के उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में उचित याचिका द्वारा चुनौती दी जा सकती है... यदि एक बार निर्वाचनों की वास्तविक प्रक्रिया शुरू हो जाती है तो न्यायपालिका मतदान के वास्तविक संचालन में हस्तक्षेप नहीं करती है

क्या पृथ्वी की तरह चाँद पर भी भूकंप आते हैं?

                                      

 धरती पर रात के अंधकार में रोशनी देने वाला हमारा चांद बेहद ही खूबसूरत दिखाई देता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि धरती की तरह चांद पर भी भूकंप आ सकता हैतो चलिए आज इस सवाल का जवाब इस वीडियो में ढूंढ़ते हैं... दरअसल चंद्रमा शुरू से ही इंसान के लिए कौतूहल का विषय रहा है... हाल में चांद को लेकर हो रहे शोधों में तेजी से इजाफा भी हुआ है... जिसके बाद अब चांद के बारे में हमारी कुछ पुरानी धारणाएं भी बदल गई है... चांद पर हो रहे नये नये रिसर्च में वैज्ञानिकों ने चांद पर चौंकाने वाली गतिविधि का होना पाया है. वैज्ञानिकों को चांद की सतह पर टेक्टोनिक गतिविधि के प्रमाण मिले हैं… वैज्ञानिकों के मुताबिक चांद पर भी टैक्टोनिक प्लेट खिसकती है, जिससे भूकंप आता है... इस बात का खुलासा एक भारतीय शोध दल के अध्ययन से हुआ है.. अभी तक लंबे समय से यही माना जाता रहा है कि चांद एक मृत खगोलीय पिंड है और उसमें कोई भूगर्भीय गतिविधि नहीं होती... इन सवालों का जवाब मिलता है भारत के चंद्रयान-1 से प्राप्त हुए डाटा से और इस डाटा की व्याख्या की है जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भूविज्ञान, सुदूर संवेदन एवं अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के संयोजक प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने प्रोफेसर सौमित्र मुखर्जी ने चंद्रयान के नैरो एंगल कैमरा और लूनार रिकॉनिएसेंस ऑर्बिटर कैमरा से चंद्रमा की सतह की ली गई तस्वीरों का विश्लेषण किया और पाया कि चंद्रमा की सतह के भीतर भी गतिमान टेक्टोनिक प्लेट्स हैं जिनके आपस में टकराने से भूकंप जैसी आपदाएं आती हैं। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से प्राप्त इस डाटा के अध्ययन के दौरान उन्होंने चंद्रमा की सतह पर कई ऐसे चिन्ह देखे जो इस बात को स्थापित करते हैं कि चंद्रमा पर भी धरती की तरह टेक्टॉनिक प्लेट्स में हलचल पायी जाती है.. इससे पहले नासा ने 19 नवंबर 1969 को इंट्रेपिड नामक लैंडर से अंतरिक्ष यात्री चार्ल्स पीट कॉनरैड और एलेन बीन को चांद की सतह पर उतारा था... जिसमें से एक तीसरे साथी रिचर्ड गॉर्डन चांद के चारों तरफ ऑर्बिटर उड़ा रहे थे... ये लोग जिस जगह उतरे थे उसे 'ओशन ऑफ स्टॉर्म' कहते हैं. जहां पर इन अंतरिक्ष यात्रियों ने पहली बार चांद पर भूकंप को रिकॉर्ड किया था... आने वाले दिनों में चंद्रमा को लेकर जिस तरह से अभियान तैयार हो रहे है. हमें चांद के बारे में ज्यादा ठोस जानकारी मिलने की उम्मीद है और हो सकता है हमें अपने उपग्रह को लेकर और भी धारणाएं बदलनी पड़ें.