कहते हैं मेहनत का फल मीठा होता है’, ये कहावत मधुमक्खियों पर बिल्कुल सटीक बैठती है... एक बूंद शहद बनाने के लिए एक छोटी सी मधुमक्खी को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, इसका अंदाजा तो केवल मधुमक्खी को ही हो सकता है... जी हां आप समझ ही गये होंगे कि इस वीडियो में हम मधुमक्खी की चर्चा क्यों कर रहे है.. दरअसल मधुमक्खियों से मिलने वाली शहद को अयुर्वेद में अमृत कहा गया है... लेकिन क्या आप जानते है मधुमक्खियां कैसे फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं.. और फूलो के रस से शहद बनने तक की प्रक्रिया में मधुमक्खियों को कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है..... आप हमारे इस वीडियो को अंत तक देखिएगा आपको मधुमक्खियां और उनके शहद से जुड़ी सभी जानकारी आसानी से समझ में आ जाएगी... मधुमक्खियां एक सामाजिक प्राणी हैं और एक ग्रुप बनाकर मोम के बने छत्ते में रहती हैं. एक साथ रहने वाली सभी मधुमक्खियों के ग्रुप को ‘कॉलोनी’ कहा जाता है. वातावरण और स्थान के अनुसार, एक कॉलोनी में 5 हजार से 50 हजार तक मधुमक्खियां हो सकती हैं. एक छत्ते या कॉलोनी में कौन सी मधुमक्खी कौन सा काम करेगी, ये सब निश्चित होता है... एक छत्ते में तीन तरह की मधुमक्खियां होती हैं- रानी मधुमक्खी, नर मधुमक्खियां और मजदूर मधुमक्खियां. एक छत्ते की हजारों मधुमक्खियों में रानी मधुमक्खी केवल एक ही होती है. ये आकार में बाकी मधुमक्खियों से बड़ी होती है और ज्यादा चमकीली भी, इसलिए इसे झुंड में आसानी से पहचाना जा सकता है. पूरे छत्ते में अंडे देने का काम केवल यही एक रानी मधुमक्खी ही करती है... रानी मधुमक्खी एक दिन में लगभग 2,000 से 3,000 अंडे दे सकती है…. छत्ते में सबसे ज्यादा संख्या मजदूर मधुमक्खियों की होती है. इन मजदूर मधुमक्खियों को बांझ मादा मधुमक्खी भी कहा जाता है, क्योंकि केवल अंडे देने को छोड़कर छत्ते का सारा काम इन्हें ही करना पड़ता है. मजदूर मधुमक्खियों को इतनी मेहनत करनी पड़ती है कि इन्हें सोने का भी समय नहीं मिलता. ये ही छत्ते का निर्माण करती हैं, फूलों से रस लाकर शहद बनाती हैं, साथ ही अंडों और बच्चों की देखभाल भी करती हैं… और इसीलिए इन्हें शहद वाली मधुमक्खी और श्रमिक मधुमक्खी भी कहा जाता है. श्रमिक मधुमक्खी के दो पेट होते हैं- एक खाना खाने के लिए और दूसरा फूलों का रस इकठ्ठा करने के लिए. मधुमक्खियां फूलों का रस चूसकर इसे अपने दूसरे विशेष पेट में इकठ्ठा कर लेती हैं. एक मधुमक्खी अपने वजन के बराबर रस इकट्ठा कर सकती हैं. फिर मधुमक्खियां रस लेकर वापस छत्ते पर आ जाती हैं... छत्ते में आकर वे मधुमक्खियां इस रस को मुंह के जरिए छत्ते की दूसरी मजदूर मधुमक्खियों को दे देती हैं. वे दूसरी मधुमक्खियां इस रस को इकठ्ठा करके कई मिनटों तक चबाती हैं, जिससे इनके शरीर में मौजूद ग्रंथि से एंजाइम निकलकर इस रस में मिल जाता है. एंजाइम मिलने के बाद यह इस सुक्रोज, ग्लूकोज और फ्रक्टोज में टूट जाता है... इसके बाद मधुमक्खियां इसे मधुकोषों में डाल देती हैं. इससे इसमें मौजूद पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है और रस गाढ़ा होकर शहद बन जाता है. पानी को वाष्प बनाने के लिए मधुमक्खियां इसमें अपने पंखों से हवा भी करती हैं. फिर जब शहद तैयार हो जाता है, तो छत्ते की दूसरी मधुमक्खियां मोम से इन मधुकोषों को बंद कर देती हैं, ताकि उनका शहद सुरक्षित रहे. भूख लगने पर मधुमक्खियां या उनके बच्चे यही शहद खाते हैं... मधुमक्खियां केवल शहद ही नहीं बनातीं, बल्कि इस पूरी दुनिया को जीवित भी रखती हैं ये कहना है प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का... अल्बर्ट आइंस्टीन का मानना है कि दुनिया की आखिरी मधुमक्खी के मरने के 4 साल के अंदर ही धरती से मानव जाति ही खत्म हो जाएगी. इसका कारण ये है कि मधुमक्खियां फूलों पर बैठकर और उनका रस चूसकर परागण करती हैं, जो कि फल बनने के लिए एक जरूरी चरण है... मधुमक्खियां नहीं होंगी तो परागण नहीं होगा. परागण नहीं होगा तो नए फल नहीं बनेंगे और फल नहीं बनेंगे तो बीज भी नहीं होंगे. बीज नहीं होंगे तो नए पौधे नहीं होंगे. पौधे नहीं होंगे तो जंगल खत्म होने लगेंगे. ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगेगी…और इस तरह धीरे-धीरे सब कुछ इसी तरह खत्म होने लगेगा जैसे एक फूल सूखने लगता है.
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