बुधवार, 19 जनवरी 2022

बात लुई ब्रेल की जिससे आज लाखों को मिल रही 'रोशनी'

 


आपने अपने आसपास ऐसे बहुत से लोग देखे होंगे जिनके पास आंखें तो हैं पर वो देख नहीं सकते... यानी की आंखे होने के बावजूद वे कुछ भी देखने में असमर्थ होते हैं... लेकिन आज हम ऐसे दृष्टिहीन लोगों को बहुत सामर्थ्य के साथ हर जगह पर काम करते देखते हैं लेकिन पहले ऐसा नहीं था... नेत्रहीन व्यक्ति हमेशा किसी न किसी के उपर आश्रित होते थे... लेकिन एक लिपि ने यानी की एक भाषा ने नेत्रहिनों के जीवन को इतना आसान बना दिया कि ये लोग भी आज वो हर कुछ कर सकते हैं जो एक साधारण इंसान करता है... जी हां हम बात कर रहे हैं ब्रेल लिपि की... दरअसल ब्रेल लिपि एक भाषा है, जिसका उपयोग आंखों से देख न पाने वाले लोग लिखने और पढ़ने के लिए करते हैं... ऐसे में जब हम ब्रेल लिपि की बात करते है तो इस लिपि के अविष्कार करने वाले शख्स की बात करनी भी लाजमी हो जाता है... 3 साल की उम्र में एक दिन एक बच्चा अपने पिता के औजारों के साथ खेल रहा था तभी अचानक उन्हीं में से एक औजार उसकी आंखों में लग गया... शुरुआत में इलाज कराने पर थोड़ी राहत मिली लेकिन गुजरते वक्त के साथ उसकी तकलीफ बढ़ती चली गई... जी हां हम इस वीडियो में एक ऐसे महान शख्सिय की बात कर है जिन्होंने एक ऐसी लिपि का आविष्कार किया जिसकी बदौलत नेत्रहीन लोगों के लिए पढ़ने-लिखने में काफी सहूलियत हुई... हम बात कर रहे हैं महान शख्स लुई ब्रेल की जिन्होंने ब्रेल लिपी की खोज कर दुनिया भर के नेत्रहिनों के मसीहा बने..  हालांकि जब वह जीवित थे, तब उनके काम को सम्मान नहीं मिला, लेकिन बाद में विश्व ब्रेल दिवस की शुरुआत उनके ही जन्मदिन पर करके लुईस ब्रेल को सम्मान दिया गया... नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार करने वाले लुई ब्रेल का जन्म 1809 में फ्रांस के एक छोटे से कस्बे कुप्रे में हुआ था... लुई 4 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे... लुई ब्रेल जिन्होंने खुद नेत्रहीन होने के बावजूद दृष्टिहीनों को पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाने को लेकर एक नया आविष्कार किया, जिसे ब्रेल लिपि कहा जाता है और इसकी मदद से आज बड़ी संख्या में नेत्रहीन लोग अपना पढ़ाई पूरी करते हैं... लुई ब्रेल के पिता रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए काठी बनाने का काम करते थे... धीरे धीरे लुई ब्रेल 8 साल के हुए तो उन्हें दिखाई देना बिल्कुल बंद हो गया और नेत्रहीन हो गए... आंखों की रोशनी गंवाने के बाद जब लुई ब्रेल 16 साल के हुए तो एक दिन उन्हें ख्याल आया कि क्यों न नेत्रहीनों के लिए पढ़ने को किसी लिपी पर काम किया जाए और फिर वह इस विचार पर काम करने लगे... इस दौरान उनकी मुलाकात फ्रांस की सेना के कैप्टन चार्ल्स बार्बियर से हुई... बार्बियर ने लुई ब्रेल को ‘नाइट राइटिंग’ और ‘सोनोग्राफी’ के बारे में बताया था, जिसकी मदद से सैनिक अंधेरे में पढ़ा करते थे.. नाइट राइटिंग लिपि की जानकारी मिलने के बाद लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए खास लिपि बनाने की योजना पर काम करने लगे... लुई ने ब्रेल लिपि के लिए 64 अक्षर और निशान तैयार किए... इस तरह लुई ब्रेल ने 1825 में महज 16 साल की उम्र में ही नेत्रहीनों के पढ़ने-लिखने में मदद के लिए ब्रेल लिपि का आविष्कार कर डाला... हालांकि लुई ब्रेल ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सके. 1851 में लुई को ट्यूबर कुलोसिस यानी की टीबी की गंभीर बीमारी हुई जिसके एक साल बाद साल 1952 में 43 साल की उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गये.. ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल आज भी दुनिया भर में पूजे जाते हैं और वह काफी लोकप्रिय भी हैं... 2009 में भारत सरकार ने लुई ब्रेल की 200वीं जयंती के अवसर पर उनके सम्मान में डाक टिकट और दो रुपये का सिक्का जारी किया था... लुई ब्रेल की बनाई ब्रेल लिपि नेत्रहीनों के लिए बड़ी मददगार साबित हुई और आज भी इसका बखूबी इस्तेमाल किया जाता है... ब्यूरो रिपोर्ट ओजांक टाइम

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