सिस्टम के साथ खिलवाड़ करने वाले अधिकारियों का
स्वागत बिलकुल नहीं है। क्योंकि जनता की गाढ़ी कमाई को लूटकर ये तो बांग्ला से
विला में शिफ्ट हो गए और जनता आज भी सड़क पर भूखों सोती है। पर हमारा वादा है कि
हम इन्हें विला में चैन से तो रहने नहीं देंगे। इसी कड़ी में आज बात विकास
प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार की होगी। योगी सरकार ने सभी विकास परिषद की
महालेखाकार यानी सीएजी से ऑडिट कराने की अनुमति दे दी है। इस मामले में आवास औऱ
शहरी नियोजन विभाग द्वारा आदेश भी जारी कर दिया है। पिछली सरकार में ऐसी ही मांग
उठी थी लेकिन तत्कालीन सपा सरकार ने इसे मजूरी नहीं दी। जिस पर राज्यपाल ने
हस्तक्षेप किया था। यानि दाल में पूरी की पूरी काली रही होगी। बंदरबाट की सरकार
चली गई है। घोटालों वाली सरकार चली गई। भ्रष्टारियों वाली सरकार चली गई। सूबे नई
योगी सरकार लगातार यही मैसेज देने की कोशिश कर रही है। तभी तो कैबिनेट की दूसरी ही
बैठक में प्रदेश में सभी 29 प्राधिकरणों में हुई घोटालेबाज़ी और अनियमितताओं के
जांच के आदेश दे दिए हैं। लखनऊ से लेकर गाज़ियाबाद तक के प्राधिकरणों पर जांच की
आंच कब पहुंच जाए...कहा नहीं जा सकता... कैबिनेट के इस कदम से सूबे के सभी 29
विकास प्राधिकरण सीएजी ऑडिट के दायरे में आ जाएंगे....। दरअसल यूपी प्लानिंग एंड
डेवलपमेंट एक्ट में विकास प्राधिकरणों का ऑडिट करने की व्यवस्था दी गयी है....।
राज्य सरकार स्थानीय निधि लेखा परीक्षा, इलाहाबाद से ऑडिट कराती है...। वहीं सीएजी ने
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का ऑडिट करने का अनुरोध किया था.,...।
सीएजी को ये जिम्मा दिए जाने पर पिछले कई दिनों से बहस भी जारी थी...। कैबिनेट ने
इस बाबत निर्णय लिया कि यदि विकास प्राधिकरणों किसी संस्था को संयुक्त रूप से एक
करोड़ रुपये से अधिक दिए जाते हैं तो सीएजी उसका ऑडिट कर सकती है...। अपर मुख्य
सचिव सदाकांत ने बताया कि इस बाबत राज्य सरकार ने शासनादेश भी जारी कर दिया
है....। अब सीएजी जहां चाहे, ऑडिट कर सकती है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण
में सीएजी के पांच अधिकारियों ने जांच शुरू भी कर दी है...। पिछले साल सपा सरकार
ने सीएजी की ऑडिट कराने से मना कर दिया था लेकिन योगी सरकार में अब सबकी पोल खुलनी
तय मानी जा रही है...वहीं माना जा रहा है किनोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना डवलेपमेंट
अथॉरिटी की जांच भी जल्द शुरू हो जाएगी....। दोषी अफसरों के खिलाफ जिस किसी के पास
भी कोई सबूत है वो अपनी शिकायत सरकार को भेज सकता है...। अब सुनवाई और कार्रवाई का
वक्त है...। कोई भी भ्रष्ट और दोषी अधिकारी नहीं बचेगा...। प्रदेश के औद्योगिक
विकास प्राधिकरण और आवास विकास प्राधिकरण की जांच अब कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ
इंडिया (सीएजी) करेगी। प्रदेश के 29 प्राधिकरणों की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।
यूपी कैबिनेट की दूसरी बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया है। मंजूरी से
पहले ही यूपी सरकार ने इसकी शुरूआत गाजियाबाद विकास प्राधिकरण से कर दी है। सीएजी
के आधिकारियों ने यहां जांच शुरू कर दी है। लकखनऊ से गाज़ियाबाद तक...कानपुर से
आगरा तक...और यमुना एक्सप्रेस वे तक पिछली सरकारों ने जमकर बंदरबांट
किया...करोड़ों-अरबों के वारे न्यारे किए गए...लखनऊ विकास प्राधिकरण के भी
अधिकारियों खूब मलाई काटी....करोडों के घोटाले पर जब कैग ने जांच की मंसी
जताई...सरकार ने साफ मना कर दिया...अब योगी सरकार ने लखनऊ विकास प्राधिकरण में हुए
की भी जांच का रास्ता साफ कर दिया है...तो अधिकारियों सांसे सूख गई
हैं....आदित्यनाथ सरकार बीजेपी के संकल्प पत्र में दर्ज सभी वायदों को पूरा करने
के लिए जुटी नजर आ रही है...। इसी कड़ी में मंगलवार को योगी सरकार ने अपनी कैबिनेट
की दूसरी बैठक की....। इसमें कैबिनेट ने कई अहम फैसलों पर अपनी मुहर लगा दी
है....। इस दौरान जहां योगी कैबिनेट ने प्रदेश के सभी विकास प्राधिकरणों के ऑडिट
करवाए जाने की घोषणा की वही 10 करोड़ रुपये से ऊपर के सभी कामों की जांच करवाए
जाने की बात कही...। और ये फैसला एकदम से नहीं लिया गया है..क्योंकि अखिलेश सरकार
में जिस तरह से अगल-अलग प्राधितकरणों में लूट हुई...उस पर CAG ने
पहले ही जांच की मंशा जताई थी...। कम्पट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल ने तीन साल पहले
एलडीए का ऑडिट करने का प्रस्ताव रखा था...लेकिन शासन से कैग को प्राधिकरण के ऑडिट
की मंजूरी नहीं मिली...सरकार ने ये कहते हुए कैग को
मंज़ूरी नहीं दी थी कि दोहरा ऑडिट कराने की जरूरत नहीं है...। अब कैबिनेट से
प्रस्ताव पास होने के बाद प्राधिकरण में कैग ऑडिट का रास्ता साफ हो गया है...।
जानकारों के मुताबिक, कैग के ऑडिट में मुख्य तौर पर एक योजना का पैसा
दूसरी योजना में भेजने और दूसरे काम कराने का फर्जीवाड़ा उजागर होता है....।
अवस्थापना निधि के पैसे से अफसरों के कैंप ऑफिस बनवाना हो या कॉम्पलेक्स की मरम्मत
कई ऐसे मामले हैं, जो एलडीए में उजागर हो चुके हैं। हर साल एलडीए
की अवस्थापना निधि का बजट 10 से 15 करोड़ रुपये है, जबकि इस निधि में दो से तीन गुना खर्च
हो रहा है....। ये पैसा किन योजनाओं से ट्रांसफर कर अवस्थापना में खर्च होता है, अब
तक इसकी पूछताछ नहीं हो रही है...। वहीं, अवस्थापना का पैसा कुछ खास प्रॉजेक्ट और पार्क
में लगाए जाने की भी कई शिकायतें सामने आ चुकी हैं...। मौजूदा समय में एलडीए का
ऑडिट ऑडिटर जनरल से इंटरनल ऑडिट सेल कर रही है,
लेकिन इस ऑडिट सेल पर एलडीए अधिकारियों
और बाबुओं की मनमानी भारी पड़ रही है...। पिछले तीन साल से एलडीए में हुए समायोजन, आवंटन
और नीलामी से जुड़ी फाइलें ऑडिट सेल को ऑडिट के लिए नहीं भेजी जा रही हैं...। ऑडिट
सेल कई बार अपर सचिव से फाइले उपलब्ध करवाने की मांग कर चुका है...। लखनऊ विकास
प्राधिकरण में घोटाले का खेल लंबे समय से चला आ रहा है...50 करोड़ रुपये के
समायोजन घोटाला इस बात की ओर इशारा भी करता है,
कि ये खेल सिर्फ विभाग के अधिकारियों
तक ही सीमित नहीं है...। 50 करोड़ के समायोजन घोटाले में भीखंडों के वितरण में
हेरा-फेरी हुई...और 23 भूखंडों को अधिकारी और कर्मचारी खुद ही डकार गए...एलडीए को
घोटालों का प्राधिकरण कहें, तो भी कोई अतिशंयोक्ति नहीं होगी...। बाबू से
अधिकारी तक सब इस मामले में संलिप्त हैं...फर्ज़ी रजस्ट्री से लेकर बिना ले आउट के
रजिस्ट्री करने तक ना जाने कितने मामले सामने आ चुके हैं...लेकिन कार्रवाई के नाम
पर अब तक कुछ नहीं हुआ....और जब भी जांच की बात आई सरकारों ने उसे भी लटका
दिया...। अब योगी सरकार ने कैग को प्रदेश के सभी प्राधिकरणों की जांच को मंज़ूरी
दे दी है...तो अधिकारियों की हलक सूखने लगी है...। देखना होगा कि बड़े पेट वाले
नेताओं और अधिकारियों की कुंडली कैग किस तरह से खोलती है गाज़ियाबाद विकास
प्राधिकरम पर कैग की जांच की तलवार लटक रही है....करोड़ों के वारे न्यारे करने
वाले अधिकारी नई सरकार के आते हलकान हैं। क्योंकि सरकार ने कैबिनेट की अपनी दूसरी
बैठक में प्राधिकरण में हुए घपले-घोटालों के कैग के ऑडिट का रास्ता साफ कर दिया है।
गाज़ियाबाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे हाईटेक शहर अमीरों का शहर यूपी का सबसे
ज्यादा लिट्रेसी वाला शहर ये शहर काम के लिहाज से हर किसी के लिए सबसे मुफीद है चाहे
आप ईमानदारी से काम करें या फिर बेइमानी से। और इस शहर के विकास का ज़िम्मा
गाज़ियाबाद विकास पर है। ज़ाहिर है कि सुख सुविधाओं के हिसाब से प्राधिकरण को पैसे
की कमी नहीं होगी। तो अमीरियत भी यहां के अधिकारियों के कम नहीं...वजह भी है
साहब...क्योंकि एक आध भी प्लॉट, रजिस्ट्री या योजना का पैसा थोड़ बहुत भी इधर
उधर किया...तो रकम करोड़ों में पहुंच जाती है...। यानि की गाज़ियाबाद विकास
प्राधिकरण घोटालेबाज़ अफसरों के लिए कामधेनु है...। गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण में घोटालों का खेल
काफी पुराना है...लाखों रुपये के घोटाले की यहां कोई गिनती नहीं...करोड़ों के
घोटाले तो यहां शान है...उत्तर प्रदेश के विकास को दीमक तरह चाट जाने वाले ऐसे
घोटालों के प्राधिकरणों ने बारी-बारी सपा और बीएसपी सरकारों ने लूट खसोट की...ऐसा
नहीं है कि सिर्फ अफसरों ने ही लूट खसोट की है...। बल्कि नेताओं ने भी इस कामधेनु
का जमकर दुहा है..। काफी समय से गाजियाबाद
विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार की शिकायतें मिली रही हैं...। अब योगी सरकाने ने
बड़ा फैसला लेते हुए जीडीए में हुए भ्रष्टाचार की पोल घोलने के लिए कैग ऑडिट को
मंज़री दे दी है...। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के कामकाज की कैग जांच में
सपा-बसपा शासनकाल के घपले-घोटाले खुलना और दोनों सरकार के चहेते अफसरों का फंसना
तय माना जा रहा है...। जीडीए शुरू से घोटालों को गढ़ रहा है। आलम ये है कि
मधुबन-बापूधाम योजना जो आज तक दिन फिरने, विकास की बयार व लोगों के बसने का इंतजार कर
रही है...। वहां कमीशनखोरी के चक्कर पर जीडीए अफसरों ने साल 2012 में सीवर
ट्रीटमेंट प्लांट बनवाने के साथ 90 करोड़ रुपये का बिजली का सामान खरीदवा दिया....।
मामले की जांच हुई तो जीडीए के तत्कालीन फाइनेंस कंट्रोलर को सस्पेंड किया
गया....इसी तरह इंदिरापुरम में अंडरग्राउंड केबल डालने के मामले में कई करोड़ का
घपला सामने चुका है...। मामले में तत्कालीन पांच-छह इंजीनियर्स व अफसरों को
सस्पेंड किया गया था...। पिछले कुछ सालों में जीडीए ने कई ऐसे गैर जरूरी
प्रोजेक्ट पर काम किया, जिनका जनहित में कोई उपयोग नहीं था। बीते सालों
में प्राधिकरण में कामकाज को ऑनलाइन करने व ऑनलाइन एप्लीकेशन के नाम पर कई करोड़
रुपये पानी की तरह बहाए गए...। मगर अब वे सारे सिस्टम ठप पड़े है। इसके अलावा जीडीए
अफसरों का जब मन चाहे, जहां चाहे सड़क बनवाना और जब चाहे फिर से खोद
देना, 10 करोड़ रुपये की लागत वाले मोहन नगर चौराहे को
सिग्नल फ्री करने का प्रोजेक्ट, यूपी गेट से राजनगर एक्सटेंशन तक बन रही
ऐलिवेटिड रोड की निगरानी के लिए अलग से छह करोड़ रुपये का टेंडर छोड़ने, मेट्रो
फेज-2 प्रोजेक्ट समेत एक-एक प्रोजेक्ट पर खर्च हुए पैसे का हिसाब होगा तो अफसरों
की गर्दन फंसना तय है। राजनगर एक्सटेंशन के जोनल डेवलेपमेंट प्लान और आस पास की
जमीनों की खरीद फरोख्त में भी खूब धांधली होने की शिकायतें हैं । बिल्डरों को
फायदा पहुंचाते हुए किसानों की जमीन पर सड़क व ग्रीन बेल्ट प्लान करने का आरोप है ।
जांच हुई तो ये सारी गड़बड़ी उजागर होना तय है...।
कैबिनेट की बैठक में प्राधिकरणों की कैग ऑडिट
का रास्ता साफ होने के बाद अब जांच की तलवार यूपी के सबसे बड़े और महंगे प्रोजेक्ट
यमुना एक्सप्रेस वे पर पर भी लटकी हुई है....यमुना एक्सप्रेस वे में भी अरबों
रुपये के घोटाले की बात सामने आ रही
है...जिसमें बड़े अधिकारियों से लेकर सपा के कई बड़ें नेताओं की धांधली बात सामने
आ रही है.. एक्सप्रेस-वे का निर्माण करने वाली कंपनी जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर को
सरकार ने हर कदम पर फायदा पहुंचाया....। इसकी वजह से सरकारी खजाने को अरबों रुपए
का चूना लगा....। विधानसभा में पेश की गई सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक जेपी को फायदा
पहुंचाने के लिए नियमों के खिलाफ जमीन का आवंटन किया गया, टेंडर की शर्तों में भी ढील दी गई। सिर्फ इतना
ही नहीं एक्सप्रेस-वे पर महंगे टोल का निर्धारण किया गया, ताकि
कंपनी को फायदा मिल सके...सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक यमुना एक्सप्रेस-वे को यमुना
नदी के किनारे अविकसित क्षेत्र से निकलना था...। इसके लिए जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर को
जमीन चिन्हित कर उपलब्ध कराई जानी थी, लेकिन
शासन द्वारा विकासकर्ता को भूमि चिन्हित कर नहीं दी गई...। इस वजह से जेपी
इंफ्रास्ट्रक्चर ने नोएडा और ग्रेटर-नोएडा के विकसित क्षेत्रों में जमीन ली...।
सिर्फ इतना ही नहीं जेपी इंफ्रास्ट्रक्चर को नोएडा में 498.93 हेक्टेयर भूमि
आवंटित की गई। ये जमीन नोएडा के सेक्टर-128,
129, 130,131, 133, 134 और 151 में है, जो
पहले से ही विकसित क्षेत्र है...। जेपी को सिर्फ गलत तरीके भूमि ही आवंतिट नहीं
गई...बल्कि 2006-07से 2011-12 के बीच एक्सप्रेस वे के किनारे विकास के लिए दिए गए
पांचों भूखंडों को 5,125 करोड़ रुपए में ही दिया गया...। जबकि सीएजी रिपोर्ट के
मुताबिक अकेले नोएडा में जेपी को दी गई जमीन की कीमत सर्किल रेट के आधार पर करीब
5,718.30 करोड़ रुपये थी। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि जेपी को फायदा
पहुंचाने के लिए टोल दरें ज्यादा तय की गईं। रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त, 2012
से जनवरी, 2014 के बीच ही जेपी को टोल से करीब 118.46
करोड़ रुपये की आय हुई...। अब अगर यमुना एक्सप्रेस वे की जांच ही तो...इसमें
समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेताओं सहित विभाग के बढ़े अफसरों की गर्दनें कैग के
चंगुल में फंसी नजर आएँगी.. प्रदेश की अखिलेश सरकार में विकास प्राधिकरणों में उन
अफसरों की तैनाती हुई जो लखनऊ में मुख्य़मंत्री के करीबी अफसरों के बेहद खास थे...।
सत्ता की ताकत के बूते इन अफसरों ने विकास प्राधिकरणों का पैसा पानी की तरह
बहाया...लेकिन विकास केवल कागजों में हुआ। नियम-कायदे ठेंगे पर रखकर हर वो काम
किया गया जिससे अपनी जेबें गर्म की जा सकें... मगर सत्ता बदलने के बाद आये आडिट के
आदेश से ये तस्वीर बदली नजर आयेगी...। समाजवादी सरकार में सत्ता की ताकत के जलवे देखने
हो तो बुलंदशहर विकास प्राधिकरण में देखिये। यहाँ नजूल की जमीन का करोड़ो रूपये का
बच्चों का पार्क तक विकास प्राधिकरण के अफसरों ने बेच डाला, डीएम
के आदेश पर विकास प्राधिकरण के वीसी, सेक्रेट्री समेत 7 लोगो के खिलाफ केस दर्ज
हुआ...मगर सत्ता की ताकत ऐसी कि जमानत तो छोड़िये कुछ ही महीनो में केस ही गायब हो
गया। पुलिस से लेकर वकील तक सब सेट हो गये और केस खत्म। ऐसा ही मामला मायावती के
भाई आनंद सिंह के बेहद खास एमएमआर ग्रुप के निर्माण के मामले में रहा। कई करोड़ के
राजस्व का चूना लगाकर प्राधिकरण के अफसरों ने जेबे गर्म की और नियमों की धज्जियां
उड़ाई। सात करोड़ से बना बुलंदशहर के गंगानगर का बिजलीघर आज कबाड़ बन चुका है...।
इसके अलावा मनमाने तरीके से अपात्रों को टेंडर देने के कई मामले पूर्व उपाध्यक्ष
शैलेन्द्र चौधरी के नाम दर्ज रहे है। जिनका पिटारा अब आडिट खोलेगा। ऐसे ही हालात
मेरठ से लेकर सहारनपुर तक पूरे पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में है। मेरठ की बात करें तो
यहाँ पूर्व वीसी राजेश यादव और एटीपी विवेक भाष्कर ने मिलकर दौराला महायोजना में
हाइवे की ग्रीन बेल्ट खत्म कर दी। ग्रीन बेल़्ट की जमीनें बिल्डरों ने खरीदी और
प्राधिकरण ने नियम और महायोजना को ताक पर रखकर बिल्डरों की 35 से ज्यादा कालोनियों
के नक्शे पास कर दिये। बड़े पैमाने पर अवैध कालोनियों का नियमितीकरण कर दिया गया।
भूमि अधिग्रहण को लेकर किसान धूप में प्रदर्शन करता रहा और अफसर बिल्डरों के साथ
मिलकर किसान की जमीन पर टावर खड़े करते रहे। मुजफ्फरनगर ने भी बिल्डरों से जेबे
गर्म करके सैकड़ो अवैध और निजी कालोनियों का नियमितीकरण किया गया है...। नियमों के
खिलाफ जाकर ठेकों के टैंडर मनमाने तरीके से दे दिये गये। जमीनों का आवंटन नियमों
को ताक पर रखकर कर दिया गया। प्राधिकरण क्षेत्र में हजारो निर्माण होते रहे और
प्राधिकरण के अधिकारी माल लेकर हरी झंडी देते रहे।सहारनपुर में नियमों की हदें पार
करके बिल्डरों के अवैध निर्माण किये गये बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को खड़ा करवा दिया
गया।
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