राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमारे देश के ही नहीं
बल्कि संपूर्ण मानव जाति के नेता थे.. वो एक एसे युगपुरुष थे जिन्होंने समस्त मानव
जाति को सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाने
का संदेश दिया.. देश को अंग्रेजों की
गुलामी से मुक्त कराने वाले गांधी जी फुटबॉल प्रेमी भी थे.. दरअसल गांधीजी जब पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए तो
वहां उन्हें कई चीजों के प्रति रुचि पैदा हुई... फुटबॉल से भी वे वहीं परिचित
हुए... हलांकि कानून की शिक्षा हासिल करके गांधीजी भारत लौट आए... इसके बाद एक
मुकदमे के सिससिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा.. दक्षिण अफ्रीका में उन
दिनों रंगभेद जोरों पर था... जिसे देखकर गांधीजी को रहा नहीं गया.. और फिर
उन्होंने रंगभेद के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की.. इसी दौरान वहां उन्होंने
देखा कि वैसे लोग जो अपेक्षाकृत कम पैसे वाले हैं, उनके बीच फुटबॉल बहुत लोकप्रिय है.. यह देख कर इस खेल
के प्रति उनकी पुरानी रुचि जाग गई.. उन्हें यह भी लगा कि इस खेल से जुड़ कर इन
लोगों के बीच अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ अहिंसक विरोध की अपनी नीति का वे
प्रचार कर सकते हैं। इसके बाद 1896 में गांधीजी ने तीन फुटबॉल क्लब की स्थापना
की... गांधी जी ने डरबन, प्रेटोरिया और जोहान्सबर्ग में
फुटबॉल क्लब की स्थापना की... इन तीनों फुटबॉल क्लब को 'पैसिव
रेसिस्टर्स सॉकर क्लब' कहा जाता था, जिसका
मतलब था अहिंसक विरोध करने वालों का फुटबॉल क्लब। गांधीजी वैसे तो नियमित फुटबॉल
नहीं खेलते थे, क्योंकि उनकी व्यस्तता बहुत ज्यादा थी...
लेकिन कहते हैं कि जिन क्लबों की उन्होंने शुरुआत की थी, उनके
लिए कभी फुटबॉल खेला भी था... वैसे वे अक्सर फुटबॉल के मैचों में जो भीड़ जुटती थी,
वहां अंग्रेजों के रंगभेद कानून के खिलाफ पर्चे और पैम्फलेट्स
बंटवाते थे, ताकि उनमें जागरूकता बढ़े और वे उनके आंदोलन से
जुड़ सकें.. गांधी की टीमें जो भी मैच जीततीं, उससे मिलने
वाली राशि का उपयोग उन लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए किया जाता
था, जो अहिंसा की लड़ाई में जेल में डाल दिए गए थे.. यह काफी समय तक चलता
रहा, लेकिन अंतत: महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा लेकिन उन क्लबों
को बंद नहीं किया। इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने
पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी.. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण
अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबाल टीम का गठन किया। इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल
के खिलाड़ियों को रखा गया... बापू ने हालांकि हमेशा से यह माना कि फुटबाल में लोगों
को एकीकृत करने की ताकत है और इस ताकत का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए। उनके इस कथन
में इस खेल के प्रति उनका जुनून छुपा था, जो उनके युवाकाल से ही परिलक्षित हो
रहा था। फुटबॉल की नियामक संस्था फीफा ने कुछ समय पहले अपनी अधिकारिक वेबसाइट पर
एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें उसने गांधी को एक फुटबाल लेजेंड करार दिया था।
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