सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

मिसाइल मैन

वो जो सुपुर्द-ए-ख़ाक हुआ, वो जो आज श्रद्धांजलियों में ज़िंदा है, वो मिट्टी की खूशबू बन गया, वो इस ज़मीन की धूल बन गया... वो एक ख़्वाब था, एक ख़्वाब जिसने ज़मीन पर सांसें लीं, आसमान में उड़ान के बीज बोये, सपनों के फसल लहलहाये, और फिर जब उम्मीदों के बादलों से बरसा तो वही ज़मीन जहां वो जिया, जहां उसने जीना सिखाया, उसका ज़र्रा-ज़र्रा कलाम बन गया।
चंद लम्हात के लिए ही सही, हिंदुस्तान कलाम हो गया। मैं भी कलाम बन गया, तुम भी कलाम बन गये, हम सब कलाम बन गये। ख़ाक में मिलकर भी वो जो धूल बनकर हिंदुस्तान की आबो-हवा में समाया है, जो महक उसने हर एक दिल में छोड़ी है, उसे ग़र हम जी सके तो कलाम जीते रहेंगे।
कलाम मरते नहीं, कलाम मरा नहीं करते। कलाम तो आते हैं, एक युग बन जाते हैं, अमर हो जाते हैं, इंसानियत के लिए, इस कायनात के लिए, इस ज़िंदगी के लिए और आनेवाली तमाम ज़िंदगियों के लिए। साधारण से दिखने वाले उस इंसान का जीया गया हर एक लम्हा, हर एक वक़्त, एक नज़ीर है; नज़ीर सिर्फ भविष्य के निर्माण की नहीं, नज़ीर है व्यक्ति के निर्माण की।
एक कलाम यहां से चला गया है, मगर करोड़ों कलाम बना कर गया है। वो बीता हुआ कल हो या आने वाला कल हो, कलाम हर दिल में ज़िंदा हैं।
कलाम एक मज़हब हैं। एक ऐसी मज़हब जिसकी दीवारें नहीं हैं, सीमाएं नहीं हैं, जिसकी ना कोई आयतें हैं, ना ही कोई श्लोक। कलाम ज़िंदगी का वो कलमा हैं, जो दिलों में जिंदा हैं और अनंत काल के लिए ज़िंदा रहेंगे।
मिसाइल मैन' भारतरत्न डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का पूरा नाम अवुल पकीर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम था... जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडू राज्य के रामेश्वरम् जिले के धनुषकोड़ी गांव में हुआ था.. कलाम एक बहुत बड़े परिवार के हिस्सा थे... परिवार में पांच भाई और पांच बहने थी.. कलाम का बचपन आर्थिक अभावों में बीता... इनके पिता मछुआरों को बोट किराए पर देते थे.. कलाम ने अपनी शुरुआती शिक्षा रामेश्वरम् में पूरी की, सेंट जोसेफ कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री ली और मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की.. उनका बचपन से एयरफोर्स जॉइन कर प्लेन उड़ाने का सपना था.. लेकिन डॉ कलाम पायलट के एग्जाम में फेल हो गए थे.. पायलट के पोस्ट के लिए कुल 8 सीटें थी लेकिन परीक्षा में उन्हें 9वां स्थान मिला था..  पायलट के एग्जाम में फेल हो जाने के कारण उन्हें एयरफोर्स में नौकरी भले ही न मिली हो.. लेकिन पुणे में उनके प्लेन उड़ाने का सपना पूरा हुआ था 74 साल की उम्र में...  वो भी सेना में लड़ाकू विमान में.. किसी लड़ाकू विमान में सफर करने वाले वे पहले भारतीय राष्ट्रपति थे.. डॉ कलाम ने पुणे के लोहेगांव एयरपोर्ट पर 8 जून 2006 को एयरफोर्स के बेड़े में शामिल सुपरसोनिक लड़ाकू विमान सुखोई-30 एमकेआई में उड़ान भरी थी... पायलट की पोशाक पहने सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर वे सुखोई में बैठे और तकरीबन 30 मिनट तक आसमान में उड़ते रहे... उड़ान से पहले डॉ कलाम को एयर वॉरियर ने गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया था.. प्लान उड़ाने का सपना जब पूरा हुआ तब डॉ कलाम ने कहा था.. मैं जमीन से जुड़ा हुआ आदमी रहा हूं, आज मेरा बचपन का सपना पूरा हो गया... पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम बेहद अनुशासनप्रिय थे। उनके लिए काम एक मिशन की तरह था जिसे सफल करने की जिद हर वक्त उन्हें बेचैन करती थी... मिसाइलमैन के नाम से पहचाने जाने वाले कलाम ने भारत को अंतरिक्ष में पहुंचाया और मिसाइल के क्षेत्र में देश का नाम रौशन कराया.. डॉ कलाम के वजह से ही अग्नि, पृथ्वी जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों ने देश की सुरक्षा को मजबूत बनाया..
वे राजनीतिज्ञ नहीं थे.. पर उनकी सोच उन्हें खुद को राजनीतिक दृष्टि से सम्पन्न साबित कर दिया था.. युवाओं को प्रोत्साहित करने की क्षमता उनमें बेमिसाल थी.. डॉ कलाम ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का प्रमुख देश बनया था.. कलाम साहित्य में रुचि रखते थे... कविता लिखते थे... और वीणा बजाते थे... वे कुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थे... उन्होंने अपना जीवन खुली किताब की तरह रखा.. कलाम बच्चों से बहुत प्रेम करते थे... इसलिए अब्दुल कलाम को पीपुल्स प्रेसीडेंट भी कहते हैं.. कलाम अपने जीवन में घटी कहानियों को सुनाकर अक्सर बच्चों को जिंदगी की सीख दिया करते थे.. एक समय डॉ कलाम एक ऐसा काम करना चाहते थे जिसे समाज में खास नहीं समझा जाता है.. अपनी बायोग्राफी 'माय लाइफ' में उन्होंने लिखा कि बचपन में वह किसी को पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ता देख बहुत खुश हो जाते थे.. अपनी बॉयग्राफी माय लाइफ में डॉ कलाम ने लिखा है, मेरी पायलट बनने की इच्छा से बहुत पहले, मैं सोचता था कि बड़े होकर नारियल के पेड़ों पर चढऩे वाला बनूंगा और यह मेरे लिए एक शानदार पेशा होगा.. कलाम जीवनभर एक शिष्य और शिक्षक रहे.. उनके लिए कोई भी समय काम का समय होता था.. वह अपना अधिकांश समय कार्यालय में बिताते थे.. देर शाम तक अलग अलग कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता रहती थी.. राष्ट्रपति भवन को भी उन्होंने अपनी प्रयोगशाला बना लिया था.. जब वे संसद के खचाखच भरे सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे तब अतिथियों के साथ देश भर से आए सौ बच्चे भी इस समारोह के खास मेहमान थे। शायद पहली बार देश को एक ऐसा राष्ट्रपति मिला, जिसने राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम आदमी के लिए खोले थे.. सही मायनों में वे आम आदमी के खास राष्ट्रपति थे.. एक महान व्यक्ति वही होता है जो कि अपने जाने के बाद भी लोगों को राह दिखाता रहे.. भारत में अब्दुल कलाम उन चुनिंदा लोगों में से जिन्हें सभी सर्वोच्च पुरस्कार मिले.. 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण, 1997 में भारत रत्न से सम्मानित हुए.. 27 जुलाई 2015 को आईआईटी गुवाहटी में संबोधित करते समय कार्डियक अरेस्ट हुआ और हम सबको अलविदा कह गये.. एक प्रखर वक्ता, थिंक टैंक के चले जाने से उनकी कमी देश को सदा रहेगी।   


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें