देश भर में आज नागपंचमी मनाई जा रही है.. हर साल सावन माह के शुक्ल
पक्ष की पंचमी के दिन नागपंचमी का यह त्योहार मनाया जाता है.. यह त्यौहार अक्सर
हरियाली तीज के दो दिन बाद यानी की सावन महीने के शुक्लपक्ष पंचमी को मन्या जाता
है.. ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह
हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है... पौराणिक कथा के मुताबिक सावन महीने के
शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्री कृष्ण ने वृंदावन में नाग को हराकर लोगों का
जीवन बचा लिया था.. कृष्ण भगवान ने सांप के
फन पर नृत्य किया, जिसके बाद वो नथैया कहलाए.. मान्यताओं के
अनुसार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की नागपंचमी के दिन व्रत भी रखा जाता है.. व्रत
के बारे में गरुड़ पुराण में लिखा है कि व्रत रखने वाले को अपने घर के मुख्य द्वार
के दोनों ओर गाय के गोबर से नागों के चित्र बनाने चाहिए और मिट्टी या आटे के सांप
बनाकर उन्हें अलग-अलग रंगों से सजाना चाहिए.. सजाने के बाद फूल, खीर, दूध, दीप से उनकी पूजा करना
चाहिए, क्योंकि नाग देवता को पंचम तिथि का स्वामी माना जाता
है.. वैसे तो लोग साँपों को खतरनाक जीव समझते हैं
और उनसे भयभीत होते हैं, लेकिन नागपंचमी के दिन लोग नाग देवता की पूजा करते हैं और उन्हें दूध भी
अर्पण करते हैं.. इस दिन जमीन खोदने के लिए मनाही है.. इस दिन साँपों को किसी भी
प्रकार की क्षति पहुंचाना पाप समझा जाता है.. इसके
अलावा कई प्राचीन काल से जुड़ी कथाएं भी हैं जो नागों और नागपंचमी के महत्त्व को
बताती हैं.. ऐसी मान्यता भी है कि नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करने पर
आध्यात्मिक शक्ति और धन की प्राप्ति होती है.. लेकिन यह बेहद जरूरी होता है कि
नागपंचमी के दिन पूजा सही तरीके से ही की जाए.. नागपंचमी की पूजा सुबह-सुबह की
जाती है और पूजा से पहले यह जरूरी है कि व्यक्ति नित्यकर्म निपटा कर, अच्छी तरह स्नान करके स्वच्छ कपड़े धारण कर ले.. कई इलाको में नागपंचमी के
पिछले दिन का बनाया हुआ बासी भोजन ग्रहण करने की भी प्रथा है..
एक पौराणिक कथा के मुताबिक किसी गांव में एक किसान अपने परिवार के साथ
रहता था.. वह दिनभर खेत में काम करता और बाकी समय भगवान का स्मरण करते हुए अपने
परिवार के साथ आनंद पूर्वक जीवन बिता रहा था.. उसके परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी थी.. एक बार किसान खेत में हल चला
रहा था और अनजाने में उसके हल के नीचे कुचलकर एक नागिन के तीन बच्चे मर गए.. किसान
को इस बात का पता नहीं चला और वह रोज की तरह घर आकर खा-पीकर सो गया.. उधर नागिन ने
जब अपने बच्चों को मृत पाया, तो पहले वह विलाप करने लगी..
इसके बाद क्रोध में पागल होकर उसने तय किया कि वह किसान के पूरे परिवार को मार
डालेगी... ऐसा निश्चय कर वह रात में ही किसान के घर पहुंची और उसे, उसकी पत्नी और दोनों बेटों को डस लिया.. पल भर में ही चारों की मृत्यु हो
गई.. किसान की बेटी घर में ना होने से बच गई... किसान की बेटी ने जब अपने परिवार
का समूल नाश हुआ देखा, तो वह समझ गई कि कुछ गलत हुआ है.. वह
बड़े ही भोले हृदय की मासूम कन्या थी.. उसने नागिन को मनाने का मन बनाया.. वह सुबह
पौ फटते ही एक कटोरे में दूध लेकर खेत में पहुंच गई.. जब नागिन ने देखा कि किसान
की एक और संतान जीवित है, तो वह उसे काटने दौड़ी.. किसान की
बेटी ने झट से दूध का कटोरा उसके सामने रख दिया और हाथ जोड़कर खड़ी हो गई.. नागिन
ने जब तक दूध पिया, किसान की बेटी उससे क्षमा मांगती रही और
समझाती रही कि सब कुछ उसके पिता से अनजाने में हुआ है.. उन्होंने जान बूझकर नागिन
के बच्चों को नहीं मारा है.. उसकी बात से नागिन संतुष्ट हुई और अपना विष वापस लेकर
पूरे परिवार को जीवनदान दिया.. तभी से नागों के प्रकोप से बचने के लिए इस दिन नाग
पूजा की परंपरा बन गई..
उत्तरप्रदेश में नागपंचमी का त्योहार पर गुड़िया पीटने की बहुत पुरानी परंपरा
है... इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं. इस परंपरा के पीछे की कुछ अनोखी कहनियां
है.. इसमें से एक कहानी महिलाओं से जुड़ी है... जैसा की हम सभी कहते हैं कि महिलाओं
के पेट में बात नहीं पचती. यही कहावत नागपंचमी के दिन गुड़िया पीटने की परंपरा के
पीछे भी है... कहा जाता है तक्षक नाग के काटने
से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी... इसके बाद तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या की
शादी राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में हुई.... जब वह शादी करके ससुराल आई तो उसने
यह राज एक सेविका को बताया और कहा कि वह किसी से न बोले. लेकिन उस सेविका ने इस
बात को किसी दुसरे महिला को बता दी. इस तरह से यह बात पूरे नगर में फ़ैल गयी. इस बात
से क्रोधित होकर तक्षक के राजा ने नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके
कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया. उसे इस बात का गुस्सा था कि औरतों के पेट में कोई
बात नहीं पचती. तभी से गुड़िया पीटने की परंपरा मनाई जाती है. इसके पीछे की दूसरी
कहानी भाई-बहन की कहानी से जुड़ी है. भाई भगवान शिव का परम भक्त था और वह प्रतिदिन
मंदिर जाता था. मंदिर में उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे. वह लड़का रोजाना उस
नाग को दूध पिलाने लगा और धीरे-धीर दोनों में प्रेम हो गया. इसके बाद लड़के को
देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट गया... इसी तरह एक दिन सावन के
महीने में भाई-बहन मंदिर गए थे. मंदिर में नाग लड़के को देखते ही उसके पैरों से
लिपट गया. बहन ने जब देखा तो उसे लगा की नाग उसके भाई को काट रहा है.. तो लड़की भाई की जान बचाने के लिए नाग को पीट-पीट कर
मार डाला. इसके बाद जब भाई ने पूरी कहानी सुनाई तो लड़की रोने लगी. फिर लोगों ने
कहा कि नाग देवता का रूप होते हैं... इसलिए दंड तो मिलेगा ...यह गलती से हुआ है ...इसलिए
कालांतर में लड़की की जगह गुड़िया को पीटा जाएगा... नागपंचमी के दिन कई परंपराओं का निर्वहन हिन्दू सदियों से करते
चले आ रहे हैं.. इस दिन पहलवान जहां कुश्ती के अखाड़े में जोर-आजमाइश करते हैं
वहीं कई स्थानों पर विभिन्न जानवरों की लड़ाइयां भी कराई जाती हैं.. माना जाता
था कि इस दिन जो भी उर्जा उत्पन्न होती है वो मानव जाति के लिए हितकारी होती है..
इसके लिए अखाड़ों की मिट्टी में दूध और दही के साथ हल्दी को भी मिलाया जाता है, जिससे वो मिट्टी शरीर के
लिए एक लेप का काम करें और उर्जा उत्पन्न करें लेकिन आधुनिकता के इस दौर में यह
चीजे अब लुप्त होती दिखाई पड़ रही हैं.. वहीं गांवों में इस दिन बच्चें
गुड्डे-गुड़ियों की शादी भी करते हैं और विधिविधान से इसमें गांव के लोग शामिल
होते हैं।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं..
कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी.. उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं
भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं..
मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां
पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं.. शिवशंभु के गले और भुजाओं में
भुजंग लिपटे हुए हैं.. यह मंदिर काफी प्राचीन है.. माना जाता है कि परमार राजा भोज
ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था.. इसके
बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में
महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.. उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ
था.. सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक
मिल जाए.. लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं...
नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के मंदिर के
पट खोल दिए जाते हैं.. नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में
आरती होता है और मंदिर का पट पुनः बंद कर दिया जाता है... नागचंद्रेश्वर मंदिर की
पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है... नागपंचमी पर्व पर बाबा महाकाल और भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने वाले
श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग प्रवेश की व्यवस्था की जाती है.. नागचंद्रेश्वर के
दर्शन के लिए मंदिर में अलग कतारें होती है.. रात में भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर
के पट खुलते श्रद्धालुओं की दर्शन की आस पूरी होती है..
नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है.. हिन्दू पंचांग के
अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है..
इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और उन्हें दूध पिलाया जाता है.. और इस दिन
अष्टनागों की पूजा की जाती है.. भारत देश कृषि प्रधान देश है.. सांप खेतों का
रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल भी
कहते हैं.. जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले
तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता
है.. साँप हमें कई मूक संदेश भी देता है.. साँप के गुण देखने की हमारे पास
गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए.. भगवान दत्तात्रय की ऐसी शुभ दृष्टि थी,
इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली... साँप
सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता.. उसे परेशान करने वाले को या छेड़ने वालों
को ही वह डंसता है.. साँप भी प्रभु का सर्जन है, वह यदि
नुकसान किए बिना सरलता से जाता हो तो उसे मारने का हमें कोई अधिकार नहीं है.. जब
हम उसके प्राण लेने का प्रयत्न करते हैं... साँप को सुगंध बहुत ही भाती है.. चंपा
के पौधे को लिपटकर वह रहता है या तो चंदन के वृक्ष पर वह निवास करता है.. केवड़े
के वन में भी वह फिरता रहता है.. उसे सुगंध प्रिय लगती है, इसलिए
भारतीय संस्कृति को वह प्रिय है.. सावन के
महीने की नागपंचमी पर इस बार बेहद शुभ योग बताया जा रहा है.. अगर आप भी भगवान
भोलेनाथ को खुश करना चाहते हैं तो इस नागपंचमी पर विधि विधान से पूजन करें... सावन
मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी यानी 27 जुलाई वीरवार को नागपंचमी का त्योहार है..
नागपंचमी सुबह सात बजकर 2 मिनट पर कर्क लग्न में शुरू हो रही है.. सात बजकर 14
मिनट पर कर्क लग्न समाप्त हो रहा है.. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र वीरवार की रात को
चार बजकर 39 मिनट पर समाप्त हो रही है.. यह कहना है.. इस वर्ष नागपंचमी का विशेष
महत्व और शुभदायक है.. पंचमी तिथि का देवता सर्प है.. राहु सर्प का स्वरूप है..
लग्न का स्वामी चंद्रमा बुध के साथ है.. लग्न में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का
स्वामी मंगल के साथ होने से सर्पयोग बन रहा है.. इस प्रकार के योग में सर्प देवता
का पूजन करने से सर्पदंश का भय नहीं रहता.. 27 जुलाई को दोपहर डेढ़ बजे से तीन बजे
तक राहु काल है... नागपंचमी पर ऊं नम: शिवाय और महामृत्युंजय मंत्रों का जाप
सुबह-शाम करना चाहिए.. वैसे आज प्रात: 7 बजकर 5 मिनट तक भद्रा लगी हुई है, इसलिए इस दौरान पूजा ना करें.. पंचमी तिथि प्रात: 7 बजकर 5 मिनट पर
प्रारंभ होगी, जो कि 28 जुलाई को सुबह: 6 बजकर 38 मिनट तक
रहेगी...
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