किसी ने कहा चक्रवर्ती सम्राट बनेगा... किसी ने कहा सन्यासी
बनेगा.. भारतवर्ष में शायद इससे बड़ी
भविष्यवाणी कभी नहीं हुई होगी... बात लगभग 2500 साल पहले की है... जब लुम्बनी के राज
परिवार में एक साधारण बच्चे ने जन्म लिया था.. जन्म के समय दिखने में वो बच्चा भी
वैसा ही था जैसे और बच्चे होते हैं.. बच्चा धीरे धीरे बड़ा हो रहा था पर ऋषियों की
भविष्यवाणी का डर पिता को परेशान कर रहा था.. विद्वानों की भविष्यवाणी के मुताबिक
सिद्धार्थ कहीं राज-पाठ का त्याग न कर दें इसलिए पिता शुद्धोधन ने राजमहल में ही
सिद्धार्थ के लिए ऐसी सुख-सुविधाओं का इंतजाम किया जिससे उनमें संसार के प्रति मोह
बना रहे.. ऋषियों की भविष्यवाणी सही साबित हुई.. और एक दिन अचानक विलासिता की गोद
में अपना बचपन बिताने वाला सिद्धार्थ सब कुछ त्याग कर ऐसे रास्ते पर चल दिया जहां
पहुंचने के बाद उनका जीवन आज भी हर किसी के लिए प्रेरणादायी है... 35 साल की आयु में
उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी.. वह संसार का मोह त्याग कर तपस्वी बन गए थे और
परम ज्ञान की खोज में चले गए थे.. आइए आज एस वीडियो में हम आपको सिद्धार्थ के
महात्मा बुद्ध बनने तक के सफर के बारे में बताते हैं....
बुद्ध का गोत्र गौतम था.. और वास्तविक नाम था सिद्धार्थ गौतम.. उनका
जन्म शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी में हुआ था.. बुद्ध के
जन्म के सात दिन के भीतर ही उनकी माता का देहांत हो गया था.. उनका पालन पोषण उनकी
मौसी गौतमी ने किया था... सिद्धार्थ गौतम राजसी विलासिता में पले-बढ़े और कम उम्र में ही उनका विवाह राजकुमारी यशोधरा से करा दिया गया...
दोनों का एक पुत्र भी हुआ.. जिसका नाम राहुल था.. एक दिन अपने साथी के साथ सिद्धार्थ बाहर घूमने
निकले.. इस दौरान उन्होंने देखा कि कोई वृद्ध किसी रोग से तड़प रहा है, किसी मृत व्यक्ति को शमशान ले जाया जा रहा है, लोग दुःख और कष्ट से परेशान हैं... तब महात्मा बुद्ध ने अपने सारथी से पूछा
कि क्या मुझे भी इन दुखों का सामना करना पड़ेगा.. महात्मा बुद्ध के इन प्रश्नों का
उत्तर इनके सारथी ने देते हुए कहा कि हां राजकुमार आपको भी एक दिन मरना पड़ेगा... सारथी
की बातों से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने अपना धनवान जीवन, अपनी पत्नी-पुत्र और राजपाठ का त्याग करते हुए साधु का जीवन अपना लिया
और जन्म,
बुढ़ापा, दर्द,
बीमारी, और मृत्यु से जुड़े सवालों की खोज में निकल गए... सिद्धार्थ ने अपने
प्रश्नों के उत्तर ढूंढने शुरू किए... समुचित ध्यान लगा पाने के बाद भी उन्हें इन
प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल पा रहा था... इसके बाद कुछ और साथियों के साथ अधिक
कठोर तपस्या शुरू कर दी.. ऐसे करते हुए 6 साल और बीत गए... भूख से व्याकुल मृत्यु
के निकट पहुंचकर बिना प्रश्नों के उत्तर पाए वह कुछ और करने के बारे में विचार करने लगे थे... एक एक दिन एक गांव में भोजन की तलाश में निकल गए फिर वहां थोड़ा भोजन
ग्रहण किया... इसके बाद वह कठोर तपस्या छोड़कर एक पीपल के पेड़ के नीचे प्रतिज्ञा करके बैठ गए कि वह सत्य जाने बिना उठेंगे नहीं... वह सारी
रात बैठे रहे और माना जाता है यही वह क्षण था जब सुबह के समय उन्हें पूर्ण ज्ञान
की प्राप्ति हुई थी... और फिर राजकुमार सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बन गये..
लेकिन बुद्ध बनने के बाद वो एक बार फिर दुविधा में थे.. दुविधा इसलिए कि जो ज्ञान
की प्राप्ति उन्हें हुई है वो लोगो को बताए या नहीं.. और बताएंगे तो कैसे.. क्या
उनकी बातों पर लोग भरोसा करेंगे?..
इसी बीच गौतम बुद्ध अपने 5 साथियों को
ढूंढते हुए वाराणसी के पास सारनाथ पहुंचे.. जहां उन्होंने अपने पांचो साथियों को
शिष्य बनाकर पहली बार उपदेश दिया.. बुद्ध के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण विचार आत्म दीपो भवः अर्थात अपने दीपक
स्वयं बनो... इसका तात्पर्य है कि व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या
नैतिक-अनैतिक प्रश्न का निर्णय स्वयं करना चाहिये.. बुद्ध के दर्शन का दूसरा प्रमुख
विचार मध्यम मार्ग के नाम से जाना जाता है.. उनके इन विचारों की पुष्टि इस कथन से
होती है कि वीणा के तार को उतना नहीं खींचना चाहिये कि वह टूट ही जाए या फिर उतना
भी उसे ढीला नहीं छोड़ा जाना चाहिये कि उससे स्वर ध्वनि ही न निकले. बुद्ध दर्शन
का तीसरा प्रमुख विचार संवेदनशीलता है.. यहां संवेदनशीलता का अर्थ है दूसरों के
दुखों को अनुभव करने की क्षमता.. बुद्ध दर्शन का चौथा प्रमुख विचार यह है कि वे
परलोकवाद की बजाय इहलोकवाद पर अधिक बल देते हैं.. बुद्ध दर्शन का पाँचवा प्रमुख
विचार यह है कि वे व्यक्ति को अहंकार से मुक्त होने की सलाह देते हैं.. बुद्ध
दर्शन का छठा प्रमुख विचार ह्रदय परिवर्तन के विश्वास से संबंधित है.. बुद्ध को इस
बात पर अत्यधिक विश्वास था कि हर व्यक्ति के भीतर अच्छा बनने की संभावनाएँ होती
हैं.. महात्मा बुद्ध द्वारा प्रथम उपदेश देने की घटना को बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र
प्रवर्तन नाम से जाना जाता है.. पाली भाषा में इसे ‘धम्मचक्क पबत्तन’ कहा जाता
है... आज भारत में भले ही बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या कम है लेकिन
श्रीलंका, म्यनमार, थाईलैंड, कोरिया जापान और चीन में बौद्ध धर्म को माननेवाले की संख्या काफी है. बौद्ध
धर्म का विदेश में प्रचार प्रसार सम्राट अशोक के शासन काल में ही शुरू हो गया था.
उन्होंने अपने बेटी संघमित्रा और बौद्ध भिक्षुओं को श्रीलंका भेजा था. इसके बाद भी
बौद्ध धर्म को भारत में कई राजाओं का संरक्षण मिला.... बुद्ध की मृत्यु के बाद
बौद्ध धर्म में भी मतभेद ऊभरे. इसलिए यह दो संप्रदायों में बंट गया. पुरानी परंपरा
और सिद्धांत को मानने वाले हीनयान कहलाए और नए विचारों के लोग महायान संप्रदाय के
हो गये.. बुद्ध इसलिए भी लोकप्रिय रहे क्योंकि उन्होंने आम आदमी से उसकी ही भाषा
में संपर्क स्थापित करने का महत्व जाना... इसलिए उन्होंने पाली भाषा को अपनाया.
इसके कारण उनके उपदेश आम लोगों तक पहुंचे और कई लोग उनके अनुयायी बनते गए... जरा
सोचिए आज से 2500 साल पहले बुद्ध जिस समाज में परिवर्तन और बदलाव की बात कर रहे थे
वो आज भी हमारे समाज के लिए जरूरत है.. बुद्ध ने परिवर्तन की शुरुआत संघ से ही कर
दी थी. उन्होंने जिस संघ की स्थापना की उसके दरवाजे सभी वर्णों के लिए खोल दिया
गया.. साथ ही संघ में शामिल होने की अनुमति महिलाओं को भी दे दी गई.. बुद्ध ज्ञान
प्राप्ती के बाद 44 साल तक जीवित रहे..
लेकिन ज्ञान प्रप्ती के बाद उनके जीवन की बड़ी घटनाओं की जानकारी बहुत कम
है.. इन 44 सालों में वो लगातार घूमते रहे जहां तहां ठहरते और लोगों को धर्म दर्शन
का उपदेश देते.. महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट
पर कुशिनारा पहुंचे. जहां पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई. इसे बुद्ध
परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है.. महात्मा बुद्ध भारतीय विरासत
के एक महान विभूति हैं। उन्होंने संपूर्ण मानव सभ्यता को एक नयी राह दिखाई। उनके
विचार, उनकी मृत्यु के लगभग 2500 वर्षों के पश्चात्
आज भी हमारे समाज के लिये प्रासंगिक बने हुए हैं..
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