सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

शुभ दीपावली

रोशनी का त्योहार है दीपावली...  और दीवाली भारत का प्रमुख त्योहार भी है.. पूरे भारत में दिवाली उत्सव को बडे धूम-धाम से मनाया जाता है.. पटाखो की आवाज़, मोम्बत्ती का प्रकाश, यह सब दीवाली की शान है..  भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है दीवाली.. आज पूरी दुनिया मे बडे़ उत्साह के साथ मनाई जाती है.. आज के दिन दीयो की जगमगाहट के बीच हर कोई ईश्वर से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करता है... दीवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने की मान्यता होती है... जगमगाते दीपो के बीच माँ लक्ष्मी की प्रतिमा और माँ की पूजा करते आशीर्वाद के प्रार्थी भक्त, कुछ ऐसा ही समा होता है, दीपावली के त्योहार का.. इस दिन लक्ष्मी, गणेश और धन के राजा कुबेर की पूजा होती हैं, और लोग ईश्वर से धन-धान्य से सम्पन्न होने की प्रार्थना करते हैं... धन, सुख-समृद्धि, विलासिता और रोशनी की देवी लक्ष्मी, प्रभु विष्णु की अर्धांगिनी है...  देवी लक्ष्मी अपने रुप, सौंदर्य और आकर्षण के लिए भी जानी जाती हैं.. महा लक्ष्मी अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करती, और उनकी मुरादे पूरी कर उन्हे धन और समृद्धि से भरपूर करती हैं.. वेदों मे लक्ष्मी को लक्ष्यविधि लक्षमिहिके नाम से संबोधित किया गया हैं, जिसका अर्थ होता हैं, जो लक्ष्य प्राप्ति मे मदद करें... हिन्दुओ द्वारा सबसे ज़्यादा पूजे जाने वाले भगवानों मे सबसे प्रमुख हैं, गणेश भगवान.. जिन्हे, गणपति, विनायक, लंबोदर नामों से पूजा जाता हैं.. सिर्फ देश मे ही नहीं, गणेश जी की पूजा विश्व के दूसरे भागों मे भी की जाती हैं.. गणेश जी का हाथी का सिर परेशानियों को दूर करता हैं, इसलिए उन्हे विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं। हिन्दु धर्म में कोई भी रस्म या विधि बिना गणेश पूजा किए संपन्न नहीं मानी जाती हैं। स्कन्द पुराण के मुताबिक दीपावली का उल्लेख हमारे वेद-पुराणों में भी देखने को मिलता है... 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन के नाटक में भी दीपोत्सव का ज़िक्र है और 10वीं शताब्दी में राजशेखर के काव्यमीमांसा में भी दिवाली का ज़िक्र किया गया है... दीपावली केवल हिन्दुओं का ही त्योहार नहीं है, बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी इसे मनाया जाता रहा है... 14वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुग़लक दिवाली मनाते थे... मुस्लिम बदशाहों द्वारा दीपावली को धूमधाम से मनाने का जिक्र है... इनमें सबसे पहले बारी आती है बदशाह अकबर की... 16वीं शताब्दी में अकबर धूम-धाम से दिवाली मनाते थे... इस दिन दिवाली दरबार सजता था और रामायण का पाठ और श्रीराम की अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन भी होता था...  अकबर के बाद 17वीं शताब्दी में शाहजहां ने दिवाली की शान और भी बढ़ा दी... शाहजहां ने इस मौके पर 56 राज्यों से अलग-अलग मिठाई मंगाकर 56 थाल सजाते थे... शाहजहां के जमाने में 40 फूट के बड़े 'आकाश दीया' रोशन करने की परंपरा थी, इसे सूरजक्रांत कहा जाता था... इस दिन भव्य आतिशबाजी होती थी... इस पर्व को पूरी तरह हिंदू तौर-तरीकों से मनाया जाता था... दिवाली के दिन शाहजहां भव्य भोज का भी आयोजन कराते थे जो एकदम सात्विक होता था... इतिहास के मुताबिक कहा जाता है कि मुस्लिमों द्वारा दीपावली मनाने की इस परंपरा पर औरंगजेब ने रोक लगाई... आतिशबाज़ी और दीया जलाने पर औरंगज़ेब ने 1665 में रोक लगा दी थी... लेकिन उनके बाद इस त्योहार उसी पुरानी परंपरा के साथ मनाया जाने लगा... मोहम्द शाह को रोशन अख्तर भी कहते थे. उनका शासन 1719 से 1748 तक रहा. वह संगीत और साहित्य को प्रेमी थे. उन्होंने मोहम्मद शाह रंगीला को नाम से जाना जाता था. उन्होंने दीपावली को त्योहार को और ज्यादा भव्यता दी....
भारत के त्योहारों में दीपावली काफी उंचा स्थान है... इस त्योहार के अवसर पर घरों और दूकानों को सजाया-संवारा जाता है, उनकी साफ-सफाई की जाती है. इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रुप से की जाती है. हिन्दू धर्म के अनुसार दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी के साथ विघ्न-विनाशक श्री गणेश और सरस्वती की भी पूजा-आराधना की जाती है. कहा जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या की आधी रात में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में जाती हैं. जिस घर में स्‍वच्‍छता और शुद्धता होती है वह वहां निवास करती हैं... दीपावली तीनों पर्वों का मिश्रण है, ये हैं- धनतेरस, नरक चतुर्दशी और महालक्ष्मी पूजन...  नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी कहा जाता है... दीपावली की शुरूआत धनतेरस से होती है, जो कार्तिक मास की अमावस्या के दिन पूरे चरम पर आती है... कार्तिक मास की अमावस्या की रात को घरों और दुकानों में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब लगाए और जलाए जाते हैं... ऐसा बताया जाता है कि इस दिन आलस्य और बुराई को हटाकर जिंदगी में सच्चाई की रोशनी का आगमन होता है... रात को घर के बाहर दिए जलाकर रखने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु की संभावना टल जाती है... एक कथा के मुताबिक इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था. 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटने का प्रतीक है दीवाली. अपने पिता राजा दशरथ के आदेश के बाद भगवान राम 'वनवास' के लिए गए थे. इस दौरान उन्‍होंने भारत के जंगलों और गांवों में 14 साल बिताए.. रामायण की कथा के मुताबिक, भगवान श्री राम, रावण को युद्ध मे पराजित कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे.. चौदह साल का वनवास भोगने के बाद जब श्री राम अयोध्या वापस आए थे तो, अयोध्या के लोगो ने अपने राजा के स्वागत के लिए घी के दिए जलाए थे.. पटाखे जला कर, नाच-गा कर लोगो ने अपनी खुथियां मनाई थी... उस दिन से लेकर आज तक हर साल यह दीवाली के नाम से मनता आ रहा है.. और आज भी इस त्योहार को रोशनी का प्रतीक मानते है.. एक दुसरी कहानी के मुताबिक भगवान कृष्ण ने इस दिन दानव नरकासुर का वध किया था.. उनकी जीत की खुशियां मनाने के लिए गोकुल के लोगो ने दीए जलाए थे.. हिन्दू धर्म के मुताबिक राम और कृष्ण दोनो ही प्रमुख भगवान है तो इस कारण दीवाली भी हिन्दु धर्म मे बहुत खास महत्व रखती है..
भारत एक विशाल देश है...जहाँ विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के मानने वाले लोग रहते हैं... इसलिए यहाँ मनाए जाने वाले त्योहार भी अनेक हैं...दीपावली... होली... रक्षाबंधन और विजयदशमी हिंदुओं के चार प्रमुख त्योहार हैं...वैसे तो प्रत्येक त्योहार का अपना एक विशेष महत्व है...परंतु इन सब में दीपावली का त्योहार सभी को विशेष रूप से प्रिय है...दीपावली का त्योहार हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है... हिंदी कैलेंडर के अनुसार दीपावली प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है....दिवाली एक धार्मिक विविध रंगों से रंगोली सजाने का प्रकाश फैलाने का खुशी का मिठाईयों का पूजा का त्यौहार है...जो पूरे भारत के साथ साथ देश के बाहर भी कई जगहों पर मनाया जाता है...इसे रोशनी की कतार या प्रकाश का त्यौहार भी कहा जाता है....यह सम्पूर्ण विश्व में मुख्यतः हिन्दूओं और जैनियों द्वारा मनाया जाता है...उस दिन बहुत से देशों जैसे तोबागो...सिंगापुर...सुरीनम...नेपाल...मॉरीशस, गुयाना...त्रिनाद...श्री लंका... म्यांमार.... मलेशिया और फिजी में राष्ट्रीय अवकाश होता है...दीपावली पाँच दिनों...धनतेरस...नरक चतुर्दशी...अमावश्या... कार्तिक सुधा पचमी...यम द्वितीया या भाई दूज...का हिन्दू त्यौहार है...जो धनतेरस...अश्वनी माह के पहले दिन का त्यौहार है...से शुरु होता है और भाई दूज कार्तिक माह के अन्तिम दिन का त्यौहार है...पर खत्म होता है... दिवाली के त्यौहार की तारीख हिन्दू चन्द्र सौर कलैण्डर के अनुसार र्निधारित होती है...इस त्योहार को लोग बहुत खुशी से घरों को सजाकर बहुत सारी लाइटें..दिये... मोमबत्तियॉ जलाकर...आरती पढकर...उपहार बॉटकर...मिठाईयॉ...ग्रीटिंग कार्ड...एस एम एस भेजकर...रंगोली बनाकर...खेल खेलकर...मिठाईयॉ खाकर...एक दूसरे के गले लगकर दिवाली मनाते है...भगवान की पूजा और त्यौहारोत्सव हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है...हमें अच्छे कार्यों को करने के प्रयासों के लिये शक्ति देता है...और  देवत्व के और ज्यादा करीब ले जाता है...घर के चारों ओर दिये और मोमबत्ती जलाकर प्रत्येक कोने को प्रकाशमान किया जाता है...यह माना जाता है कि पूजा और...अपने करीबी प्रियजनों को उपहार दिये बिना...ये त्यौहार कभी पूरा नहीं होता है...त्यौहार की शाम लोग दैवीय आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से भगवान की भी पूजा करते हैं...दिवाली का त्यौहार वर्ष का सबसे सुंदर और शांतिपूर्ण समय लाता है...जो मनुष्य के जीवन में असली खुशी के पल प्रदान प्रदान करता है... दिवाली के त्यौहार पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है...ताकि सभी अपने मित्रों और परिवार के साथ त्यौहार का आनन्द ले सकें...लोग इस त्यौहार का बहुत लम्बे समय से इंतजार करते है और...जैसे जैसे ये त्योहीर नजदीक आने लगता है...लोग अपने घरों...कर्यालयों.....गैराजों को रंगवाते और साफ कराते है और अपने कार्यालयों में नयी चैक बुक, डायरी और कलैण्डर रखते हैं...

दिवाली का त्यौहार हर साल बहुत सारी खुशियों के साथ आता है... कुछ जगहों पर जैसे कि महाराष्ट्र में यह छह दिनों में पूरा होता है... वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ शुरू होता है और...भईया दूज के साथ समाप्त होता है... दिवाली हर साल हिन्दूओं और अन्य धर्म के लोगो द्वारा मुख्य त्यौहार के रुप में मनायी जाती है... हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवाली का त्यौहार मनाने के बहुत सारे कारण है और...नये वर्ष को ताजगी के साथ शुरु करने में मनुष्यों के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है... दिवाली मनाने के बहुत सारे पौराणिक और ऐतिहासिक कारण है... भगवान राम की विजय और आगमन हिन्दू महाकाव्य रामायण के अनुसार... मान्यता के मुताबिक भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दिवाली मनाई जाती है...माना जाता है कि पहली बार अयोध्यावासियों ने ही दिवाली मनाई थी...रघुकुल कुमार मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने माता पिता की आज्ञा मानकर 14 साल तक वनवास में रहे...जहां रावण ने सीता का अपहरण कर लिया...जिसके बाद भगवान राम और रावण में युद्ध हुआ...इस लड़ाई में भगवान राम ने रावण का वध कर लंका पर जीत पाई और...रावण के भाई विभीषण को लंका का राजा बनाकर 14 साल बाद वापस अयोध्या लौटे...अयोध्या के लोगों को जब भगवान राम के लौटने की जानकारी हुई तो...लोगों ने भगवान राम...माता सीता और प्रभु लक्ष्मण के लौटने की खुशी में चारों ओर दीप जलाकर उनका स्वागत किया...साथ ही भगवान को राजमहल तक आने में कोई दिक्कत न हो और...दूर से ही उन्हें अयोध्या नगर की झलक दिख जाए...इसके लिए आकाशदीप जलाए...लोगों ने इसके लिए झोपड़नुमा आकृति तैयार की और...उसमें दीप प्रज्वलित कर बांस के सहारे उसे ऊपर लटका दिया और...तब से दिवाली के मौके पर आकाशदीप जलाने की परंपरा है... दिवाली के मौके पर देशभर में मंदिरों को खास तरीके से रोशन किया जाता है...इस मौके पर भगवान श्रीराम और जनक नंदिनी सीता को नए वस्त्र भी अर्पित किए जाते हैं...और विधि-विधान के साथ पूर्जा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाया जाता है 

चार्ली चैपलिन

एक ऐसा कलाकार जिसने बिना एक शब्द बोले सारी दुनिया को हंसाया...जिसके पीछे पड़ी थीं...दो देशों की खुफिया एजेंसियां...जिस पर संदेह करते थे...अमेरिका और ब्रिटेन...और कराते थे....एफबीआई और एमआई5 से उसकी जासूसी...जिसने की थी हिटलर का मजाक बनाने की हिमाकत...जिसे दी थी महारानी एलिजाबेथ ने नाइट की उपाधि...गरिबी में बीता जिसका बचपन...जिसका बाप था शराबी और मां पागल...उसने एक आश्रम में काटा अपना बचपन...5 साल की उम्र में किया पहला शो... जिसका मरने के बाद भी हो गया अपहरण...और अपहरणकर्ताओं ने मांगी थी 6 लाख फ्रेंक्स की भारी रकम...वो नहीं करता था औरतों पर यकीन...जिसके थे 2000 से अधिक महिलाओं से संबंध...जिसका जीवन हमें आसुंओं औऱ दुख दर्द के बीच भी हंसना सिखाता है....अपनी कम लम्बाई और वजन के कारण वो नहीं हो पाया था सेना में शामिल...जो गांधी को मानता था अपना आदर्श...उसका दीवाना था आइंस्टिन...वो था मूक फिल्मों का बादशाह...जिसे कहते थे मुस्कान का बादशाह...एक बेहद ग़रीब और असहाय सा बच्चा...जिसके मन में कभी अपनी माँ के उदास चेहरे पर ख़ुशी की एक झलक देखना ही मकसद बन गया था...और वो बन बैठा आज विश्व के करोड़ो लोगों की मुस्कान का मालिक...जी हां हम बात कर रहे है...चार्ली चैंपियन की....पैरो में चमड़े के बड़े बड़े काले जूते....ढीली सी पतलून....एक काला कोट....सर पर टोपी और हाथ में छड़ी के साथ...चार्ली चैंपियन की ये आकृति हमारे दिलों में ज्यो की त्यों बरकरार हैं...चार्ली चैपलिन किसी एक देश की परिधि में आने वाली शख्सियत नहीं...चार्ली वो इंसान है जिसने बिना एक शब्द बोले ही...सारी दुनिया को हंसने पर मजबुर कर दिया...वर्तमान समय के फूहड़ हास्य में दर्शकों को हँसाने की इतनी ताकत नहीं है...जितनी चार्ली की मूक फिल्मो में आज भी मौजूद है....नई पीढ़ी भी चार्ली के अभिनय को एकबारगी देख लेने के बाद तुलनात्मक दृष्टि से दुसरो से बेहतर ही मानती है....हास्य के माध्यम से करोडों लोगों का चहेता बन जाना कोई साधारण बात नहीं है....लेकिन चार्ली चैपलिन ने यह कारनामा कर दिखाया... चार्ली विश्व सिनेमा के आज तक के सबसे बड़े मसखरे माने जाते है...हालांकि उनका शुरूआती जीवन बड़ी ही कठिनाइयों और अभावों में बिता था...लेकिन उन्होंने परदे पर सदैव हास्य भूमिका ही अदा की...और लोगो को भरपूर हंसाया और देखते ही देखते बन गए कॉमेडी को एक ऐसा बादशाह जिसका लोहा हॉलीवुड ही नहीं पूरा विश्व मानता है...चार्ली के जीवन पर एक शेर बहुत ही सटिक बैठता है...
चार्ली चैपलिन कॉमेडी की दुनिया का एक ऐसा नाम...जिसे हर कोई जानता है...एक वक्त था कि...जब लोगों के चेहरे पर हंसी बिखेरने के लिए चार्ली चैपलिन का नाम ही काफी था...बिना कुछ बोले करोड़ों लोगों को चार्ली ने खुशियां बांटी...ये वो शख्स था जो रोते हुए आदमी को भी हंसने पर मजबूर कर देता था...लेकिन उनकी खुद की जिंदगी बेहद दुख और गरीबी में गुजरी...बहुत कम ही लोग जानते हैं...कि चार्ली के मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे हुए संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में...चार्ली गरीबी और बदहाली की भट्टी में पक कर ऐसा सोना बने...जिसकी चमक ने करोड़ों लोगों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरी...चार्ली चैप्लिन का जन्म एडोल्फ हिटलर के जन्म 4 दिन पहले 16 अप्रैल 1889 को लंदन शहर में हुआइनके पिता Charles Chaplin और मां Hannah Chaplin थी...उनके पिता एक गायक और अभिनेता थे माँ एक गायिका और अभिनेत्री थी...एक बार चार्ली की माँ स्टेज पर गाना गा रही थी...तभी उनकी आवाज बंद हो गई और...वो आगे गाना ना गा सकीं...वहां मौजुद ऑडियंस हंगामा करने लगी और...जूते चप्पल स्टेज पर फेंकने लगी...ऐसे में अपनी मां को बचाने के लिए लगभग 5 साल के चार्ली स्टेज पर आ गए और...उन्होंने अपनी भोली आवाज में मां के गाने की नकल करने लगे जो...ऑडियंस उसको काफी फनी लगी और...ऑडियंस ने उन्हें काफी सराहा...स्टेज पर सिक्को की बारिश होने लगी और...5 साल की उम्र में ये थी...चार्ली चैप्लिन की पहली कमाई...इसके कुछ दिन बाद चार्ली के माता-पिता तलाक लेकर अलग हो गए...चार्ली को अपने मां साथ एक अनाथ आश्रम में रहना पड़ा...क्योंकि उनकी मां के पास कोई रोजगार नहीं था...तो अनाथालय में उनकी मां एक मानसिक रोगी बनकर पागल हो गई...पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और...सौतेली मां ने चार्ली और उनके भाई पर अनेकों अत्याचार किए...चार्ली स्कूल तो जाते...लेकिन उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता...वो एक एक्टर ही बनना चाहते थे...पैसे कमाने के लिए चार्ली स्टेज शो करते...और रोजमर्रा की जरुरतों के लिए बहुत से छोटे मोटे काम किया करते थे...उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य एक्टर बनना ही था...इसलिए चार्ली नियमित रुप से ब्लैकमोर थिएटर जाते थे...एक बार वो एक स्टेज शो कर रहे थे तभी...उन पर डायरेक्टर की नजर पड़ी उन्होंने चार्ली की अभूतपूर्व क्षमता को उसी वक्त पहचान लिया...उस डायरेक्टर के माध्यम से चार्ली की मुलाकात E हैमिल्टन से हुई...हेमिल्टन ने चार्ली को शरलॉक होम्स नाटक में रोल ऑफर किया था...चार्ली को पढ़ना नहीं आता था...तो इसलिए डायलॉगों को उन्होंने रटना शुरू किया...शरलौक होम्स सीरीज में एक्टिंग करके उन्होंने खूब शौहरत कमाई.....हालांकि इसके बाद भी कुछ समय तक चार्ली का जीवन गर्दिशों के दौर में गुजरा...
वैसे तो चार्ली की जिंदगी बड़ी ही प्रेणादायक थी...और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से औऱ भी ज्यादा रोमांचक...आइए आपको ऐसे ही एक वाक्ये से रूबरू कराते हैं...चार्ली की एक बीवी लिटा ग्रे ने बताया था कि चैपलिन ने 15 साल की उम्र में उन्हें सिड्यूस किया था...हालांकि चार्ली ने ग्रे से 16 साल की उम्र में शादी कर ली थी...हालांकि उनकी शादी एक विपदा थी...एक वेबसाइट ने यहां तक दावा किया कि चैपलिन के तलाक के पेपरों से पता चला कि उन्हें लिटा से शादी करनी पड़ी थी क्योंकि वो प्रेग्नेंट हो गई थीं....ऐसा ही एक और दिलचस्प और रोमांचक किस्सा है...चार्ली की जीन्दगी का... एक दिन चार्ली चैपलिन के एक दोस्त अलेक्जेन्डर कोरदा ने....ये गौर किया कि चार्ली चैपलिन और हिटलर के चेहरे में काफी समानताएं हैं...बाद में चार्ली को भी ये बात पता चला कि...उसके और हिटलर के जन्म में एक हफ्ते का ही अंतर था...दोनों ही घोर गरीबी का ताप झेलते शिखरों पर बैठे हैं...लेकिन इतनी समानता होने के बावजूद चार्ली ने हिटलर के अमानवीय क्रत्यो को...अपने हास्य नाटको में प्रदशित करने का मन बना लिया....चार्ली ने वर्ष 1937 में 'द ग्रेट डिक्टेटर' फिल्म तैयार कर डाली....जिसमे हूबहु हिटलर के चेहरे की नक़ल उतारते हुए...वह स्वयं एक यहूदी नाई भी बना और तोमनिया राज्य का क्रूर तानाशाह एडीनॉड हेंकल भी...इस फिल्म में जर्मनी में हिटलर द्वारा यहूदियो पर जिए जा रहे अत्याचारो की कहानी बयां की गयी....हालाँकि यह फिल्म वर्ष 1937 में तैयार हो चुकी थी...लेकिन हिटलर के यूरोप में मचाये हाहाकार के कारण वर्ष 1940 तक रिलीज़ नहीं हो सकी....यह फिल्म हिटलर और मुसोलिन के बढ़ते अत्याचारो पर सीधा कटाक्ष थी...स्पेन में तो यह फिल्म वर्ष 1975 तक फ्रांसिसको फ्रांसो की मृत्यु तक थिएटर पर भी नहीं आ सकी....फिल्म में चार्ली ने एक बड़े से ग्लोब के गिर्द नाचते हुए....विश्व शांति का सन्देश दिया था 'द ग्रेट डिक्टटर' का अंत यहूदी नाई के रूप में चार्ली के 6 मिनट लंबे भाषण से होता हैं...जिसमे वह विश्व के अत्याचारो से मुक्त होने के और...एक सुन्दर भविष्य होने की कामना करता है...चैप्लिन की प्रसिद्धि का आलम ये था कि...1981 में सोवियत यूनियन के खगोल विज्ञानी ल्यूडमिला जोर्गिएवना कराच्किना द्वारा खोजे गए...एक छोटे ग्रह 3623 चैप्लिन का नाम भी...चार्ली के नाम पर रखा गया है... चैप्लिन ने दर्जनों फीचर फिल्म और छोटे विषयों पर लिखा...और उनका निर्देशन और अभिनय किया था...जिनमें विशेष रूप से द इमिग्रंट (1917)... द गोल्ड रश (1925)...सिटी लाइट्स (1925).... मौडर्न टाइम्स (1936) और...द ग्रेट डिक्टेटर (1940) शामिल हैं....जो सभी राष्ट्रीय फिल्म रजिस्ट्री में शामिल होने के लिए चुनी गई हैं....

चार्ली 5 फुट 5 इंच की छोटी हाइट वाले एक दुबले पतले इंसान थे...जो लोगों को अपनी एक्टिंग से गरीबी और बेकारी में भी...खुश मिजाजी भरा जीवन जीने की प्रेरणा देते थे...इतिहास गवाह है कि उस दौर में जब पूरी दुनिया विश्वयुद्ध और आर्थिक मंदी की तबाही से गुजर रही थी...चारों तरफ तानाशाहों का आतंक था...हर तरफ मौत युद्ध और आतंक का खौफ पसरा था....उस दौर में चार्ली हास्य खुशी और राहत का उपहार लाए जब अमेरिका प्रथम युद्ध के बाद बिखर रहा था...ऐसे मैं उनसे लड़ने के लिए चार्ली ने कॉमेडी का सहारा लिया...चार्ली के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया....जब वो अपने इंटरव्यू में वामपंथियों का पक्ष लेते हुए दिखे...जिसके बाद मीडिया ने चार्ली पर रूसी एजेंट होने का आरोप लगाना शुरू कर दिया...10 साल तक अमेरिकी सरकार और मीडिया चार्ली के लिए आफत बनी रही...अमेरिका को लगता था कि चार्ली कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित हैं...और वे समाज में लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करते हैं....यह बात अमेरिका को खटक रही थी....इसलिए उसने अपने देश की खुफिया एजेंसी एफबीआई को चार्ली चैपलिन की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारी जुटाने को कहा....दरअसल चार्ली चैपलिन ज्यादातर लंदन में ही रहा करते थे...इसलिए एफबीआई ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने का जिम्मा 'एमआई 5' को सौंप दिया...चार्ली की फिल्म लाइमलाइट 1952 में रिलीज हुई लेकिन अमेरिका में उस फिल्म को बैन कर दिया गया...चार्ली को अमेरिका से बहुत लगाव था...उन्होंने यहीं पर अपनी पहली शादी की थी...लेकिन अमेरिका की बेरुखी से वह अंदर तक टूट चुके थे...उनकी पत्नी और वह अमेरिका की नागरिकता वापस लौटा कर लंदन आ गए...लेकिन यहां पर सही घर नहीं मिलने की वजह से वो स्विट्जरलैंड जाकर बस गए...यहीं पर चार्ली की मुलाकात जवाहरलाल नेहरू और...उनकी बेटी इंदिरा से हुई चार्ली ने अपनी आत्मकथा में लिखा वह महात्मा गांधी के विचारधारा से प्रेरित हुए....एक बार चार्ली कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल से मुलाकात के दौरान उन्होंने गांधी से मिलने की इच्छा जाहिर की...संयोग से उस समय गांधीजी गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन आए हुए थे....जहां चार्ली की गांधी जी से मुलाकात बहुत ही रोमांचक ढंग से हुई...गांधी जी एक झुग्गियों वाले इलाकों में डेरा डाले हुए थे...जहां चार्ली चैप्लिन खुद जाकर उनसे मिलने पहुंच गए....जहां चार्ली ने भारत की आजादी पर हो रहे आंदोलनों पर अपना नैतिक समर्थन दिया...चार्ली को अपने अभिनय और कॉमेडी के लिए अनेक अवार्ड मिले....1940 में द ग्रेट डिटेक्टर के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर....1952 में उनकी फिल्म लाइमलाइट ने म्यूजिक के लिए ऑस्कर अवार्ड जीता...चार्ली की प्रसिद्धि इतनी है कि...1995 में ऑस्कर अवॉर्ड के दौरान द गार्जियन न्यूज़ पेपर ने एक सर्वे किया....जो यह जानना चाहता था कि दर्शकों का पसंदीदा एक्टर कौन है...सर्वे रिपोर्ट को देखते हुए किसी को आश्चर्य नहीं हुआ कि...चार्ली अधिकतर लोगों की पसंद है....आज भी वह लगभग सभी के दिलों में बसते हैं....उनकी एक्टिंग से आज की पीढ़ी भी सीख ले रही है....और आज भी कई एक्टर उनके एक्टिंग की नकल करते हैं....माइकल जैक्सन ने चार्ली चैप्लिन के लिए कहा था कि वह उनके जैसा बनना चाहते हैं....उनका जीवन एक ऐसा कहानी है जो दुख दर्द और आंसुओं के साए में भी खुशियों से हंसना सिखाती है....1977 में जब दुनिया 25 दिसंबर यानी क्रिसमस के दिन जीसस क्राइस्ट का जन्म दिन मना रही थी....उसी दिन कॉमेडी के महानायक चार्ली चैप्लिन इस दुनिया को अलविदा कह गए...चार्ली की मुफलिसी का दौर उनकी मौत के बाद भी नहीं थमा...चैपलिन की मौत के लगभग दो महीने बाद अचानक एक दिन उनकी कब्र खाली मिली....जांच में पता चला कि चैपलिन के कॉफिन को चुरा लिया गया है...और चोरों ने कॉफिन लौटाने के लिए 600,000 स्विस फ्रैंक्स की मांग रखी...चैपलिन की पत्नी ऊना चैपलिन ने यह पैसे देने से यह कहकर मना कर दिया कि चैपलिन मेरे दिल में...और स्वर्ग में हैं...आज भले ही चार्ली चैप्लिन इस दुनिया में ना हो पर उनका अभिनय आज भी उदास चेहरों पर मुस्कान ला रहा है....

सोमनाथ में शिवलिंग के दर्शन

सोमनाथ में शिवलिंग के दर्शन मात्र से हो जाते हैं. भोले प्रसन्न और जब भोले प्रसन्न होते हैं तो भक्तों का बेड़ापार तो करते ही हैं साथ ही उसके सारे कष्टों को भी हर लेते है...  हिन्दू धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है... इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं...
गुजरात के सौराष्ट्र से होकर प्रभास क्षेत्र में कदम रखते ही दूर से ही दिखाई देने लगता है ये ध्वज जो हजारों वर्षों से भगवान सोमनाथ का यशगान करता आ रहा है... ध्वज को देखकर शिव की शक्ति का, उनकी ख्याति का एहसास भक्तों को होने लगता है... आसमान को स्पर्श करता मंदिर का यह शिखर देवाधिदेव की महिमा का बखान करता है... यह मंदिर अपने भव्य रूप में महादेव भक्तों का कल्याण करते हैं... हिन्दू धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. सोमनाथ मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान प्राप्त है... इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त खाली नहीं लौटने देते हैं... एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है, जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है... उम्मीदों की खाली झोली लिए श्रद्धालु सुबह से ही भगवान सोमनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में य़े अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुशीबतों का अंत हो जाएगा... यहां कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, तो कोई अपने लंबी आयु की मन्नत लेकर सोमनाथ रूप भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके... देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु यहां पहुंचते हैं... मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले भक्तों की भेंट भगवान के प्रिय वाहन नंदी से होती है, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो नंदी भगवान के हर भक्त की अगुवायी कर रहे हों. मंदिर के अंदर पहुंच कर एक अलग ही दुनिया में होने का एहसास होता है, जिस तरफ भी नजर पड़ती है भगवान के चमत्कार का कोई न कोई रूप नजर आता है. मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए देवों के देव महादेव का सबसे पंचामृत स्नान कराया जाता है. स्नान के बाद बारी आती के उनके भव्य और अलौकिक श्रृंगार की. शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है और फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है. शिव भक्ति में डूबे भक्त अपने आराध्य का यह अलौकिक रूप देखते ही रह जाते हैं.
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है... जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है... कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, कोई सुख समद्धि की मन्नत लेकर सोमनाथ के रूप में भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके..एक पौराणिक मान्यता के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में स्थापित सबसे पहला रूद्र ज्योतिर्लिंग है... जहां आकर अपना मन भगवान को अर्पण करने वालों की हर मुराद पूरी होती है...  उम्मीदों की खाली झोली लिए श्रद्धालु सुबह से ही भगवान सोमनाथ के दर्शनों के लिए उमड़ने लगते हैं... यहां आने वाले हर श्रद्धालु के मन में अटूट विश्वास होता है कि अब उनकी सारी मुसीबतों का अंत हो जाएगा... कोई अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आता है, कोई सुख समद्धि की मन्नत लेकर सोमनाथ के रूप में भगवान शिव की आराधना करता है, तो कोई अपने नौनिहाल को भगवान के दरबार में इस उम्मीद के साथ लेकर आता कि भगवान से उसे लंबे और निरोगी जीवन का आशीर्वाद मिल सके... देश दुनिया की सीमा से परे हर रोज हजारों श्रद्दालु यहां पहुंचते हैं...  इस ज्योतिर्लिंग को लेकर मान्यता यह भी है कि द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने इस मन्दिर का निर्माण चन्दन की लकड़ी से किया था लेकिन मोक्ष और मुक्ति की यह कथा द्वापर से भी पहले ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति के समय से आरम्भ हो चुकी थी... कहते हैं  दक्ष की सभी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से हुआ था, लेकिन चंद्रमा ने 27 कन्याओं में से केवल एक रोहिणी को ही पत्नी का दर्जा दिया... दक्ष ने दामाद को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने दक्ष की बात नहीं मानी तो उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोगी होने का श्राप दे दिया.. दक्ष के श्राप से चंद्रदेव की कांति धूमिल पड़ने लगनी.... परेशान होकर चंद्रमा ब्रह्मदेव के पास पहुंचे.. चंद्र देव की परेशानी सुन कर ब्रह्मा ने उनसे कहा कि उन्हें कुष्ठ रोग से सिर्फ महादेव ही मुक्ति दिला सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें सरस्वती नदी के मुहाने पर स्थित अरब सागर में स्नान कर भगवान शिव की उपासना करनी होगी... निरोग होने के लिए चंद्रमा ने कठोर तपस्या की, जिससे खुश होकर महादेव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया... जिसके बाद शिवभक्त चंद्रदेव ने यहां शिव जी का स्वर्ण मंदिर बनवाया और उसमें जो ज्योतिर्लिंग स्थापित हुआ उसका नाम चंद्रमा के स्वामी यानी सोमनाथ पड़ गया... चंद्रमा ने इसी स्थान पर अपनी कांति वापस पायी थी... इसलिए इस क्षेत्र को प्रभास पाटन भी कहा जाने लगा... यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है... चैत्र, भाद्र और कार्तिक महीने में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना गया है... इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है... सोमनाथ में तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम भी है.. कथाओं में त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. कहा जाता है इस पृथ्वी पर 5 स्थान ऐसे हैं जहां अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है उन 5 स्थानों में से एक है सोमनाथ
सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती है.. मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है... लेकिन सोमनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि समय-समय पर यहां कई बार आक्रमण हुए.. इतिहास के मुताबिक मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण किया गया और हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया,..  हलांकि मंदिर पर किसी भी कालखंड का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता...सोमनाथ मंदिर की दीवारों पर बनी यह मूर्तियां मंदिर की भव्यता को दर्शाती है। मंदिर की बनावट और मंदिर की दीवारों पर की गई शिल्पकारी शिव भक्ति का उत्कृष्ठ नमूना है... लेकिन सोमनाथ मंदिर का इतिहास बताता है कि समय-समय पर यहां कई बार आक्रमण हुए.. इतिहास के मुताबिक मंदिर पर कुल 17 बार आक्रमण किया गया और हर बार मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया गया,..  हलांकि मंदिर पर किसी भी कालखंड का कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता... कहते हैं सृष्टि की रचना के समय भी यह शिवलिंग मौजूद था.. ऋग्वेद में भी इसके महत्व का बखान किया गया है.. इतिहासकारों के मुताबिक महमूद गजनवी के हमले के बाद इक्कीस मंदिरों का निर्माण किया गया.. यह मन्दिर पहली बार कब बना इसका कोई ऐतेहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है पर इतिहसकारों के मुताबिक इस मंदिर को सन् 649 ई में वैल्लभी के मैत्रिक राजाओं ने दुबारा बनवाया था.. इतिहास गवाह है एक बार नहीं दर्जनों बार सोमनाथ मन्दिर पर आक्रमण किया गया और मंदिर को नेस्तनाबूत करने की कोशिश की गई.. सन् 1024 में महमूद ग़ज़नवी ने सोने-चांदी को लूटने के नियत  से उसने मन्दिर में तोड़-फोड़ की थी.. लूट के दौरान जब महमूद ग़ज़नवी ने शिवलिंग को नहीं तोड़ पाया, तब उसने वहां आग लगवा कर मंदिर को क्षति पहुंचाने की कोशिश की... सोमनाथ मन्दिर में नीलमणि के छप्पन खम्भे लगे हुए थे.. उन खम्भों में हीरे-मोती के अलावा तरह तरह के रत्न जड़े हुए थे.. उन बहुमूल्य रत्नों को लुटेरों ने लूट लिया और मन्दिर को भी नष्ट-भ्रष्ट कर दिया.. महमूद ग़ज़नवी के मन्दिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने पुनः मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कराया.. सन् 1093 में सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर की पवित्रीकरण में भरपूर सहयोग किया.. 1168 में विजयेश्वर कुमारपाल ने जैनाचार्य हेमचन्द्र के साथ सोमनाथ की यात्रा कर मन्दिर का बहुत कुछ सुधार करवाया था... मुगल शासकों ने भी मंदिर के साथ बहुत दुराचार किया और मन्दिर को नष्ट-भ्रष्ट करते रहे.. इतना नहीं सन् 1297 में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने आक्रमण कर पवित्र शिवलिंग को खण्डित कर दिया था.. मन्दिर को हिन्दु राजाओं द्वारा बनवाने और मुस्लिम राजाओं द्वारा तोडने का क्रम जारी रहा... औरंगजब के काल में भी मन्दिर को दो बार तोड़ा गया.. मुगलकाल 1665 और 1706 में दुबारा आक्रमण करके मन्दिर में पूजा कर रहे लोगों की हत्या कर दी गयी थी.. आजादी के बाद राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने देश के स्वाभिमान को जाग्रत करते हुए पुनः सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण कराया.. और आज पुनः भारतीय-संस्कृति और सनातन-धर्म की ध्वजा के रूप में सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मन्दिरके रूप में शोभायमान है..
दुनिया भर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं.. सभी 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में अरब सागर के तट पर स्थित है और यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि जब से सृष्टि कायम है तब से ही यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्थित है.. दुनिया भर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं.. सभी 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के सौराष्ट्र नगर में अरब सागर के तट पर स्थित है और यह सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि जब से सृष्टि कायम है तब से ही यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्थित है.. इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कई ऐसी महत्वपूर्ण बातें है जो बहुत कम लोग जानते हैं.. सोमनाथ मंदिर की गिनती 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में होती है.. जिसका निर्माण स्वंय चन्द्रदेव ने किया था.. सोमनाथ में बने इस ज्योतिर्लिंग का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है.. यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है.. श्रीकृष्ण की द्वारका सोमनाथ से करीब दो सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। सोमनाथ का अर्थ है सोम के नाथ.. हिन्दू धर्म में सोमनाथ का अपना एक अलग ही स्थान है. इतना ही नहीं, कहते हैं महादेव अपने इस दर पर किसी भी भक्त को खाली नहीं लौटने देते हैं... गुजरात में भगवान शिव के सोमनाथ मंदिर में गैर हिंदुओं को अब प्रवेश के लिए प्रबंधन से विशेष अनुमति लेनी होती है। मंदिर प्रबंधन के मुताबिक सुरक्षा की दृष्टि से यह कदम उठाया गया है.. सोमनाथ मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है और इसे जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई है...  यह मन्दिर गोमती नदी के तट पर स्थित है.. गोमती नदी में स्नान का अपना अलग महत्व है इस नदी का जल सूर्योदय पर बढ़ता जाता है और सूर्यास्त पर घटता जाता है, जो सुबह सूरज निकलने से पहले मात्र एक डेढ़ फीट ही रह जाता है.. स्कंद पुराण के प्रभासखंड में उल्लेख किया है कि सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम हर नए युग के साथ बदल जाता है.. कहा जाता है कि जब वर्तमान सृष्टि का अंत हो जाएगा और ब्रह्मा जी नई सृष्टि करेंगे तब सोमनाथ का नाम 'प्राणनाथ' होगा.. 

कहते हैं सोमनाथ की पूजा और उपासना करने से उपासक को क्षय रोग से मुक्ति मिलती है... ऐसा माना जाता है कि यहां बने कुंड में शिव और ब्रह्मा निवास करते हैं..  सोमनाथ मंदिर में स्थित चन्द्रकुण्ड मनुष्यों के पाप नाश करने वाले के रूप में भी प्रसिद्ध है.. इसलिए इसे पापनाशक-तीर्थ भी कहते हैं.. जो मनुष्य चन्द्रकुण्ड में स्नान करता है, वह सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है.. इस कुण्ड में बिना नागा किये छः माह तक स्नान करने से क्षय और असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते हैं.. सोमनाथ मंदिर के प्रांगण में रात 7.30 से 8.30 तक एक घण्टे का लाइट एण्ड साउण्ड शो चलता है जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही खूबसूरत वर्णन किया जाता है.. सोमनाथ मंदिर में लाइट एंड साउंड शो का शुभारंभ इसी साल अप्रेल से हुआ है... पर्यटकों को मंदिर के इतिहास और संस्कृति के विषय में इस लाइट एंड साउंड शो के जरिए अवगत कराया जाता है.. गुजरात पर्यटन के ब्रांड ऐम्बेसडर अमिताभ बच्चन ने इस शो में अपनी आवाज दी है। इसके अलावा 3 डी प्रोजेक्शन एवं मैपिंग, लाइटिंग डिजाइन और प्रोग्रामिंग भी किया गया है.. 35 मिनट के इस शो में दो भाषाओं अंग्रेजी और हिंदी में विशेष इफैक्टस के जरिए जानकारी दी जाता है.. शो के दौरान एक साथ एक हजार पर्यटक इस शो देख सकते हैं..

जन्माष्टमी

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है..पवित्र माह सावन के समाप्त होते ही भाद्रपद महीना शुरू हो जाता  हैइस महीने की अष्टमी को यह पर्व पूरे देश भर में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता हैश्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि दर्शन के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुंचते हैंश्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता हैमंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है….जन्मष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं….इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है….और भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता हैजगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है….श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया….चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थेइस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं……इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है…..हिन्दू धर्म में श्री कृष्ण जन्माष्टमी को अलग अलग जगहों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है…..जैसे कृष्णाष्टमी, सातम आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती और जन्माष्टमी…..योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं….जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं..
कृष्ण जन्माष्टमी राजा कंस के युग से संबंधित है...कंस मथुरा का राजा था...वह देवकी के  चचेरे भाई थे वह अपनी बहन को गहरे दिल से प्यार करता था....और कभी भी उसे उदास नहीं होने देता था...उसनॉ अपनी बहन की शादी बड़े धुमधाम से की...एक बार जब वह अपनी बहन की ससुराल जा रहा था...तभी उसे एक आकाशवाणी सुनाई दी....कंस, जिस बहन को तुम बहुत प्यार कर रहे हो वह एक दिन तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगी....देवकी और वासुदेव का आठवां बच्चा तुझे मार डालेगा....जैसे ही, उसे यह चेतावनी मिली, उसने अपने सैनिकों को अपनी बहन देवकी और उसके पति वासुदेव को कारागार में रखने का आदेश दे दिया...उसने मथुरा के सभी लोगों के साथ क्रूरतापूर्वक बर्ताव करना शुरू कर दिया....उसने घोषणा की कि मैं अपनी बहन के सभी बच्चों को, अपने हत्यारे को रास्ते से हटाने के लिए मार दूंगा... उसकी बहन ने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया, फिर दूसरा, तीसरा और फिर सातवां जो कि कंस के द्वारा एक-एक करके मारे गए.... देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं...उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है...उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है....आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं...भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है...इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं...और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं...जन्माष्टमी का त्यौहार भारत देश में ही नही बल्कि पूरी दुनियाँ में बड़े ही उल्लास और आस्था के साथ मनाया जाता है जहाँ पर भारतीय निवास करते है.मुरली मनोहर, बाल गोपाल, कान्हा, रास बिहारी और न जाने कितने नाम और उनकी उतनी ही लीलाएं...भगवान कृष्ण की यही तो महिमा है....मुरली मनोहर के एक ऐसे ही मंदिर के दर्शन पूजन का सौभाग्य जहां भगवान कृष्ण राधा संग नहीं...बल्कि अपनी पत्नी रूक्मिणी संग दर्शन देते हैं...
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं...वहीं सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग व मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं...वैसे तो भगवान विष्णु ने अभी तक 23 अवतारों को धारण किया, लेकिन इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण व श्रीराम माने गए हैं... विष्‍णु पुराण के अनुसार जो व्यक्ति भगवान विष्‍णु को प्रसन्न रखना चाहते हैंऔर उनकी कृपा पाना चाहते हैं उन्हें अपने काम से मतलब रखना चाहिए….साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान रहना चाहिए की दूसरों की निंदा करने से बचना है..प्रभु को प्रसन्न करने के लिए इस बात को ध्यान रखें कि जितना आपके पास धन-संपत्ति हो उसी में संतुष्ट रहें, दूसरों के धन के प्रति लालच न रखे...पराई स्‍त्री के प्रति गलत नजर व काम भाव से बचना चाहिए...साथ ही गुरुजनों, देवता आदि के प्रति बुरे शब्द नहीं कहने पर ही भगवान कृष्ण उनसे प्रसन्न रहते हैं...जो व्यक्ति झूठ बोलकर दूसरों को बदनाम करने की कोशिश करता है, उसे अगले जन्म में इसका दंड का भागी होता है... इसलिए दूसरों पर झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें बदनाम न करें....जीवों के प्रति दया भाव रखें, किसी जीव की हत्या या उन्हें चोट पहुंचाने की कोशिश न करें…..इसके अलावा किसी के प्रति अपना-पराया या फिर शत्रु आदि का भाव न रखकर सबके साथ समभाव रखना चाहिए।

कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर मनाई जाती है….जब ऐसा होता है….तो तब पहले दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त सम्प्रदाय के लोगो के लिये और दूसरे दिन वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के लिये होती है….. उत्तर भारत में श्रद्धालु स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी का भेद नहीं करते और दोनों सम्प्रदाय की जन्माष्टमी एक ही दिन मनाते हैं….हमारे विचार में यह सर्वसम्मति इस्कॉन संस्थान की वजह से है..."कृष्ण चेतना के लिए अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय" संस्था, जिसे इस्कॉन के नाम से भी जाना जाता है,…वैष्णव परम्पराओं और सिद्धान्तों के आधार पर निर्माणित की गयी हैअतः इस्कॉन के ज्यादातर अनुयायी वैष्णव सम्प्रदाय के लोग होते हैं.... इस्कॉन संस्था सर्वाधिक व्यावसायिक और वैश्विक धार्मिक संस्थानों में से एक है जो इस्कॉन संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये धन और संसाधन खर्च करती है...इस्कॉन की परम्पराएँ भिन्न होती है और जन्माष्टमी उत्सव मनाने का सबसे उपयुक्त दिन इस्कॉन से अलग भी हो सकता है...स्मार्त अनुयायी, जो स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदाय के अन्तर को जानते हैं, वे जन्माष्टमी व्रत के लिये इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का अनुगमन नहीं करते...ब्रज क्षेत्र, मथुरा और वृन्दावन में, इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन का सर्वसम्मति से अनुगमन किया जाता है...श्रद्धालु जो दूसरों को देखकर जन्माष्टमी के दिन का अनुसरण करते हैं वो इस्कॉन द्वारा निर्धारित दिन को ही उपयुक्त मानते हैं....लोग जो वैष्णव धर्म के अनुयायी नहीं होते हैं, वो स्मार्त धर्म के अनुयायी होते हैं...स्मार्त अनुयायियों के लिये, हिन्दु ग्रन्थ धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं...जन्माष्टमी के दिन का निर्णय हिन्दु ग्रन्थ में बताये गये नियमों के आधार पर करना चाहिये....इस अन्तर को समझने के लिए एकादशी उपवास एक अच्छा उदाहरण है....एकादशी का व्रत धारण करने के लिये, स्मार्त और वैष्णव सम्प्रदायों के अलग-अलग नियम होते हैं....ज्यादातर श्रद्धालु एकादशी के अलग-अलग नियमों के बारे में जानते हैं जहां वैष्णव धर्म को मानने वाले लोग अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र को प्राथमिकता देते हैं,वे कभी सप्तमी तिथि के दिन जन्माष्टमी नहीं मनातेवैष्णव नियमों के अनुसार हिन्दु कैलेण्डर में जन्माष्टमी का दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि पर ही पड़ता है।यह पृष्ठ स्मार्त सम्प्रदाय के लिये जन्माष्टमी का दिन दर्शाता है….और वैष्णव जन्माष्टमी का दिन स्मार्त जन्माष्टमी से पृथक होता है..

सावन महिना

देवो के देव महादेव के लिए कहा जाता है....कि उनकी कृपा अगर किसी पर हो जाए तो उसका जीवन सफल हो जाता है....वैसे तो तीनों लोक के स्वामी महादेव भोले हैं....और उनको भोलेनाथ भी कहा जाता है...लेकिन महादेव को खुश करना इतना आसान नहीं है...इसके लिए पूजा और तप करना पड़ता है....आदिकाल से लेकर अब तक कई कथाएं प्रचलित हैं....कि जिस पर भी भोलेनाथ की कृपा हुई...और उद्धार ही हुआ है...यूं तो महादेव की पूजा अर्चना कभी भी किसी भी दिन की जा सकती है....लेकिन जो भक्त सोमवार को भगवान भोलेनाथ का सच्चे मन से स्मरण करता है...उसके सारे कष्ट और पीड़ा समाप्त हो जाती है....सोमवार का दिन बेहद ही खास है....इस दिन अगर शिवलिंग को दूध दही जल से स्नान कराया जाए तो भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है....लेकिन आम दिन से अलग सावन में सोमवार का महत्व ज्यादा होता है....सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार को बहुत पवित्र माना जाता है...सोमवार को केवल रात में ही भोजन करना चाहिए और शिव जी की उपासना करनी चाहिए। श्रावण सोमवार व्रत की विधि अन्य सोमवार व्रत की तरह ही होती है। भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती जी की पुष्प, धूप, दीप और जल से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को तरह-तरह के नैवेद्य अर्पित करने चाहिए जैसे दूध, जल, कंद मूल आदि। सावन के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। साथ ही भगवान शिव की प्रिय वस्तुएं जैसे भांग- धतुरा आदि उनकी पूजा में अवश्य रखने का प्रयत्न करना चाहिए।
सावन का महीना जिसमें भगवान शंकर की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सावन के सोमवार की महिमा महाशिवरात्रि के बाद सबसे ज्यादा मानी जाती है .. पुराणों में भी  भगवान शंकर की पूजा के लिए सोमवार का दिन निर्धारित किया गया है।  सावन के महीने की ऐसी मान्यता है कि सावन का शुरुआत जिस सोमवार से होती है उसी दिन से  प्रबोधनी एकादशी  के प्रारंभ  से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के लिए निकल जाते हैं ..और अपना सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को समझते है एवं उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं, इसलिए सावन का महीना खास होता है। महादेव को श्रावण मास वर्ष का सबसे प्रिय महीना लगता है क्योंकि श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार रहते हैं, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करता है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांएं चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। हिन्दू कैलेण्डर में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गयें हैं। जैसे वर्ष का पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र के आधार पर पड़ा है, उसी प्रकार श्रावण महीना श्रवण नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है। चन्द्र भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराज मान है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। सूर्य गर्म है एवं चन्द्र ठण्डक प्रदान करता है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिश होती है। जिसके फलस्वरूप लोक कल्याण के लिए विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव को ठण्डक व सुकून मिलता है। शायद यही कारण है कि शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।
पुराणों और धर्मग्रंथों में तो भोले बाबा की पूजा के लिए सावन के महीने की महिमा का महत्व बताया गया है। इस महीने में ही पार्वती ने शिव की घोर तपस्या की थी और शिव ने उन्हें दर्शन भी इसी माह में दिए थे। तब से भक्तों का विश्वास है कि इस महीने में शिवजी की तपस्या और पूजा पाठ से शिवजी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं।एक बार सावन के महीने में अनेक ऋषि क्षिप्रा नदी में स्नान कर उज्जैन के महाकाल शिव की अर्चना करने हेतु एकत्र हुए। वह अभिमानी वेश्या भी अपने कुत्सित विचारों से ऋषियों को धर्मभ्रष्ट करने चल पड़ी। लेकिन वहां पहुंचने पर ऋषियों के तपबल के प्रभाव से उसके शरीर की सुगंध लुप्त हो गई। वह आश्चर्यचकित होकर अपने शरीर को देखने लगी। उसे लगा, उसका सौंदर्य भी नष्ट हो गया। उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई। उसका मन विषयों से हट गया और भक्ति मार्ग पर बढ़ने लगा। उसने अपने पापों के प्रायश्चित हेतु ऋषियों से उपाय पूछा, वे बोले- ‘तुमने सोलह श्रृंगारों के बल पर अनेक लोगों का धर्मभ्रष्ट किया, इस पाप से बचने के लिए तुम सोलह सोमवार व्रत करो और काशी में निवास करके भगवान शिव का पूजन करो।वेश्या ने ऐसा ही किया और अपने पापों का प्रायश्चित कर शिवलोक पहुंची। ऐसा माना जाता है कि सोलह सोमवार के व्रत से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं। बारह महीनों में विशेष है श्रावण मास, इसमें शिव की पूजा करने से प्रायः सभी देवताओं की पूजा का फल मिल जाता है।
सावन में कांवड यात्रा का विशेष महत्व है लेकिन इसके पीछे की कहानी शायद ही आपको मालूम हो आइये आपको बताते है कि कांवड यात्रा की कहानी का श्रवण कुमार और भगवान राम के पिता राजा दशरथ से क्या जुड़ाव है
श्रवण कुमार बहुत ही सरल स्वभाव का व्यक्ति था... माता-पिता के लिए उसके मन में बहुत प्रेम एवम श्रद्धा थी वो दिन रात अपने माता-पिता की सेवा करता था . अपने माता पिता का बच्चो की तरह लालन पालन करता था . उसके माता पिता भी स्वयं को गौरवशाली महसूस करते थे श्रवण कुमार ने अपना पूरा जीवन, वृद्ध नेत्रहीन माता पिता की सेवा में लगा दिया . श्रवण कुमार के माता पिता ने कहा कि हम दोनों की आयु बहुत हो चुकी हैं , अब जीवन का कोई भरोसा नहीं हैं, किसी भी समय हमारी आँखे बंद हो सकती हैं ऐसे में हमारी एकमात्र इच्छा हैं, हम तीर्थ यात्रा करना चाहते हैं, क्या तुम हमारी यह इच्छा पूरी कर सकते हो ? श्रवण कुमार अपने माता-पिता के चरणों को पकड़ कर अत्यंत प्रसन्नता के साथ कहता हैंहाँ .श्रवण अपने माता पिता को तीर्थ करवाने हेतु एक कावड़ तैयार करता हैं जिसमे एक तरफ शांतुनु एवम दूसरी तरफ उनकी पत्नी बैठती हैं . और कावड़ के डंडे को अपने कंधे पर लादकर यात्रा शुरू करता हैं . हैं .तीर्थ करते समय जब वे तीनों अयोध्या नगरी पहुँचते हैं, तब माता पिता श्रवण से कहते हैं कि उन्हें प्यास लगी हैं . श्रवण कावड़ को जंगल में रखकर, हाथ में पत्तो का पात्र बनाकर, सरयू नदी से जल लेने जाता हैं . उसी समय, उस वन में अयोध्या के राजा दशरथ आखेट पर निकले थे और उस घने वन में वह हिरण को शिकार बनाने के लिए उसके पीछा कर रहे थे, तब ही उन्हें घने जंगल में झाड़ियों के पार सरयू नदी से पानी के हल चल की आवाज आती हैं , उस हलचल को हिरण के पानी पिने की आवाज समझ कर महाराज दशरथ शिकार के उद्देश्य से तीर चला देते हैं और उस तीर से श्रवण कुमार के हृदय को आघात पहुंचता हैं जिससे उसके मुँह से पीड़ा भरी आवाज निकलती हैं  वे भागकर सरयू नदी के तट पर पहुंचते हैं, जहाँ वे अपने तीर को श्रवण के ह्रदय में लगा देख भयभीत हो जाते हैं और उन्हें अपनी भूल का अहसास होता हैं . दशरथ, श्रवणकुमार के समीप जाकर उससे क्षमा मांगते हैं, तब अंतिम सांस लेता श्रवण कुमार महाराज दशरथ को अपने वृद्ध नेत्रहीन माता पिता के बारे में बताता हैं और कहता हैं कि वे प्यासे हैं उन्हें जाकर पानी पिला दो और उसके बाद उन्हें मेरे बारे में कहना और इतना कह कर श्रवण कुमार मृत्यु को प्राप्त हो जाता हैं . भारी ह्रदय के साथ महाराज दशरथ श्रवण के माता पिता के पास पहुँचते हैं और उन्हें पानी पिलाते हैं . माता पिता आश्चर्य से पूछते हैं उनका पुत्र कहा हैं ?पुत्र की मृत्यु की खबर सुनकर माता पिता रोने लगते हैं और दशरथ से उन्हें अपने पुत्र के पास ले जाने को कहते हैं . महाराज दशरथ कावड़ उठाकर दोनों माता पिता को श्रवण के शरीर के पास ले जाते हैं . माता पिता बहुत जोर-जोर से विलाप करने लगते हैं, उनके विलाप को देख महाराज दशरथ को अत्यंत ग्लानि का आभास होता हैं और वे अपनी करनी की क्षमा याचना करते हैं लेकिन दुखी पिता शांतुनु महाराज दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस तरह मैं शांतुनु, पुत्र वियोग में मरूँगा, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में मरोगे . इतना कहकर दोनों माता- पिता अपने शरीर को त्याग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं .तभी से सावन में कावड़ यात्रा की मान्यता है
देवघर भारत के झारखंड राज्य का एक शहर है। यह शहर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल है। इस शहर को बाबाधाम नाम से भी जाना जाता है क्योंकि शिव पुराण में देवघर को बारह जोतिर्लिंगों में से एक माना गया है। हर सावन में यहाँ लाखों शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है जो देश के विभिन्न हिस्सों सहित विदेशों से भी भक्त यहाँ आते हैं। इन भक्तों को काँवरिया कहा जाता है। ये शिव भक्त बिहार में सुल्तानगंज से गंगा नदी से गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर देवघर में भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं। लेकिन इसकी पहचान हिंदु तीर्थस्थान के रूप में की जाती है। माना जाता है कि भगवान शिव को लंका ले जाने के दौरान उनकी स्थापना यहां हुई थी। जिससे बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक किया जाता है ऐसा माना जाता है कि रावण चाहता था कि उसकी राजधानी पर शिव का आशीर्वाद बना रहे। इसलिए वह कैलाश पर्वत गया और शिव की अराधना की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने रावण को अपना ज्योतिर्लिग दे दिया। और एक शर्त रखी कि रावण अपनी यात्रा को बीच में नहीं रोक सकता है और ना ही इस लिंग को कहीं भी नीचे रख सकता है। यदि यह लिंग लंका से पहले कहीं भी नीचे रखा गया तो वह सदा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा। देवगण अपने शत्रु को मिले इस वरदान से घबरा गया और एक योजना के तहत इंद्र ब्राह्मण बनकर ,ऐसा बहाना बनाया कि रावण ने यह लिंग उसे सौंप दिया। ब्राह्मण रूपी इंद्र ने यह लिंग देवघर में रख दिया। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी यह हिला नहीं। रावण अपनी गलती को सुधारने के लिए रोज यहां आता था और गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करता था लेकिन ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर में जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं। यहाँ पर साबन महीने में बड़ा मेला लगता है मान्यता है कि भगवान शिवजी सावन महिना में यहाँ बिराजते और भगवान शिव को गंगा जल अर्पित करते है। देवघर की यह यात्रा बासुकीनाथ के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है।