रविवार, 1 अक्टूबर 2017

महाकाल

                                     महाकाल

मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है महाकालेश्वर... महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है.. यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है...  संस्कृति के प्रतीक कुम्भ की पवित्र जगह में से एक उज्जैन अर्थात उज्जयिनी बहुत प्राचीन है. यह महाकालेश्वर का क्षेत्र है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन में विराजित बाबा महाकाल का हर दिन विभिन्न रूपों में श्रृंगार होता है और शिव भक्त हर दिन अलग-अलग रूप में महाकाल के दर्शन करते हैं. देश के अलग-अलग भागों में स्थित भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग में श्री महाकालेश्वर एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग है। इन्हें द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक कहा जाता है। इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। महाकाल की आराधना कर भक्त भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं.. देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' का अपना एक अलग महत्व है। महाकाल मंदिर दक्षिण मुखी होने से भी इस मंदिर का अधिक महत्व है.. यह एक स्वयंभू शिवलिंग है अर्थात यहां स्वयं शिव इस स्थान पर प्रगट हुए थे.. 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' बहुत जाग्रत ज्योतिर्लिंग' में से एक है.. आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है.. आज जो महाकालेश्वर का विश्व-प्रसिद्ध मन्दिर विद्यमान है, यह राणोजी शिन्दे शासन की देन है। यह तीन खण्डों में विभक्त है। निचले खण्ड में महाकालेश्वर बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं.. शिखर के तीसरे तल पर भगवान शंकर-पार्वती नाग के आसन और उनके फनों की छाया में बैठी हुई सुन्दर और दुर्लभ प्रतिमा है। इसके दर्शन वर्ष में एक बार श्रावण महीने के शुक्ल पंचमी यानी की नागपंचमीद्ध के दिन होते हैं...

कहा जाता है भगवान शिव यहां असुर दूषण के विनाश के लिए प्रकट हुए थे.. दूषण वध के बाद शिव ने अपने भक्तों को वर दिया कि संसार के कल्याण के लिए यहां ज्योतिर्लिंग के रुप में वास करेंगे.. महाकाल का यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। इसके निर्माण में मंदिर के पुराने अवशेषों का भी उपयोग हुआ है.. महाकाल भगवान शिव का ही एक रूप है.. जिन्हें पूरी दुनिया का राजा भी कहा जाता है.. महाकाल को उज्जैन का अधिपति माना जाता है.. ऐसे में यह बात भी कही जाती है कि उज्जैन में केवल एक ही राजा रह सकता है.. इस वजह से किसी भी राज्य के मुख्य मंत्री या देश के प्रधानमंत्री उज्जैन आते तो जरूर है लेकिन यहां रात को ठहरते नहीं.. माना जाता है कि अगर वो यहां ठहरने की कोशिश करते हैं तो कुछ ही दिनों में उनकी कुर्सी चली जाती है... अलग अलग त्योहारों पर शहर में महाकाल की धूमधाम से यात्रा निकाली जाती है.. जब भी बाबा महाकाल की यात्रा निकाली जाती है तो पुलिस टुकड़ी उन्हें सलामी भी देती हैं। पूजन के बाद जिला अधिकारी और पुजारी, पालकी को कंधे पर नगर भ्रमण कराते हैं। जैसे ही बाबा महाकाल की पालकी मंदिर परिसर के बाहर आती है, सशस्त्र गार्ड राजा महाकाल को सलामी देते हैं। सवारी के आगे पुलिस, घुड़सवार, सशस्त्र बल की टुकड़ी, सरकारी बैंड के साथ-साथ भजन मंडलिया चलती हैं.. श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए महाकाल का मंदिर सुबह 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक खुला रहता है। हर सोमवार और महाशिवरात्रि के दिनों में यहां भारी भीड़ उमड़ती है.. महाकाल के मंदिर में पेड दर्शन की सुविधा भी है.. इसके लिए आप 151 रुपये देकर ऑनलाइन बुकिंग करावा सकते हैं.. महाकालेश्वर की दिन में तीन बार पूजा, श्रृंगार तथा भोग आदि से अर्चना होती है.. ब्रह्म मुहू‌र्र्त में 4 बजे महाकालेश्वर का पूजन चिता भस्म से किया जाता है... इसके बाद पहली सरकारी पूजा सुबह आठ बजे होती है.. फिर दोपहर और शाम को पूजा की जाती है..

प्रचलित मान्यता के मुताबिक वर्षों पहले श्मशान के भस्‍म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्‍म आरती होती थी... लेक‌िन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है.. वर्तमान में महाकाल की भस्‍म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़‌ियों को जलाकर तैयार क‌िए गए भस्‍म का प्रयोग क‌िया जाता है। इन्हीं भस्‍म से हर सुबह महाकाल की आरती होती है.. दरअसल यह भस्‍म आरती महाकाल का श्रृंगार है और उन्हें जगाने की व‌िध‌ि है. इस आरती का एक न‌ियम यह भी है क‌ि इसे मह‌िलाएं नहीं देख सकती हैं। इसल‌िए आरती के दौरान कुछ समय के ल‌िए मह‌िलाओं को घूंघट करना पड़ता है। आरती के दौरान पुजारी एक वस्‍त्र धोती में होते हैं। इस आरती में अन्य वस्‍त्रों को धारण करने का न‌ियम नहीं है। महाकाल की आरती भस्‍म से होने के पीछे ऐसी मान्यता है क‌ि महाकाल श्मशान के साधक हैं और यही इनका श्रृंगार और आभूषण है.. महाकाल की पूजा में भस्‍म का व‌िशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है.. ऐसी धारणा है क‌ि श‌िव के ऊपर चढ़े हुए भस्‍म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्त‌ि म‌िलती है..

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकाल का ये मंदिर को मध्य भारत की भव्यता का प्रतीक माना जाता है.. इसकी भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर के बारे में लिखा गया है.. महाकालेश्वर मंदिर से 53 किलोमीटर की दूरी पर देवी अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट है.. यह जगह देश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है.. आप इंदौर एयरपोर्ट उतरकर टैक्सी ले सकते हैं.. उज्जैन के लिए टैक्सी किराया 1000 रुपये तक है.. मंदिर से महज कुछ ही दूरी पर उज्जैन रेलवे स्टेशन है जो पश्चिम रेलवे जोन का महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है.. उज्जैन रेलवे स्टेशन से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है महाकाल का यह प्रसिद्ध मंदिर.. उज्जैन भारत के अलग-अलग हिस्सों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है.. दिल्ली, मालवा, पुणे, इंदौर और भोपाल जैसे जगहों से आप सीधे ट्रेन के जरिए उज्जैन पहुंच सकते हैं.. महाकाल के दर्शनों के लिए यात्री रेल द्वारा उज्जैन पहुँचते है.. जैसे ही यात्री रेल गाड़ी से उतरते है.. चारों ओर महाकाल की जय जयकार सुनाई देती है। रेल यात्रा से थके हुए यात्रियों के लिए, रेलवे स्टेशन से निकलते ही कई अच्छे होटल तथा धर्मशालायें है जहाँ यात्री रुक सकते हैं.. अगर आप सड़क के रास्ते महाकालेश्वर मंदिर जाना चाहते हैं तो मैक्सी रोड, इंदौर रोड और आगरा रोड सीधे उज्जैन से जुड़े हुए हैं... उज्जैन में कई प्रसिद्ध मंदिर है जिनकी बड़ी मान्यता है। कहते है यदि बैलगाड़ी भर के अनाज लाया जाये और एक-एक मुठी हर मंदिर में चढ़ाई जाये तो अनाज खत्म हो जायेगा पर उज्जैन में मंदिरों की गिनती खत्म नहीं होगी.. उज्जैन घूमने के लिए कम से कम यात्रियों को 2-3 दिन का समय चाहिए.. उज्जैन आने के लिए सभी मौसम श्रेष्ठ हैं। यहां किसी भी मौसम में महाकाल के दर्शन किए जा सकते हैं। हर वर्ष सावन का महिना हो या महाशिवरात्रि या फिर कोई तीज-त्योहारों भक्तों की भीड़ यहां लगी रहती है..

मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में महाशिवरात्रि का त्योहार नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यहां विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में भगवान महाकाल नौ दिन तक प्रतिदिन दूल्हे के रूप में दर्शनार्थियों को दर्शन देते हैं.. कहा जाता है कि ऐसी परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.. महाशिवरात्रि के पूर्व भगवान को अलग-अलग रुपों में श्रृंगारित कर दूल्हें की तरह सजाया जाता है.. महाशिवरात्रि पर मंदिर को आकर्षक विवाह मंडप की तरह सजाया जाता है.. मंदिर में भगवान का श्रृंगार कर उनको कटरा, मेखला, दुपट्टा, मुकुट, मुंडमाल, और छत्र से श्रृंगारित किया जाता है.. हर रोज भगवान महाकाल को नवीन वस्त्र धारण कराए जाते हैं तथा नौ दिन तक बाबा महाकाल विभिन्न स्वरूपों में दर्शन देंते हैं.. अलग-अलग नौ दिन भगवान महाकाल को श्रृंगारित कर वस्त्र एवं आभूषण के साथ पूजन-अर्चन किया जाता है.. महाकाल को पहले दिन शेषनाग श्रृंगार से सुशोभित किया जाता है. दूसरे दिन घटाटोप श्रृंगार, तीसरे दिन छबीना श्रृंगार, चौथे और पांचवे दिन.. होलकर श्रृंगार और मनमहेश श्रृंगार किया जाता है.. जबकी छठे दिन महाकाल को उमा-मनमहेश श्रृंगार किया जाता है.. सातवें दिन शिवतांडव श्रृंगार और आठवें दिन महाशिवरात्रि श्रृंगार किया जाता है... नौवें दिन शिवरात्रि की महापूजा होती है। अगले दिन भगवान महाकाल का विपुल फूलों से श्रृंगार किया जाता है, जिसमें श्रद्धालु भगवान के सेहरे का दर्शन करते हैं.. सावन के पावन महीने में पूरा देश बोलबम के जयकारे के साथ भगवान शंकर की भक्ति में लीन हो जाता है.. इस दौरान भक्तजन बाबा भोले के दर्शन के लिए कई मील की दूरी का सफर करते हैं। सावन के महीने में लाखों की संख्या में लोग भगवान शिव की आराधना के लिए यहां पहुंचते हैं।
आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में आज हम आपको रूबरू करवा रहे हैं देवास के महाकालेश्वर मंदिर से। इस मंदिर से हजारों लोगों की आस्था जुड़ी है। मंदिर के आसपास रहने वाले और यहाँ नियम से दर्शन करने आने वाले लोगों का कहना है कि यहाँ का शिवलिंग न सिर्फ स्वयंभू है.. बल्कि हर साल इसकी ऊँचाई लगातार बढ़ रही हैजो अपने आप में एक चमत्कार है.. यहां आने वाले हर भक्त को भरोसा रहता की कि यहां मांगी गई मनौतियां जरूर पूरी होंगी...शुरू में तो किसी को भी पता नहीं चला थापरंतु चार-पाँच साल बाद सभी को अहसास होने लगा कि शिवलिंग लगातार बढ़ रहा है। अब इसकी ऊँचाई लिंग के मूल रूप की तुलना में काफी बढ़ चुकी है। इस शिवलिंग के स्वयंभू होने के पीछे भी एक कथा है। कहते हैं आज से लगभग सौ साल पहले जब देवास एक गाँव था और यहाँ यातायात के अच्छे साधन नहीं थेउस समय गौरीशंकर पंडित नामक व्यक्ति महाकाल के परम भक्त थे। वे रोज सुबह  महाकाल के दर्शन करने के बाद ही अन्न ग्रहण करते थे। उनका यह नियम अटूट था। एक बार मूसलधार बारिश होने के कारण देवास-उज्जैन मार्ग का नाला उफन गया और वे उज्जैन नहीं जा पाए। अपने आराध्य के दर्शन नहीं कर पाने के कारण गौरीशंकरजी ने अन्न-जल त्याग दिया। इस बार बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया और गौरीशंकर जीवन के अंतिम क्षण गिनने लगे। वे मृत्यु के करीब ही थे क‍ि तभी उन्हें भोलेशंकर ने दर्शन दिए और वरदान माँगने को कहा। गौरीशंकर ने प्रभु से नित्य दर्शन का वरदान माँगा। प्रभु ने आशीर्वाद दिया कि जहाँ भी वे पाँच बिल्वपत्र रखेंगे वहीं महाकाल प्रकट होंगे।" इस संयोग के बाद ही देवास के इस टीले पर स्वयंभू भगवान प्रकट हुए। ग्रामीणों ने यहाँ मंदिर का निर्माण करवा दिया। उसके बाद यह मंदिर जनआस्था का केंद्र बन गया। इस संयोग के कुछ साल बाद लोगों ने महसूस किया कि किया कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग लगातार बढ़ रहा है। तब इसे चमत्कार माना जाने लगा। यहाँ आने वाले लोगों का दावा है कि शिवलिंग शिवरात्रि के दिन एक तिल बढ़ जाता है.. परम पवित्र ज्योर्तिलिंग पुण्यसलिला क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन में स्थित है.. प्राचीनकाल में यह शहर उज्जयिनी के नाम से विख्यात था, इसे अवंतिकापुरी भी कहते थे.. यह स्थान भारत की परम पवित्र सप्तपुरियों में से एक है... महाभारत, शिवपुराण और स्कंदपुराण में महाकाल ज्योर्तिलिंग की महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है... इस ज्योर्तिलिंग की कथा पुराणों में भी वर्णित है- प्राचीनकाल में उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे। वह परम शिव-भक्त थे। एक दिन श्रीकर नामक पांच वर्ष का एक गोप-बालक अपनी मां के साथ उधर से गुजर रहा था। राजा को शिवपूजन करते देख उसे बहुत विस्मय और कौतूहल हुआ। वह स्वयं उसी प्रकार की सामग्रियों से शिवपूजन करने के लिए लालायित हो उठा.. सामग्री का साधन न जुट पाने पर लौटते समय उसने रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठा लिया.. घर आकर उसी पत्थर को शिव रूप में स्थापित कर पुष्प, चंदन से परम श्रद्धापूर्वक उसकी पूजा करने लगा। माता भोजन करने के लिए बुलाने आई, किंतु वह पूजा छोड़कर उठने के लिए किसी भी प्रकार तैयार नहीं हुआ.. अंत में माता ने झल्लाकर पत्थर का वह टुकड़ा उठाकर दूर फैंक दिया.. इससे दुखी होकर वह बालक जोर-जोर से भगवान शिव को पुकारता हुआ रोने लगा और अंतत: रोते-रोते बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा.. बालक की अपने प्रति यह भक्ति और प्रेम देख कर भोलेनाथ भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए.. बालक ने जैसे ही होश में आकर अपने नेत्र खोले तो उसने देखा कि उसके सामने एक बहुत ही भव्य और अतिविशाल स्वर्ण और रत्नों से बना हुआ मंदिर खड़ा है.. उस मंदिर के अंदर एक बहुत ही प्रकाशपूर्ण.. तेजस्वी ज्योर्तिलिंग खड़ा है.. बच्चा प्रसन्नता और आनंद से विभोर होकर भगवान शिव की स्तुति करने लगा.. माता को जब यह समाचार मिला तब दौड़कर उसने अपने बच्चे को गले से लगा लिया.. फिर बाद में राजा चंद्रसेन ने भी वहां पहुंच कर उस बच्चे की भक्ति और सिद्धि की सराहना की.. और धीरे-धीरे महाकाल का ये ज्योर्तिलिंग दुनिया में विख्यात हो गया... 


प्रथम आरती भस्मार्ती सुबह 04:00 से 06:00 बजे तक
द्वितीय आरती द्योदक सुबह 07:30 से 08:15 बजे तक
तृतीय भोग आरती सुबह 10:30 से 11:15 बजे तक
चतुर्थ संध्याकालीन पूजन सायं 05:00 से 05:45 बजे तक
पचम संध्या आरती सायं 06:30 से 07:15 बजे तक
शयन आरती रात्रि 10:30 से 11:00 बजे तक
महाकलेश्वर मंदिर की महिमा





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