यूँ तो भारत में कई ऐसी जगहें हैं...जो अपने अंदर कई रहस्यों को समेटे
हुए हैं...लेकिन निधिवन को लेकर
लाखों लोगों के मन में सैकड़ों सवाल उठते हैं...वृन्दावन के इस प्रसिद्द और उत्तम
कलाकारी वाले स्थान को लेकर मान्यता है कि...आज भी रात को यहां श्री कृष्ण गोपियों
के संग रास रचाते हैं... इसलिए शाम की आरती के बाद इस मंदिर में आपको कोई नज़र नहीं
आएगा... यहां तक कि इस वन में दिन भर विचरने वाले पशु पक्षी भी शाम के बाद इस जगह
को छोड़कर चले जाते हैं... मान्यता है कि निधिवन में भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा
रानी आज भी अर्द्धरात्रि के बाद रास रचाते हैं.. रास के बाद निधिवन परिसर में
स्थापित रंग महल में शयन करते हैं... रंग महल में हर रोज प्रसाद के तौर पर माखन
मिश्री रखी जाती है... शयन के लिए पलंग लगाया जाता है... सुबह बिस्तरों के देखने
से प्रतीत होता है कि यहां निश्चित ही कोई रात्रि विश्राम करने आया था और...उसने प्रसाद
भी ग्रहण किया है..निधिवन में स्थित इस रंगमहल को शाम होने से पहले पूरा सजा दिया
जाता है और... जब दूसरे दिन सुबह उस रंग महल को खोला जाता है तो वह बिल्कुल अस्त
व्यस्त मिलता है...रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार के सामान
ही चढ़ाते हैं और प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार के सामान ही मिलते हैं....
कहा जाता है कि अगर यहाँ कोई छुपकर भी रास लीला देखता है तो वह अगले
दिन पागल हो जाता है....इस मंदिर परिसर में उगने वाले पेड़ भी अजीब तरह से बढ़ते हैं...सामान्यतः
पेड़ की शाखाएं ऊपर की ओर बढ़ती हैं पर यहाँ पेड़ों की शाखाएं नीचे की ओर बढ़ती हैं...
सबसे दिलचस्प बात ये है..कि यहां पर लगे हुए ये तुसली के पेड़ हैं...और यहां हर
तुलसी का पेड़ जोड़े में उगता है...रात के समय जब राधा कृष्ण रास रचाते हैं तब यही
तुलसी के पेड़ गोपियां बन जाते हैं...और सुबह फिर उसी अवस्था में आ जाते हैं... इन
तुलसी के पेड़ों की यह भी मान्यता है कि इनका एक पत्ता भी कोई यहां से नहीं ले जा
सकता...कहा जाता है कि आज तक जो भी इनके पत्तों को ले गया है वह किसी न किसी आपदा
का शिकार ज़रूर हुआ है...इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता...निधिवन में सबसे ज़्यादा
हैरत कर देने वाली बात तो यह है कि इसके आसपास बसे घरों में खिड़कियां नहीं हैं.. जिनके
घर में खिड़कियां है भी वे शाम को आरती के घंटे की आवाज़ के बाद उन्हें बंद कर देते
हैं.. क्यूंकि कहा जाता है कि शाम के 7 बजे के बाद कोई इस
तरफ नहीं देख सकता, अगर कोई देखता है तो वह या तो अंधा हो
जाता है या उस पर कोई बड़ी मुसीबत आ जाती है.... निधिवन में
ही बंशी चोर राधा रानी का मंदिर भी स्थापित है...इस मंदिर में राधा रानी की मूर्ति
के साथ कृष्ण की सबसे प्रिय गोपी ललिता की भी मूर्ति स्थापित है...यहां एक कुंड भी
स्थित है...जिसे विशाखा कुंड के नाम से जाना जाता है...कहा जाता है कि जब कृष्ण
गोपियों के साथ रास रचा रहे थे तब उनकी एक सखी विशाखा को प्यास लगी...पानी की कोई
व्यवस्था न देखकर कृष्ण ने अपनी बंशी से ही वहां खोदना शुरू कर दिया, जिसमें से निकले पानी को पीकर विशाखा ने अपनी प्यास बुझाई और तभी से इस
कुंड को विशाखा कुंड कहा जाने लगा...अपनी इन्हीं सारी रहस्यमयी बातों के साथ
निधिवन वृंदावन के सबसे प्रमुख आकर्षक केंद्रों में से एक है..
भगवान कृष्ण और कृष्ण की नगरी वृन्दावन के बारे में कौन नहीं जानता...बांके
बिहारी मंदिर से लेकर राधा रानी जी का मंदिर पुरे विश्व में प्रसिद्द है...कई विदेशी वृन्दावन और श्री कृष्ण से इतने प्रभावित
हुए...कि वे अपने स्वयं कृष्ण भक्ति में लीन होकर यहीं बस गए... कृष्ण की बालक्रीड़ा से लेकर उनकी पुरी जीवन कहानी की वजह से वृन्दावन के
हर मंदिर के बारे में आपने सुना ही होगा...यहां के लोगों का
मानना है कि...अगर कोई व्यक्ति इस परिसर में रात के समय रुक जाता है...तो उसे सारे
सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है...इसलिए संध्या होते ही
निधि वन को बंद कर दिया जाता है और...यहां से सभी लोग चले जाते है...फिर भी यदि
कोई व्यक्ति रासलीला को छुपकर देखने की कोशिश करता है...तो पागल हो जाता है...ऐसा
ही एक घटना करीब 15 वर्ष पहले घटित हुई थी जब जयपुर से आया
एक कृष्ण भक्त रास लीला देखने के लिए निधिवन में छुपकर बैठ गया था...जब सुबह निधि
वन के गेट खुले तो वो बेहोश अवस्था में मिला, उसका मानसिक
संतुलन बिगड़ चुका था...ऐसे ही एक अन्य व्यक्ति थे पागल बाबा जिनकी समाधि भी निधि
वन में बनी हुई है...पागल बाबा के बारे में भी कहा जाता है की उन्होंने भी एक बार
निधि वन में छुपकर रास लीला देखने की कोशिश की थी...जिससे की वो पागल हो गए थे..
वो कृष्ण के भक्त थे इसलिए उनकी मृत्यु के पश्चात मंदिर कमेटी ने निधि वन में ही
उनकी समाधि बनवा दी.. निधिवन के अंदर है एक ‘रंग महल’
जिसके बारे में लोगो का कहना है कि...रात को यहाँ पर रोज राधा और
कृष्ण आते है...रंग महल में राधा और कृष्ण के लिए रखे गए चंदन की पलंग को शाम सात
बजे के पहले सजा दिया जाता है...पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान के साथ दातुन और पान रख दिया जाता है...रोज
सुबह पांच बजे जब ‘रंग महल’ का दरवाजा
खुलता है...तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली,
दातुन कुचीं हुई और पान खाया हुआ मिलता है..
निधिवन का वास्तु ही कुछ ऐसा है...जिसके कारण यह स्थान रहस्यमयी-सा
लगता है और इस स्थिति का लाभ उठाते हुए अपने स्वार्थ के खातिर इस भ्रम तथा छल को
फैलाने में वहां के पुजारी और गाईड लगे रहते हैं...ऐसा मानना है कुछ लोगों का...अगर
मान्यताओं और कहानियों पर भरोसा नहीं करे और वैज्ञानिक दृष्टीकोण से देखा जाए तो
कई पहलू समाने आते है...अनियमित आकार के निधिवन के चारों ओर पक्की चारदीवारी है...परिसर
का मुख्यद्वार पश्चिम दिशा में है...परिसर में दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य का
स्थान बढ़ा हुआ है और पूर्व दिशा तथा पूर्व ईशान कोण दबा हुआ है...यहां के गाईड जो
16000 वृक्ष होने की बात करते हैं
वह भी पूरी तरह सही नहीं लगता है, क्योंकि परिसर का आकार
इतना छोटा है कि 1600 वृक्ष भी मुश्किल से होंगे और छतरी की
तरह फैलाव लिए हुए कम ऊंचाई के वृक्षों की शाखाएं इतनी मोटी एवं मजबूत भी नहीं हैं...कि
दिन में दिखाई देने वाले बन्दर रात्रि में इन पर विश्राम कर सके और इसी कारण वह
रात्रि को यहां से चले जाते हैं... निधिवन परिसर के अन्दर बने संगीत सम्राट् श्री
स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, रंग महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी
चोर जैसे स्थानों को देखने के लिए जो ईंटों से बनी पगदण्डी इन पेड़ों के कारण सीधी
न होकर बहुत घुमावदार बनी है जो निधिवन के वातावरण को और रहस्यमयी बनाती है...इस
परिसर की चारदीवारी लगभग 10 फीट ऊंची है और बाहर के चारों ओर
रिहायशी इलाका है जहां चारों ओर दो-दो, तीन-तीन मंजिला ऊंचे
मकान बने हुए हैं और इन घरों से निधिवन की चारदीवार के अन्दर के भाग को साफ-साफ
देखा जा सकता है...वह स्थान जहां रात्रि के समय रासलीला होना बताया जाता है वह
निधिवन के मध्य भाग से थोड़ा दक्षिण दिशा की ओर खुले में स्थित है...यदि सच में
रासलीला देखने वाला अंधा, गूंगा, बहरा
हो जाए या मर जाए तो ऐसी स्थिति में निश्चित ही आस-पास के रहवासी यह इलाका छोड़कर
चले गए होते...निधिवन के अन्दर जो 15-20 समाधियां बनी हैं,
वह स्वामी हरिदास जी और अन्य आचार्यों की हैं, जिन पर उन आचार्यों के नाम और मृत्यु तिथि के शिलालेख लगे हैं...इन्हीं
समाधियों की आड़ में ही गाईड यह भ्रम फैलाते हैं कि जो रासलीला देख लेता है...वह
सांसारिक बन्धन से मुक्त हो जाता है और यह सभी उन्हीं की समाधियां हैं...
लगभग ढ़ाई एकड़ में फैले निधिवन के वृक्षों की खासियत यह है कि इनमें
से किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं मिलेंगे और इन वृक्षों की डालियां नीचे की ओर
झुकी तथा आपस में गुंथी हुई प्रतीत हाते हैं...परिसर में ही संगीत सम्राट श्री
स्वामी हरिदास जी की जीवित समाधि, रंग
महल, बांके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल, राधारानी बंशी चोर जैसे दर्शनीय स्थान है.. यहां के गाईड के मुताबिक
निधिवन में जो 16000 आपस में गुंथे हुए वृक्ष आप देख रहे हैं,
वही रात में श्रीकृष्ण की 16000 रानियां बनकर
उनके साथ रास रचाती हैं...रास के बाद श्रीराधा और श्रीकृष्ण परिसर के ही रंग महल
में विश्राम करते हैं...सुबह 5:30 बजे रंग महल का पट खुलने
पर उनके लिए रखी दातून गीली मिलती है और...सामान बिखरा हुआ मिलता है...जैसे कि रात
को कोई पलंग पर विश्राम करके गया हो.... निधिवन में रात्रि 8
बजे के बाद पशु-पक्षी, परिसर में दिनभर दिखाई देने वाले
बन्दर, भक्त, पुजारी सभी यहां से चले
जाते हैं...और परिसर के मुख्यद्वार पर ताला लगा दिया जाता है...निधिवन दर्शन के
दौरान वृन्दावन के पंडे-पुजारी, गाईड द्वारा निधिवन के बारे
में जो जानकारी दी जाती है, उसके मुताबिक निधिवन में
प्रतिदिन रात्रि में होने वाली श्रीकृष्ण की रासलीला को देखने वाला अंधा, गूंगा, बहरा, पागल और उन्मादी
हो जाता है...ताकि वह इस रासलीला के बारे में किसी को बता ना सके...रंगमहल के
अन्दर जो दातून गीली और सामान बिखरा हुआ मिलता है...यह भ्रम इस कारण फैला हुआ है
कि रंग महल के दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान में रंग महल के अनुपात में
बड़े आकार का ललित कुण्ड है जिसे विशाखा कुण्ड भी कहते हैं.. जिस स्थान पर दक्षिण
और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान में यह स्थिति होती है वहां इस प्रकार का भ्रम और
छल आसानी से निर्मित हो जाता है...यहां जो वृक्ष आपस में गुंथे हुए हैं जिन्हें
श्रीकृष्ण की 16000 रानियां कहा जाता है...इस प्रकार के वृक्ष
निधिवन के अलावा वृन्दावन में सेवाकुंज एवं यमुना के तटीय स्थान पर भी देखने को
मिलते हैं...निधिवन वृन्दावन नगर के उत्तरी भाग में स्थित है..जहां से यमुना नदी
लगभग 300 मीटर दूरी पर स्थित है...उत्तर दिशा की वास्तुनुकूलता
के कारण निधिवन प्रसिद्ध है...इसी के साथ निधिवन परिसर को उत्तर ईशान, पूर्व ईशान और दक्षिण आग्नेय का मार्ग प्रहार हो रहा है...यह सभी शुभ
मार्ग प्रहार है जो निधिवन परिसर की प्रसिद्धि बढ़ाने में सहायक हैं..
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