घोटालों
का एक लंबा इतिहास है। लेकिन उसी घोटालों के इतिहास की किताब में घोटालेबाजों ने
नया कारनामा भी अंकित करा दिया है। ये घोटाला है जीवन की मूलभूत सुविधा से जुडा
हुआ। पानी का घोटाला किया है घोटालेबाजो ने। आजादी के बाद से लेकर अब तक न जाने
कितने घोटाले हुए। हाकिमों के हुकुम और नौकरशाहों के शाही अंदाज पूरा करने के लिए देश
की अधिकतर योजना घोटाले की भेंट चढ़ गई। लेकिन एक दौर जहां जल ही जीवन है का नारा
बुलंद होता हो वहां जीवन रूपी जल की सांस ही रोक दी जाए तो यकीनन इस आधुनिक दौर की
दौड़ में थोड़ा वक्त निकाल कर एक नई कहावत आप गढ़ ही लीजिए। क्योकि प्रतापगढ़ में
लापरवाही की इतंहा ने लोगों को बूंद बूंद पानी के लिए जनता को मोहताज कर दिया है और
जिसका कंठ पानी की दूरी नहीं सह सकता वो अपनी जेब ढीली करे और खरीद ले पानी की
बोतल। जनता को सस्ते दरों पर पानी मिले और चिलचिलाती धूप में वो अपना गला तर कर
सकें। इसके लिए पिछली सरकार ने बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन से लेकर शहर के हर एक चौक चौराहे
पर वाटर एटीएम की व्यवस्था की थी। जिसमें चंद रूपए खर्च कर के आप अपने सूखते गले
को राहत दे सकते हैं। लेकिन प्रतापगढ़ नगर पालिका के नौकरशाह स्वयंभू हाकिम बन
बैठे और अपने हिसाब से अपने चहेतों के हाथों में वाटर एटीएम के ठेके दे दिए। और उन्हीं
हाथो से वाटर एटीएम का गला घोट दिया। अब कई वाटर एटीएम खुद पानी की आस में खडे हुए
हैं तो कई वाटर एटीएम बूंद बूंद पानी ही देने में सक्षम हैं। ऐसे में राहगीरों को
अपनी ज्यादा जेब ढीली करके प्यास बुझानी पड़ रही है तो वही अधिकारी बस वहीं
शब्दावली दोहरा रहे हैं जो हर अधिकारी सरकारी नौकरी ज्वाइन करने के बाद अपनी गलती
करने के बाद दोहराता है। ऐसा नही है कि प्रतापगढ़ का हर वाटर एटीएम पानी की बूंद
बूंद के लिए खुद तरसता है और राहगीरों को तरसाता है। बल्कि कुछ वाटर एटीएम ऐसे भी
हैं जहां पानी की बर्बादी होती है लेकिन नगर पालिका के अधिकारी पानी की बर्बादी
रोकने के लिए भी नाकाम हैं। ये वाटर एटीएम अब दाता से याची की भूमिका में आ गए हैं
और धूप में सूखे गले के साथ खडे होकर खुद के लिए इंसाफ मांग रहे हैं। लेकिन बेचारे
ये कहां जानते हैं जब इंसानों को इंसाफ मिलने में बरसों गुजर जाते हैं तो ये तो
वाटर एटीएम हैं। बस वाटर एटीएम।
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