ये कहानी है एक ऐसे बहादुर महिला की... जो थी तो मामूली सी पर उसकी रगो में दौड़ता था राष्ट्र भक्ति... वो महल में रहती थी पर राज परिवार से उसका कोई रिश्ता नहीं था.... वो नरम दिल वाली साधारण महिला थी लेकिन उसके फैसले थे पर्वत जैसे अविचल.. वो एक ऐसी मां थी जिसने अपने पुत्र को मरने के लिए दुश्मनों के पास छोड़ दिया... मगर स्वामी भक्ति पर आंच नहीं आने दिया.. उसने राष्ट्रधर्म की ऐसी मिसाल कायम की.. जिसका विश्व में कोई उदाहरण आज भी नहीं है... जी हां हम बात कर रहे है त्याग और बलिदान की महारानी पन्ना धाय की.. अपना सर्वस्व लुटाने वाली वीरांगना पन्ना धाय किसी राजपरिवार से नहीं बल्कि एक गुर्जर परिवार से थी.... उदयसिंह को दूध पिलाने के कारण इन्हें धाय मां कहा गया.. हलांकि मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ महाराणा प्रताप को याद किया जाता है.. उसी गौरव के साथ पन्नाधाय का नाम भी लिया जाता है जिसने स्वामी भक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चंदन का बलिदान दे दिया था... अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्नाधाय का जन्म मेवाड़ के कमेरी गांव में हुआ था... पन्ना के पिता हरचंद हांकला एक वीर योद्धा थे.. पन्ना का पुत्र चंदन और राजकुमार उदय सिंह साथ-साथ बड़े हुए थे.. उदय सिंह को पन्ना ने अपने पुत्र की तरह पाला था.. कहते हैं कि रानी कर्णावती से जब उदय सिंह का जन्म हुआ तो रानी तभी से बीमार रहने लगी.. तब उदय सिंह का लालन-पालन के लिए पन्ना को धाय माता बनाया गया... इस धाय मां ने अपनी स्वामी भक्ति से सिद्ध कर दिया था कि वह जन्मजात शेरनी है.. उसने उदय सिंह की मां.. महारानी कर्णावती को वचन दिया था कि वह हर परिस्थिति में उदय सिंह की रक्षा करेगी.. बात उस समय की है जब चित्तौड़गढ़ का किला चारों ओर से आन्तरिक विरोध से घिरा हुआ था... उस समय उदयसिंह की आयु मात्र लगभग 14 साल थी.. रात्रि का समय था उदय सिंह सो रहे थे, तभी पन्नाधाय को अंदेशा हुआ कि किसी भी समय बनवीर यहां आ सकता है और उदय सिंह की हत्या कर सकता है… ऐसे में पन्नाधाय ने उदय सिंह के पलंग पर अपने पुत्र चंदन को सुला दिया और उदय सिंह को कहीं ओर छुपा दिया... कुछ ही समय में वहां पर क्रोध से भरा हुआ बनवीर पहुंचा.. उसने आकर पन्नाधाय से पूछा कि उदयसिंह कहां है?.. तो पन्नाधाय ने पलंग की तरफ हाथ से इशारा किया और बोला कि वह सो रहे है... बनवीर ने पलंग के पास जाते ही सो रहे चंदन के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और बाहर आकर जश्न मनाने लगा.... और फिर स्वयं को मेवाड़ का महाराणा घोषित कर दिया.. यह देखकर पन्नाधाय की आंखें तो भर आई लेकिन वह रो भी नहीं सकी क्योंकि अगर वह रोती तो बनवीर समझ जाता कि उसने पन्नाधाई के बेटे की हत्या की है ना कि उदयसिंह की.. सुबह का सूरज उगते ही पन्नाधाय उदय सिंह को लेकर बाहर निकल गई.... यहां से निकलने के बाद पन्नाधाय दर दर भटकती रही लेकिन हर कोई बनवीर के डर से पन्नाधाय को अपने महल में रखने से मना कर दिया... लेकिन त्याग और बलिदान की मूर्ति पन्नाधाय ने हार नहीं मानी और उदय सिंह को लेकर वह आखिर में कुंभलगढ़ पहुंची.... जहां राजकुमार उदय सिंह का पालन-पोषण छिपाकर किया गया. आगे चलकर कुंभलगढ़ से ही उदयसिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राज्याभिषेक हुआ... और 1537 ई. में उदयसिंह ने हत्यारे बनवीर को परास्त कर चित्तौड़ पर वापस अपना अधिकार स्थापित किया... पन्ना धाय का योगदान मेवाड़ राजवंश के लिए वरदान साबित हुआ... नहीं तो यह राजवंश हमेशा के लिए खत्म हो सकता था आगे चलकर इसी मेवाड़ राजघराने में महाराणा प्रताप जैसे सूर्यवीर राजा का जन्म हुआ जिन्होंने ताउम्र मुगलों को धूल चटाई और कभी भी अकबर जैसे योद्ध को मेवाड़ पर अधिकार करने का मौका नहीं दिया... धन्य हैं वो मां जिसने अपने स्वामी भक्ति के आगे अपने बेटे का बलिदान कर दिया... काश कि हम इतना ना करके कुछ थोड़ा कर सके..
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