रोशनी का त्योहार है दीपावली... और दीवाली भारत का प्रमुख त्योहार भी है.. पूरे
भारत में दिवाली उत्सव को बडे धूम-धाम से मनाया जाता है.. पटाखो की आवाज़, मोम्बत्ती का
प्रकाश, यह सब दीवाली की शान है..
भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है दीवाली.. आज पूरी दुनिया मे बडे़
उत्साह के साथ मनाई जाती है.. आज के दिन दीयो की जगमगाहट के बीच हर कोई ईश्वर से
सुख-समृद्धि की प्रार्थना करता है... दीवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा
करने की मान्यता होती है... जगमगाते दीपो के बीच माँ लक्ष्मी की प्रतिमा और माँ की
पूजा करते आशीर्वाद के प्रार्थी भक्त, कुछ ऐसा ही समा होता है, दीपावली के
त्योहार का.. इस दिन लक्ष्मी, गणेश और धन के राजा कुबेर की पूजा
होती हैं, और लोग ईश्वर से धन-धान्य से सम्पन्न होने की प्रार्थना करते हैं...
धन, सुख-समृद्धि, विलासिता और रोशनी की देवी लक्ष्मी, प्रभु विष्णु की अर्धांगिनी
है... देवी लक्ष्मी अपने रुप, सौंदर्य और
आकर्षण के लिए भी जानी जाती हैं.. महा लक्ष्मी अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करती, और उनकी मुरादे
पूरी कर उन्हे धन और समृद्धि से भरपूर करती हैं.. वेदों मे लक्ष्मी को “लक्ष्यविधि
लक्षमिहि” के नाम से संबोधित किया गया हैं, जिसका अर्थ होता हैं, जो लक्ष्य
प्राप्ति मे मदद करें... हिन्दुओ द्वारा सबसे ज़्यादा पूजे जाने वाले भगवानों मे
सबसे प्रमुख हैं, गणेश भगवान.. जिन्हे, गणपति, विनायक, लंबोदर नामों
से पूजा जाता हैं.. सिर्फ देश मे ही नहीं, गणेश जी की पूजा विश्व के दूसरे
भागों मे भी की जाती हैं.. गणेश जी का हाथी का सिर परेशानियों को दूर करता हैं, इसलिए उन्हे
विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं। हिन्दु धर्म में कोई भी रस्म या विधि बिना गणेश पूजा
किए संपन्न नहीं मानी जाती हैं। स्कन्द पुराण के मुताबिक दीपावली का उल्लेख हमारे
वेद-पुराणों में भी देखने को मिलता है... 7वीं शताब्दी में राजा हर्षवर्धन के नाटक
में भी दीपोत्सव का ज़िक्र है और 10वीं शताब्दी में राजशेखर के काव्यमीमांसा में भी
दिवाली का ज़िक्र किया गया है... दीपावली केवल हिन्दुओं का ही त्योहार नहीं है, बल्कि अन्य
धर्मों द्वारा भी इसे मनाया जाता रहा है... 14वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुग़लक
दिवाली मनाते थे... मुस्लिम बदशाहों द्वारा दीपावली को धूमधाम से मनाने का जिक्र
है... इनमें सबसे पहले बारी आती है बदशाह अकबर की... 16वीं शताब्दी में अकबर
धूम-धाम से दिवाली मनाते थे... इस दिन दिवाली दरबार सजता था और रामायण का पाठ और
श्रीराम की अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन भी होता था... अकबर के बाद 17वीं शताब्दी में शाहजहां ने
दिवाली की शान और भी बढ़ा दी... शाहजहां ने इस मौके पर 56 राज्यों से अलग-अलग मिठाई
मंगाकर 56 थाल सजाते थे... शाहजहां के जमाने में 40 फूट के बड़े 'आकाश दीया' रोशन करने की
परंपरा थी, इसे सूरजक्रांत कहा जाता था... इस दिन भव्य आतिशबाजी होती थी... इस
पर्व को पूरी तरह हिंदू तौर-तरीकों से मनाया जाता था... दिवाली के दिन शाहजहां
भव्य भोज का भी आयोजन कराते थे जो एकदम सात्विक होता था... इतिहास के मुताबिक कहा
जाता है कि मुस्लिमों द्वारा दीपावली मनाने की इस परंपरा पर औरंगजेब ने रोक
लगाई... आतिशबाज़ी और दीया जलाने पर औरंगज़ेब ने 1665 में रोक लगा दी थी... लेकिन
उनके बाद इस त्योहार उसी पुरानी परंपरा के साथ मनाया जाने लगा... मोहम्द शाह को
रोशन अख्तर भी कहते थे. उनका शासन 1719 से 1748 तक रहा. वह संगीत और साहित्य को
प्रेमी थे. उन्होंने मोहम्मद शाह रंगीला को नाम से जाना जाता था. उन्होंने दीपावली
को त्योहार को और ज्यादा भव्यता दी....
भारत के त्योहारों में दीपावली काफी उंचा स्थान
है... इस त्योहार के अवसर पर घरों और दूकानों को सजाया-संवारा जाता है, उनकी साफ-सफाई
की जाती है. इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा विशेष रुप से की जाती है. हिन्दू
धर्म के अनुसार दीपावली के दिन धन की देवी महालक्ष्मी के साथ विघ्न-विनाशक श्री
गणेश और सरस्वती की भी पूजा-आराधना की जाती है. कहा जाता है कि कार्तिक मास की
अमावस्या की आधी रात में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में जाती हैं. जिस
घर में स्वच्छता और शुद्धता होती है वह वहां निवास करती हैं... दीपावली तीनों
पर्वों का मिश्रण है, ये हैं- धनतेरस, नरक चतुर्दशी और महालक्ष्मी
पूजन... नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी
कहा जाता है... दीपावली की शुरूआत धनतेरस से होती है, जो कार्तिक मास
की अमावस्या के दिन पूरे चरम पर आती है... कार्तिक मास की अमावस्या की रात को घरों
और दुकानों में दीपक, मोमबत्तियां और बल्ब लगाए और जलाए जाते हैं... ऐसा बताया जाता है कि
इस दिन आलस्य और बुराई को हटाकर जिंदगी में सच्चाई की रोशनी का आगमन होता है...
रात को घर के बाहर दिए जलाकर रखने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु की
संभावना टल जाती है... एक कथा के मुताबिक इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का
वध किया था. 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के
साथ अयोध्या लौटने का प्रतीक है दीवाली. अपने पिता राजा दशरथ के आदेश के बाद भगवान
राम 'वनवास' के लिए गए थे. इस दौरान उन्होंने भारत के जंगलों और गांवों में 14
साल बिताए.. रामायण की कथा के मुताबिक, भगवान श्री राम, रावण को युद्ध
मे पराजित कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे.. चौदह साल का वनवास भोगने के
बाद जब श्री राम अयोध्या वापस आए थे तो, अयोध्या के लोगो ने अपने राजा के
स्वागत के लिए घी के दिए जलाए थे.. पटाखे जला कर, नाच-गा कर लोगो ने अपनी खुथियां मनाई
थी... उस दिन से लेकर आज तक हर साल यह दीवाली के नाम से मनता आ रहा है.. और आज भी
इस त्योहार को रोशनी का प्रतीक मानते है.. एक दुसरी कहानी के मुताबिक भगवान कृष्ण
ने इस दिन दानव नरकासुर का वध किया था.. उनकी जीत की खुशियां मनाने के लिए गोकुल
के लोगो ने दीए जलाए थे.. हिन्दू धर्म के मुताबिक राम और कृष्ण दोनो ही प्रमुख
भगवान है तो इस कारण दीवाली भी हिन्दु धर्म मे बहुत खास महत्व रखती है..
भारत एक विशाल देश है...जहाँ विभिन्न धर्मों और संप्रदायों के मानने वाले लोग रहते हैं... इसलिए यहाँ मनाए जाने वाले त्योहार भी अनेक हैं...दीपावली... होली... रक्षाबंधन
और विजयदशमी हिंदुओं के चार प्रमुख त्योहार हैं...वैसे तो
प्रत्येक त्योहार का अपना एक विशेष महत्व है...परंतु इन सब में दीपावली का त्योहार
सभी को विशेष रूप से प्रिय है...दीपावली का त्योहार हिंदुओं के लिए बहुत
महत्वपूर्ण है... हिंदी कैलेंडर के अनुसार दीपावली प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की
अमावस्या को मनाई जाती है....दिवाली एक धार्मिक विविध रंगों से रंगोली सजाने का प्रकाश
फैलाने का खुशी का मिठाईयों का पूजा का त्यौहार है...जो पूरे भारत के साथ साथ देश
के बाहर भी कई जगहों पर मनाया जाता है...इसे रोशनी की कतार या प्रकाश का त्यौहार
भी कहा जाता है....यह सम्पूर्ण विश्व में मुख्यतः हिन्दूओं और जैनियों द्वारा
मनाया जाता है...उस दिन बहुत से देशों जैसे
तोबागो...सिंगापुर...सुरीनम...नेपाल...मॉरीशस, गुयाना...त्रिनाद...श्री
लंका... म्यांमार.... मलेशिया और फिजी में राष्ट्रीय अवकाश होता है...दीपावली पाँच
दिनों...धनतेरस...नरक चतुर्दशी...अमावश्या... कार्तिक सुधा पचमी...यम द्वितीया या
भाई दूज...का हिन्दू त्यौहार है...जो धनतेरस...अश्वनी माह के पहले दिन का त्यौहार
है...से शुरु होता है और भाई दूज कार्तिक माह के अन्तिम दिन का त्यौहार है...पर
खत्म होता है... दिवाली के त्यौहार की तारीख हिन्दू चन्द्र सौर कलैण्डर के अनुसार
र्निधारित होती है...इस त्योहार को लोग बहुत खुशी से घरों को सजाकर बहुत सारी
लाइटें..दिये... मोमबत्तियॉ जलाकर...आरती पढकर...उपहार बॉटकर...मिठाईयॉ...ग्रीटिंग
कार्ड...एस एम एस भेजकर...रंगोली बनाकर...खेल खेलकर...मिठाईयॉ खाकर...एक दूसरे के
गले लगकर दिवाली मनाते है...भगवान की पूजा और त्यौहारोत्सव हमें अन्धकार से प्रकाश
की ओर ले जाता है...हमें अच्छे कार्यों को करने के प्रयासों के लिये शक्ति देता है...और
देवत्व के और ज्यादा करीब ले जाता है...घर
के चारों ओर दिये और मोमबत्ती जलाकर प्रत्येक कोने को प्रकाशमान किया जाता है...यह
माना जाता है कि पूजा और...अपने करीबी प्रियजनों को उपहार दिये बिना...ये त्यौहार
कभी पूरा नहीं होता है...त्यौहार की शाम लोग दैवीय आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से
भगवान की भी पूजा करते हैं...दिवाली का त्यौहार वर्ष का सबसे सुंदर और शांतिपूर्ण
समय लाता है...जो मनुष्य के जीवन में असली खुशी के पल प्रदान प्रदान करता है...
दिवाली के त्यौहार पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है...ताकि सभी अपने मित्रों
और परिवार के साथ त्यौहार का आनन्द ले सकें...लोग इस त्यौहार का बहुत लम्बे समय से
इंतजार करते है और...जैसे जैसे ये त्योहीर नजदीक आने लगता है...लोग अपने
घरों...कर्यालयों.....गैराजों को रंगवाते और साफ कराते है और अपने कार्यालयों में
नयी चैक बुक, डायरी और कलैण्डर रखते हैं...
दिवाली का त्यौहार हर साल बहुत सारी खुशियों के साथ आता है... कुछ जगहों पर जैसे कि महाराष्ट्र में यह छह दिनों
में पूरा होता है... वासु बरस या गौवास्ता द्वादशी के साथ
शुरू होता है और...भईया दूज के साथ समाप्त होता है... दिवाली हर साल हिन्दूओं और अन्य धर्म के लोगो द्वारा मुख्य त्यौहार के
रुप में मनायी जाती है... हिन्दू मान्यता के अनुसार, दिवाली का त्यौहार मनाने के बहुत सारे कारण है और...नये
वर्ष को ताजगी के साथ शुरु करने में मनुष्यों के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है... दिवाली मनाने के बहुत सारे पौराणिक और ऐतिहासिक
कारण है... भगवान राम की विजय और आगमन हिन्दू महाकाव्य रामायण के अनुसार...
मान्यता के मुताबिक भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में दिवाली मनाई जाती
है...माना जाता है कि पहली बार अयोध्यावासियों ने ही दिवाली मनाई थी...रघुकुल
कुमार मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने माता पिता की आज्ञा मानकर 14 साल तक वनवास में
रहे...जहां रावण ने सीता का अपहरण कर लिया...जिसके बाद भगवान राम और रावण में
युद्ध हुआ...इस लड़ाई में भगवान राम ने रावण का वध कर लंका पर जीत पाई और...रावण
के भाई विभीषण को लंका का राजा बनाकर 14 साल बाद वापस अयोध्या लौटे...अयोध्या के
लोगों को जब भगवान राम के लौटने की जानकारी हुई तो...लोगों ने भगवान राम...माता
सीता और प्रभु लक्ष्मण के लौटने की खुशी में चारों ओर दीप जलाकर उनका स्वागत
किया...साथ ही भगवान को राजमहल तक आने में कोई दिक्कत न हो और...दूर से ही उन्हें
अयोध्या नगर की झलक दिख जाए...इसके लिए आकाशदीप जलाए...लोगों ने इसके लिए
झोपड़नुमा आकृति तैयार की और...उसमें दीप प्रज्वलित कर बांस के सहारे उसे ऊपर लटका
दिया और...तब से दिवाली के मौके पर आकाशदीप जलाने की परंपरा है... दिवाली के मौके
पर देशभर में मंदिरों को खास तरीके से रोशन किया जाता है...इस मौके पर भगवान
श्रीराम और जनक नंदिनी सीता को नए वस्त्र भी अर्पित किए जाते हैं...और विधि-विधान
के साथ पूर्जा अर्चना कर प्रसाद चढ़ाया जाता है