नर्गिस दत्त का जन्म फातिमा अब्दुल रशीद के रूप में 1 जून, 1929 को कलकत्ता में हुआ
था। नर्गिस के पिता उत्तमचंद मूलचंद माता जद्दनबाई तथा दो भाई, अख्तर व अनवर हुसैन थे। नरगिस की माता गायक, नर्तक,
निर्देशक, संगीतकार और अभिनेत्री के रूप में
एक हरफनमौला थी।वह चाहती थी कि उनकी बेटी भी फ़िल्मों में काम करे।लेकिन बचपन से ही
नर्गिस के दिल में डॉक्टर बनने की ख्वाहिश थी। मां के कहने पर नर्गिस ने 6 वर्ष की आयु में भारतीय फिल्मों में प्रवेश कर लिया था। नर्गिस की बतौर
चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म तलाश-ए-हक़ थी जो 1935 में रिलीज हुई
थी। इस फिल्म से उनका नाम नर्गिस पड़ा था।चौदह वर्ष की उम्र में निर्देशक महबूब खान
की फिल्म 'तक़दीर' में मोतीलाल की
हीरोइन के तौर पर उनका पहला ऑडीशन हुआ था। 1941 में नर्गिस
की मां ने उन्हे महबूब खान की नई फ़िल्म के लिए स्क्रीन टेस्ट देने के लिए कहा.
लेकिन नर्गिस फ़िल्मों में आना ही नहीं चाहती थी, इसलिए
उन्होने स्क्रीन टेस्ट में खराब से खराब परफ़ॉर्म किया ताकि महबूब खान उन्हे इस
फ़िल्म में ना ले. लेकिन महबूब खान नर्गिस की खूबसूरती से इतने प्रभावित हुए कि
उन्होने स्क्रीन टेस्ट को दरकिनार करके नर्गिस को अपनी फ़िल्म की लीड एक्ट्रेस चुन
लिया. नर्गिस की पहली फ़िल्म 1943 में तकदीर आई. हांलांकि ये
फ़िल्म ज्यादा नहीं चली लेकिन नरगिस के काम की खूब सराहना हुई. इसके बाद नरगिस ने
कुछ और फ़िल्मों में काम किया, लेकिन उन्हे वो बड़ी सफ़लता नहीं
सकी जिसकी उन्हे तलाश थी. नर्गिस की तलाश खत्म 1948 में हुई
जब उनकी फ़िल्म मेला रिलीज हुई.इस फ़िल्म में नरगिस के स्क्रीन पार्टनर थे दिलीप
कुमार. इसके बाद नर्गिस ने कभी पीछे मुड़ के नहीं देखा. इसी साल आई उनकी एक और
फ़िल्म अनोखा प्यार ने भी अच्छा कारोबार किया.1948 का ये साल
नर्गिस की जिंदगी के लिए बेहद अहम साल था, क्योंकि इसी साल
आई थी फ़िल्म आग. इस फ़िल्म में नर्गिस के हीरो थे राजकपूर. मतलब वो जोड़ी जिसने आगे
चलकर कई हिट फ़िल्में तो दी थी, मोहब्बत का एक ऐसा तराना भी
छेड़ा जिसे आज तक गुनगुनाया जाता है.
राज कपूर और नर्गिस 1940-1960 के दशक की बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत और पॉपुलर
जोड़ियों में से एक थी। दोनों सिर्फ़ रील लाइफ में नहीं बल्कि रियल लाइफ में भी
रोमांटिक कपल थे। उन दिनों इनकी ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री को दर्शकों खूब पसंद करते
थे। नर्गिस ने राजकपूर के साथ कुल 16 फिल्में की, जिनमें से 6 फिल्में आर.के.बैनर की ही थी.. फिल्मों
के फेहरिस्त में आग, बरसात, अंदाज़,
आवारा, आह, श्री 420,
जागते रहो और चोरी-चोरी जैसी यादगार फिल्में शामिल हैं.. लेखिका मधु
जैन की किताब 'द कपूर्स' के मुताबिक –
जब बरसात बन रही थी तब नर्गिस पूरी तरह से राज कपूर के लिए समर्पित
हो चुकी थीं। यहां तक कि जब स्टूडियो में पैसे की कमी हुई तो नर्गिस ने अपनी सोने
की चूड़ियां बेच दी.. कहा तो यह भी जाता था कि नर्गिस दूसरे निर्माताओं की फिल्मों
में काम करके आर.के फिल्म्स की खाली तिजोरी को भरने का काम किया.. जब नरगिस 19
साल की थीं तब उनका राजकपूर के साथ रिश्ता जुड़ा। धीरे-धीरे ये
रिलेशन प्यार में बदल गया। बाद में नरगिस को इस बात का अहसास हुआ कि ये प्यार
एकतरफा था.. चाह कर भी राजकपूर नर्गिस के शादी नहीं कर सकते थे क्योंकि राजकपूर
शादीशुदा थे और वो अपनी पत्नी कृष्णा कपूर और बच्चों को छोड़कर नर्गिस से शादी
नहीं कर सकते थे.. मजबूरी कहें या फिर वक्त की नजाकत राजकपूर नर्गिस से बेइंतहा
प्यार करते थे...जब राजकपूर को पता चला कि नर्गिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली है
तो वो आपे से बाहर हो गए.. वह अपने दोस्तों के सामने ही फूट-फूटकर रोने लगे अफवाह
तो ये भी थी कि उन्होंने जलती हुई सिगरेट से खुद को जलाकर ये जानने की कोशिश की कि
कहीं वो कोई सपना तो नहीं देख रहे.. राजकपूर और नर्गिस के बीच अलगाव की पहली दरार
रूस यात्रा के दौरान आई.. तब तक 'आवारा' रूस की अघोषित राष्ट्रीय फ़िल्म हो चुकी थी। राज कपूर का मॉस्को के
ऐतिहासिक 'लाल चौराहे' पर नागरिक
अभिनंदन किया गया। उसी रात राज कपूर ने नर्गिस से कहा 'आई
हैव डन इट' और इसके पहले हर सफलता पर राज कपूर कहते थे 'वी हैव डन इट'। अनजाने में कहे गए एक शब्द ने उनके
संबंधों में दरार डाल दी। वर्षों की अंतरंगता पर यह एक शब्द भारी पड़ गया.. 1956
में आई फिल्म 'चोरी चोरी' नरगिस और राजकपूर की जोड़ी वाली अंतिम फिल्म थी। हालांकि राजकपूर
की फिल्म 'जागते रहो' में
भी नर्गिस ने अतिथि कलाकार की भूमिका निभाई।
1957 में आई फिल्म मदर इंडिया ने
नर्गिस के करियर और जिंदगी को एक नया मोड़ दिया। कई साल पहले फिल्म 'आग' के दौरान उनकी जिंदगी में राज कपूर आए थे। अब 11
साल बाद एक और आग लगी और नरगिस की जिंदगी में आए सुनील दत्त। मदर
इंडिया के एक सीन को शूट करते हुए जब नर्गिस आग में फंस गईं तो इससे पहले कि कोई
दुर्घटना हो पाती सुनील दत्त भागते हुए आए और आग में कूद पड़े। सुनील दत्त ने न
सिर्फ़ नर्गिस की जान बचाई बल्कि उनका दिल भी जीत लिया।शादी से पहले दोनों एक
दूसरे को पत्र लिखते थे।ज्यादातर लेटर में सुनील दत्त, नरगिस
को पिया कहकर संबोधन करते थे. ज्यादातर पत्रों में सुनील दत्त, नर्गिस को पिया कहकर संबोधन करते थे।आखिर के कुछ पत्रों में दोनों एक
दूसरे को डार्लिंगजी लिखकर पत्र भेजना शुरू किया था।साल 1958 में सुनील दत्त ने नर्गिस से शादी कर ली थी. साल 1964 में आई 'यादें' इकलौती फिल्म
है जिसमें दोनों को ऑन स्क्रीन रोमांस करने को मिला. इसके बाद नरगिस करीब-करीब
फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कर दिया और लाजवंती,
अदालत, यादें, रात और
दिन जैसी कुछेक फिल्मों में ही अभिनय किया। उनकी मां उन्हें हमेशा से एक अभिनेत्री
बनाना चाहती थीं. कला नर्गिस को विरासत में मिली थी. नर्गिस ने करीब दो दशक के
फिल्मी सफर में दर्जनों यादगार भूमिकाएँ की और 1957 में
प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया में राधा की भूमिका के जरिये भारतीय नारी का एक नया और
सशक्त रूप सामने रखा। इस फिल्म को ऑस्कर के लिए नामित किया गया था। नर्गिस को
फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार मिला। रोमांटिक भूमिकाओं को सहज रूप
से निभाने वाली नर्गिस ने लीक से हटकर कई भूमिकाएँ की। लाजवंती में नर्गिस ने
बलराज साहनी की पत्नी की बेहतरीन भूमिका की और दर्शकों को भावनात्मक रूप से
उद्वेलित किया।
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